मित्रों, इन दिनों जब पूरा देश और पूरी दुनिया कोरोना से लड़ने में मशगूल है और कमर कसकर लड़ रही है ऐसे में हमारे देश की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी कांग्रेस अपनी पूरी ताकत से इस लडाई को कमजोर करने में जुटी हुई है. एक तरफ तो वो कह रही है कि यह समय गन्दी और तुच्छ राजनीति करने का नहीं है वहीं दूसरी तरफ वो खुद ऐसा ही करने में पूरे प्राणपन से लगी हुई है. कांग्रेस शासित महाराष्ट्र और पंजाब में कोरोना को लेकर पूरी तरह से अराजकता का वातावरण है. कांग्रेस को उसे ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए लेकिन कांग्रेस का पूरा ध्यान इस समय उत्तर प्रदेश का माहौल बिगाड़ने पर है जहाँ की स्थिति बांकी राज्यों के मुकाबले काफी अच्छी है.
मित्रों, हम काफी समय से सोनिया, प्रियंका और राहुल नामक तीन व्यक्तियों की पार्टी रह गई कांग्रेस से यह कहते आ रहे हैं कि उसको अपना हिंदूविरोधी रवैया त्यागना चाहिए नहीं तो वो एक समय भारत का बंटवारा करने वाली मुस्लिम लीग का भारतीय संस्करण मात्र बनकर रह जाएगी लेकिन कांग्रेस न तो अपना हिन्दूविरोधी रवैया छोड़ रही है और न ही मोदी विरोधी रवैया. इतना ही नहीं वो बार-बार लगातार मोदी का विरोध करते-करते भारत के हितों के खिलाफ बात करने लगती है. जिससे शक होने लगता है कि वो कहीं भारत विरोधी शक्तियों की एजेंट तो नहीं है.
मित्रों, यहाँ हम एक उदाहरण लेना चाहेंगे. हरियाणा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पंकज पूनिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गरियाने के चक्कर में पिछले दिनों हिन्दुओं के लिए परम पूज्य मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को गालियाँ दे बैठे. दूसरी तरफ रायबरेली से कांग्रेस विधायक अदिति सिंह प्रियंका वाड्रा की आलोचना करती हैं. कांग्रेस अदिति सिंह पर तो अनुशासन का डंडा चलाती है लेकिन पंकज पूनिया की आलोचना तक नहीं करती कार्रवाई तो दूर रही. शायद ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि कांग्रेस के लिए भगवान राम का कोई मूल्य नहीं है जबकि प्रियंका उसके लिए बहुत कुछ ही नहीं सबकुछ है.
मित्रों, पिछले दिनों एक और अनपेक्षित घटना देखने को मिलती है. दिल्ली के महाबदमाश मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल एक विज्ञापन में सिक्किम को स्वतंत्र राष्ट्र बताता है. जाहिर है कि उनके जैसा बहुत ज्यादा पढ़ा-लिखा आदमी अनजाने में तो ऐसी गलती नहीं ही करेगा. खैर, चूंकि हम उनको दिल्ली चुनावों से पहले ही काला नाग बता चुके हैं इसलिए उनके बारे में हमें ज्यादा बोलने की जरुरत नहीं है. मगर कांग्रेस भी इस मुद्दे पर चुप रह जाती है जबकि जब सिक्किम का भारत में १९७५ में विलय हुआ था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इसे अपनी बहुत बड़ी उपलब्धि बताया था. तो क्या कांग्रेस पार्टी को इंदिरा गाँधी द्वारा किए गए महान कार्यों से भी कोई मतलब नहीं रह गया है? या फिर कांग्रेस और केजरीवाल दोनों इस समय चीन के एजेंट हैं जो आज भी सिक्किम को भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं मानता?
मित्रों, भारत के कम्युनिस्टों का तो कहना ही क्या? अगर आज भारत पर चीन का हमला हो जाए जो कभी भी और किसी भी दिन हो सकता है तो ये गरीबों और सर्वहारा वर्ग के कथित मसीहा निश्चित रूप से एक बार फिर से चीन के समर्थन में दिखाई देंगे. इससे पहले १९६२ में भी वे चीन के समर्थन में और अपने ही देश भारत के खिलाफ खड़े हो चुके हैं. लेकिन क्या कांग्रेस को भी भविष्य में चीन या पाकिस्तान से चुनाव लड़ना है? अगर हां तब तो कोई बात नहीं, हमारी शुभकामनाएँ उसके साथ है लेकिन अगर उसे भारत से ही चुनाव लड़ना है तो उसे सर्वप्रथम अपना हिन्दूविरोधी रवैया त्यागना होगा अन्यथा जिस प्रकार मुस्लिम लीग को भारत में कभी १ और कभी २ सीटें लोकसभा चुनावों में आती हैं वैसे ही आया करेगी और राहुल गाँधी कभी भी दोबारा अमेठी से चुनाव नहीं जीत पाएंगे. दूसरी बात उसे मोदी विरोध और भारत विरोध के बीच के फर्क को समझना होगा. तीसरी बात अगर सोनिया समझती हैं कि उनके नेतृत्व में पूरे भारत को ईसाई धर्म में धर्मान्तरित किया जा सकता है तो उनको शीघ्रातिशीघ्र इस भ्रम को त्याग देना चाहिए क्योंकि यह नितांत असंभव है. ऐसा करने के प्रयास वास्को डी गामा के समय से ही जारी है और न जाने कितने ईसाई धर्मप्रचारक इस भारत की पवित्र मिटटी में मरखप गए और यहीं उनकी कब्रें बन गईं लेकिन हिंदुत्व का परचम लहराता रहा और लहराता रहेगा.
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