ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। मित्रों,यूँ तो चिट्ठी लिखने की परंपरा दम तोड़ने कगार पर है लेकिन हमारे महान पत्रकार रवीश कुमार जैसे कुछेक लोग धरती पर हैं जिनके चलते यह कला अबतक जीवित है। पहले जहाँ पत्र व्यक्तिगत होते थे आजकल खुल्ले होने लगे हैं। पत्र मैंने भी एक जमाने से किसी को नहीं लिखा लेकिन रवीश जी के पत्र-प्रेम ने पत्रों के प्रति मेरे सोये हुए प्यार को जगा दिया है और मैंने तय किया है कि उनको एक पत्र मैं भी लिख ही डालूँ। वैसे यह महती कार्य कल जी न्यूज के लोकप्रिय व सचमुच में मर्दाना राष्ट्रवादी एंकर रोहित सरदाना भी कर चुके हैं।
मित्रों,तो मैं पत्र शुरू करने जा रहा हूँ। कहा भी गया है शुभस्य शीघ्रम्-
श्रद्धेय श्री रवीश कुमार जी,
प्रणाम।
मैं न केवल कुशल हूँ बल्कि मस्त भी हूँ और उम्मीद ही नहीं विश्वास करता हूँ कि आप भी जहां भी होंगे मोदी सरकार के दो साल गुजर जाने के बावजूद मस्ती में होंगे? रवीश जी आप कौन-से पंथी हैं पता नहीं लेकिन लोग आपको वामपंथी कहकर बुलाते हैं। अगर यह सच है तो मैं जानता हूँ कि वामपंथ और राष्ट्रवाद में घरघोर विरोध हमेशा से रहा है। कुछ लोग भगत सिंह को वामपंथी कहते हैं लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता क्योंकि भगत सिंह के लिए देश ही सबकुछ था विचारधारा का कोई मोल नहीं था। वामपंथियों के साथ एक और समस्या है कि वो हिंदू-विरोधी और तदनुसार राष्ट्रविरोधी भी होते हैं इसलिए अगर आप भी ऐसे हैं तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं बशर्ते आप वामपंथी हैं। मगर याद रखिए कि अगर पूरी दुनिया में भारत अपने सर्व धर्म सद्भाव के लिए उदाहरण के रूप में जाना जाता है,दलाई लामा और ब्लादिमीर पुतिन इसके लिए भारत की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं तो इसलिए क्योंकि यह हिंदूबहुल है वरना भारत से अलग हुए पाकिस्तान और बांग्लादेश के हालातों से आप भी अपरिचित तो नहीं ही होंगे।
रवीश जी मैं आपका तब प्रशंसक बना जब आपने संकटमोचन मंदिर पर आतंकी हमले की रिपोर्टिंग की थी। हर शब्द से मानो दर्द-ही-दर्द छलक रहा था। लग रहा था कि जैसे आपने परकायाप्रवेश कर लिया हो। आपको याद हो कि न याद हो कि एक बार आप अयोध्या से रिपोर्टिंग कर रहे थे। शायद 6 दिसंबर का दिन था। तब आपने मंदिर के शिखरों को मीनार कहा था। मेरे द्वारा फेसबुक पर ऐतराज जताने पर आपने कहा था कि आप स्क्रिप्ट को एकबार लिखने के बाद चेक नहीं करते हैं। वैसे मैं नहीं मानता कि आप अब भी वैसा नहीं करते होंगे।
फिर 2014 का लोकसभा चुनाव आया और दुनिया के सामने आया आपका असली चेहरा। चुनावों के बाद आपको लगा कि चुनावों में कांग्रेस की नहीं आपकी व्यक्तिगत हार हुई है। आपकी सरकार-समर्थक कलम अकस्मात् सरकार-विरोधी हो गई। वैसे आप भी आरोप लगा सकते हैं कि मैं सरकार-समर्थक हूँ लेकिन मैंने समय-समय पर सरकार के गलत कदमों का खुलकर विरोध भी किया है। लेकिन आप और आपके चैनल ने तो जैसे सरकार का विरोध करने की कसम ही खाई हुई है यहाँ तक कि अक्सर आपलोगों का सरकार-विरोध भारत-विरोध बन जाता है। यद्यपि एक लंबे समय के बाद एनएसजी के मुद्दे पर आपके द्वारा सरकार का साथ देना अच्छा लगा।
