मित्रों, इस समय देश की हालत काफी नाजुक है. न तो केंद्र की वर्तमान सरकार और न ही विपक्ष देश की वास्तविक समस्याओं के प्रति गंभीर है. दोनों तरफ से ही बेसिर-पैर की बातें हो रहीं हैं. कल राहुल जी ने कैंसरग्रस्त मनोहर पर्रिकर से हुई शिष्टाचारवश की गई मुलाकात का घटिया
राजनीति के लिए इस्तेमाल करके स्तरहीनता के प्रत्येक संभव स्तरों को भी पार कर लिया. आज अगर हमारी आजादी की लडाई के शहीदों की आत्मा कहीं होगी तो वो जरूर वर्तमान भारत के हालात पर रो रही होंगी. मित्रों, हमारी केंद्र सरकार कहती है कि हमारी नीयत पर शक मत करो. क्यों नहीं करो?
क्या इसलिए क्योंकि आपके मंत्रिमंडल में गिनती के लोग ही योग्य हैं और बहुमत आपकी चापलूसी करनेवालों का है. हमने तो समझा था कि आप बांकियों से अलग हैं और आपको चापलूसी के स्थान पर काम पसंद है फिर गिरिराज सिंह, स्मृति ईरानी, अल्फ़ान्सो जैसे लोग आपके मंत्रिमंडल
में क्या कर रहे हैं? क्यों वित्त मंत्रालय, सांख्यिकी आयोग, रिजर्व बैंक आदि महत्वपूर्ण संस्थानों से योग्य लोग इस्तीफा देकर भाग रहे हैं? क्यों आपको या तो आंकड़े बदलने पड़ रहे हैं या फिर उनको दबाना पड़ रहा है? क्यों मेरा देश बदल रहा है वाला गाना अब आपलोगों के मधुर कंठ से सुनाई नहीं दे रहा?
मित्रों, मैं यह नहीं कह रहा कि मोदी सरकार ने बिलकुल भी काम नहीं किया है लेकिन उसने जो सबसे बड़ा काम किया है वो यह है कि उसने हम जैसे उसके हितचिंतकों की सीख पर कान देना बंद कर दिया है. हमने कई साल पहले कहा था कि जेटली जी को वित्त मंत्री से हटाओ नहीं तो ये
देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ तेरी भी बाट लगा देंगे लेकिन हमारी बात नहीं सुनी गई. आज हालत तो देखो खजाना खाली, बेरोजगारी चरम पर. इसे कहते हैं न खाया न पीया और गिलास तोडा पूरे सवा रूपये का. खजाना अगर बेरोजगारों को रोजगार देने में खाली होता, शिक्षा और स्वास्थ्य के
विश्वस्तरीय संस्थान बनाने में खर्च हुआ होता तो एक उपलब्धि होती लेकिन खजाना खाली हुआ बिना कोई तैयारी किए जनता को सरप्राईज देने वाली स्वप्निल योजनाओं नोटबंदी और जीएसटी लागू करने में. उद्योग और व्यापार की तो दुर्गति की ही गई सबसे तेजी से बढ़ोतरी कर रहे रियल स्टेट सेक्टर का तो
जैसे गला ही दबा दिया गया. अब जब व्यापार ही नहीं होगा तो कर कहाँ से आएगा वो तो घटेगा ही न. पता नहीं क्यों जब पहले से भी ज्यादा नोट छापने थे तो क्यों नोटबंदी की? अब क्या फिर से २००० के नोट बंद करेंगे प्रधानसेवक जी? वैसे भी प्रधानसेवक जी सिर्फ अपने मन की करने और अपने मन की कहने के अभ्यस्त रहे हैं. मन की बात, केवल अपने मन की बात. न जाने ये कैसे सेवक हैं कि वे चाहते ही नहीं कि मालिक उनसे कोई सवाल करे इसलिए शायद उन्होंने आजतक एक बार भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं किया.
मित्रों, कहाँ तो कहा जाता था कि भारत के लिए बढती जनसँख्या वरदान साबित होगी. सबको प्रशिक्षित करो, सबके सब उद्यमी बनेंगे कोई उपभोक्ता होगा ही नहीं, सबके-सब उद्यमी. सबके-सब मालिक कोई नौकर नहीं. साथ ही किसी को नौकरी भी नहीं. अगर इस सरकार को वास्तव में देश की चिंता होती तो वो सबसे पहले जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाती, आवारा पशुओं की समस्या से निबटती. मैंने मानता हूँ कि गायों की रक्षा की जानी चाहिए लेकिन यह भी तो ठीक नहीं कि मरते हुए आदमी को अस्पताल बाद में पहुँचाया जाए और राजस्थान पुलिस गायों को भोजन पहले करवाए. अगर गायों की इतनी ही चिंता है तो क्यों राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारी और सरकार द्वारा वित्तपोषित गौशालाओं में एक साथ सैकड़ों गाएँ दम तोड़ रही हैं? देश में ईन्सानियत के आंकड़ें रोजाना जमीन सूंघ रहे हैं लेकिन उसकी चिंता किसी को नहीं है. बालिका संरक्षण गृहों में
नेताओं द्वारा छोटी-छोटी बच्चियों का बलात्कार किया जा रहा है, डॉक्टर बेवजह आपरेशन कर रहे हैं, हर आदमी के भीतर एक बलात्कारी पल रहा है लेकिन सरकार को कोई चिंता नहीं. विपक्ष को भी सिर्फ कुर्सी नजर आ रही है और कुर्सी से प्राप्त होनेवाले लाभ दिखाई दे रहे हैं. अभी पांच राज्यों के चुनावों में से तीन सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव जीते २ महीने भी नहीं हुए और कांग्रेस पार्टी की सरकारों ने काफी तेज गति से २००० करोड से भी बड़ा घोटाला कर दिया. किसान कह रहे कि हमने तो लोन लिया ही नहीं और सरकार कह रही कि तुम चुप रहो हमने वादा किया है इसलिए हम
तुम्हारा भी लोन माफ़ करेंगे और करके रहेंगे.
