शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

दिल्ली के दंगे भारत के खिलाफ युद्ध

मित्रों, भारत की राजधानी में दंगे हुए हैं. उस दिल्ली में जिसे हिंदुस्तान का दिल कहा जाता है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या सचमुच ये सिर्फ दंगे ही हैं? या कुछ और हैं. शुरुआत में हमें भी लगा था कि ये सांप्रदायिक दंगे ही हैं लेकिन अब जबकि इसकी भयावहता सामने आने लगी है तब यह स्पष्ट हो चुका है कि ये दंगे दंगे हैं ही नहीं बल्कि बड़े ही नियोजित तरीके से हिन्दुओं और तदनुसार भारत के खिलाफ छेड़ा गया युद्ध है. एक ऐसा युद्ध जिसे निहायत गन्दी मानसिकता वाले लोगों द्वारा भारत को बदनाम करने की साजिश के तहत संचालित किया गया. ये दंगे वास्तव में भारत पर घात लगाकर किया गया हमला है.
मित्रों, इन दंगों में जानबूझकर दलितों के तथाकथित नेता चंद्रशेखर रावण को शामिल किया गया जिससे लोग यह नहीं कह सकें कि मुसलमानों ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है जबकि इस आदमी के पीछे एक भी दलित नहीं है. जानबूझकर इस कलियुगी रावण द्वारा उस समय भारत बंद का आह्वान करवाया गया जब अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प भारत की यात्रा पर थे. भारत के आतंरिक शत्रुओं को यह अच्छी तरह से पता था कि इस समय दिल्ली पुलिस ट्रम्प की सुरक्षा में लगी हुई है इसलिए हिन्दुओं को बचाने नहीं आ सकती.
मित्रों, सीसीटीवी फुटेज से भी यह बात सामने आ चुकी है कि पहले पथराव की शुरुआत मुसलमानों ने की थी. उन्हीं स्वघोषित घनघोर राष्ट्रवादी मुसलमानों ने उसके बाद हिन्दुओं को मारने की शुरुआत की और २४ तारीख की रात को ताहिर हुसैन नामक नगर पार्षद जो आम आदमी पार्टी का नेता है और केजरीवाल का स्नेहिल है के घर को अपना किला बनाकर कोहराम मचा दिया. ताहिर के घर में उस रात ३००० मुसलमान जमा थे. उस रात इनके हाथ जो भी हिन्दू लगा उसकी हत्या कर दी गई. ऐसा करते समय इन जेहादी आपियों ने यह भी नहीं सोंचा कि इनमें से अधिकतर हिन्दुओं ने कुछ ही दिन पहले उनके साथ हाथ-में-हाथ डालकर आम आदमी पार्टी को मतदान किया था. इंटेलिजेंस ब्यूरो का जवान अंकित शर्मा दुर्भाग्यवश उस ताहिर हुसैन का पड़ोसी था की हत्या तो इतनी बेरहमी से की गई कि देखकर पोस्ट मार्टम करनेवाले चिकित्सकों का भी कलेजा काँप गया. ६ घंटे में छह-सात लोगों ने बारी-बारी से उस पर चाकू से ४०० बार वार किए. सबकुछ उसके परिवार की आँखों के आगे हुआ लेकिन वे कुछ भी नहीं कर सके. इसी तरह एक लड़की प्रीति के साथ ताहिर हुसैन के घर में संभवतः ४०-५० जेहादियों ने पहले भीषण बलात्कार किया फिर उसे जलाकर मार डाला. उस लड़की के वस्त्र अभी भी ताहिर हुसैन के घर में पड़े हुए हैं जो इस भीषण यातना की रो-रो कर गाथा कह रहे हैं. इतना ही नहीं किसी हिन्दू के सर में ड्रिल मशीन से छेद कर दिया गया तो किसी का हाथ-पाँव काट कर जलती हुई आग में झोंक दिया गया. नितिन नामक एक बच्चा पड़ोस की दुकान जाने के लिए जैसे ही घर से निकला उसके सर में गोली मार दी गई. वह मासूम बच्चा जो किसी के घर का चिराग था को बेवजह बुझा दिया गया क्योंकि वो काफ़िर था.
