मित्रों, प्रसंग महाभारत से है. पांडव अज्ञातवास में थे. विराट युद्ध के पश्चात् राजा विराट के महल में सूचना आती है कि राजकुमार उत्तर ने अकेले ही देवताओं के लिए भी अपराजेय कौरव सेना को परास्त कर दिया है और राजमहल वापस आ रहे हैं. ख़ुशी के मारे राजा विराट पूरे राज्य में दिवाली मनाने का आदेश देते हैं और अंपने दरबारी कंक जो वास्तव में महाराज युधिष्ठिर हैं के साथ जुआ खेलने बैठ जाते हैं. इस दौरान एक तरफ राजा विराट बार-बार अपने पुत्र की बडाई करते हैं वहीँ दूसरी ओर कंक बार-बार बृहन्नला जो वास्तव में महारथी अर्जुन हैं की तारीफ करते हैं. जब ऐसा बार-बार होता है तब राजा विराट खीज में आकर कंक के मुंह पर जुए का पासा दे मारते हैं जिससे युधिष्ठिर के होठों से रक्तस्राव होने लगता है. यह देखकर सैरेन्ध्री अर्थात महारानी द्रौपदी स्वर्णपात्र में टपकते हुए खून को जमा करने लगती है. फिर तो राजा विराट सैरेन्ध्री पर भी नाराज हो उठते हैं और कहते हैं कि वो यह क्या कर रही है. तब सैरेन्ध्री उत्तर में कहती है कि यह खून ऐसे संत का है कि इसकी जितनी बूँदें आपके राज्य की धरती पर गिरेंगी उतने वर्षों तक राज्य में अकाल रहेगा.
मित्रों, फिर पालघर, महाराष्ट्र में तो निर्दोष संतों की हत्या हुई है. जिस इन्सान ने भी उनकी हत्या के वीडियो को देखा है मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि उनका ह्रदय इस समय रो रहा होगा. क्षमा करें मैं यहां केवल इंसानों की बात कर रहा हूं। वे निरीह बार-बार भीड़ के समक्ष हाथ जोड़ रहे थे लेकिन भीड़ उन पर ताबड़तोड़ लाठियां बरसा रही थीं जैसे वह भीड़ इंसानों की नहीं रक्तपिपासु भेड़ियों की हो. सबसे बड़ा अपराध तो उन पुलिसवालों का था जिन्होंने उनको ले जाकर स्वयं अपने हाथों से खूनी भीड़ के हवाले कर दिया. ७० साल का लाचार वृद्ध बार-बार पुलिसवाले की कमीज और हाथ पकड़ रहा था इस उम्मीद में कि वो उनको बचा लेगा लेकिन पुलिसवाला बार-बार उसके हाथों को झटक दे रहा था. क्या यही है क़ानून के लम्बे हाथ? हत्या के बाद जब पुलिसवालों ने अपने उच्चाधिकारियों को घटना के बारे में बताया तो उन्होंने इसे सड़क दुर्घटना बताकर मामले को रफा-दफा करने की पूरी तैयारी कर ली. लेकिन भीड़ मे से किसी व्यक्ति ने इस भयानक हत्याकांड का वीडियो बना लिया था जिसे उसने कल घटना के चार दिनों के बाद वायरल कर दिया. इसके बाद भी वहां की सरकार मीडिया पर ही डंडा चलाती हुई दिखी और गिरफ्तार हत्यारों के नाम तक नहीं बताए. शायद इससे उन महामानवों का मानवाधिकार संकट में आ जाता. फिर भी जो ख़बरें छन कर आ रही हैं उनके अनुसार शैतानों की भीड़ में सत्तारूढ़ एनसीपी और सीपीएम के नेता मौजूद थे और उनके ही निर्देशन में इस पूरे घटनाक्रम को अंजाम दिया गया.
मित्रों, सूचना आ रही है हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया गया है और पुलिसवालों को निलंबित कर दिया गया है. लेकिन क्या इतनी कार्रवाई काफी है अपराध की जघन्यता को देखते हुए? फिर पुलिस ने ९ हत्यारों को नाबालिग बताते हुए सुधार गृह में भेज दिया है. सवाल उठता है कि जो हत्या जैसा
नृशंस अपराध कर सकता है वो बच्चा कैसे हो सकता है? इस घटना में शामिल सभी लोगों और पुलिसवालों को सीधे फांसी होनी चाहिए और वो भी त्वरित गति न्यायालय में मुकदमा चलाकर हफ्ते-दो-हफ्ते के भीतर.