रवीश जी आप फरमाते हैं कि आपको गालियाँ दी जाती हैं। क्यों दी जाती हैं इसके बारे में आपने कभी विचार किया है? नहीं किया होगा अन्यथा आपको अकबर साहब को पत्र लिखने की जहमत उठानी ही नहीं पड़ती। समय की महिमा का बखान करनेवाली फिल्म वक्त का एक डॉयलॉग तो आपने सुना ही होगा कि शीशे के घरों में रहनेवाले दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते। मैं आपको गंभीर इंसान मानता हूँ इसलिए दुःख होता है और बेशुमार होता है जब मैं देखता हूँ कि आपके चैनल और चैनल से जुड़े लोगों पर कई गंभीर आर्थिक अपराधों के आरोप हैं। बरखा दत्त जैसी पत्रकार आपके चैनल में है जो सत्ता की दलाली करती हुई रंगे हाथों पकड़ी जा चुकी हैं और आप ताबड़तोड़ सवाल अकबर साहब पर उठाए जा रहे हैं।
रवीश जी पार्टी बदलना कोई पति या पत्नी बदलना नहीं होता बस नीयत साफ होनी चाहिए। क्या आपको अकबर साहब की नीयत पर कोई शक है। है तो उसको लोगों के सामने रखिए और सतही बातें नहीं करिए क्योंकि ऐसा करना कम-से-कम आपको शोभा नहीं देता। मैं समझता हूँ कि अकबर साहब जब कांग्रेस में थे तब भी उदारवादी और राष्ट्रवादी थे और आज भी हैं। गांधीजी ने अपनी पुस्तक मेरे सपनों का भारत में कहा है कि अगर मेरे पहले के विचार और बाद के विचारों में टकराहट दिखाई दे तो मेरे बाद के विचारों को मेरा विचार माना जाए। फिर यहां तो अकबर साहब के पहले और बाद के विचारों में टकराव है भी नहीं।
रवीश जी पत्रकारिता के क्षेत्र में अंधभक्ति गलत थी,है और रहेगी। क्या आपके पास कोई सबूत है कि अकबर साहब जब पत्रकार थे तब उन्होंने किसी पार्टी या व्यक्ति का अंधसमर्थन या अंधविरोध किया? आपने अकबर साहब से कहा है कि वे आपको सिखाएँ कि उन्होंने किस तरह से पत्रकारिता और राजनीति के बीच संतुलन साधा कि उनके हिस्से सिर्फ वाहवाही आई गाली नहीं।
रवीश जी ये चींजें सिखाने की होती ही नहीं हैं। आप अपने अतीत को खंगालिए और दृष्टिपात करके देखिए कि ऐसा आपमें क्या था,आपकी रिपोर्टिंग में ऐसा क्या था कि आपको लोग सिर-माथे पर लेते थे और आपमें-आपके तर्कों में तबसे अबतक क्या बदलाव आया है? इन दिनों आप तर्क कम जबर्दस्ती के कुतर्क ज्यादा देने लगे हैं। बहस के दौरान आप हिस्सा लेनेवालों पर अपने तर्कों और निष्कर्षों को जबरन थोपते हुए से लगते हैं? फिर आप उनको बुलाते ही क्यों हैं? एक शायर ने कहा है कि कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी कोई यूँ ही बेवफा नहीं होता। न जाने आपकी क्या मजबूरियाँ थीं कि आप भी बदल गए और इतना बदल गए कि यकीन ही नहीं होता कि आप वही रवीश हैं जिनकी पवित्र भावनाओं को पढ़कर दिल भर आता था? दिल है कि मानता ही नहीं कि आप वही रवीश हैं जिनसे प्रभावित होकर हमने ब्रज की दुनिया नाम से ब्लॉग बनाकर लिखना शुरू किया था?
रवीश जी आतंकियों को भटके हुए युवक,शेख हसीना वाजेद के बयान में मुसलमानों को शब्द बदलकर इंसान कहना पता नहीं कहाँ तक आपके चैनल की नीति है और इसके लिए आप कहाँ तक दोषी हैं? हो सकता है ढाका-आतंकी-हमले के बाद आपने और आपके चैनलवालों ने कुरान को कंठस्थ कर लिया हो और इसलिए आपको और आपके चैनलवालों को जेहादी आतंकवाद से डर नहीं लगता हो लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि आतंकी आपसे या हमसे भी कुरान की आयत सुनाने को कहेंगे ही अगर हम उनकी गिरफ्त में आ जाते हैं तो? मुंबई-हमले में तो उन्होंने लोगों से ऐसा करने को नहीं कहा था।
रवीश जी अपने नीर क्षीर विवेक को फिर से जिंदा करिए जो काफी पहले मर चुका है। अगर इसमें आपका चैनल बाधा बनता है तो छोड़ दीजिए चैनल को। सरकार जब गलत करती है यहाँ गलत से मेरा मतलब सीधे-सीधे ऐसे कदमों से है जो देश को कमजोर बनाता हो तो उसका विरोध करिए और जब सही करती है तो जबर्दस्ती का केजरीवाल टाईप विरोध करना त्यागकर खुले दिल से,तहे दिल से समर्थन करिए आपको स्वतः गाली के स्थान पर ताली मिलने लगेगी। हमें तो आज भी उस पुराने रवीश की तलाश है जिसकी रिपोर्ट देखने के लिए हम देर रात तक जागा करते थे। क्या आप हमें वही पुरानावाला रवीश देंगे जिसकी पंक्तियों में गंगाजल की पवित्रता,प्रवाह और गहराई तीनों होते थे।
