मित्रों, उस समय मैं कॉलेज में पढता था. उस समय हमारे एक सीनियर हुआ करते थे जो कॉलेज प्रशासन से नाखुश रहा करते थे. श्रीमान रोज पुस्तकालय जाते मगर किताब पढने नहीं बल्कि इस किताब चुराने. मौका मिला नहीं कि थैले में किताब रखकर निकल लिए. हद तो यह थी कि दो-चार दिन बीत जाने के बाद लाइब्रेरियन से वो वही किताब निर्गत करने के लिए कहते जो किताब वे चुरा चुके थे. स्वाभाविक था कि वो किताब तो लाइब्रेरी से चोरी हो चुकी थी इसलिए लाइब्रेरियन उसे खोजता-खोजता थक जाता तब मेरा वो सीनियर उस पर किताब घर ले जाने के आरोप लगाता, चीखता-चिल्लाता और लाइब्रेरियन को मजबूरन उसकी बकवास को सर झुकाए सुनना पड़ता.
मित्रों, कदाचित हमारी मोदी सरकार भी कुछ इसी तरह से हालात से गुजर रही है. जिन लोगों ने फाइल चोरी करवाई वही लोग अब सरकार से फाइल मांग रहे हैं. अब जब फाइल सरकार से पास है ही नहीं तो वो देगी कहाँ से? अब गलती सरकार से हुई है तो शर्मिंदा भी उसे ही होना पड़ेगा जैसे कि कभी मेरे कॉलेज के उन लाइब्रेरियन सर को होना पड़ता था.
मित्रों, अभी कुछ दिन पहले मुझे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की प्रशंसा में इंडिया टीवी पर एक कार्यक्रम देखने का सुअवसर मिला. उसमें बताया गया था कि मोदी जी ने प्रधानमंत्री निवास और प्रधानमंत्री कार्यालय में उन्हीं कर्मचारियों-आदेशपालों और अधिकारियों को रखा है जो पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के समय वहां कार्यरत थे. उस दिन तो मैं भी प्रधानमंत्री मोदी जी की भलमनसाहत देखकर काफी खुश हुआ लेकिन जब कल-परसों फाइल चोरी का प्रकरण सामने आया तो समझा कि ज्यादा अच्छा होना भी कभी-कभी उसी तरह से नुकसानदेह होता है जैसे प्राचीन यूनानी नाटकों में होता था जब नायक अपनी अच्छाई और दयाभाव के चलते पराजित हो जाता था और मारा जाता था यकीं न हो तो जूलियस सीजर नाटक देख-पढ़ लीजिए.
मित्रों, आलेख के अंत में मैं प्रधानमंत्री मोदी जी को एक बार फिर से आदतन मुफ्त में चंद सलाह देना चाहूँगा कि वे किसी पर भी आँखे बंद कर विश्वास न करें चाहे तो अधिकारी हो या चपरासी क्योंकि यह घनघोर कलियुग है और आज के ज़माने में न अमीर और न गरीब पर विश्वास किया जा सकता है. साथ ही मोदी जी को चाहिए कि जहाँ तक हो सके विभिन्न विश्वसनीय पदों पर सिर्फ अपने लोगों को रखें और वैसे लोगों को तो कभी अपने कार्यालय में नहीं रखें जो पिछली सरकार के प्रति घनघोर वफादार रहे हों. आगे प्रधानमंत्री जी की मर्जी. वैसे भी मेरी कौन-सी बात पर उन्होंने अब तक ध्यान दिया है? करवाते रहें फाइल चोरी और होते रहें शर्मिंदा और हमें भी करवाते रहें.
मित्रों, कदाचित हमारी मोदी सरकार भी कुछ इसी तरह से हालात से गुजर रही है. जिन लोगों ने फाइल चोरी करवाई वही लोग अब सरकार से फाइल मांग रहे हैं. अब जब फाइल सरकार से पास है ही नहीं तो वो देगी कहाँ से? अब गलती सरकार से हुई है तो शर्मिंदा भी उसे ही होना पड़ेगा जैसे कि कभी मेरे कॉलेज के उन लाइब्रेरियन सर को होना पड़ता था.
मित्रों, अभी कुछ दिन पहले मुझे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की प्रशंसा में इंडिया टीवी पर एक कार्यक्रम देखने का सुअवसर मिला. उसमें बताया गया था कि मोदी जी ने प्रधानमंत्री निवास और प्रधानमंत्री कार्यालय में उन्हीं कर्मचारियों-आदेशपालों और अधिकारियों को रखा है जो पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी के समय वहां कार्यरत थे. उस दिन तो मैं भी प्रधानमंत्री मोदी जी की भलमनसाहत देखकर काफी खुश हुआ लेकिन जब कल-परसों फाइल चोरी का प्रकरण सामने आया तो समझा कि ज्यादा अच्छा होना भी कभी-कभी उसी तरह से नुकसानदेह होता है जैसे प्राचीन यूनानी नाटकों में होता था जब नायक अपनी अच्छाई और दयाभाव के चलते पराजित हो जाता था और मारा जाता था यकीं न हो तो जूलियस सीजर नाटक देख-पढ़ लीजिए.
मित्रों, आलेख के अंत में मैं प्रधानमंत्री मोदी जी को एक बार फिर से आदतन मुफ्त में चंद सलाह देना चाहूँगा कि वे किसी पर भी आँखे बंद कर विश्वास न करें चाहे तो अधिकारी हो या चपरासी क्योंकि यह घनघोर कलियुग है और आज के ज़माने में न अमीर और न गरीब पर विश्वास किया जा सकता है. साथ ही मोदी जी को चाहिए कि जहाँ तक हो सके विभिन्न विश्वसनीय पदों पर सिर्फ अपने लोगों को रखें और वैसे लोगों को तो कभी अपने कार्यालय में नहीं रखें जो पिछली सरकार के प्रति घनघोर वफादार रहे हों. आगे प्रधानमंत्री जी की मर्जी. वैसे भी मेरी कौन-सी बात पर उन्होंने अब तक ध्यान दिया है? करवाते रहें फाइल चोरी और होते रहें शर्मिंदा और हमें भी करवाते रहें.
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