मित्रों, आपको क्या लगता है यह किसकी हत्या है? क्या यह इंसानियत की हत्या नहीं है? क्या यह जनता के पुलिस-प्रशासन पर कायम विश्वास की हत्या नहीं है? क्या उन संतों की कार से कोई बच्चा बरामद हुआ था? फिर क्यों उनको पीट-पीट कर मार दिया गया? महाराष्ट्र की सरकार का बंटाधार होना तो तय है क्योंकि उसके शासन में संतों की हत्या हुई है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार हत्यारों के नाम क्यों उजागर नहीं कर रही? माना कि ९ नाबालिग हैं लेकिन सबके-सब नाबालिग तो नहीं हैं? फिर यह पर्देदारी क्यों? आखिर क्या छुपाना चाह रही है सोनियासेना सरकार?
मित्रों, अंत में मैं आप सबसे विनती करना चाहूंगा कि इन संतों की हत्या की तुलना किसी गो तस्करी या गो हत्या जैसे अक्षम्य अपराध में संलिप्त राक्षस के वध से न करें। जैव वैज्ञानिक दृष्टि से मानव तो निर्भया के अपराधी भी थे।
मित्रों, फिर पालघर, महाराष्ट्र में तो निर्दोष संतों की हत्या हुई है. जिस इन्सान ने भी उनकी हत्या के वीडियो को देखा है मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि उनका ह्रदय इस समय रो रहा होगा. क्षमा करें मैं यहां केवल इंसानों की बात कर रहा हूं। वे निरीह बार-बार भीड़ के समक्ष हाथ जोड़ रहे थे लेकिन भीड़ उन पर ताबड़तोड़ लाठियां बरसा रही थीं जैसे वह भीड़ इंसानों की नहीं रक्तपिपासु भेड़ियों की हो. सबसे बड़ा अपराध तो उन पुलिसवालों का था जिन्होंने उनको ले जाकर स्वयं अपने हाथों से खूनी भीड़ के हवाले कर दिया. ७० साल का लाचार वृद्ध बार-बार पुलिसवाले की कमीज और हाथ पकड़ रहा था इस उम्मीद में कि वो उनको बचा लेगा लेकिन पुलिसवाला बार-बार उसके हाथों को झटक दे रहा था. क्या यही है क़ानून के लम्बे हाथ? हत्या के बाद जब पुलिसवालों ने अपने उच्चाधिकारियों को घटना के बारे में बताया तो उन्होंने इसे सड़क दुर्घटना बताकर मामले को रफा-दफा करने की पूरी तैयारी कर ली. लेकिन भीड़ मे से किसी व्यक्ति ने इस भयानक हत्याकांड का वीडियो बना लिया था जिसे उसने कल घटना के चार दिनों के बाद वायरल कर दिया. इसके बाद भी वहां की सरकार मीडिया पर ही डंडा चलाती हुई दिखी और गिरफ्तार हत्यारों के नाम तक नहीं बताए. शायद इससे उन महामानवों का मानवाधिकार संकट में आ जाता. फिर भी जो ख़बरें छन कर आ रही हैं उनके अनुसार शैतानों की भीड़ में सत्तारूढ़ एनसीपी और सीपीएम के नेता मौजूद थे और उनके ही निर्देशन में इस पूरे घटनाक्रम को अंजाम दिया गया.
मित्रों, सूचना आ रही है हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया गया है और पुलिसवालों को निलंबित कर दिया गया है. लेकिन क्या इतनी कार्रवाई काफी है अपराध की जघन्यता को देखते हुए? फिर पुलिस ने ९ हत्यारों को नाबालिग बताते हुए सुधार गृह में भेज दिया है. सवाल उठता है कि जो हत्या जैसा
नृशंस अपराध कर सकता है वो बच्चा कैसे हो सकता है? इस घटना में शामिल सभी लोगों और पुलिसवालों को सीधे फांसी होनी चाहिए और वो भी त्वरित गति न्यायालय में मुकदमा चलाकर हफ्ते-दो-हफ्ते के भीतर.
मित्रों, आपको क्या लगता है यह किसकी हत्या है? क्या यह इंसानियत की हत्या नहीं है? क्या यह जनता के पुलिस-प्रशासन पर कायम विश्वास की हत्या नहीं है? क्या उन संतों की कार से कोई बच्चा बरामद हुआ था? फिर क्यों उनको पीट-पीट कर मार दिया गया? महाराष्ट्र की सरकार का बंटाधार होना तो तय है क्योंकि उसके शासन में संतों की हत्या हुई है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार हत्यारों के नाम क्यों उजागर नहीं कर रही? माना कि ९ नाबालिग हैं लेकिन सबके-सब नाबालिग तो नहीं हैं? फिर यह पर्देदारी क्यों? आखिर क्या छुपाना चाह रही है सोनियासेना सरकार?
मित्रों, अंत में मैं आप सबसे विनती करना चाहूंगा कि इन संतों की हत्या की तुलना किसी गो तस्करी या गो हत्या जैसे अक्षम्य अपराध में संलिप्त राक्षस के वध से न करें। जैव वैज्ञानिक दृष्टि से मानव तो निर्भया के अपराधी भी थे।
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