मित्रों, इतना ही नहीं जेहादियों ने उसके अलावा पूरे ईलाके में हिन्दुओं की सारी गाड़ियों, घरों, होटलों, दुकानों यहाँ तक कि स्कूलों तक को नहीं बक्शा बल्कि जलाकर राख कर दिया. चूँकि पुलिस राष्ट्रपति ट्रम्प की सुरक्षा में लगी थी इसलिए समय पर पर्याप्त संख्या में नहीं आ सकी. जो पुलिसवाले दंगों को रोकने आए भी तो उनके हाथों में डंडे थे जबकि जेहादियों के पास तमंचे थे परिणामस्वरूप वे सारे घायल होकर अस्पताल पहुँच गए उनमें से भी कई मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं.
मित्रों, जिस तरह युद्ध में छोटी-छोटी चीजों का भी इस्तेमाल किया जाता है उसी तरह से इन दंगों में भी पेट्रोल, कोल्ड ड्रिंक की बोतलों, ट्यूब, रस्सी, लोहे की छड, चाकू और तमंचों का बखूबी इस्तेमाल किया गया जिससे इलाके के हिन्दुओं को जान और माल का भारी नुकसान उठाना पड़ा. अब तक मौत का आंकड़ा 50 के करीब पहुँच चुका है. प्रतिक्रिया में हिन्दुओं ने भी गुस्से में आकर कुछ मुसलमानों को मार डाला. लेकिन सवाल उठता है कि उस इलाके से जो हिन्दुओं का पलायन शुरू हो चुका है उसे रोका कैसे जाए? कैसे उनके मन में अपने मुसलमान पड़ोसियों के प्रति विश्वास उत्पन्न किया जाए? जहाँ हिन्दू घोर नैतिकतावादी हैं वहीँ इस्लाम में सब जायज है नाजायज कुछ है ही नहीं. महिलाओं को हम दया और करुणा की प्रतिमूर्ति मानते हैं लेकिन जब महिलाएं भी पत्थर चलाकर गजवा-ए-हिन्द में अपना योगदान देने लगें तो फिर पुरूषों को हैवान बनने से रोकेगा कौन?
मित्रों, एसआईटी की प्रारंभिक जांच में भी यह सामने आ रहा है कि इस युद्ध रुपी दंगे के तार केरल के मुस्लिम संगठन पीएफआई और पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई से जुड़े हैं. जांच से ऐसे संकेत भी मिले हैं कि अगर मुसलमान उस दिन उत्तर पूर्वी दिल्ली की सडकों को बंद करने में सफल हो जाते और रात के बदले दिन में ही हिंसा नहीं करने लगते तो शायद उस इलाके में हिन्दुओं का अभूतपूर्व नरसंहार देखने को मिलता. ऐसे में समझ में नहीं आता कि अपने देश में भविष्य में क्या होनेवाला है? शायद भयंकर गृहयुद्ध जैसे कि अमेरिका में १८६१ से १८६५ तक हुआ था. लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई. बंटवारे के समय अम्बेदकर को अनसुना कर मुसलमानों को भारत में रोकने की जो खता नेहरु-गाँधी ने की थी उसकी सजा अब भारत के हिन्दू पाएंगे और हमारी राजधानी दिल्ली से इसका आरंभ भी हो चुका है.

शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

२०२० में कलाम साहब के सपनों का भारत


मित्रों, जबसे भारत आजाद हुआ है तभी से हमारे स्वप्नदर्शी नेताओं ने देश के विकास को लेकर सपने देखे हैं. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने १९४७ में भारत को सुखी और खुशहाल बनाने का सपना देखा था. उनका मानना था कि यह तब तक मुमकिन नहीं होगा जब तक देश में फैली निरक्षरता, गरीबी, बीमारियाँ, अज्ञानता समाप्त नहीं होगी और देश के प्रत्येक नागरिक को आगे बढ़ने के समान अवसर नहीं मिलेंगे.
मित्रों, फिर देखते-देखते भारत की आजादी के ५० साल बीत गए लेकिन देश की हालत में कोई बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हुआ जिसे देखकर राजर्षि डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम काफी चिंतित रहते थे. बल्कि कलाम साहब को देश में उस पुरानी उमंग, तमन्ना और ललक का अभाव दिखा जो आजादी के तत्काल बाद के समय में देशवासियों के मन में हिलोरे मार रही थी. उद्दाम देशभक्त कलाम साहब यह देख निराश थे कि शताब्दी और सहस्राब्दी की समाप्ति के समय जब भारत को विकसित देशों की कतार में खड़े हुए देखने की बात आती है तो किसी भी भारतीय के चेहरे पर उम्मीद की चमक नहीं दिखाई देती, दिखाई देती है निराशा और मानवद्वेष.
मित्रों, कुछ ऐसी ही परिस्थितियों में भारतमाता के इस लाल ने विकसित भारत का सपना देखा और देशवासियों के सामने लक्ष्य रखा कि भारत को २०२० तक विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में ला खड़ा करना है. इसके लिए उनके पास जो भी कार्ययोजना थी उसको उन्होंने भारत की जनता के समक्ष एक पुस्तक के रूप में रखा जिसका नाम था-भारत २०२०.
मित्रों, कलाम साहब ने १९९८ में लिखित अपनी इस पुस्तक में एक ऐसे भारत की परिकल्पना की थी जिसमें साल २०२० में कोई गरीब नहीं होगा. उनके अनुसार वर्ष २०२० में भारत जीडीपी की दृष्टि से दुनिया में चौथे स्थान पर होगा और उसे विकसित देश का दर्जा मिल जाएगा. कलाम साहब के अनुसार एक विकसित भारत का अर्थ होगा कि भारत विश्व की ५ महानतम शक्तियों में से एक होगा. वह राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से आत्मनिर्भर होगा और विश्व के आर्थिक और राजनैतिक रंगमंच पर उसकी निर्णायक व अहम् भूमिका होगी.
मित्रों, आज हम २०२० में पहुंचकर इस बात की भली-भांति समीक्षा कर सकते हैं कि भारत कलाम साहब के स्वप्नों को कहाँ तक साकार कर पाया है. निश्चित रूप से जीडीपी के मोर्चे पर हम काफी हद तक सफल रहे हैं और कुल जीडीपी के मामले में भारत आज दुनिया में चौथे न सही लेकिन पांचवें स्थान पर पहुँच चुका है लेकिन भारत के लिए विकसित देश का दर्जा आज भी पहुँच से काफी दूर है क्योंकि प्रति व्यक्ति आय २३६१ डॉलर के साथ भारत प्रति व्यक्ति आय में बेहद नीचे दुनिया में १२५वें