मित्रों, आपको याद होगा कि जब नीतीश कुमार जी २००५ में बिहार के मुख्यमंत्री बनाए गए थे तब बिहार की सडकों की क्या स्थिति थी. स्टेट हाईवे तो स्टेट हाईवे राज्य के नेशनल हाईवे की स्थिति भी इतनी बुरी थी कि पता ही नहीं चलता था कि गड्ढे में सड़क है या सड़क में गड्ढा. तब नीतीश जी ने दरियादिली दिखाते हुए न सिर्फ स्टेट हाईवे बल्कि नेशनल हाईवे की भी मरम्मत राज्य सरकार के खजाने से करवाई थी जबकि ऐसा करना उनकी जिम्मेदारियों में शामिल नहीं था. तब उनकी सोंच महान थी कि पैसा कहीं से भी व्यय हो राज्य का भला होना चाहिए.
मित्रों, अभी कुछ दिनों पहले जब हमने उन्हीं नीतीश कुमार जी को बिहार के विश्वविद्यालयों के बारे में मीडिया से बात करते हुए देखा तो सहसा न तो आखों को और न ही कानों को ही यकीन हुआ. श्रीमान फरमा रहे थे कि विश्वविद्यालय उनकी जिम्मेदारी नहीं हैं क्योंकि उनके कुलाधिपति तो राज्यपाल होते है.
मित्रों, बात दरअसल यह है कि बिहार राज्य के विवि शिक्षकों और कर्मचारियों को प्रत्येक महीने वेतन और पेंशन नहीं मिलता है. कभी-कभी तो ४-चार महीने की देरी राज्य सरकार की ओर से की जाती है. इस बीच उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कितनी खस्ता हो चुकी होती है का आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं. इस साल सितम्बर का वेतन-पेंशन अभी तक नहीं आया है जबकि सारे खर्चीले हिन्दू त्योहार इसी दौरान आते हैं. इस बीच जब कुछ दिन पहले पत्रकारों ने नीतीश जी से विवि के वेतन-पेंशन के बारे में पूछ लिया तो नीतीश जी ने मामले से पूरी तरह से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह उनकी जिम्मेदारियों में आता ही नहीं है.
मित्रों, आप सहज ही अनुमान लगा सकते है कि जब राज्य का मुखिया ही अपनी जिम्मेदारियों के प्रति इस कदर उदासीन होगा तो राज्य में शिक्षा या सम्पूर्ण शासन-प्रशासन की स्थिति कैसे सुधर सकती है? क्या राज्य के विवि में दूसरे राज्य के लोग नौकरी करते हैं या उनमें दूसरे राज्यों के बच्चे पढ़ते हैं? अगर विश्वविद्यालय राज्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं हैं तो हैं किसकी जिम्मेदारी? विश्वविद्यालय अधिनियम क्या अमेरिका की विधानसभा में पारित हुए थे या राज्यपाल को कुलाधिपति कहाँ की विधानसभा ने बनाया है? राज्य सरकार में सारे काम तो राज्यपाल के नाम पर ही होते हैं तो क्या मुख्यमंत्री की कहीं कोई जिम्मेदारी है ही नहीं? पता नहीं नीतीश जी को यह पल्ला झाड़ने की बीमारी कहाँ से लगी? कहीं केजरीवाल जी से तो नहीं जो लम्बे समय तक दिल्ली के विभागविहीन मुख्यमंत्री रह चुके हैं?
मित्रों, कदाचित बिहार के दिहाड़ी मजदूर भी नीतीश जी की जिम्मेदारियोंवाली सूची में नहीं आते हैं. तभी तो उनकी सरकार ने पिछले कई महीनों में राज्य में बालू के खनन पर रोक लगा रखी है जिससे राज्य में भवन-निर्माण का काम पूरी तरह से ठप है. अब अगर इन लाखों मजदूरों या विवि शिक्षकों-कर्मचारियों के परिवार में कोई भुखमरी से मर जाता है तो सरकारी डॉक्टर तो यही कहेंगे कि इसकी मौत भुखमरी से नहीं हुई है बल्कि मलेरिया का मच्छर काटने से किडनी में हार्ट अटैक हो गया था?
मित्रों, अभी कुछ दिनों पहले जब हमने उन्हीं नीतीश कुमार जी को बिहार के विश्वविद्यालयों के बारे में मीडिया से बात करते हुए देखा तो सहसा न तो आखों को और न ही कानों को ही यकीन हुआ. श्रीमान फरमा रहे थे कि विश्वविद्यालय उनकी जिम्मेदारी नहीं हैं क्योंकि उनके कुलाधिपति तो राज्यपाल होते है.
मित्रों, बात दरअसल यह है कि बिहार राज्य के विवि शिक्षकों और कर्मचारियों को प्रत्येक महीने वेतन और पेंशन नहीं मिलता है. कभी-कभी तो ४-चार महीने की देरी राज्य सरकार की ओर से की जाती है. इस बीच उनके परिवार की आर्थिक स्थिति कितनी खस्ता हो चुकी होती है का आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं. इस साल सितम्बर का वेतन-पेंशन अभी तक नहीं आया है जबकि सारे खर्चीले हिन्दू त्योहार इसी दौरान आते हैं. इस बीच जब कुछ दिन पहले पत्रकारों ने नीतीश जी से विवि के वेतन-पेंशन के बारे में पूछ लिया तो नीतीश जी ने मामले से पूरी तरह से अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह उनकी जिम्मेदारियों में आता ही नहीं है.
मित्रों, आप सहज ही अनुमान लगा सकते है कि जब राज्य का मुखिया ही अपनी जिम्मेदारियों के प्रति इस कदर उदासीन होगा तो राज्य में शिक्षा या सम्पूर्ण शासन-प्रशासन की स्थिति कैसे सुधर सकती है? क्या राज्य के विवि में दूसरे राज्य के लोग नौकरी करते हैं या उनमें दूसरे राज्यों के बच्चे पढ़ते हैं? अगर विश्वविद्यालय राज्य सरकार की जिम्मेदारी नहीं हैं तो हैं किसकी जिम्मेदारी? विश्वविद्यालय अधिनियम क्या अमेरिका की विधानसभा में पारित हुए थे या राज्यपाल को कुलाधिपति कहाँ की विधानसभा ने बनाया है? राज्य सरकार में सारे काम तो राज्यपाल के नाम पर ही होते हैं तो क्या मुख्यमंत्री की कहीं कोई जिम्मेदारी है ही नहीं? पता नहीं नीतीश जी को यह पल्ला झाड़ने की बीमारी कहाँ से लगी? कहीं केजरीवाल जी से तो नहीं जो लम्बे समय तक दिल्ली के विभागविहीन मुख्यमंत्री रह चुके हैं?
मित्रों, कदाचित बिहार के दिहाड़ी मजदूर भी नीतीश जी की जिम्मेदारियोंवाली सूची में नहीं आते हैं. तभी तो उनकी सरकार ने पिछले कई महीनों में राज्य में बालू के खनन पर रोक लगा रखी है जिससे राज्य में भवन-निर्माण का काम पूरी तरह से ठप है. अब अगर इन लाखों मजदूरों या विवि शिक्षकों-कर्मचारियों के परिवार में कोई भुखमरी से मर जाता है तो सरकारी डॉक्टर तो यही कहेंगे कि इसकी मौत भुखमरी से नहीं हुई है बल्कि मलेरिया का मच्छर काटने से किडनी में हार्ट अटैक हो गया था?
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