मित्रों, जबसे भारत आजाद हुआ है तभी से हमारे स्वप्नदर्शी नेताओं ने देश के विकास को लेकर सपने देखे हैं. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने १९४७ में भारत को सुखी और खुशहाल बनाने का सपना देखा था. उनका मानना था कि यह तब तक मुमकिन नहीं होगा जब तक देश में फैली निरक्षरता, गरीबी, बीमारियाँ, अज्ञानता समाप्त नहीं होगी और देश के प्रत्येक नागरिक को आगे बढ़ने के समान अवसर नहीं मिलेंगे.
मित्रों, फिर देखते-देखते भारत की आजादी के ५० साल बीत गए लेकिन देश की हालत में कोई बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हुआ जिसे देखकर राजर्षि डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम काफी चिंतित रहते थे. बल्कि कलाम साहब को देश में उस पुरानी उमंग, तमन्ना और ललक का अभाव दिखा जो आजादी के तत्काल बाद के समय में देशवासियों के मन में हिलोरे मार रही थी. उद्दाम देशभक्त कलाम साहब यह देख निराश थे कि शताब्दी और सहस्राब्दी की समाप्ति के समय जब भारत को विकसित देशों की कतार में खड़े हुए देखने की बात आती है तो किसी भी भारतीय के चेहरे पर उम्मीद की चमक नहीं दिखाई देती, दिखाई देती है निराशा और मानवद्वेष.
मित्रों, कुछ ऐसी ही परिस्थितियों में भारतमाता के इस लाल ने विकसित भारत का सपना देखा और देशवासियों के सामने लक्ष्य रखा कि भारत को २०२० तक विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में ला खड़ा करना है. इसके लिए उनके पास जो भी कार्ययोजना थी उसको उन्होंने भारत की जनता के समक्ष एक पुस्तक के रूप में रखा जिसका नाम था-भारत २०२०.
मित्रों, कलाम साहब ने १९९८ में लिखित अपनी इस पुस्तक में एक ऐसे भारत की परिकल्पना की थी जिसमें साल २०२० में कोई गरीब नहीं होगा. उनके अनुसार वर्ष २०२० में भारत जीडीपी की दृष्टि से दुनिया में चौथे स्थान पर होगा और उसे विकसित देश का दर्जा मिल जाएगा. कलाम साहब के अनुसार एक विकसित भारत का अर्थ होगा कि भारत विश्व की ५ महानतम शक्तियों में से एक होगा. वह राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से आत्मनिर्भर होगा और विश्व के आर्थिक और राजनैतिक रंगमंच पर उसकी निर्णायक व अहम् भूमिका होगी.
मित्रों, आज हम २०२० में पहुंचकर इस बात की भली-भांति समीक्षा कर सकते हैं कि भारत कलाम साहब के स्वप्नों को कहाँ तक साकार कर पाया है. निश्चित रूप से जीडीपी के मोर्चे पर हम काफी हद तक सफल रहे हैं और कुल जीडीपी के मामले में भारत आज दुनिया में चौथे न सही लेकिन पांचवें स्थान पर पहुँच चुका है लेकिन भारत के लिए विकसित देश का दर्जा आज भी पहुँच से काफी दूर है क्योंकि प्रति व्यक्ति आय २३६१ डॉलर के साथ भारत प्रति व्यक्ति आय में बेहद नीचे दुनिया में १२५वें स्थान पर है. जबकि विश्व बैंक ने उच्च आय वाले देश या विकसित देशों की परिभाषा के लिए 12,055 अमेरिकी डॉलर प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) का पैमाना तय कर रखा है. यह प्रति व्यक्ति आय भी दुर्भाग्यवश भारत में सबके बीच समान रूप से वितरित नहीं है. अर्थव्यवस्था में ऊपर के १० प्रतिशत लोगों की आय काफी ज्यादा है तो नीचे के १० प्रतिशत लोग लगभग भिखारी हैं और दिन-ब-दिन यह खाई घटने के बजाए बढती ही जा रही है. इसी तरह मानव विकास सूचकांक में भारत का स्थान दुनिया में १२९वां है जो काफी शर्मनाक स्थिति है. जहाँ कलाम साहब की परिकल्पना के अनुसार भारत में गरीबी २००८ में ही समाप्त हो जानी चाहिए थी दुर्भाग्यवश आज भी भारत के करीब ३२ प्रतिशत लोग यानि ३७ करोड़ लोग गरीब हैं जो दुनिया में सबसे बड़ी संख्या है और पूरी दुनिया के गरीबों की संख्या का एक तिहाई है. इसी तरह रोजगार के मोर्चे पर भी देश की हालत आज पहले से भी ख़राब है. औद्योगिक उत्पादन की स्थिति भी चिंतनीय है. जहाँ तक दुनिया के रंगमंच पर भारत के महत्व का सवाल है तो पीछे २० सालों में निश्चित रूप से भारत का महत्व बढ़ा है लेकिन आज भी न तो भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य बन पाया है और न ही हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बन पायी है.
मित्रों, इस तरह चाहे आर्थिक विकास हो या औद्योगिक विकास या फिर आर्थिक समानता आज भी भारत की स्थिति कमोबेश वैसी ही है जैसी २० साल पहले तब थी जब कलाम साहब ने विकसित भारत का सपना देखा था. इसके लिए हम किसी एक व्यक्ति या सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते क्योंकि कलाम साहब ने भी अपनी पुस्तक में सबके सम्मिलित योगदान का आह्वान किया था. उन्होंने शिक्षकों, बैंकरों, डॉक्टरों, प्रशासकों और अन्य सारे पेशेवरों, सरकारी मंत्रालयों और विभागों, केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, राज्यों के सार्वजनिक क्षेत्रों के उपक्रमों, शोध और विकास प्रयोगशालाओं, उच्च अध्ययन की संस्थाओं, निजी क्षेत्र के बड़े उद्योगों, लघु-उद्योगों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों, गैर-सरकारी संस्थाओं और मीडिया सबसे आह्वान किया था कि वे पूरे मनोयोग से इस दिशा में कार्य करें जिससे भारत २०२० तक विकसित राष्ट्र का दर्जा पा सके. परन्तु दुर्भाग्यवश ऐसा हो नहीं सका और आज भी कलाम साहब का सपना अधूरा है जिसके लिए हम उनके समक्ष क्षमाप्रार्थी है. हम समझते हैं कि आज देश के लिए चिंता करने वाले कलाम साहब जैसे लोग २० साल पहले के समय से और भी कम हो गए हैं. लोगों में मन में निजी स्वार्थ ने कहीं ज्यादा स्थान घेर लिया है और लोग जल्दीबाजी में धनवान बनने के लिए गर्हित से गर्हित कर्मों में पहले से कहीं ज्यादा संख्या में संलिप्त हो रहे हैं.
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