शनिवार, 23 जुलाई 2016

क्या लालूजी बिहार को कश्मीर बनाना चाहते हैं?



मित्रों,हम आपको पहले भी बता चुके हैं हमारा बचपन ननिहाल में बीता है। जाहिर है कि मेरे मामा लोग मुझे चिढ़ाते थे कि तेरा बाप चोर है तो तेरा बाप मोची है आदि। मैं तब अबोध बालक था सो तुरंत पलटकर कह देता कि तेरा बाप भी चोर है या मोची है। मुझे तब पता नहीं था कि उनके पिता मेरे नाना होते हैं। तब का एक और संस्मरण याद आ रहा है। मेरे ननिहाल में एक घर था जिसे हम गिदड़बा अंगना या गीदड़ों का आंगन कहकर बुलाते थे। क्योंकि उस आंगन के एक व्यक्ति पर हाथ डालिए तो पूरा घर एकजुट होकर हुआँ-2 करने लगता था। उस घर की एक लड़की एक दलित के साथ भाग गई। गाँव के लोग उसके दरवाजे पर जमा हो गए। तभी लड़की की बड़ी बहन ने गजरते हुए कहा कि यहाँ कोई तमाशा हो रहा है क्या? मैं नहीं जानती हूँ क्या कि गाँव की कौन-कौन-सी लड़की ने छुप-छुप कर क्या-क्या गुल खिलाए हैं? अब कौन जाता उससे मुँह लगाने सो सारे गाँववाले तितर-बितर हो गए।
मित्रों,हम यह आप पर छोड़ते हैं कि इन दोनों में से आप महान बिहार के महान नेता लालू प्रसाद जी को किस श्रेणी में रखेंगे। बेचारे की अब काफी उम्र हो चुकी है। साठ भी पार कर चुके हैं सो उनको उनकी खुद की परिभाषानुसार यानि कि यादवों को 60 की उम्र में जाकर बुद्धि आती है अबोध तो कतई नहीं कहा जा सकता। तो क्या इसका सीधा मतलब यह नहीं निकालना चाहिए कि लालू जी उस भाग गई लड़की की बड़ी बहन की तरह थेथरई बतिया रहे हैं।
मित्रों,लालू के लाल यही काम तबसे ही कर रहे हैं जबसे बिहार के उपमुख्यमंत्री बने हैं। बिहार में कहीं कोई आपराधिक घटना हुई नहीं,बिहार से किसी घपले-घोटाले-अव्यवस्था की खबर आई नहीं कि तुरंत अपने श्रीमुख से विषवमन करना शुरू कर देते हैं कि ऐसा हमारे यहाँ ही होता है क्या? वहाँ उस राज्य में भी तो हुआ है?मतलब यह कि भला जो देखन मैं चला,भला न दीखा कोय। जो दिल ढूंढ़ा आपना, मुझसा भला न कोय।। अब आप ही बताईए कि फिर किस माई के लाल में दम है कि ऐसे स्वनामधन्य महामूढ़ को उसकी गलती का अहसास दिला दे?
मित्रों,लेकिन हमारे लालू प्रसाद जी ठहरे महातेजस्वी तेजस्वी यादव जी के पिता सो इस मामले में बेटे से पीछे कैसे रह जाते? सो बिहार के सबसे शरीफ नगर बिहार शरीफ में पाकिस्तान झंडा फहराए जाने की घटना सामने आते ही थेथरई के मैदान में नया कीर्तिमान स्थापित कर ही तो दिया। बिहार की तुलना सीधे जन्नत से जहन्नुम बना दिए गए कश्मीर से करते हुए कह ही तो दिया कि इसमें कौन-सी बड़ी बात है ऐसा तो कश्मीर में रोजे होता है। मानो बिहार और कश्मीर दोनों एकसमान हों। मानो कश्मीर की तरह बिहार की भी 70 प्रतिशत आबादी मुस्लिम हो। मानो बिहार में भी पाकिस्तान की शह पर वर्षों से अलगाववादी आतंकवाद चल रहा हो।
मित्रों,यद्यपि हम लालू से नाराज हैं कि पूरी तरह से सक्षम होते हुए भी उन्होंने पाकिस्तान के समर्थन में नारेबाजी या पाकिस्तान का झंडा फहराए जाने की घटना के मामले में बिहार की तुलना पाकिस्तान, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, इराक, सीरिया, मिस्र, नाइजीरिया आदि देशों में घटी घटनाओं से क्यों नहीं की। वैसे,हमें लालूजी की महान सूक्ष्मबुद्धि को देखते हुए उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास है कि वे भविष्य में किसी-न-किसी प्रसंग में कभी-न-कभी ऐसा जरूर करेंगे। आखिर कब तक बिहार की तुलना देसी राज्यों से होती रहेगी? बिहार की ईज्जत का सवाल है भाई।