स्थान पर है. जबकि विश्व बैंक ने उच्च आय वाले देश या विकसित देशों की परिभाषा के लिए 12,055 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI)  का पैमाना तय कर रखा है. यह प्रति व्यक्ति आय भी दुर्भाग्यवश भारत में सबके बीच समान रूप से वितरित नहीं है. अर्थव्यवस्था में ऊपर के १० प्रतिशत लोगों की आय काफी ज्यादा है तो नीचे के १० प्रतिशत लोग लगभग भिखारी हैं और दिन-ब-दिन यह खाई घटने के बजाए बढती ही जा रही है. इसी तरह मानव विकास सूचकांक में भारत का स्थान दुनिया में १२९वां है जो काफी शर्मनाक स्थिति है. जहाँ कलाम साहब की परिकल्पना के अनुसार भारत में गरीबी २००८ में ही समाप्त हो जानी चाहिए थी दुर्भाग्यवश आज भी भारत के करीब ३२ प्रतिशत लोग यानि ३७ करोड़ लोग गरीब हैं जो दुनिया में सबसे बड़ी संख्या है और पूरी दुनिया के गरीबों की संख्या का एक तिहाई है. इसी तरह रोजगार के मोर्चे पर भी देश की हालत आज पहले से भी ख़राब है. औद्योगिक उत्पादन की स्थिति भी चिंतनीय है. जहाँ तक दुनिया के रंगमंच पर भारत के महत्व का सवाल है तो पीछे २० सालों में निश्चित रूप से भारत का महत्व बढ़ा है लेकिन आज भी न तो भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बन पाया है और न ही हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बन पायी है.
मित्रों, इस तरह चाहे आर्थिक विकास हो या औद्योगिक विकास या फिर आर्थिक समानता आज भी भारत की स्थिति कमोबेश वैसी ही है जैसी २० साल पहले तब थी जब कलाम साहब ने विकसित भारत का सपना देखा था. इसके लिए हम किसी एक व्यक्ति या सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते क्योंकि कलाम साहब ने भी अपनी पुस्तक में सबके सम्मिलित योगदान का आह्वान किया था. उन्होंने शिक्षकों, बैंकरों, डॉक्टरों, प्रशासकों और अन्य सारे पेशेवरों, सरकारी मंत्रालयों और विभागों, केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, राज्यों के सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों, शोध और विकास प्रयोगशालाओं, उच्च अध्ययन की संस्थाओं, निजी क्षेत्र के बड़े उद्योगों, लघु-उद्योगों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, गैर-सरकारी संस्थाओं और मीडिया सबसे आह्वान किया था कि वे पूरे मनोयोग से इस दिशा में कार्य करें जिससे भारत २०२० तक विकसित राष्ट्र का दर्जा पा सके. परन्तु दुर्भाग्यवश ऐसा हो नहीं सका और आज भी कलाम साहब का सपना अधूरा है जिसके लिए हम उनके समक्ष क्षमाप्रार्थी है. हम समझते हैं कि आज देश के लिए चिंता करने वाले कलाम साहब जैसे लोग २० साल पहले के समय से और भी कम हो गए हैं. लोगों में मन में निजी स्वार्थ ने कहीं ज्यादा स्थान घेर लिया है और लोग जल्दीबाजी में धनवान बनने के लिए गर्हित से गर्हित कर्मों में पहले से कहीं ज्यादा संख्या में संलिप्त हो रहे हैं.