शुभेच्छा सहित
आपका पूर्व प्रशंसक और वर्तमान आलोचक ब्रजकिशोर
मित्रों,तो मैं पत्र शुरू करने जा रहा हूँ। कहा भी गया है शुभस्य शीघ्रम्-
श्रद्धेय श्री रवीश कुमार जी,
प्रणाम।
मैं न केवल कुशल हूँ बल्कि मस्त भी हूँ और उम्मीद ही नहीं विश्वास करता हूँ कि आप भी जहां भी होंगे मोदी सरकार के दो साल गुजर जाने के बावजूद मस्ती में होंगे? रवीश जी आप कौन-से पंथी हैं पता नहीं लेकिन लोग आपको वामपंथी कहकर बुलाते हैं। अगर यह सच है तो मैं जानता हूँ कि वामपंथ और राष्ट्रवाद में घरघोर विरोध हमेशा से रहा है। कुछ लोग भगत सिंह को वामपंथी कहते हैं लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता क्योंकि भगत सिंह के लिए देश ही सबकुछ था विचारधारा का कोई मोल नहीं था। वामपंथियों के साथ एक और समस्या है कि वो हिंदू-विरोधी और तदनुसार राष्ट्रविरोधी भी होते हैं इसलिए अगर आप भी ऐसे हैं तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं बशर्ते आप वामपंथी हैं। मगर याद रखिए कि अगर पूरी दुनिया में भारत अपने सर्व धर्म सद्भाव के लिए उदाहरण के रूप में जाना जाता है,दलाई लामा और ब्लादिमीर पुतिन इसके लिए भारत की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं तो इसलिए क्योंकि यह हिंदूबहुल है वरना भारत से अलग हुए पाकिस्तान और बांग्लादेश के हालातों से आप भी अपरिचित तो नहीं ही होंगे।
रवीश जी मैं आपका तब प्रशंसक बना जब आपने संकटमोचन मंदिर पर आतंकी हमले की रिपोर्टिंग की थी। हर शब्द से मानो दर्द-ही-दर्द छलक रहा था। लग रहा था कि जैसे आपने परकायाप्रवेश कर लिया हो। आपको याद हो कि न याद हो कि एक बार आप अयोध्या से रिपोर्टिंग कर रहे थे। शायद 6 दिसंबर का दिन था। तब आपने मंदिर के शिखरों को मीनार कहा था। मेरे द्वारा फेसबुक पर ऐतराज जताने पर आपने कहा था कि आप स्क्रिप्ट को एकबार लिखने के बाद चेक नहीं करते हैं। वैसे मैं नहीं मानता कि आप अब भी वैसा नहीं करते होंगे।
फिर 2014 का लोकसभा चुनाव आया और दुनिया के सामने आया आपका असली चेहरा। चुनावों के बाद आपको लगा कि चुनावों में कांग्रेस की नहीं आपकी व्यक्तिगत हार हुई है। आपकी सरकार-समर्थक कलम अकस्मात् सरकार-विरोधी हो गई। वैसे आप भी आरोप लगा सकते हैं कि मैं सरकार-समर्थक हूँ लेकिन मैंने समय-समय पर सरकार के गलत कदमों का खुलकर विरोध भी किया है। लेकिन आप और आपके चैनल ने तो जैसे सरकार का विरोध करने की कसम ही खाई हुई है यहाँ तक कि अक्सर आपलोगों का सरकार-विरोध भारत-विरोध बन जाता है। यद्यपि एक लंबे समय के बाद एनएसजी के मुद्दे पर आपके द्वारा सरकार का साथ देना अच्छा लगा।
रवीश जी आप फरमाते हैं कि आपको गालियाँ दी जाती हैं। क्यों दी जाती हैं इसके बारे में आपने कभी विचार किया है? नहीं किया होगा अन्यथा आपको अकबर साहब को पत्र लिखने की जहमत उठानी ही नहीं पड़ती। समय की महिमा का बखान करनेवाली फिल्म वक्त का एक डॉयलॉग तो आपने सुना ही होगा कि शीशे के घरों में रहनेवाले दूसरे के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते। मैं आपको गंभीर इंसान मानता हूँ इसलिए दुःख होता है और बेशुमार होता है जब मैं देखता हूँ कि आपके चैनल और चैनल से जुड़े लोगों पर कई गंभीर आर्थिक अपराधों के आरोप हैं। बरखा दत्त जैसी पत्रकार आपके चैनल में है जो सत्ता की दलाली करती हुई रंगे हाथों पकड़ी जा चुकी हैं और आप ताबड़तोड़ सवाल अकबर साहब पर उठाए जा रहे हैं।
