मित्रों, क्या आपने कभी ऐसा देखा है कि कोई एक दिन किसी को बेकार और बोझ बताए और दूसरे ही उस पर कृपा और पुरस्कारों की बरसात कर दे? नहीं देखा है तो विडम्बनाओं के प्रदेश बिहार आ जाईए. ताजा प्रसंग यह है कि आपने भी सुना-पढ़ा होगा कि कुछ ही दिन पहले यहाँ के बडबोले शिक्षामंत्री ने कहा था कि नियोजित शिक्षक राज्य पर बोझ बन गए हैं. ग्राउंड पर वास्तविकता को देखते हुए हमें पता है कि उन्होंने जो भी कहा था एकदम सही कहा था २०० प्रतिशत से भी अधिक सही. बिहार के ९०-९५ प्रतिशत नियोजित शिक्षकों को पहाड़ा और महीनों के नाम तक लिखने नहीं आते. इस तरह की रिपोर्ट हमें अक्सर मीडिया में देखने को मिलती है. कल भी जी पुरवैया पर एक खबर प्रसारित हुई हैं जिसमें दिखाया गया है कि गया जिले के एक मध्य विद्यालय के शिक्षकों को जनवरी-फरवरी की स्पेलिंग भी मालूम नहीं हैं. अब आप ही बताईए कि जब शिक्षकों को ही कुछ पता नहीं होगा तो वो पढ़ाएंगे क्या?
मित्रों, ऐसे शिक्षकों को न कहा जाता तो क्या कहा जाता? लेकिन आश्चर्य होता है कि उसके अगले ही दिन सरकार ने यह घोषणा करके कि अब नियोजित शिक्षक भी प्रधानाध्यापक बन सकेंगे जैसे उनको उनकी नालायकी के लिए पुरस्कृत ही कर दिया.
मित्रों, सवाल उठता है कि सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है कि उसने उनको हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के बदले उन पर कृपा कर दी? कोई वेतनभोगी राज्य पर बोझ बन गया है तो उनकी छंटनी होनी चाहिए न कि उनको खुश कर दिया जाए. अगर सरकार को कृपा ही करनी थी तो फिर शिक्षा मंत्री ने उनको बोझ क्यों बताया? क्या किसी ने उनको ऐसा बयान देने के लिए मजबूर किया था या फिर वे उस समय नशे में थे क्योंकि कई बार ऐसा देखा गया है कि लोग नशे में सच बोलने लगते हैं? लेकिन इस समय तो कागजों पर बिहार में पूर्ण शराबबंदी है. फिर आखिर सच्चाई क्या है? क्या शिक्षा मंत्री इस पर रौशनी डालने की कृपा करेंगे? वैसे उनको शिक्षा मंत्री कहना भी सच्चाई को झुठलाने जैसा होगा क्योंकि बिहार में अब पढाई होती ही नहीं है सिर्फ परीक्षा होती है इसलिए उनको अगर हम परीक्षा मंत्री कहेंगे तो ज्यादा सही होगा.
मित्रों, ऐसे शिक्षकों को न कहा जाता तो क्या कहा जाता? लेकिन आश्चर्य होता है कि उसके अगले ही दिन सरकार ने यह घोषणा करके कि अब नियोजित शिक्षक भी प्रधानाध्यापक बन सकेंगे जैसे उनको उनकी नालायकी के लिए पुरस्कृत ही कर दिया.
मित्रों, सवाल उठता है कि सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है कि उसने उनको हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के बदले उन पर कृपा कर दी? कोई वेतनभोगी राज्य पर बोझ बन गया है तो उनकी छंटनी होनी चाहिए न कि उनको खुश कर दिया जाए. अगर सरकार को कृपा ही करनी थी तो फिर शिक्षा मंत्री ने उनको बोझ क्यों बताया? क्या किसी ने उनको ऐसा बयान देने के लिए मजबूर किया था या फिर वे उस समय नशे में थे क्योंकि कई बार ऐसा देखा गया है कि लोग नशे में सच बोलने लगते हैं? लेकिन इस समय तो कागजों पर बिहार में पूर्ण शराबबंदी है. फिर आखिर सच्चाई क्या है? क्या शिक्षा मंत्री इस पर रौशनी डालने की कृपा करेंगे? वैसे उनको शिक्षा मंत्री कहना भी सच्चाई को झुठलाने जैसा होगा क्योंकि बिहार में अब पढाई होती ही नहीं है सिर्फ परीक्षा होती है इसलिए उनको अगर हम परीक्षा मंत्री कहेंगे तो ज्यादा सही होगा.
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