सोमवार, 18 जुलाई 2016

बिहार के विकास दर का कड़वा सच

मित्रों,महाभारत की लड़ाई अंतिम खंड में थी। महारथी कर्ण और अर्जुन आमने-सामने थे। तभी अर्जुन ने भयंकर वाणों का प्रयोग कर कर्ण के रथ को कई योजन पीछे पटक दिया। मगर अर्जुन के सारथी श्रीकृष्ण निश्चल बने रहे। जवाब में कर्ण ने भी वाण चलाए और अर्जुन के रथ को कुछेक अंगुल पीछे कर दिया। मगर यह क्या! श्रीकृष्ण कर्ण के इस कृत्य पर बाँसों उछलने लगे और उसकी तारीफ के पुल बांध दिए। अर्जुन हतप्रभ। पूछ ही तो दिया। ऐसा क्यों माधव? श्रीकृष्ण ने कहा कि तुम्हारे रथ की पताका पर रूद्रावतार हनुमान विराजमान हैं और मैं खुद भी तीनों लोकों का भार लेकर बैठा हूँ। फिर भी महावीर कर्ण ने तुम्हारे रथ को कई अंगुल पीछे धकेल दिया।
मित्रों,हमारे महान लालूजी का महान परिवार इन दिनों खासे उत्साह में हैं। वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि गुजरात अर्जुन का रथ है और बिहार कर्ण का। गुजरात पहले ही विकास कर चुका है और संतृप्तावस्था को प्राप्त कर चुका है जबकि बिहार ने अभी  विकास का ककहरा पढ़ना शुरू ही किया है। शून्य के मुकाबले 1 अनन्त गुना होता है जबकि 1 के मुकाबले दो सिर्फ दोगुना। तो क्या शून्य से 1 प्रतिशत पर पहुँचनेवाला राज्य यह कहेगा कि हमने पिछले साल के मुकाबले इस साल अनन्त गुना विकासदर प्राप्त कर लिया है? खैर,5 बार मैट्रिक में फेल लालू और उनके नौवीं फेल बच्चे अगर ऐसा करें भी तो इसमें उनका क्या दोष?
मित्रों,समय और दूरी में आपने पढ़ा होगा कि एक कार इतने किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलना शुरू करती है। इतने घंटे बाद दूसरी कार इतने किमी प्रति घंटे की गति से उसका पीछा करना शुरू करती है तो दूसरी कार पहली कार को कितने घंटे में पकड़ लेगी। गुजरात काफी पहले से विकास के पथ पर सरपट दौड़ रहा है जबकि बिहार ने कथित रूप से अब दौड़ना शुरू किया है। बिहार प्रति व्यक्ति आय में 34 हजार रूपये प्रति वर्ष के साथ अभी भी सबसे पीछे है। अभी तो उसको भारत के सबसे पिछड़े राज्यों को ही पीछे करने में कई दशक लगनेवाले हैं। अभी तो उसको भारत की प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय औसत आय 72889 रूपये तक पहुँचने में ही कई दशक लग जानेवाले हैं फिर देश के अग्रणी राज्यों को पीछे छोड़ने की तो बात ही दूर है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जनसंख्या-घनत्व और जनसंख्या वृद्धि में बिहार देश में सबसे आगे है। इसलिए कुल जीडीपी बढ़ने का यह मतलब कदापि नहीं लगाया जाना चाहिए कि बिहार की प्रति व्यक्ति आय भी उसी दर से बढ़ रही है।
मित्रों,बिहार प्रति व्यक्ति औसत आय के मामले में तब सबसे पीछे से आगे बढेगा जबकि बिहार सरकार द्वारा तैयार किए गए विकास दर के आंकड़े सही हों। बिहार में धरातल पर जो कुछ घटित हो रहा है उससे तो ऐसा नहीं लगता कि बिहार की जीडीपी इतनी तेज गति से बढ़ रही है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जो लोग बाईक पर भैंस को ढो सकते हैं उनके लिए आंकड़ों में हेरा-फेरी करना कौन-सी बड़ी बात है। यहाँ हम आपको बता दें कि जीडीपी विकास दर के आंकड़े राज्य खुद तैयार करते हैं राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन सिर्फ उन पर मुहर लगाता है।