मित्रों, कुल मिलाकर देश की स्थिति ऐसी है जैसी चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु की थी. न तो आगे जाना संभव और न हो पीछे हटना मुमकिन. इसलिए हमारा सुझाव है कि मोदी जी के स्थान पर भाजपा नया सेनापति नियुक्त करे. भाजपा सरकार की खुद की रिपोर्ट के अनुसार राजनाथ
सिंह का काम पूरे मंत्रिमंडल में सबसे अच्छा रहा है तो या तो भाजपा राजनाथ को सेनापति बनाए या फिर गडकरी जी को जिनका काम भी शानदार रहा है क्योंकि मुझे अभी तक ऐसा लग नहीं रहा है कि मोदी जी सवर्ण आरक्षण, राम मंदिर के लिए पहल के बावजूद चुनाव जिता सकने की स्थिति में हैं. पिछले कुछ समय में हुए सर्वेक्षण भी मेरे
मत की तस्दीक करते हैं. यह सही है कि पहले मैंने योगी आदित्यनाथ जी का समर्थन किया था लेकिन तब से लेकर अब तक उनकी लोकप्रियता में काफी कमी आ चुकी है लोग उनसे उबने लगे हैं. वैसे सच पूछिए तो मुझे कल आनेवाले मोदी सरकार के अंतिम मगर अंतरिम बजट से भी
कोई खास उम्मीद नहीं है क्योंकि जब दिशाज्ञान ही नहीं तो फिर मंजिल मिलने की सोंचना ही व्यर्थ है.
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें.
अबकि बार अगर मोदी जी गए हार,
तो न जाने फिर कब बने राष्ट्रवादी सरकार.
राजनीति के लिए इस्तेमाल करके स्तरहीनता के प्रत्येक संभव स्तरों को भी पार कर लिया. आज अगर हमारी आजादी की लडाई के शहीदों की आत्मा कहीं होगी तो वो जरूर वर्तमान भारत के हालात पर रो रही होंगी. मित्रों, हमारी केंद्र सरकार कहती है कि हमारी नीयत पर शक मत करो. क्यों नहीं करो?
क्या इसलिए क्योंकि आपके मंत्रिमंडल में गिनती के लोग ही योग्य हैं और बहुमत आपकी चापलूसी करनेवालों का है. हमने तो समझा था कि आप बांकियों से अलग हैं और आपको चापलूसी के स्थान पर काम पसंद है फिर गिरिराज सिंह, स्मृति ईरानी, अल्फ़ान्सो जैसे लोग आपके मंत्रिमंडल
में क्या कर रहे हैं? क्यों वित्त मंत्रालय, सांख्यिकी आयोग, रिजर्व बैंक आदि महत्वपूर्ण संस्थानों से योग्य लोग इस्तीफा देकर भाग रहे हैं? क्यों आपको या तो आंकड़े बदलने पड़ रहे हैं या फिर उनको दबाना पड़ रहा है? क्यों मेरा देश बदल रहा है वाला गाना अब आपलोगों के मधुर कंठ से सुनाई नहीं दे रहा?
