मंगलवार, 12 मार्च 2019

राहुल जी के मसूद अजहर जी


मित्रों, आजकल कांग्रेस की जो छवि जनता के बीच बन रही है वह कोई अच्छी छवि नहीं है. पिछले कुछ सालों में भारत की जनता ऐसा मानने लगी है कि कांग्रेस किसी-न-किसी तरह पाकिस्तान और पाकिस्तान के बल पर पलने और आतंकी हमले करनेवाले संगठनों का समर्थन करती है. वैसे विश्वास तो नहीं होता कि यह वही कांग्रेस है जो एक समय कट्टर राष्ट्रवादी पार्टी थी और उसने देश की आजादी के लिए चलनेवाले आन्दोलन को नेतृत्व दिया था. मगर क्या करें साहब इतिहास को तो हम बदल नहीं सकते.
मित्रों, जरा कल्पना कीजिए कि आज से ठीक १०० साल पहले कांग्रेस क्या कर रही थी. तब वह रौलेट एक्ट के खिलाफ पूरे देश में आन्दोलन चला रही थी. चारों तरफ आसमान वन्दे मातरम और भारत माता की जय के नारों से गूँज रहा था. गाँधी तब कांग्रेस के सर्वमान्य नेता नहीं बने थे बल्कि बनने की प्रक्रिया में थे. और ठीक १०० साल बाद वही कांग्रेस जैसे राष्ट्रवाद से नफरत करने लगी है. जो सैनिक देश पर अपने प्राण न्योछावर कर देने में जरा-सी भी झिझक नहीं दिखाते कांग्रेस को उन पर भी भरोसा नहीं है. वो कभी सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगती है तो कभी एयर स्ट्राइक के. आखिर ऐसा क्या कारण है कि कांग्रेस को आज भारतीय सेना से ज्यादा यकीन शत्रु देश पाकिस्तान के नेताओं पर है जो एक ही दिन में कई बार अपने बयानों से पलट जाते हैं? कभी-कभी तो ऐसा लगता ही नहीं कि कांग्रेस भारत की पार्टी है बल्कि उसका रवैया देश के प्रति इतना गैरजिम्मेदाराना होता है कि वो पाकिस्तान की राजनैतिक पार्टी लगती है और ऐसा लगता है कि जैसे उसे भारत में नहीं पाकिस्तान में चुनाव लड़ना है.
मित्रों, पुलवामा हमले के बाद मुझे जब मीडिया में पढने को मिला कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी जी ने अपने बकवादी नेताओं को बयान देने से पूरी तरह से मना कर दिया है तो मुझे काफी ख़ुशी हुई. लेकिन यह क्या? एक बार जो भारत और भारतीय सेना के खिलाफ कांग्रेस के नेताओं ने बोलना शुरू किया तो जैसे उनके बीच होड़-सी मच गई. लगा जैसे इस तरह की कोई प्रतियोगिता चल रही है कि कौन भारत और भारतीय सेना के खिलाफ कितनी संख्या में और कितने घटिया बयान देता है. कोई सिद्धू नामक कथित सरदार कहने लगा कि आतंकी हमले के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार ही नहीं है. भारत को उसके ऊपर कार्रवाई करने के बदले उसके साथ बातचीत करनी चाहिए. तो वहीँ राहुल गाँधी जी के राजनैतिक गुरु दिग्विजय सिंह ने पुलवामा हमले को सीधे-सीधे दुर्घटना बता दिया मानों वहां पर सीआरपीएफ के जवान बस के पलट जाने से मारे गए.
मित्रों, अब जब होड़ लगी ही है तो कांग्रेस के अध्यक्ष महोदय कैसे पीछे रहने वाले थे तो कल उन्होंने भी जैश सरगना मौलाना मसूद अजहर को मसूद अजहर जी कहकर अपना पेट का दर्द मिटा लिया. मौलाना मसूद अजहर जी? वो भी ऐसे जैसे मसूद अजहर जो जीता जगता दरिंदा है के लिए उनके मन में कितनी ईज्ज़त है, कितनी श्रद्धा है. आज शर्म आती है मुझे भी यह कहते हुए कि मेरे दादा जी कांग्रेसी थे और १९४२ में जेल गए थे ठीक उसी तरह जैसे बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता विनोद शर्मा को शर्म आई और उन्होंने यह कहने हुए अपनी पार्टी और पद से इस्तीफा दे दिया कि लोग कांग्रेस को आतंकवादियों की पार्टी मानने लगे हैं.
मित्रों, आपने गौर किया होगा कि मैंने अपने पूरे आलेख में सिर्फ राहुल गाँधी जी के नाम के बाद जी लगाया है. मैं यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि ऐसा मैंने इसलिए कतई नहीं किया है क्योंकि मैं उनका आदर करता हूँ बल्कि मैंने ऐसा इसलिए किया है क्योंकि क्या करें मौसी अपना तो दिल ही कुछ ऐसा है.

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