रविवार, 21 मार्च 2021
मोदी राज में पैसा बचाना मना है
मित्रों, एक जमाना था और क्या जमाना था जब भारत और भारतीयों को बचत करने के लिए जाना जाता था और दुनिया भर के देशों के अर्थशास्त्री भारत से इस बात के लिए ईर्ष्या करते थे कि भारत गरीब भले ही हो लेकिन भारतीय धनी हैं. तब भारत और भारत के बैंकों के आर्थिक विकास में इन घरेलू बचतों का अपना अलग ही महत्व था.
मित्रों, फिर आज का जमाना आया जब एक सर्वज्ञानी व्यक्ति प्रधानमंत्री बना और उसने अर्थशास्त्र के सारे नियमों को पलटकर रख दिया. आज मंदी से बाहर निकालने की जद्दोजहद में उसने भारत को दो वर्गों में बाँट दिया है. एक तरफ हैं चुनिन्दा लोग जो कर्ज ले सकते हैं क्योंकि वे उसे चुका सकते हैं और दूसरी तरफ हैं वे बहुसंख्यक करोड़ों लोग जो कर्ज नहीं लेते या नहीं ले सकते लेकिन पेट काटकर भविष्य के लिए बचत करते हैं और सर्वज्ञानी जी हैं कि लगातार ब्याज दर कम करके उन गरीबों को और भी गरीब बना रहे हैं.
मित्रों, बीते ३ माह में ६ बार (२०१३ के बाद पहली बार) बांड बाजार ने सरकार को घुड़की दी और सस्ती ब्याज दर पर कर्ज देने से मना कर दिया. अब सरकार ठहरी कर्ज बाज़ार की पहली और सबसे बड़ी ग्राहक. बैंकों में जमा अधिकांश बचत सरकार कर्ज पर उठा लेती है और जिस दर पर पैसा उठती है (अभी ६.१५ प्रतिशत पर दस साल का बांड) आम जनता को उससे कहीं अधिक दर पर कर्ज मिलता है. साथ ही बचत पर ब्याज दर भी सरकारी कर्जे पर ब्याज से कम रहती है. इसके साथ ही सरकार से वसूला जानेवाला ब्याज उसके कर्ज की मांग से तय होता है. यहाँ मैं आपको बता दूं कि केंद्र सरकार अगले दो साल (यह और अगला) में करीब २५ लाख करोड़ रूपये का कर्ज लेगी. राज्यों की सरकारें इसके अलावा कर्ज लेनेवाली हैं जो कुल मिलाकर एक रिकॉर्ड होगा. यानि बैंकों के पास आम जनता को कर्ज देने के लिए पहले से कम पैसा बचनेवाला है.
मित्रों, उस पर बैंकों के लिए मुश्किल यह है कि मंदी के दबाव के कारण बैंकों को सरकार के साथ-साथ कंपनियों को यानि अमीरों को भी सस्ता कर्ज देना है. नतीजतन गरीबों के बचत के ब्याज पर छुरी चल रही है. तथापि बैंकों को अपने सबसे बड़े ग्राहक यानि सरकार से कम से कम इतना तो ब्याज चाहिए जो महंगाई से ज्यादा हो इसलिए पेट्रोल-डीजल और सामानों के दाम बढ़ने से महंगाई बढ़ रही है. दूसरी तरफ, अपनी कमाई का ५० प्रतिशत हिस्सा ब्याज चुकाने में खर्च कर रही सरकार को नए कर्ज चुकाने के लिए और नए टैक्स लगाने होंगे यानि अभी तो हमारे बुरे दिनों की बस शुरुआत हुई है.
मित्रों, महंगाई तो सिर्फ नेताओं के वादों में रूकती है इसलिए स्थिति यह है कि रिजर्व बैंक कर्ज पर ब्याज दरों को जबरन कम रखे हुए है जिससे बैंक जमा लागत घटाने के लिए बचतों पर ब्याज काट रहा है. यहाँ हम आपको यह बता दें कि भारतीयों की ५१ प्रतिशत बचतें इस समय बैंकों में हैं. बचत पर रिटर्न महंगाई से ज्यादा होनी चाहिए ताकि आम जनता का पैसा छीजे नहीं लेकिन इस पर मिल रहा ब्याज महंगाई से कम है जो अत्यंत दुखद है. जो कर्ज नहीं ले रहे उनकी मुसीबत दोहरी है. एक तो नौकरी गई या पगार घटी और दूसरा जिन बचतों पर उनकी निर्भरता थी वह भी छीज रहा है. लॉकडाउन के कारण खर्च रूकने से बैंकों में बचत जरूर बढ़ी थी लेकिन इस दौरान ब्याज दर के मुद्रास्फीति से कम होने के कारण नुकसान ज्यादा हो गया. भारत का एक बहुत ही छोटा सा जनसमूह जो शेयर बाजार के दांवपेंच से वाकिफ है बस वही फायदे में है बड़ी आबादी का सहारा फिक्स डिपोजिट बुरी तरह पिट चुके हैं.
मित्रों, अब बचत और उन पर निर्भर लोगों की जो हालत है सो है. अच्छे दिन तो आए नहीं अलबत्ता बुरे दिन जरूर आ गए. आप कहेंगे विकल्प क्या है? विकल्प भी है बशर्ते सर्वज्ञानी महाशय हमारी सलाह को मानें. इसके लिए सबसे पहले सरकार को जनता के लिए निर्धारित आय वाले नए विकल्प देने होंगे. साथ ही सरकार को अपने कर्ज को कम करना होगा. नहीं तो सरकार और ज्यादा संख्या में नए नोट छापेगी और महंगाई और भी विकराल रूप लेती जाएगी.
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