रविवार, 17 जुलाई 2016

कौन हैं देश के सबसे बड़े दुश्मन,बुरहान या ये सफेदपोश

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,हम वर्षों से कहते आ रहे हैं कि सदियों से भारत के सबसे बड़े दुश्मन मोहम्मद गोरी नहीं रहे हैं बल्कि भारत को हमेशा से सबसे ज्यादा खतरा जयचंदों से था,है और रहेगा। यह हमारा दुर्भाग्य है कि भारत कभी ऐसे जयचंदों से मुक्त नहीं रहा। वरना मरता एक क्रूर आतंकी है और घुटनों तक से आँसू बहने लगते हैं छद्मधर्मनिरपेक्षतावादियों के।
मित्रों,जब सेना या अर्द्धसैनिकों की आतंकी हमले में मौत होती है तब ये महासंवेदनशील लोग कुंभकर्णी निद्रा में निमग्न होते हैं जैसे इन्होंने मान रखा हो कि सेना और अर्द्धसैनिक बलों में तो लोग मरने के लिए ही आते हैं। लेकिन जैसे ही बुरहान जैसा कोई भयंकर दानव मारा जाता है ये अकस्मात् रूदाली बन जाते हैं। कोई बुरहान को हेडमास्टर का बेटा बताती है तो कोई कहता है कि बेचारे ने गरीबी के कारण आतंकवाद का रास्ता चुना होगा। जैसे यह अमीर हेडमास्टर का गरीब बेटा गरीब बच्चों को महान इंसान बनने की तालीम देता हुआ शहीद हो गया। मानो बुरहान मलाला हो गया और भारतीय सेना तालिबान।
मित्रों, जब सैनिक प्राचीन हथियार पत्थर का जवाब प्राचीन हथियार गुलेल से देते हुए घायल हो जाते हैं या मारे जाते हैं तब तो इन महादयालुओं को दया नहीं आती। तब इनको यह दिखाई नहीं देता कि इन्हीं सैनिकों ने बाढ़ के समय अपनी पीठ और कंधों के ऊपर रास्ता देकर इनकी जान बचाई थी। तब इनको यह दिखाई नहीं देता कि सिर्फ 500 रूपये के बदले ये लोग कितनी बड़ी कृतघ्नता कर रहे हैं लेकिन जैसे ही भारतीय सैनिकों के हाथों में गुलेल के बदले छर्रे उगलनेवाली बंदूक पकड़ा दी जाती है ये महापाखंडी जैसे दयासागर बन जाते हैं। इनको यह नहीं दिखता कि छोटे-छोटे बच्चे भी कैसे मृत्योपरांत हूरों से मिलने की बेचैनी में और कुछ सौ रूपयों के लिए उन सैनिकों पर पत्थर फेंक रहे हैं जिन्होंने अपनी पीठों और कंधों पर चढ़ाकर जलप्रलय के समय इनकी जान बचाई थी। हालाँकि महिलाओं को हूरों के बदले सुंदर पुरूषों के मिलने की कोई संभावना नहीं है बावजूद इसके संगसारी में वे भी किसी से पीछे रहना नहीं चाहतीं। उनको भूलना नहीं चाहिए कि यही महिलायें जयप्रलय के समय सैनिकों को दुआयें देते थक नहीं रही थीं। खैर,भूल तो छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी भी गए हैं कि वे हिंदुस्तानी हैं या पाकिस्तानी।
मित्रों,आपको याद होगा कि हमारे रक्षा राज्य मंत्री ने ऐसे लोगों को प्रेश्या कहा था। परंतु मुझे लगता है कि ये लोग उससे भी गये-बीते हैं। इनको प्रेश्या कहना कदाचित अजीजन बाई जैसी वेश्याओं का अपमान होगा जिन्होंने आजादी की लड़ाई में देश के लिए शहादत दी थी। मुझे बरखा,राजदीप,सागरिका जैसे पत्रकारों के ऊपर पूरी तरह से सटीक बैठनेवाले शब्द की तलाश तो है ही साथ ही उस शब्द में ऐसा गुण भी होना चाहिए कि वो भारत के सारे छद्मधर्मनिरपेक्षतावादियों की विशेषताओं को समाहित कर सके। क्या आप इस काम में मेरी मदद करेंगे?

