हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,हम वर्षों से कहते आ रहे हैं कि सदियों से भारत के सबसे बड़े दुश्मन मोहम्मद गोरी नहीं रहे हैं बल्कि भारत को हमेशा से सबसे ज्यादा खतरा जयचंदों से था,है और रहेगा। यह हमारा दुर्भाग्य है कि भारत कभी ऐसे जयचंदों से मुक्त नहीं रहा। वरना मरता एक क्रूर आतंकी है और घुटनों तक से आँसू बहने लगते हैं छद्मधर्मनिरपेक्षतावादियों के।
मित्रों,जब सेना या अर्द्धसैनिकों की आतंकी हमले में मौत होती है तब ये महासंवेदनशील लोग कुंभकर्णी निद्रा में निमग्न होते हैं जैसे इन्होंने मान रखा हो कि सेना और अर्द्धसैनिक बलों में तो लोग मरने के लिए ही आते हैं। लेकिन जैसे ही बुरहान जैसा कोई भयंकर दानव मारा जाता है ये अकस्मात् रूदाली बन जाते हैं। कोई बुरहान को हेडमास्टर का बेटा बताती है तो कोई कहता है कि बेचारे ने गरीबी के कारण आतंकवाद का रास्ता चुना होगा। जैसे यह अमीर हेडमास्टर का गरीब बेटा गरीब बच्चों को महान इंसान बनने की तालीम देता हुआ शहीद हो गया। मानो बुरहान मलाला हो गया और भारतीय सेना तालिबान।
मित्रों, जब सैनिक प्राचीन हथियार पत्थर का जवाब प्राचीन हथियार गुलेल से देते हुए घायल हो जाते हैं या मारे जाते हैं तब तो इन महादयालुओं को दया नहीं आती। तब इनको यह दिखाई नहीं देता कि इन्हीं सैनिकों ने बाढ़ के समय अपनी पीठ और कंधों के ऊपर रास्ता देकर इनकी जान बचाई थी। तब इनको यह दिखाई नहीं देता कि सिर्फ 500 रूपये के बदले ये लोग कितनी बड़ी कृतघ्नता कर रहे हैं लेकिन जैसे ही भारतीय सैनिकों के हाथों में गुलेल के बदले छर्रे उगलनेवाली बंदूक पकड़ा दी जाती है ये महापाखंडी जैसे दयासागर बन जाते हैं। इनको यह नहीं दिखता कि छोटे-छोटे बच्चे भी कैसे मृत्योपरांत हूरों से मिलने की बेचैनी में और कुछ सौ रूपयों के लिए उन सैनिकों पर पत्थर फेंक रहे हैं जिन्होंने अपनी पीठों और कंधों पर चढ़ाकर जलप्रलय के समय इनकी जान बचाई थी। हालाँकि महिलाओं को हूरों के बदले सुंदर पुरूषों के मिलने की कोई संभावना नहीं है बावजूद इसके संगसारी में वे भी किसी से पीछे रहना नहीं चाहतीं। उनको भूलना नहीं चाहिए कि यही महिलायें जयप्रलय के समय सैनिकों को दुआयें देते थक नहीं रही थीं। खैर,भूल तो छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी भी गए हैं कि वे हिंदुस्तानी हैं या पाकिस्तानी।
मित्रों,आपको याद होगा कि हमारे रक्षा राज्य मंत्री ने ऐसे लोगों को प्रेश्या कहा था। परंतु मुझे लगता है कि ये लोग उससे भी गये-बीते हैं। इनको प्रेश्या कहना कदाचित अजीजन बाई जैसी वेश्याओं का अपमान होगा जिन्होंने आजादी की लड़ाई में देश के लिए शहादत दी थी। मुझे बरखा,राजदीप,सागरिका जैसे पत्रकारों के ऊपर पूरी तरह से सटीक बैठनेवाले शब्द की तलाश तो है ही साथ ही उस शब्द में ऐसा गुण भी होना चाहिए कि वो भारत के सारे छद्मधर्मनिरपेक्षतावादियों की विशेषताओं को समाहित कर सके। क्या आप इस काम में मेरी मदद करेंगे?
