गुरुवार, 8 जुलाई 2021

मजबूरी का मंत्रीमंडल विस्तार

मित्रों, हवाबाजी खेल भी है और कला भी। जार्ज बुश जहां इस खेल में माहिर थे वहीं मोदी जी ने इसे कला का रूप दे दिया है। कोई भी वादा करके चुनाव जीतने के बाद अमित शाह जी से कहलवा देते हैं कि वो तो जुमला था। किबला इससे पहले हमने कभी यह शब्द सुना भी नहीं था। मित्रों, फिर बहुत से अन्य नए शब्दों को सुना गया जैसे मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेन्स, सबका साथ सबका विकास, सबका विश्वास, आत्मनिर्भर भारत, मैं देश नहीं झुकने दूंगा, नेशन फर्स्ट, गरीबों की सरकार आदि। मित्रों, बारी-बारी से ये सारे नारे खोखले निकले। कल मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नमेंस का भी जुलूस निकल गया। यह पहली ऐसी सरकार है जो किसी की सलाह माने बिना बडे ही आत्मविश्वास से गलतियां करती है। जब इसने पहली बार शपथ ली तभी लगा कि बेकार व चापलूस मंत्रियों के बल पर कैसे कोई सरकार गुड गवर्नेन्स दे सकती है? फिर मिनिमम गवर्नमेंट के नाम पर उन एक-एक फालतू लोगों को कई-कई विभाग थमा दिए गए। मित्रों, इस बीच हमने भी आवाज उठाई खासकर सुरेश प्रभु जैसे योग्य व्यक्ति को मंत्रीमंडल से बाहर करना बहुत अखरा लेकिन अक्खड़ मोदी कहां सुननेवाले थे। फिर वे चुनाव-दर चुनाव जीत भी रहे थे। अब बंगाल चुनाव ने उनको सोंचने पर मजबूर कर दिया है। मित्रों, फिर भी मैं नहीं समझता कि डिब्बों को बदलने से सरकार की कार्यशैली में कोई बदलाव आनेवाला है क्योंकि ईंजन तो वही पुराना है। लगता है जैसे बारी-बारी से सबको राज भोगने का अवसर दिया जा रहा है। फिर सबकी मेहनत का कबाड़ा करने में अकेली सक्षम निर्मला जी अभी भी वित्त मंत्री हैं।

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