शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

उफ्फ ये बिहार के बदमाश चूहे


मित्रों, लड़कपन में शिक्षक की पिटाई से बचने के लिए आपने भी बहाने बनाए होंगे. हमने भी बनाए थे. कई बार जब हम गृह कार्य पूरा नहीं कर पाते थे तो जानबूझकर कॉपी घर पर ही छोड़ आते थे और फिर विद्यालय में कह देते थे कि गृह कार्य तो कर लिया था मगर कॉपी घर पर छूट गयी. लेकिन आजकल के बच्चे तो २१वीं सदी के बच्चे ठहरे इसलिए उनके बहाने ज्यादा प्रोन्नत होते हैं. हमने पिछले दिनों एक बच्ची को देखा कि उसने अपनी ऊंगली में बेवजह पट्टी बंधवा ली. पूछताछ पर पता चला कि उसने गृहकार्य नहीं किया था.
मित्रों, ये तो बात ठहरी लड़कपन की लेकिन बिहार में तो प्रशासन अपनी गलतियां और भ्रष्टाचार छिपाने के लिए अजीबोगरीब बहाने बना रही है. कुछ महीने पहले प्रशासन ने आरोप लगाया था कि जब्त की गई लाखों बोतल शराब पुलिस के मालखाने में चूहे पी गए. जिसने भी सुना सन्न रह गया. घोड़ों, वनमानुषों के बारे में तो हमने भी सुना है कि वे शराब पीते हैं लेकिन चूहों के बारे में कभी नहीं सुना. मैं समझता हूँ कि चूहों पर इस तरह के आरोप लगानेवाले निश्चित रूप से गणेश जी के महान भक्त रहे होंगे.  तभी तो उन्होंने इस तरह अधिकारपूर्वक उनकी सवारी को कागजों में ही सही शराबी बना दिया.
मित्रों, कागजों से याद आया कि अभी दो दिन पहले भी बिहार में एक बार फिर से चूहों पर गंभीर और संगीन आरोप लगाया गया है. आरोप एक बार फिर से प्रशासन ने ही लगाया है. आरोप है कि बिहार में नौकरी करनेवाले १ लाख शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े कागजात चूहों ने चट कर लिए हैं. दरअसल बिहार में शिक्षकों की बहाली में जमकर धांधली करने के आरोप हैं. आरोप है कि बिहार में लाखों ऐसे शिक्षक कार्यरत हैं जिनके प्रमाणपत्र नकली हैं. अब प्रशासन किस पर आरोप लगाता? जब बचने का कोई उपाय नहीं सूझा तो उनको मूषकराज की याद आई और उन्होंने सीधे-सीधे चूहों को न्याय के कटघरे में खड़ा कर दिया.
मित्रों, कहने का मल्लब यह कि जब कोई रिकॉर्ड ही नहीं है तो कोई गड़बड़ी भी नहीं हुई और सबकुछ पाकसाफ़ था. इसी तरह आपने देखा होगा कि जब चुनाव आते हैं तो विभिन्न मंत्रालयों में अचानक शार्ट-सर्किट होने लगती है और सारी भ्रष्ट फाईलें जलकर राख हो जाती हैं. समर्थ व्यक्ति तो भ्रष्ट हो नहीं सकता इसलिए मैंने यहाँ फाईलों को भ्रष्ट कहा. एक बार फाईलें जल गईं तो भ्रष्टाचार भी समाप्त हो गया और सबकुछ पवित्र हो गया. तात्पर्य यह कि कई बार भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन कायम करने के लिए अग्नि देवता की सहायता ली जाती है तो कई बार छायावादी कवियों को मीलों पीछे छोड़ते हुए चूहों का मानवीकरण कर दिया जाता है. कई बार वरुण देवता की कृपा से भी भ्रष्टाचार दूर किया जाता है. कह दिया जाता है कि बाढ़ आई थी और सारी फाईलों को अपने साथ बहा ले गई.
मित्रों, लड़कपन में मैं समझ नहीं पाता था कि हम गणेश जी के साथ चूहों की पूजा क्यों करते हैं? जब बिहार सरकार ने पटना उच्च न्यायालय में अपने जवाब में लिखा कि चूहे शराब पी गए और फाईलें खा गए तब समझा कि चूहे तो सचमुच अतिपूजनीय हैं. इसी तरह अग्नि और वरुण देवता को भी शत-शत नमन है जो सुशासन को सचमुच का सुशासन बनाने में भ्रष्ट फाईलों को नष्ट कर अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. सचमुच अपना बिहार लाजवाब है! इसका कुछ भी नहीं हो सकता. यह अलग बात है कि लालू जी समय रहते चूहों, अग्नि देव और वरुण देव की मदद नहीं ले पाए इसलिए बेचारे रांची के रिम्स में जेल में रहते हुए स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं. लेकिन नीतीश जी ठहरे दिमागवाले इसलिए वे तो पकड़ में आने से रहे भले ही जनता को लग रहा हो कि इनके समय में भ्रष्टाचार लालू जी के समय से कहीं ज्यादा है और कहीं ज्यादा बड़े-बड़े घोटाले हो चुके हैं. तो इंतजार करिए कि आगे बिहार के चूहों पर यहाँ की सरकार कौन-सा नया आरोप लगानेवाली है. समझ में नहीं आता कि जबकि आर्थिक सर्वेक्षण और बजट कह रहे हैं कि बिहार में भोजन पूरे भारत में सबसे सस्ता है तो बिहार के चूहों तो फाईलें खाकर भूख मिटाने की आवश्कता क्यों आन पड़ी?

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