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020

पुलवामा के अभागे शहीद



मित्रों, पुलवामा आतंकवादी घटना को एक साल बीत चुके हैं मगर वो वीभत्स दृश्य जैसे आँखों के आगे से हटने का नाम ही नहीं ले रहा है. चारों तरफ मांस के लोथड़े और खून. कौन-सा टुकड़ा किसका है पहचानना असम्भव. गाँव में लाशें तो आई लेकिन मांस के चंद टुकड़ों के रूप में. पूरे देश में क्रोध और देशभक्ति का तूफ़ान उठ खड़ा हुआ. लोग चाहते थे कि इसका बदला लिया जाए. आसमान से बम गिराकर बदले की कार्यवाही भी पूरी की गई. मोदी सरकार ने देश में पैदा हुए गुस्से से पूरा लाभ उठाया और दोबारा चुनाव जीत लिया.
मित्रों, फिर सबकुछ सामान्य हो गया और लगा जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो. धरती घूमती रही और देखते-देखते आज एक साल पूरा हो गया. देश के बांकी लोगों के लिए सबकुछ भले ही सामान्य हो लेकिन जिन परिवारों ने अपने बेटे खोए उनकी तो जैसे दुनिया ही उजड गई.
मित्रों, हमारे देश में सब बराबर हैं ऐसा आप और हम रोज पढ़ते हैं सुनते हैं लेकिन यह सिर्फ पढने और सुनने के लिए है. वास्तविकता तो यह है कि हमारे देश में न तो जीवित लोग बराबर हैं और न ही देश के लिए अपनी जान लुटानेवाले ही. अगर देश में सब बराबर होते तो देश के लिए अपनी जान न्योछावर करनेवाले अर्द्धसैनिकों को भी जल, थल और वायु सैनिकों की तरह शहीद का दर्जा मिलता. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सैनिक तो युद्ध होने पर ही मरते हैं जबकि अर्द्धसैनिक शांतिकाल में भी रोज अपनी जान देते हैं, पुलवामा में भी दी लेकिन उनको शहीद का दर्जा नहीं मिलता, पुलवामा के शहीदों को भी नहीं मिला. उनके परिजनों को पेंशन भी नहीं मिलेगा क्योंकि अब महान भारतवर्ष में पेंशन तो सिर्फ जल, थल, वायु सैनिकों के अलावे सिर्फ विधायकों और सांसदों को ही मिलती है. सालभर से पुलवामा के शहीद मुआवजे और पेंशन के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. हर टेबल पर उनको दुत्कारा जाता है, मजाक उड़ाया जाता है, गालियाँ दी जाती हैं और रिश्वत माँगा जाता है. और सरकार कहती है कि मेरा देश बदल रहा है. कैसा बदलाव? काहे का बदलाव? जब पिछले ९० सालों में कुछ नहीं बदला तो अब एक साल में क्या बदलेगा?
मित्रों, किसी शायर ने अंग्रेजों के समय में कहा था कि शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले. लेकिन विडम्बना यह है कि न तो अंग्रेजों के समय शहीदों को शहीदों का दर्जा मिला और न ही अब मिल रहा है. तब भगत सिंह को नहीं मिला था और अब अर्द्धसैनिकों को नहीं मिल रहा. तब विदेशी सरकार थी अब देशी है. आजादी के बाद भी कुछ नहीं बदला. तब नेहरु ने सुभाष चन्द्र बोस को युद्ध अपराधी कहा था. फिर देशभक्तों की सरकार आई और २००५ में नेताओं और सैनिकों को छोड़कर सबको बिना पेंशन का कर दिया. जो सबसे ज्यादा जान देते हैं उन अर्द्धसैनिकों को भी उन्होंने बिना पेंशन का कर दिया. देशभक्तों की सरकार थी कोई कुछ बोलता भी तो कैसे? फिर नेताओं को तो पेंशन दे ही दिया था तो नेता भला क्यों विरोध करते? फिर उनके बच्चे शहीद तो होते नहीं. शहीद तो होते हैं गरीब किसानों और मजदूरों के बेटे. जो पहले अपनी जान देते हैं और बाद में उनके परिजन नेताओं के वादों का पुलिंदा लिए दफ्तरों में भटकते रहते हैं. यह सिलसिला चलता ही रहता है. फिर आतंकी घटना फिर शहादत और फिर दफ्तरों के चक्कर और रिश्वत. अभी तो २०१३ के शहीद हेमराज के परिजन ही भटक रहे हैं फिर पुलवामा को तो एक साल ही हुआ है. देश तो नहीं बदला रहा लेकिन देश में रिश्वत का स्वरुप जरूर बदल रहा है. अभी यूपी में रिश्वत खाकर ३० नेताओं और अधिकारियों को एचआईवी-एड्स हो गया. मेरा देश बदल रहा है, आगे चल रहा है. मेरा भारत महान.

गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

दिल्ली के स्मार्ट वोटर


मित्रों, हिंदुस्तान के दिल दिल्ली का फैसला आ चुका है. हालाँकि आम आदमी पार्टी फिर से जीत गई है लेकिन उसके और भाजपा के बीच वोटों का फासला कम हुआ है. जो लोग इस समय दिल्ली के मतदाताओं को गालियां देने में लगे हैं वो नादान है. ऐसे लोगों के बारे में बस इतना ही कहा जा सकता है कि नाच न जाने आँगन टेढ़ा. जो नेता और दल जनता को बन्दर और खुद को मदारी समझते हैं उनको समझ लेना चाहिए कि २१वीं सदी में जनता बन्दर नहीं है मदारी है और बन्दर नेता हैं. दिल्ली का सबक अगर कुछ है तो पहला सबक यह है कि अब जनता नाचेगी नहीं नचाएगी. 
मित्रों, दूसरी बात केजरीवाल इस बात को समझ गये कि किसको क्या चाहिए. उदहारण के लिए महिलाओं को क्या चाहिए, जनता को क्या चाहिए, मुसलमानों को क्या चाहिए और हिन्दुओं को क्या चाहिए. जिसको जो चाहिए था उसको केजरीवाल ने वो सब दे दिया. जो लोग दिल्लीवालों को मुफ्तखोर बता रहे हैं उनको भी यह समझ लेना चाहिए कि बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ देना सरकार का कर्त्तव्य है.
मित्रों,भाजपा ने यह नहीं समझा कि पूर्वांचली सिर्फ गीत सुनकर वोट नहीं दे देंगे. फिर मनोज तिवारी को भाजपा ने कुछ ज्यादा ही काबिल समझ लिया जबकि वे काबिल नहीं हैं बल्कि कबिलफचाक हैं. मतलब कि वे खुद को बहुत ज्यादा काबिल समझते हैं.
मित्रों, इसके साथ ही केजरीवाल ने अपने कोर मतदाताओं को हमेशा परवाह की जबकि भाजपा ने कभी अपने कोर वोटर्स की परवा नहीं की और फ्लोटिंग वोटर्स के पीछे भागती रही.  बिहार के एक बहुत बड़े नेता शिवानन्द तिवारी ने वर्षों पहले भाजपा के सबसे पक्के समर्थक बड़ी जाति के मतदाताओं के बारे कहा था कि उनके लिए कुछ भी करने की जरुरत नहीं है सिर्फ देश और राज्य विकास को देखकर ही वोट दे देंगे. इस दिल्ली चुनाव में भी भाजपा को ज्यादातर वोट उनके ही मिले लेकिन भाजपा दलितों और मुसलमानों के पीछे भागती रही. तीन तलाक का असर दिल्ली में नहीं दिखा. उल्टे मुस्लिम महिलाएं भाजपा के खिलाफ ज्यादा उग्रता थीं. दलितों ने भी भाजपा को वोट नहीं दिया. 
मित्रों, भाजपा की एक और आदत काफी बुरी है और वो आदत है यूज एंड थ्रो. शाहीन बाग़ के साथ आप पार्टी शुरू से अंत तक खड़ी थी लेकिन दूसरी तरफ भाजपा कभी अपने समर्थकों का साथ नहीं देती. क्या कभी भाजपा ने कहा है कि वो गोरक्षकों के साथ है? मोदी की जान बचाने में कोई बंजारा जेल चला जाता है और भाजपा उसे उसके हाल पर मरने छोड़ देती है. साथ ही भाजपा ने अपने साईबर योद्धाओं के लिए कभी कुछ नहीं किया है? अभी-अभी मोदीजी ने लोकसभा में एक शेर पढ़ा था कि खूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं, साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं. जाहिर है कि यह शेर अगर किसी पर सबसे ज्यादा लागू होती है तो तो खुद भाजपा है.
मित्रों, आजादी के बाद कांग्रेस की सबसे बड़ी गलती थी कि उसने सामाजिक कार्यक्रम बंद कर दिया. भाजपा इस मामले में भाग्यशाली रही कि उसके लिए वही काम आरएसएस करता रहा लेकिन अब भाजपा को समझ लेना होगा कि सिर्फ आरएसएस के सामाजिक कार्यक्रमों से काम नहीं चलने वाला. बल्कि भाजपाइयों को भी एसी से बाहर आकर सडकों पर पसीना बहाना पड़ेगा. सिर्फ फोटो खिंचवाने के स्थान पर वास्तव में स्वच्छता कार्यक्रम चलाना पड़ेगा. झुग्गी-झोपड़ियों में जाकर, दलितों की बस्तियों में जाकर लोगों की समस्याओं को दूर करना पड़ेगा. साथ ही पूरे देश में जहाँ-जहाँ उसकी सरकार हैं पुलिस, स्वास्थ्य और शिक्षा को भ्रष्टाचारमुक्त बनाना पड़ेगा. दिल्ली में भी भाजपा के हाथों में अभी भी बहुत कुछ है. केंद्र की सरकार उसकी है और दिल्ली नगरपालिका पर भी दशकों से उसका कब्ज़ा है. भाजपा को चाहिए कि वो नगरपालिका के काम-काज में फैली भ्रष्टाचाररुपी गंदगी को साफ़ करे.
मित्रों, अंत में एक छोटी मगर मोती बात. दरअसल दिल्ली के मतदाता भारत के सबसे स्मार्ट मतदाता हैं. वे भाजपा को लोकसभा और नगरपालिका के लायक तो समझते हैं लेकिन विधानसभा के लायक नहीं समझते. वहीँ दूसरी तरफ वे आप को विधानसभा के लायक तो समझती है लेकिन लोकसभा और विधानसभा के लायक नहीं समझती. पता नहीं आगे आनेवाले चुनावों में दिल्ली की जनता का क्या निर्णय हो. हो सकता है कि वो आप को लोकसभा और नगरपालिका के लायक समझ ले या फिर भाजपा को विधानसभा के लायक. लेकिन इसके लिए दोनों को दिल्ली की जनता के मानदंडों पर खरा उतरना पड़ेगा.

