शनिवार, 2 जनवरी 2021

उद्यमिता का सम्मान करे भारत

मित्रों, वर्षों पहले मैंने हिंदी के सबसे बड़े कहानीकार और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की किसी पुस्तक में पढ़ा था कि अपने देश में हर कोई अमीरों को गाली देता फिरता है लेकिन गजब तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति खुद अमीर होना चाहता है. दुर्भाग्यवश भारत की जो स्थिति प्रेमचंद के समय थी आज भी बनी हुई है. हम अम्बानी-अडानी को गालियां भी देते हैं और हम अम्बानी-अडानी बनना भी चाहते हैं. मित्रों, बिहार में एक कहावत है कि हसुआ के लग्न में खुरपी के गीत और यह कहावत दिल्ली और पंजाब में चल रहे किसान आंदोलनों पर बखूबी लागू होती है. आन्दोलन कृषि क्षेत्र के बिचौलियों को बचाने के लिए हो रहा है फिर इसमें अम्बानी-अडानी कहाँ से आ गए? क्या मोबाइल टावरों को तोड़ देने से किसानों से ली गई १० रूपये प्रति किलोग्राम की सब्जी को उपभोक्ताओं के लिए १०० रूपये प्रति किलोग्राम बना देनेवाले बिचौलियों की रक्षा हो जाएगी? मित्रों, दरअसल पंजाब के जो लोग ऐसा कर रहे हैं वे निश्चित रूप से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी नहीं मार रहे बल्कि कुल्हाड़ी पर पैर मार रहे हैं. उनके ऐसा करने से इस ऑनलाइन के ज़माने में राज्य की पूरी-की-पूरी संचार-व्यवस्था ठप हो जाएगी और ठप हो जाएगा पूरी-की-पूरी अर्थव्यवस्था जिसमें कृषि, विनिर्माण और सेवा तीनों क्षेत्र शामिल हैं. इतना ही नहीं कल अगर चीन-पाकिस्तान से भारत को लड़ना पड़ता है तो पंजाब जैसे सीमावर्ती राज्य में संचार-व्यवस्था का ध्वस्त होना देश को काफी महंगा पड़ सकता है. कितनी विचित्र बात है कि एक तरफ भारत सरकार भारत-चीन नियंत्रण रेखा पर लेह-लद्दाख में मोबाइल टावर स्थापित कर रही है ताकि युद्ध की स्थिति में हमारी सेना को कोई समस्या नहीं हो तो वहीँ पंजाब में देशविरोधी ताकतें मोबाइल टावरों को नुकसान पहुंचा रही है. इस समय जिन-जिन राज्यों में सोनिया कांग्रेस की सरकारें हैं वहां-वहां देशविरोधी गतिविधियों की खुली छूट है. क्या इंदिरा गाँधी ऐसा होने देती? आखिर क्यों पंजाब की अमरिंदर सरकार मोबाइल टावरों को नुकसान पहुँचानेवालों से मुआवजा वसूलने की पहल नहीं कर रही और उलटे उनको मौन समर्थन दे रही है? मित्रों, क्या आप जानते हैं कि अमेरिका क्यों अमीर है और जीडीपी में अग्रणी है? अमेरिकी अर्थशास्त्री और विचारक पीटर जेक ओ रूर्क ने अपनी पुस्तक ईट द रिच (१९९८) में विचार किया है कि क्यों कुछ स्थानों के लोग इतने संपन्न हैं? वह जवाब देते हैं कि इसका कारण बुद्धि तो नहीं हो सकती क्योंकि इस मामले में बेबर्ली हिल्स (कैलिफोर्निया) के लोगों से ज्यादा मूर्ख और कोई नहीं हो सकता. फिर भी वहां के नागरिक धन में लोटते हैं जबकि रूस के लोग शतरंज में सबसे माहिर होते हुए भी सूप बनाने के लिए पत्थर उबाल रहे हैं. तब रूस की आर्थिक स्थिति काफी ख़राब थी. आगे रूर्क कहते हैं कि अगर खनिज-सम्पदा सम्पन्नता तय करती तो अफ्रीका के देश दुनिया में सबसे अमीर होते. इसी तरह अगर साक्षरता से सम्पन्नता आती तो उत्तर कोरिया ९९ प्रतिशत साक्षरता के साथ सबसे सम्पन्न देश होता न कि उनकी जीडीपी मोरक्को जहाँ के मात्र ४४ प्रतिशत लोग साक्षर हैं की एक चौथाई होती. इस तरह कई पहलुओं पर विचार करने के बाद रूर्क इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि जो समाज सृजन और उद्यमिता को जितना सम्मान देता है वो उतना ही अधिक सम्पन्न और धनवान होता है. मित्रों, अपने देश में ही लें तो गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्य सम्पन्न हैं जबकि बिहार जिसकी बुद्धि का लोहा पूरा भारत मानता है और जहाँ के नौकरशाह पूरे देश का शासन-प्रशासन चलाते हैं बदहाल है, क्यों? क्योंकि बिहार ने लालू राज में उद्यमियों को भगा दिया और खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली. इसी तरह एक समय बंगाल भारत का सबसे अमीर राज्य था लेकिन साम्यवादियों ने वहां के उद्यमियों को इतना परेशान किया कि वे भाग लिए. तो क्या पंजाब के लोग भी यही चाहते हैं कि पंजाब से उद्यमी पलायन कर जाएँ और जो पंजाब आज नौकरी देने के लिए जाना जाता है वहां के लोग मजदूर बनकर रह जाएँ? मित्रों, नेताओं का क्या है उनको तो गन्दी राजनीति करनी है. राहुल गाँधी हमेशा चार्टर्ड प्लेन से उड़ते रहेंगे, कम्यूनिस्ट भी चिथड़ा ओढ़कर घी पी रहे है, पीते रहेंगे, लालू परिवार भी उड़ रहा है लेकिन आज बिहारियों की क्या दशा है? बंगालियों की स्थिति क्या है? क्या सिंगूर आन्दोलन से उनको कोई लाभ हुआ? टाटा का क्या, बंगाल नहीं तो गुजरात सही. हमें कम-से-कम भारत के सबसे बड़े दुश्मन चीन से सीख लेनी चाहिए जो अपने उद्यमियों को साम्यवादी देश होते हुए भी भगवान की तरह पूजता है.

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