सोमवार, 1 जुलाई 2019

काम का तरीका बदलिए मोदी जी


मित्रों, पांच साल पहले जब मोदी जी ने पहली बार केंद्रीय मंत्रिमंडल का गठन किया था तब निस्संदेह मुझे घनघोर निराशा हुई थी क्योंकि मंत्रिमंडल गठन में योग्यता को नहीं जाति-पांति को प्रधानता दी गई थी. मोदी सरकार के पांच साल के कामकाज से भी मैं खुश नहीं था तथापि विकल्पहीनता की स्थिति को देखते हुए फिर से उनको ही समर्थन और वोट देने का फैसला किया. मुझे पता था और पता है कि जिस तरह से विपक्ष छद्मधर्मनिरपेक्षता की पाखंडपूर्ण नीति पर चल रही है उसी तरह से मोदी सरकार भी छद्मराष्ट्रवाद की नीति पर चल रही है. कमोबेश दोनों का लक्ष्य सत्ता-सुख प्राप्त करना है.
मित्रों, मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि मुझे इस बार के मोदी मंत्रिमंडल से भी निराशा हुई है और पिछली बार से कही ज्यादा हुई है. मैं पहले भी कह चुका हूँ कि मोदी जी करना क्या चाहते हैं कदाचित उनको खुद भी पता नहीं है अन्यथा सुब्रह्मण्यम स्वामी को वित्त मंत्री होना चाहिए था. मैंने पिछली मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की भी जमकर आलोचना की थी और कहा था कि यह सरकार गलत आर्थिक आंकड़े पेश कर रही है. सुरेश प्रभु जैसा योग्य व्यक्ति इस बार के मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए गए हैं जो आश्चर्यजनक है.
मित्रों, मैंने ५ साल पहले भी कहा था कि जब टीम ही अच्छी नहीं होगी तो काम अच्छा कहाँ से होगा?  पिछली सरकार ने देश को दिया क्या? रोजगार के बदले बेरोजगारी, ईलाज के बदले बिहार में बच्चों की मौत और अंधाधुंध निजीकरण. अर्थव्यवस्था ठीकठाक प्रदर्शन नहीं कर रही थी तो जीडीपी मापने के पैमाने को ही बदल दिया और बेरोजगारी के आंकड़ों को महीनों तक जनता के आगे आने ही नहीं दिया. हाँ, एक काम जरूर मोदी जी की सरकार बड़े भी मनोयोग से कर रही है और वो है मूर्तियों का निर्माण मगर अफ़सोस लौह पुरुष सरदार पटेल की मूर्ति पहली बरसात का भी सामना नहीं कर पाई और रिसने लगी. अब मोदी सरकार तैयारी में है अयोध्या में  भगवान राम की विशालकाय प्रतिमा स्थापित करने की. जबकि आवश्यकता है जनसामान्य के मन में राम के आदर्शों की स्थापित करने की. जब तक राम के आदर्शों को जन-जन के मन तक स्थापित नहीं कर दिया जाता तब तक नित्य घटित हो रही रेप की घटनाओं को कोई नहीं रोक सकता चाहे कितने ही कानून क्यों न बना दिए जाएँ? वैसे बनाना ही है तो सरकार राम मंदिर बनाए।
मित्रों, कभी-कभी तो मोदी सरकार के कदमों से ऐसा भी लगता है कि जैसे हमने बन्दर के हाथों में उस्तरा थमा दिया हो. कुछ उदाहरण आपके पास भी होंगे कुछ मेरे पास भी हैं. पिछले साल तक नेट की परीक्षा से व्याख्याता बनने की योग्यता निर्धारित होती थी लेकिन पिछले साल से ठीक उसी तरह जैसे नीतीश जी ने बिहार में प्राथमिक शिक्षकों की बहाली में किया था और बिहार की शिक्षा का बड़े धूम से सत्यानाश कर दिया था मोदी सरकार ने कहा कि अब स्कोर के आधार पर कॉलेजों में बहाली होगी योग्यता गई तेल लेने और हम सोचते थे कि ये लोग बदलेंगे देश.
