गुरुवार, 25 मार्च 2021

और भी बुरे दिन आनेवाले हैं

मित्रों, प्रबंधक की परीक्षा सुख में नहीं दुःख में होती है. आपको याद होगा जब २००८ की आर्थिक मंदी आई थी तब उससे भारत की तत्कालीन संघ सरकार ने कैसे निबटा था और भारत पूर्वी एशिया से उठी उस आर्थिक सुनामी से बेदाग बच गया था. तब भारत सरकार के आर्थिक इंतजामों की दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की थी. मित्रों, हमारा देश पिछले कई सालों से आर्थिक मोर्चे पर जूझ रहा है जिसे कोरोना ने और भी चिंताजनक बना दिया है. अब केंद्र सरकार की गलतियों का खामियाजा भुगतने की बारी राज्य सरकारों की है. कोरोना के चलते राज्यों के अपने राजस्व नुकसान तो अलग हैं, ऊपर से उन्हें जीएसटी के हिस्से में इस वित्त वर्ष में केंद्र से करीब तीन लाख करोड़ रूपये कम मिले हैं. इतना ही नहीं अगले साल भी इतनी ही कमी रहनेवाली है. मित्रों, इसके अलावा वित्त आयोग की सिफारिशों से भी राज्यों की कमाई या राजस्व को आनेवाले वर्षों में जोर का झटका लगनेवाला है. केंद्र ने राज्य सरकारों को जीएसटी में नुकसान की भरपाई की जो गारंटी दी है वह २०२३ में समाप्त हो जाएगी क्योंकि १५वें वित्त आयोग ने इसे बढ़ाने की कोई सिफारिश नहीं की है. इस गारंटी के खत्म होने के बाद राज्यों के राजस्व का पूरा संतुलन बिगड़ जाएगा और जीएसटी में नुकसान की भरपाई खुद से करनी होगी. मित्रों, यही नहीं वित्त आयोग ने केद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी का सूत्र भी बदल दिया है. नई व्यवस्था में जनसँख्या नियंत्रण, स्वास्थ्य व शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन के पैमाने भी जोड़े गए हैं. इंडिया रेटिंग्स की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय करों में ८ राज्यों (आन्ध्र, असम, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, ओडिशा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश) का हिस्सा २४ से लेकर ११८ (कर्नाटक) प्रतिशत तक घट जाएगा. दूसरी तरफ महाराष्ट्र, गुजरात, अरुणाचल की पौ बारह रहेगी. मित्रों, आप जानते हैं कि केंद्र के करों में सेस और सरचार्ज का हिस्सा बढ़ता जा रहा है जिनमें से राज्यों को कुछ नहीं मिलता. केन्द्रीय कर राजस्व में इनका हिस्सा २०१२ में १०.४ प्रतिशत से बढ़कर २०२१ में १९.९ प्रतिशत हो गया है. मित्रों, बात इतनी भर होती तो फिर भी गनीमत थी. वित्त आयोग ने केंद्र से राज्यों को जानेवाले अनुदानों में बढ़ोतरी की सिफारिश की है लेकिन शिक्षा, बिजली और खेती के लिए केन्द्रीय अनुदान बेहतर प्रदर्शन की शर्तों पर मिलेंगे. जाहिर है कि बेहतर प्रदर्शन के लिए राज्यों को ज्यादा खर्च या निवेश करना होगा जिससे खजाने और भी ज्यादा खाली हो जाएँगे. रही बात कर्ज की तो मौजूदा वित्तीय वर्ष में ७ अप्रैल २०२० से १६ मार्च २०२१ तक भारत के २८ राज्य और २ केंद्रशासित प्रदेश बाजार से रिकॉर्ड ८.२४ लाख करोड़ रूपये का कर्ज उठा चुके हैं जो पिछले वित्त वर्ष से ३१ प्रतिशत ज्यादा है जिसके लिए उनको ७ प्रतिशत की दर से ब्याज देना होगा. अगले साल तक राज्यों के कर्ज १० लाख करोड़ को पार कर जाएँगे ऐसा अनुमान है. अर्थात आगे हमारे लिए जीवन जीना और महंगा और कठिन होनेवाला है और और भी बुरे दिन आनेवाले हैं क्योंकि एक तरफ केंद्र तो दूसरी तरफ राज्यों की सरकारें हम पर करों के बोझ में अति तीव्र असहनीय वृद्धि करनेवाली है.

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