मित्रों,जब सेना या अर्द्धसैनिकों की आतंकी हमले में मौत होती है तब ये महासंवेदनशील लोग कुंभकर्णी निद्रा में निमग्न होते हैं जैसे इन्होंने मान रखा हो कि सेना और अर्द्धसैनिक बलों में तो लोग मरने के लिए ही आते हैं। लेकिन जैसे ही बुरहान जैसा कोई भयंकर दानव मारा जाता है ये अकस्मात् रूदाली बन जाते हैं। कोई बुरहान को हेडमास्टर का बेटा बताती है तो कोई कहता है कि बेचारे ने गरीबी के कारण आतंकवाद का रास्ता चुना होगा। जैसे यह अमीर हेडमास्टर का गरीब बेटा गरीब बच्चों को महान इंसान बनने की तालीम देता हुआ शहीद हो गया। मानो बुरहान मलाला हो गया और भारतीय सेना तालिबान।
मित्रों, जब सैनिक प्राचीन हथियार पत्थर का जवाब प्राचीन हथियार गुलेल से देते हुए घायल हो जाते हैं या मारे जाते हैं तब तो इन महादयालुओं को दया नहीं आती। तब इनको यह दिखाई नहीं देता कि इन्हीं सैनिकों ने बाढ़ के समय अपनी पीठ और कंधों के ऊपर रास्ता देकर इनकी जान बचाई थी। तब इनको यह दिखाई नहीं देता कि सिर्फ 500 रूपये के बदले ये लोग कितनी बड़ी कृतघ्नता कर रहे हैं लेकिन जैसे ही भारतीय सैनिकों के हाथों में गुलेल के बदले छर्रे उगलनेवाली बंदूक पकड़ा दी जाती है ये महापाखंडी जैसे दयासागर बन जाते हैं। इनको यह नहीं दिखता कि छोटे-छोटे बच्चे भी कैसे मृत्योपरांत हूरों से मिलने की बेचैनी में और कुछ सौ रूपयों के लिए उन सैनिकों पर पत्थर फेंक रहे हैं जिन्होंने अपनी पीठों और कंधों पर चढ़ाकर जलप्रलय के समय इनकी जान बचाई थी। हालाँकि महिलाओं को हूरों के बदले सुंदर पुरूषों के मिलने की कोई संभावना नहीं है बावजूद इसके संगसारी में वे भी किसी से पीछे रहना नहीं चाहतीं। उनको भूलना नहीं चाहिए कि यही महिलायें जयप्रलय के समय सैनिकों को दुआयें देते थक नहीं रही थीं। खैर,भूल तो छद्मधर्मनिरपेक्षतावादी भी गए हैं कि वे हिंदुस्तानी हैं या पाकिस्तानी।
मित्रों,आपको याद होगा कि हमारे रक्षा राज्य मंत्री ने ऐसे लोगों को प्रेश्या कहा था। परंतु मुझे लगता है कि ये लोग उससे भी गये-बीते हैं। इनको प्रेश्या कहना कदाचित अजीजन बाई जैसी वेश्याओं का अपमान होगा जिन्होंने आजादी की लड़ाई में देश के लिए शहादत दी थी। मुझे बरखा,राजदीप,सागरिका जैसे पत्रकारों के ऊपर पूरी तरह से सटीक बैठनेवाले शब्द की तलाश तो है ही साथ ही उस शब्द में ऐसा गुण भी होना चाहिए कि वो भारत के सारे छद्मधर्मनिरपेक्षतावादियों की विशेषताओं को समाहित कर सके। क्या आप इस काम में मेरी मदद करेंगे?
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