मित्रों, इतना ही नहीं जब लाल किले से पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने घोषणा की थी कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ देश के अल्पसंख्यकों का है तब इसी भाजपा ने सख्त विरोध किया था और आज जब मोदी दोबारा चुनाव जीतते हैं तो कहते हैं कि अल्पसंख्यकों को अलग से ५ करोड़ छात्रवृत्तियां दी जाएंगी तब क्या इस कदम के पीछे मुस्लिम तुष्टिकरण की कुत्सित मानसिकता नहीं होती है? अगर नहीं तो कैसे? मैं मनमोहन सिंह के समय भी मांग कर चुका हूँ कि रजिया की मदद करनी है तो की जाए लेकिन साथ-साथ सरकार राधा की भी मदद करे. क्या अपने इस तरह के कदमों से मोदी सरकार भी हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बनाना चाहती है जो कभी मनमोहन चाहते थे? वैसे मोदीजी के सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास नारे की पोल कल अल्ला हो अकबर के नारे के साथ दिल्ली के लाल कुआं के ऐतिहासिक दुर्गा मंदिर की देव प्रतिमाओं को खंडित कर मुसलमानों ने खोल दी है।
मित्रों, मोदी सरकार ने एक और भी महान मूर्खतापूर्ण कदम उठाने की सोंची है. दरअसल यूपीएससी ने फैसला किया है कि अब सामान्य वर्ग के लोग सिर्फ २६ साल की उम्र तक ही सिविल सेवा परीक्षा में भाग ले पाएँगे. हद तो यह है कि बांकी वर्गों के लिए उम्रसीमा पूर्ववत है. मतलब कि मोदी सरकार मानती है कि सिर्फ सामान्य वर्ग के लोग मात्र २६ साल की उम्र में बूढ़े हो जाते हैं. क्या वो बताएगी कि वो इस निष्कर्ष पर किस शोध के आधार पर पहुंची है?
मित्रों, मोदी जी का एक कदम तो ऐसा है जिससे पता चलता है कि वे खुद को बाकियों से विशिष्ट मानते हैं जबकि ऐसा है नहीं। मोदीजी भी मानव हैं और समस्त मानवीय क्रिया-कलाप करते हैं। आपने भी ध्यान दिया होगा कि मोदीजी जब विमान पर चढ़ते हैं या विमान पर से उतरते हैं तो अकेले दिखाई देते हैं। क्या ऐसा करके वे यह दिखाना चाहते हैं कि उनके बराबर कोई नहीं है या फिर यह प्रर्दशित करना चाहते हैं कि वे अकेले ही सरकार चला रहे हैं? मोदी सरकार के एक और कदम से मैं निराश हुआ हूं और वह कदम यह है कि मोदी सरकार ने अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करके उन तीन अखबारों को विज्ञापन देना बंद कर दिया है जो लगातार उसके खिलाफ लिखते रहे हैं। पता नहीं ऐसा करके मोदी कौन से लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना करना चाहते हैं? मैंने बिहार में देखा है कि किस तरह नीतीश विज्ञापन की बीन पर अखबारों को नचाते रहे हैं। तो क्या मोदी जी भी अब वैसा ही करेंगे? एक और मामले में नीतीश जी मोदी जी के गुरु हैं और वो यह है कि नीतीश जी शुरू से ही दिखावे की सरकार चलाते रहे हैं. जब बिहार में नीतीश जी की सरकार बनी तो महात्मा गाँधी सेतु का रंग-रोगन किया गया लेकिन पुल की सेहत पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। परिणाम यह कि पुल अब गिरने के कगार पर पहुंच चुका है। मोदी भी नीतीश की तरह दिखावा कर रहे हैं काम कुछ भी नहीं हो रहा है। पुलिस और न्यायिक सुधार, जनसंख्या-नियंत्रण, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण सभी आज सरकारी प्राथमिकता से गायब हैं।
मित्रों, मोदी सरकार के एक-एक कदम पर नजर रखनेवाले निश्चित रूप से हमसे सहमत होंगे कि मोदी जी ने अब तक जो भी कदम उठाए हैं वोटबैंक को ध्यान में रखकर उठाए हैं. शायद वे नेहरु जैसी ताक़त चाहते हैं और इस बार के संसद में दिए अपने पहले भाषण में उन्होंने पहली बार नेहरु जी का जिक्र भी किया है. बस मोदी जी यहीं तक रूक जाएँ जो बेहतर होगा अन्यथा मुझे तो ऐसा भी लगता है कि कहीं सबका विश्वास पाने के चक्कर में मोदी जी सबका विश्वास न खो दें. यानि नेहरु जैसी ताक़त पाना है तो पाएं लेकिन अगर वे नेहरु बनने  का प्रयास करेंगे तो निश्चित रूप से बहुत जल्दी उनको अपना झोला उठाकर सचमुच दिल्ली छोड़कर चल देना होगा और केदारनाथ की गुफाओं में बुढ़ापा गुजारना होगा.

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