मित्रों, अगर हम २००५ से २०१० के कालखंड को अलग कर दें तो बिहार में २०१० से ही जंगलराज पार्ट २ चल रहा है. बीच में जब २०१४ का लोकसभा चुनाव आया तब बिहारियों के मन में जरूर लड्डू फूटने लगे. खुद प्रधानमंत्री के उम्मीदवार ने वादा किया था कि अब बिहारियों को बिहार से बाहर जाकर काम करने की जरुरत नहीं होगी क्योंकि वे चाहते हैं कि भारत का न सिर्फ पश्चिमी भाग विकसित हो बल्कि पूर्वी भाग भी बराबरी का विकास करे और यहाँ भी उद्योग-धंधों की स्थापना हो. तब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश जी भाजपा का दामन छोड़कर लालू जी की गोद में जा बैठे थे. फिर भी बिहार की जनता ने मोदी जी के वादों पर यकीन करते हुए उनके गठबंधन को ३२ सीटें दे दीं.
मित्रों, फिर मौसम बदला, साल बदला और नीतीश जी ने एक बार फिर पाला बदल लिया. इस बार उन्होंने भाजपा की अगुवाई में चुनाव लड़ा. एक बार फिर से प्रधानमंत्री जी बिहार आए और फिर से वही वादे किए जो पिछली बार किए थे. साथ ही उन्होंने एक बार फिर से बिहार सहित पूरे भारत की जनता से आह्वान किया कि वे समझें कि भारत की प्रत्येक सीट से मोदी जी ही खड़े हैं और भूल जाएं कि उनके क्षेत्र से कौन खड़ा है. बिहार की जनता ने एक बार फिर से मोदी जी पर भरोसा किया और पिछली बार से ज्यादा किया और ४० में से ३९ सीटें एनडीए की झोली में डाल दी.
मित्रों, लेकिन सवाल उठता है कि २०१४ के बाद से बिहार में कोई बदलाव भी आया है या फिर बिहार के लोग खुद को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं? सौभाग्यवश पूरे डेढ़ साल बाद मैं पिछले एक महीने से बिहार में हूँ और इस बीच मुझे एक बार फिर से बिहार को देखने-समझने का मौका मिला है. जहाँ तक मैंने पिछले एक महीने में महसूस किया है बिहार में जंगलराज अपने पूरे शिखर पर है. पिछले १०-१५ दिनों में सिर्फ वैशाली जिले में जो एक समय बिहार का सबसे शांत जिला होता था लगभग आधा दर्जन व्यवसायियों की हत्या हो चुकी है. अर्थात एक तो बिहार में नौकरियों की पहले से ही भारी कमी है तो वहीँ दूसरी तरफ आप व्यवसाय करके भी शांतिपूर्ण तरीके से कमा-खा नहीं सकते. कोई व्यवसायी नहीं जानता कि उनके जीवन का कौन-सा पल अपराधियों द्वारा मौत की अमानत बना दी जाए.
मित्रों, आप समझ गए होंगे कि इन दिनों बिहार में कानून और व्यवस्था की हालत अभूतपूर्व तरीके से ख़राब है. साथ ही पूरे बिहार में अव्यवस्था और भ्रष्टाचार का बोलवाला है. अगर ऐसा नहीं होता तो २०० से ज्यादा बच्चों की अकाल मृत्यु नहीं हुई होती और न ही इन दिनों जगह-जगह तटबंध टूट रहे होते. पिछले कुछ दिनों में मैंने महसूस किया है कि हाजीपुर जैसे महत्वपूर्ण शहर में भी बिजली की स्थिति अत्यंत ख़राब है और दिन-रात मिलाकर १२ घंटे भी बिजली नहीं रहती. अब कल रात को ही ले लें तो ९ बजे बिजली कट गयी और आई सुबह ७ बजे. इस तरह पूरे हाजीपुर को आँखों-आँखों में रात काटनी पड़ी.