शनिवार, 16 जुलाई 2016

सुप्रीम कोर्ट मेहरबान तो सिब्बल पहलवान

मित्रों,एक समय था जब सुप्रीम कोर्ट का जज या मुख्य न्यायाधीश बनने के लिए केंद्रीय कानून मंत्री का नजदीकी होना एकमात्र योग्यता बन गई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने खुद पहल करके कॉलेजियम सिस्टम बनाया। सोंचा गया था कि ऐसा होने से जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता आएगी और सरकारी दखलंदाजी कम होगी। लेकिन समय के साथ कार्यपालिका और व्यवस्थापिका की तरह न्यायपालिका भी भ्रष्ट होने लगी। न्यायमूर्ति अन्यायमूर्ति बनने लगे। जज अब मनमाफिक फैसला देने के बदले धन के साथ-साथ लड़कियों की मांग करने लगे। देश और लोगों की आखिरी उम्मीद न्यायपालिका में भी कॉलेजियम सिस्टम की आ़ड़ में जमकर भाई-भतीजावाद होने लगा।
मित्रों,पिछली मनमोहन सरकार में तो हमने यह भी देखा कि बेडरूम में जाँच-परीक्षण कर कांग्रेस के नेता वकीलों को जज बनाने लगे। न जाने इस दिशा में उनलोगों को कहाँ तक सफलता मिली और न जाने अभी कितने जज हमारे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ऐसे हैं जो इस प्रक्रिया द्वारा जज बने और बनाए गए हैं।
मित्रों,पिछले कुछ महीनों से ऐसा देखा जा रहा है सुप्रीम कोर्ट मनमोहन सरकार में कानून मंत्री रहे कपिल सिब्बल पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान है। यहाँ तक कि श्री सिब्बल फोन पर ही कोर्ट से फैसला करवा ले रहे हैं। ऐसा न तो पहले कभी देखा गया था और न ही सुना ही गया था। जबकि व्यक्ति विशेष के मामले में कोर्ट का ऐसा व्यवहार संविधानप्रदत्त समानता के अधिकार का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन है। उनके कहने पर सुप्रीम कोर्ट के जज घड़ी की सूई को पीछे करके स्पष्ट बहुमत वाले मुख्यमंत्री को विपक्ष में बैठा दे रहे हैं। उनके कहने पर सुप्रीम कोर्ट के जज यह जानते हुए कि एक राज्य का मुख्यमंत्री खुलेआम विधायकों की खरीद-ब्रिक्री में लगा हुआ है राज्य से राष्ट्रपति शासन हटा देते हैं। उनके कहने पर सुप्रीम कोर्ट अगस्ता मामले में सीबीआई को घोटालों की महारानी सोनिया गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से रोक देता है जबकि उनको उनकी मदरलैंड इटली का कोर्ट पहले ही दोषी करार दे चुका है।
मित्रों,मेरी तो समझ में नहीं आ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट क्यों सिब्बल की ऊंगलियों पर नाच रहा है? क्या यह कॉलेजियम के माध्यम से पूर्व में उनके द्वारा की गई कृपा का कमाल है या पैसे का या फिर यौनोपहार का? कहा गया है कि अति सर्वत्र वर्जयेत। अब कॉलेजियम भी अति करने लगा है और इस पर लगाम लगानी ही होगी। संविधान के अनुसार तो संसद सर्वोच्च है फिर न्यायपालिका कैसे संसद द्वारा बनाए गए किसी ऐसे कानून को गैरकानूनी घोषित कर सकती है जो उसकी मनमानी पर रोक लगाती हो?
मित्रों,कोई भी संस्था महान या गर्हित नहीं होती बल्कि महान या गर्हित होते हैं उसको चलानेवाले। अब समय आ गया है कि जब जजों की नियुक्ति के लिये मनमाने कॉलेजियम सिस्टम के स्थान पर ज्यादा पारदर्शी और संतुलित व्यवस्था स्थापित की जानी चाहिए। साथ ही न्यायपालिका को जवाबदेह भी बनाना जाना चाहिए जिससे जजों को भी सरासर गलत फैसला देने के बदले दंडित किया जा सके। आखिर जज भी इंसान है और उनमें भी इंसानी कमजोरियाँ है। वे कोई आसमानी तो हैं नहीं। अगर ऐसा होता है तो भविष्य में कोई भी जज किसी सीतलवाड़ पर मेहरबान और कोई भी भ्रष्टाचार का सिंबल पहलवान नहीं हो पाएगा।

शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

एक पाती रवीश कुमार जी के नाम!

ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। मित्रों,यूँ तो चिट्ठी लिखने की परंपरा दम तोड़ने कगार पर है लेकिन हमारे महान पत्रकार रवीश कुमार जैसे कुछेक लोग धरती पर हैं जिनके चलते यह कला अबतक जीवित है। पहले जहाँ पत्र व्यक्तिगत होते थे आजकल खुल्ले होने लगे हैं। पत्र मैंने भी एक जमाने से किसी को नहीं लिखा लेकिन रवीश जी के पत्र-प्रेम ने पत्रों के प्रति मेरे सोये हुए प्यार को जगा दिया है और मैंने तय किया है कि उनको एक पत्र मैं भी लिख ही डालूँ। वैसे यह महती कार्य कल जी न्यूज के लोकप्रिय व सचमुच में मर्दाना राष्ट्रवादी एंकर रोहित सरदाना भी कर चुके हैं।
मित्रों,तो मैं पत्र शुरू करने जा रहा हूँ। कहा भी गया है शुभस्य शीघ्रम्-
श्रद्धेय श्री रवीश कुमार जी,
प्रणाम।
मैं न केवल कुशल हूँ बल्कि मस्त भी हूँ और उम्मीद ही नहीं विश्वास करता हूँ कि आप भी जहां भी होंगे मोदी सरकार के दो साल गुजर जाने के बावजूद मस्ती में होंगे? रवीश जी आप कौन-से पंथी हैं पता नहीं लेकिन लोग आपको वामपंथी कहकर बुलाते हैं। अगर यह सच है तो मैं जानता हूँ कि वामपंथ और राष्ट्रवाद में घरघोर विरोध हमेशा से रहा है। कुछ लोग भगत सिंह को वामपंथी कहते हैं लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता क्योंकि भगत सिंह के लिए देश ही सबकुछ था विचारधारा का कोई मोल नहीं था। वामपंथियों के साथ एक और समस्या है कि वो हिंदू-विरोधी और तदनुसार राष्ट्रविरोधी भी होते हैं इसलिए अगर आप भी ऐसे हैं तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं बशर्ते आप वामपंथी हैं। मगर याद रखिए कि अगर पूरी दुनिया में भारत अपने सर्व धर्म सद्भाव के लिए उदाहरण के रूप में जाना जाता है,दलाई लामा और ब्लादिमीर पुतिन इसके लिए भारत की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं तो इसलिए क्योंकि यह हिंदूबहुल है वरना भारत से अलग हुए पाकिस्तान और बांग्लादेश के हालातों से आप भी अपरिचित तो नहीं ही होंगे।
रवीश जी मैं आपका तब प्रशंसक बना जब आपने संकटमोचन मंदिर पर आतंकी हमले की रिपोर्टिंग की थी। हर शब्द से मानो दर्द-ही-दर्द छलक रहा था। लग रहा था कि जैसे आपने परकायाप्रवेश कर लिया हो। आपको याद हो कि न याद हो कि एक बार आप अयोध्या से रिपोर्टिंग कर रहे थे। शायद 6 दिसंबर का दिन था। तब आपने मंदिर के शिखरों को मीनार कहा था। मेरे द्वारा फेसबुक पर ऐतराज जताने पर आपने कहा था कि आप स्क्रिप्ट को एकबार लिखने के बाद चेक नहीं करते हैं। वैसे मैं नहीं मानता कि आप अब भी वैसा नहीं करते होंगे।