रवीश जी पार्टी बदलना कोई पति या पत्नी बदलना नहीं होता बस नीयत साफ होनी चाहिए। क्या आपको अकबर साहब की नीयत पर कोई शक है। है तो उसको लोगों के सामने रखिए और सतही बातें नहीं करिए क्योंकि ऐसा करना कम-से-कम आपको शोभा नहीं देता। मैं समझता हूँ कि अकबर साहब जब कांग्रेस में थे तब भी उदारवादी और राष्ट्रवादी थे और आज भी हैं। गांधीजी ने अपनी पुस्तक मेरे सपनों का भारत में कहा है कि अगर मेरे पहले के विचार और बाद के विचारों में टकराहट दिखाई दे तो मेरे बाद के विचारों को मेरा विचार माना जाए। फिर यहां तो अकबर साहब के पहले और बाद के विचारों में टकराव है भी नहीं।
रवीश जी पत्रकारिता के क्षेत्र में अंधभक्ति गलत थी,है और रहेगी। क्या आपके पास कोई सबूत है कि अकबर साहब जब पत्रकार थे तब उन्होंने किसी पार्टी या व्यक्ति का अंधसमर्थन या अंधविरोध किया? आपने अकबर साहब से कहा है कि वे आपको सिखाएँ कि उन्होंने किस तरह से पत्रकारिता और राजनीति के बीच संतुलन साधा कि उनके हिस्से सिर्फ वाहवाही आई गाली नहीं।
रवीश जी ये चींजें सिखाने की होती ही नहीं हैं। आप अपने अतीत को खंगालिए और दृष्टिपात करके देखिए कि ऐसा आपमें क्या था,आपकी रिपोर्टिंग में ऐसा क्या था कि आपको लोग सिर-माथे पर लेते थे और आपमें-आपके तर्कों में तबसे अबतक क्या बदलाव आया है? इन दिनों आप तर्क कम जबर्दस्ती के कुतर्क ज्यादा देने लगे हैं। बहस के दौरान आप हिस्सा लेनेवालों पर अपने तर्कों और निष्कर्षों को जबरन थोपते हुए से लगते हैं? फिर आप उनको बुलाते ही क्यों हैं? एक शायर ने कहा है कि कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी कोई यूँ ही बेवफा नहीं होता। न जाने आपकी क्या मजबूरियाँ थीं कि आप भी बदल गए और इतना बदल गए कि यकीन ही नहीं होता कि आप वही रवीश हैं जिनकी पवित्र भावनाओं को पढ़कर दिल भर आता था? दिल है कि मानता ही नहीं कि आप वही रवीश हैं जिनसे प्रभावित होकर हमने ब्रज की दुनिया नाम से ब्लॉग बनाकर लिखना शुरू किया था?
रवीश जी आतंकियों को भटके हुए युवक,शेख हसीना वाजेद के बयान में मुसलमानों को शब्द बदलकर इंसान कहना पता नहीं कहाँ तक आपके चैनल की नीति है और इसके लिए आप कहाँ तक दोषी हैं? हो सकता है ढाका-आतंकी-हमले के बाद आपने और आपके चैनलवालों ने कुरान को कंठस्थ कर लिया हो और इसलिए आपको और आपके चैनलवालों को जेहादी आतंकवाद से डर नहीं लगता हो लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि आतंकी आपसे या हमसे भी कुरान की आयत सुनाने को कहेंगे ही अगर हम उनकी गिरफ्त में आ जाते हैं तो? मुंबई-हमले में तो उन्होंने लोगों से ऐसा करने को नहीं कहा था।
रवीश जी अपने नीर क्षीर विवेक को फिर से जिंदा करिए जो काफी पहले मर चुका है। अगर इसमें आपका चैनल बाधा बनता है तो छोड़ दीजिए चैनल को। सरकार जब गलत करती है यहाँ गलत से मेरा मतलब सीधे-सीधे ऐसे कदमों से है जो देश को कमजोर बनाता हो तो उसका विरोध करिए और जब सही करती है तो जबर्दस्ती का केजरीवाल टाईप विरोध करना त्यागकर खुले दिल से,तहे दिल से समर्थन करिए आपको स्वतः गाली के स्थान पर ताली मिलने लगेगी। हमें तो आज भी उस पुराने रवीश की तलाश है जिसकी रिपोर्ट देखने के लिए हम देर रात तक जागा करते थे। क्या आप हमें वही पुरानावाला रवीश देंगे जिसकी पंक्तियों में गंगाजल की पवित्रता,प्रवाह और गहराई तीनों होते थे।
शुभेच्छा सहित
आपका पूर्व प्रशंसक और वर्तमान आलोचक ब्रजकिशोर
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