गुरुवार, 13 फ़रवरी 2020

दिल्ली के स्मार्ट वोटर


मित्रों, हिंदुस्तान के दिल दिल्ली का फैसला आ चुका है. हालाँकि आम आदमी पार्टी फिर से जीत गई है लेकिन उसके और भाजपा के बीच वोटों का फासला कम हुआ है. जो लोग इस समय दिल्ली के मतदाताओं को गालियां देने में लगे हैं वो नादान है. ऐसे लोगों के बारे में बस इतना ही कहा जा सकता है कि नाच न जाने आँगन टेढ़ा. जो नेता और दल जनता को बन्दर और खुद को मदारी समझते हैं उनको समझ लेना चाहिए कि २१वीं सदी में जनता बन्दर नहीं है मदारी है और बन्दर नेता हैं. दिल्ली का सबक अगर कुछ है तो पहला सबक यह है कि अब जनता नाचेगी नहीं नचाएगी. 
मित्रों, दूसरी बात केजरीवाल इस बात को समझ गये कि किसको क्या चाहिए. उदहारण के लिए महिलाओं को क्या चाहिए, जनता को क्या चाहिए, मुसलमानों को क्या चाहिए और हिन्दुओं को क्या चाहिए. जिसको जो चाहिए था उसको केजरीवाल ने वो सब दे दिया. जो लोग दिल्लीवालों को मुफ्तखोर बता रहे हैं उनको भी यह समझ लेना चाहिए कि बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ देना सरकार का कर्त्तव्य है.
मित्रों,भाजपा ने यह नहीं समझा कि पूर्वांचली सिर्फ गीत सुनकर वोट नहीं दे देंगे. फिर मनोज तिवारी को भाजपा ने कुछ ज्यादा ही काबिल समझ लिया जबकि वे काबिल नहीं हैं बल्कि कबिलफचाक हैं. मतलब कि वे खुद को बहुत ज्यादा काबिल समझते हैं.
मित्रों, इसके साथ ही केजरीवाल ने अपने कोर मतदाताओं को हमेशा परवाह की जबकि भाजपा ने कभी अपने कोर वोटर्स की परवा नहीं की और फ्लोटिंग वोटर्स के पीछे भागती रही.  बिहार के एक बहुत बड़े नेता शिवानन्द तिवारी ने वर्षों पहले भाजपा के सबसे पक्के समर्थक बड़ी जाति के मतदाताओं के बारे कहा था कि उनके लिए कुछ भी करने की जरुरत नहीं है सिर्फ देश और राज्य विकास को देखकर ही वोट दे देंगे. इस दिल्ली चुनाव में भी भाजपा को ज्यादातर वोट उनके ही मिले लेकिन भाजपा दलितों और मुसलमानों के पीछे भागती रही. तीन तलाक का असर दिल्ली में नहीं दिखा. उल्टे मुस्लिम महिलाएं भाजपा के खिलाफ ज्यादा उग्रता थीं. दलितों ने भी भाजपा को वोट नहीं दिया. 
मित्रों, भाजपा की एक और आदत काफी बुरी है और वो आदत है यूज एंड थ्रो. शाहीन बाग़ के साथ आप पार्टी शुरू से अंत तक खड़ी थी लेकिन दूसरी तरफ भाजपा कभी अपने समर्थकों का साथ नहीं देती. क्या कभी भाजपा ने कहा है कि वो गोरक्षकों के साथ है? मोदी की जान बचाने में कोई बंजारा जेल चला जाता है और भाजपा उसे उसके हाल पर मरने छोड़ देती है. साथ ही भाजपा ने अपने साईबर योद्धाओं के लिए कभी कुछ नहीं किया है? अभी-अभी मोदीजी ने लोकसभा में एक शेर पढ़ा था कि खूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं, साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं. जाहिर है कि यह शेर अगर किसी पर सबसे ज्यादा लागू होती है तो तो खुद भाजपा है.
मित्रों, आजादी के बाद कांग्रेस की सबसे बड़ी गलती थी कि उसने सामाजिक कार्यक्रम बंद कर दिया. भाजपा इस मामले में भाग्यशाली रही कि उसके लिए वही काम आरएसएस करता रहा लेकिन अब भाजपा को समझ लेना होगा कि सिर्फ आरएसएस के सामाजिक कार्यक्रमों से काम नहीं चलने वाला. बल्कि भाजपाइयों को भी एसी से बाहर आकर सडकों पर पसीना बहाना पड़ेगा. सिर्फ फोटो खिंचवाने के स्थान पर वास्तव में स्वच्छता कार्यक्रम चलाना पड़ेगा. झुग्गी-झोपड़ियों में जाकर, दलितों की बस्तियों में जाकर लोगों की समस्याओं को दूर करना पड़ेगा. साथ ही पूरे देश में जहाँ-जहाँ उसकी सरकार हैं पुलिस, स्वास्थ्य और शिक्षा को भ्रष्टाचारमुक्त बनाना पड़ेगा. दिल्ली में भी भाजपा के हाथों में अभी भी बहुत कुछ है. केंद्र की सरकार उसकी है और दिल्ली नगरपालिका पर भी दशकों से उसका कब्ज़ा है. भाजपा को चाहिए कि वो नगरपालिका के काम-काज में फैली भ्रष्टाचाररुपी गंदगी को साफ़ करे.
मित्रों, अंत में एक छोटी मगर मोती बात. दरअसल दिल्ली के मतदाता भारत के सबसे स्मार्ट मतदाता हैं. वे भाजपा को लोकसभा और नगरपालिका के लायक तो समझते हैं लेकिन विधानसभा के लायक नहीं समझते. वहीँ दूसरी तरफ वे आप को विधानसभा के लायक तो समझती है लेकिन लोकसभा और विधानसभा के लायक नहीं समझती. पता नहीं आगे आनेवाले चुनावों में दिल्ली की जनता का क्या निर्णय हो. हो सकता है कि वो आप को लोकसभा और नगरपालिका के लायक समझ ले या फिर भाजपा को विधानसभा के लायक. लेकिन इसके लिए दोनों को दिल्ली की जनता के मानदंडों पर खरा उतरना पड़ेगा.

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