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

उफ्फ ये बिहार के बदमाश चूहे


मित्रों, लड़कपन में शिक्षक की पिटाई से बचने के लिए आपने भी बहाने बनाए होंगे. हमने भी बनाए थे. कई बार जब हम गृह कार्य पूरा नहीं कर पाते थे तो जानबूझकर कॉपी घर पर ही छोड़ आते थे और फिर विद्यालय में कह देते थे कि गृह कार्य तो कर लिया था मगर कॉपी घर पर छूट गयी. लेकिन आजकल के बच्चे तो २१वीं सदी के बच्चे ठहरे इसलिए उनके बहाने ज्यादा प्रोन्नत होते हैं. हमने पिछले दिनों एक बच्ची को देखा कि उसने अपनी ऊंगली में बेवजह पट्टी बंधवा ली. पूछताछ पर पता चला कि उसने गृहकार्य नहीं किया था.
मित्रों, ये तो बात ठहरी लड़कपन की लेकिन बिहार में तो प्रशासन अपनी गलतियां और भ्रष्टाचार छिपाने के लिए अजीबोगरीब बहाने बना रही है. कुछ महीने पहले प्रशासन ने आरोप लगाया था कि जब्त की गई लाखों बोतल शराब पुलिस के मालखाने में चूहे पी गए. जिसने भी सुना सन्न रह गया. घोड़ों, वनमानुषों के बारे में तो हमने भी सुना है कि वे शराब पीते हैं लेकिन चूहों के बारे में कभी नहीं सुना. मैं समझता हूँ कि चूहों पर इस तरह के आरोप लगानेवाले निश्चित रूप से गणेश जी के महान भक्त रहे होंगे.  तभी तो उन्होंने इस तरह अधिकारपूर्वक उनकी सवारी को कागजों में ही सही शराबी बना दिया.
मित्रों, कागजों से याद आया कि अभी दो दिन पहले भी बिहार में एक बार फिर से चूहों पर गंभीर और संगीन आरोप लगाया गया है. आरोप एक बार फिर से प्रशासन ने ही लगाया है. आरोप है कि बिहार में नौकरी करनेवाले १ लाख शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े कागजात चूहों ने चट कर लिए हैं. दरअसल बिहार में शिक्षकों की बहाली में जमकर धांधली करने के आरोप हैं. आरोप है कि बिहार में लाखों ऐसे शिक्षक कार्यरत हैं जिनके प्रमाणपत्र नकली हैं. अब प्रशासन किस पर आरोप लगाता? जब बचने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उनको मूषकराज की याद आई और उन्होंने सीधे-सीधे चूहों को न्याय के कटघरे में खड़ा कर दिया.
मित्रों, कहने का मल्लब यह कि जब कोई रिकॉर्ड ही नहीं है तो कोई गड़बड़ी भी नहीं हुई और सबकुछ पाकसाफ़ था. इसी तरह आपने देखा होगा कि जब चुनाव आते हैं तो विभिन्न मंत्रालयों में अचानक शार्ट-सर्किट होने लगती है और सारी भ्रष्ट फाईलें जलकर राख हो जाती हैं. समर्थ व्यक्ति तो भ्रष्ट हो नहीं सकता इसलिए मैंने यहाँ फाईलों को भ्रष्ट कहा. एक बार फाईलें जल गईं तो भ्रष्टाचार भी समाप्त हो गया और सबकुछ पवित्र हो गया. तात्पर्य यह कि कई बार भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन कायम करने के लिए अग्नि देवता की सहायता ली जाती है तो कई बार छायावादी कवियों को मीलों पीछे छोड़ते हुए चूहों का मानवीकरण कर दिया जाता है. कई बार वरुण देवता की कृपा से भी भ्रष्टाचार दूर किया जाता है. कह दिया जाता है कि बाढ़ आई थी और सारी फाईलों को अपने साथ बहा ले गई.
मित्रों, लड़कपन में मैं समझ नहीं पाता था कि हम गणेश जी के साथ चूहों की पूजा क्यों करते हैं? जब बिहार सरकार ने पटना उच्च न्यायालय में अपने जवाब में लिखा कि चूहे शराब पी गए और फाईलें खा गए तब समझा कि चूहे तो सचमुच अतिपूजनीय हैं. इसी तरह अग्नि और वरुण देवता को भी शत-शत नमन है जो सुशासन को सचमुच का सुशासन बनाने में भ्रष्ट फाईलों को नष्ट कर अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. सचमुच अपना बिहार लाजवाब है! इसका कुछ भी नहीं हो सकता. यह अलग बात है कि लालू जी समय रहते चूहों, अग्नि देव और वरुण देव की मदद नहीं ले पाए इसलिए बेचारे रांची के रिम्स में जेल में रहते हुए स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं. लेकिन नीतीश जी ठहरे दिमागवाले इसलिए वे तो पकड़ में आने से रहे भले ही जनता को लग रहा हो कि इनके समय में भ्रष्टाचार लालू जी के समय से कहीं ज्यादा है और कहीं ज्यादा बड़े-बड़े घोटाले हो चुके हैं. तो इंतजार करिए कि आगे बिहार के चूहों पर यहाँ की सरकार कौन-सा नया आरोप लगानेवाली है. समझ में नहीं आता कि जबकि आर्थिक सर्वेक्षण और बजट कह रहे हैं कि बिहार में भोजन पूरे भारत में सबसे सस्ता है तो बिहार के चूहों तो फाईलें खाकर भूख मिटाने की आवश्कता क्यों आन पड़ी?