मित्रों, मैं यह नहीं कह रहा कि मोदी सरकार ने बिलकुल भी काम नहीं किया है लेकिन उसने जो सबसे बड़ा काम किया है वो यह है कि उसने हम जैसे उसके हितचिंतकों की सीख पर कान देना बंद कर दिया है. हमने कई साल पहले कहा था कि जेटली जी को वित्त मंत्री से हटाओ नहीं तो ये
देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ तेरी भी बाट लगा देंगे लेकिन हमारी बात नहीं सुनी गई. आज हालत तो देखो खजाना खाली, बेरोजगारी चरम पर. इसे कहते हैं न खाया न पीया और गिलास तोडा पूरे सवा रूपये का. खजाना अगर बेरोजगारों को रोजगार देने में खाली होता, शिक्षा और स्वास्थ्य के
विश्वस्तरीय संस्थान बनाने में खर्च हुआ होता तो एक उपलब्धि होती लेकिन खजाना खाली हुआ बिना कोई तैयारी किए जनता को सरप्राईज देने वाली स्वप्निल योजनाओं नोटबंदी और जीएसटी लागू करने में. उद्योग और व्यापार की तो दुर्गति की ही गई सबसे तेजी से बढ़ोतरी कर रहे रियल स्टेट सेक्टर का तो
जैसे गला ही दबा दिया गया. अब जब व्यापार ही नहीं होगा तो कर कहाँ से आएगा वो तो घटेगा ही न. पता नहीं क्यों जब पहले से भी ज्यादा नोट छापने थे तो क्यों नोटबंदी की? अब क्या फिर से २००० के नोट बंद करेंगे प्रधानसेवक जी? वैसे भी प्रधानसेवक जी सिर्फ अपने मन की करने और अपने मन की कहने के अभ्यस्त रहे हैं. मन की बात, केवल अपने मन की बात. न जाने ये कैसे सेवक हैं कि वे चाहते ही नहीं कि मालिक उनसे कोई सवाल करे इसलिए शायद उन्होंने आजतक एक बार भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं किया.
मित्रों, कहाँ तो कहा जाता था कि भारत के लिए बढती जनसँख्या वरदान साबित होगी. सबको प्रशिक्षित करो, सबके सब उद्यमी बनेंगे कोई उपभोक्ता होगा ही नहीं, सबके-सब उद्यमी. सबके-सब मालिक कोई नौकर नहीं. साथ ही किसी को नौकरी भी नहीं. अगर इस सरकार को वास्तव में देश की चिंता होती तो वो सबसे पहले जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाती, आवारा पशुओं की समस्या से निबटती. मैंने मानता हूँ कि गायों की रक्षा की जानी चाहिए लेकिन यह भी तो ठीक नहीं कि मरते हुए आदमी को अस्पताल बाद में पहुँचाया जाए और राजस्थान पुलिस गायों को भोजन पहले करवाए. अगर गायों की इतनी ही चिंता है तो क्यों राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सरकारी और सरकार द्वारा वित्तपोषित गौशालाओं में एक साथ सैकड़ों गाएँ दम तोड़ रही हैं? देश में ईन्सानियत के आंकड़ें रोजाना जमीन सूंघ रहे हैं लेकिन उसकी चिंता किसी को नहीं है. बालिका संरक्षण गृहों में
नेताओं द्वारा छोटी-छोटी बच्चियों का बलात्कार किया जा रहा है, डॉक्टर बेवजह आपरेशन कर रहे हैं, हर आदमी के भीतर एक बलात्कारी पल रहा है लेकिन सरकार को कोई चिंता नहीं. विपक्ष को भी सिर्फ कुर्सी नजर आ रही है और कुर्सी से प्राप्त होनेवाले लाभ दिखाई दे रहे हैं. अभी पांच राज्यों के चुनावों में से तीन सबसे महत्वपूर्ण राज्यों में चुनाव जीते २ महीने भी नहीं हुए और कांग्रेस पार्टी की सरकारों ने काफी तेज गति से २००० करोड से भी बड़ा घोटाला कर दिया. किसान कह रहे कि हमने तो लोन लिया ही नहीं और सरकार कह रही कि तुम चुप रहो हमने वादा किया है इसलिए हम
तुम्हारा भी लोन माफ़ करेंगे और करके रहेंगे.
मित्रों, कुल मिलाकर देश की स्थिति ऐसी है जैसी चक्रव्यूह में फंसे अभिमन्यु की थी. न तो आगे जाना संभव और न हो पीछे हटना मुमकिन. इसलिए हमारा सुझाव है कि मोदी जी के स्थान पर भाजपा नया सेनापति नियुक्त करे. भाजपा सरकार की खुद की रिपोर्ट के अनुसार राजनाथ
सिंह का काम पूरे मंत्रिमंडल में सबसे अच्छा रहा है तो या तो भाजपा राजनाथ को सेनापति बनाए या फिर गडकरी जी को जिनका काम भी शानदार रहा है क्योंकि मुझे अभी तक ऐसा लग नहीं रहा है कि मोदी जी सवर्ण आरक्षण, राम मंदिर के लिए पहल के बावजूद चुनाव जिता सकने की स्थिति में हैं. पिछले कुछ समय में हुए सर्वेक्षण भी मेरे
मत की तस्दीक करते हैं. यह सही है कि पहले मैंने योगी आदित्यनाथ जी का समर्थन किया था लेकिन तब से लेकर अब तक उनकी लोकप्रियता में काफी कमी आ चुकी है लोग उनसे उबने लगे हैं. वैसे सच पूछिए तो मुझे कल आनेवाले मोदी सरकार के अंतिम मगर अंतरिम बजट से भी
कोई खास उम्मीद नहीं है क्योंकि जब दिशाज्ञान ही नहीं तो फिर मंजिल मिलने की सोंचना ही व्यर्थ है.
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें.
अबकि बार अगर मोदी जी गए हार,
तो न जाने फिर कब बने राष्ट्रवादी सरकार.