फिर 2014 का लोकसभा चुनाव आया और दुनिया के सामने आया आपका असली चेहरा। चुनावों के बाद आपको लगा कि चुनावों में कांग्रेस की नहीं आपकी व्यक्तिगत हार हुई है। आपकी सरकार-समर्थक कलम अकस्मात् सरकार-विरोधी हो गई। वैसे आप भी आरोप लगा सकते हैं कि मैं सरकार-समर्थक हूँ लेकिन मैंने समय-समय पर सरकार के गलत कदमों का खुलकर विरोध भी किया है। लेकिन आप और आपके चैनल ने तो जैसे सरकार का विरोध करने की कसम ही खाई हुई है यहाँ तक कि अक्सर आपलोगों का सरकार-विरोध भारत-विरोध बन जाता है। यद्यपि एक लंबे समय के बाद एनएसजी के मुद्दे पर आपके द्वारा सरकार का साथ देना अच्छा लगा।
रवीश जी आप फरमाते हैं कि आपको गालियाँ दी जाती हैं। क्यों दी जाती हैं इसके बारे में आपने कभी विचार किया है? नहीं किया होगा अन्यथा आपको अकबर साहब को पत्र लिखने की जहमत उठानी ही नहीं पड़ती। समय की महिमा का बखान करनेवाली फिल्म वक्त का एक डॉयलॉग तो आपने सुना ही होगा कि शीशे के घरों में रहनेवाले दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते। मैं आपको गंभीर इंसान मानता हूँ इसलिए दुःख होता है और बेशुमार होता है जब मैं देखता हूँ कि आपके चैनल और चैनल से जुड़े लोगों पर कई गंभीर आर्थिक अपराधों के आरोप हैं। बरखा दत्त जैसी पत्रकार आपके चैनल में है जो सत्ता की दलाली करती हुई रंगे हाथों पकड़ी जा चुकी हैं और आप ताबड़तोड़ सवाल अकबर साहब पर उठाए जा रहे हैं।
रवीश जी पार्टी बदलना कोई पति या पत्नी बदलना नहीं होता बस नीयत साफ होनी चाहिए। क्या आपको अकबर साहब की नीयत पर कोई शक है। है तो उसको लोगों के सामने रखिए और सतही बातें नहीं करिए क्योंकि ऐसा करना कम-से-कम आपको शोभा नहीं देता। मैं समझता हूँ कि अकबर साहब जब कांग्रेस में थे तब भी उदारवादी और राष्ट्रवादी थे और आज भी हैं।  गांधीजी ने अपनी पुस्तक मेरे सपनों का भारत में कहा है कि अगर मेरे पहले के विचार और बाद के विचारों में टकराहट दिखाई दे तो मेरे बाद के विचारों को मेरा विचार माना जाए। फिर यहां तो अकबर साहब के पहले और बाद के विचारों में टकराव है भी नहीं।
रवीश जी पत्रकारिता के क्षेत्र में अंधभक्ति गलत थी,है और रहेगी। क्या आपके पास कोई सबूत है कि अकबर साहब जब पत्रकार थे तब उन्होंने किसी पार्टी या व्यक्ति का अंधसमर्थन या अंधविरोध किया? आपने अकबर साहब से कहा है कि वे आपको सिखाएँ कि उन्होंने किस तरह से पत्रकारिता और राजनीति के बीच संतुलन साधा कि उनके हिस्से सिर्फ वाहवाही आई गाली नहीं।