मित्रों, इतना ही नहीं इन दिनों भाजपा समर्थित नगर प्रधान की मेहरबानी से पूरा हाजीपुर नरक बना हुआ है. नालियों से गन्दा निकालकर सड़क किनारे रखकर छोड़ दिया गया है जो लगातार बरसात के कारण पूरी सड़क पर पसर गया है. इतना ही नहीं पूरे हाजीपुर में इस समय जलजमाव की स्थिति है.
मित्रों, अगर आपको पटना जाना हो तो पता नहीं कि आपको कितने घंटे लग जाएँ. महात्मा गाँधी सेतु की दाहिनी लेन पुनर्निर्माण के लिए तोड़ दी गयी है और सारी गाड़ियाँ सिर्फ बायीं लेन से आ-जा रही हैं. हमें बार-बार सुनाया जाता है कि महात्मा गाँधी सेतु के समानांतर दूसरा पुल भी बनेगा लेकिन ऐसा कुछ होता हुआ धरातल पर दिख नहीं रहा है. जब नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तब बिहार की जनता को उम्मीद थी कि बंद पड़े ३० चीनी कारखानों को फिर से चालू किया जाएगा लेकिन उसमें भी घोटाला होने लगा. साथ ही बिहार का ऐसा कोई विभाग नहीं होगा जिसमें कोई-न-कोई घोटाला न हुआ हो. सृजन और मुजफ्फरपुर बालिका गृह काण्ड के तार तो बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री तक भी जाते दिखाई दिये.
मित्रों, वैसे तो नीतीश कुमार मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड पर जमकर बोले हैं. लेकिन खुलकर नहीं बहुत कुछ छुपा कर बोले हैं. जैसे उन्होंने यह नहीं बताया कि ब्रजेश ठाकुर से उनका क्या और कैसा संबंध है. यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि नीतीश जी मुख्यमंत्री बनने के बाद ब्रजेश ठाकुर के पुत्र के जन्मदिन का केक काटने पटना से चलकर मुज़फ़्फ़रपुर गये थे. ब्रजेश ठाकुर के साथ नीतीश कुमार का राजनीतिक संबंध तो दिखाई नहीं दे रहा है. क्योंकि बताया गया है कि ब्रजेश ठाकुर नीतीश जी की पार्टी से नहीं बल्कि आनंदमोहन जी की पार्टी से जुड़े हुए थे. ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा जन्मदिन जैसे नितांत घरेलू और पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए पटना से मुज़फ़्फ़रपुर जाना ठाकुर के साथ उनके संबंध की प्रगाढ़ता को ही दर्शाता है. नीतीश जी से बिहार की जनता यह जानना चाहेगी कि ब्रजेश ठाकुर के यहां जाकर उनको कृतार्थ करने के बाद उनके यानी ठाकुर के अख़बारों को मिलने वाले विज्ञापनों में कितना इज़ाफ़ा हुआ. यह भी बताना चाहिए कि मुख्यमंत्री जी द्वारा ठाकुर के घर को पवित्र करने के बाद बालिका गृह की तरह और कितने गृह के संचालन का ठेका ठाकुर को मिला.
मित्रों, जाहिर है कि बिहार भारत के सामने पहले भी बड़ा सवाल था, चुनौती था और आज भी है. साथ ही जाहिर है कि अगर मोदी जी बिहार की जनता से बिहार की प्रत्येक सीट पर अपने नाम पर वोट मांगते हैं तो बिहार से जुड़े सारे सवालों के जवाब भी उनको ही देने होंगे और पूरी संवेदनशीलता दिखाते हुए देने होंगे न कि वैसी संवेदनहीनता दिखाना होगा जैसा कि उन्होंने चमकी बुखार के मामले में प्रदर्शित किया है. बिहार की जनता के पास सिवाय मोदी जी की शरण में जाने के और कोई उपाय है भी नहीं क्योंकि नीतीश जी को तो न ही बिहार के शासन-प्रशासन से कुछ भी लेना-देना है और न ही बिहार की जनता के दुःख-दर्द से ही.
पुनश्च-हमें नहीं पता और पता नहीं कि किसे पता है कि प्रधानमंत्री जी २० घंटे जागकर करते क्या हैं? लेकिन इतना तो निश्चित है कि उनके जागरण से बिहार को कोई लाभ नहीं हुआ है.
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