रवीश जी ये चींजें सिखाने की होती ही नहीं हैं। आप अपने अतीत को खंगालिए और दृष्टिपात करके देखिए कि ऐसा आपमें क्या था,आपकी रिपोर्टिंग में ऐसा क्या था कि आपको लोग सिर-माथे पर लेते थे और आपमें-आपके तर्कों में तबसे अबतक क्या बदलाव आया है? इन दिनों आप तर्क कम जबर्दस्ती के कुतर्क ज्यादा देने लगे हैं। बहस के दौरान आप हिस्सा लेनेवालों पर अपने तर्कों और निष्कर्षों को जबरन थोपते हुए से लगते हैं? फिर आप उनको बुलाते ही क्यों हैं? एक शायर ने कहा है कि कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी कोई यूँ ही बेवफा नहीं होता। न जाने आपकी क्या मजबूरियाँ थीं कि आप भी बदल गए और इतना बदल गए कि यकीन ही नहीं होता कि आप वही रवीश हैं जिनकी पवित्र भावनाओं को पढ़कर दिल भर आता था? दिल है कि मानता ही नहीं कि आप वही रवीश हैं जिनसे प्रभावित होकर हमने ब्रज की दुनिया नाम से ब्लॉग बनाकर  लिखना शुरू किया था?
रवीश जी आतंकियों को भटके हुए युवक,शेख हसीना वाजेद के बयान में मुसलमानों को शब्द बदलकर इंसान कहना पता नहीं कहाँ तक आपके चैनल की नीति है और इसके लिए आप कहाँ तक दोषी हैं? हो सकता है ढाका-आतंकी-हमले के बाद आपने और आपके चैनलवालों ने कुरान को कंठस्थ कर लिया हो और इसलिए आपको और आपके चैनलवालों को जेहादी आतंकवाद से डर नहीं लगता हो लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि आतंकी आपसे या हमसे भी कुरान की आयत सुनाने को कहेंगे ही अगर हम उनकी गिरफ्त में आ जाते हैं तो? मुंबई-हमले में तो उन्होंने लोगों से ऐसा करने को नहीं कहा था।
रवीश जी अपने नीर क्षीर विवेक को फिर से जिंदा करिए जो काफी पहले मर चुका है। अगर इसमें आपका चैनल बाधा बनता है तो छोड़ दीजिए चैनल को। सरकार जब गलत करती है यहाँ गलत से मेरा मतलब सीधे-सीधे ऐसे कदमों से है जो देश को कमजोर बनाता हो तो उसका विरोध करिए और जब सही करती है तो जबर्दस्ती का केजरीवाल टाईप विरोध करना त्यागकर खुले दिल से,तहे दिल से समर्थन करिए आपको स्वतः गाली के स्थान पर ताली मिलने लगेगी। हमें तो आज भी उस पुराने रवीश की तलाश है जिसकी रिपोर्ट देखने के लिए हम देर रात तक जागा करते थे। क्या आप हमें वही पुरानावाला रवीश देंगे जिसकी पंक्तियों में गंगाजल की पवित्रता,प्रवाह और गहराई तीनों होते थे।
                                                                                                                                                                         शुभेच्छा सहित
                                                                                                        आपका पूर्व प्रशंसक और वर्तमान आलोचक ब्रजकिशोर