शनिवार, 17 जुलाई 2021

दानिश सिद्दीकी को श्रद्धांजलि

मित्रों, चलिए पहले एक कहानी हो जाए. एक भेड़िया था और एक खरगोश था. भेड़िया बहुत दिनों से खरगोश को खाने के चक्कर में था और बराबर खरगोश को परेशान कर उससे झगड़ने का सुअवसर खोजता रहता था लेकिन खरगोश था कि सबकुछ बर्दाश्त कर जाता था. फिर एक दिन भेड़ियों ने खरगोश का चौतरफा रास्ता रोक लिया. अब खरगोश के सामने कोई विकल्प ही नहीं रहा सो उसने भेड़िये को चेतावनी दी कि वो उसका रास्ता नहीं रोके नहीं तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. बस भेड़िये को बहाना मिल गया और उसने खरगोश पर हमला कर दिया. खरगोश ने भी बदले में कुछ भेड़ियों को मार गिराया. मित्रों, अब तो जैसे मीडिया में आग लग गई. पहले से तैयार बैठी खरगोशविरोधी मीडिया ने आनन-फानन में खरगोश को दंगा भड़काने का दोषी घोषित दिया. कुछ मीडिया समूह ने तो यहाँ तक कह दिया कि खरगोशों ने दंगों और भेड़ियों के सामूहिक संहार कि पूर्व योजना बना रखी थी. जंगल की विकीपीडिया की भी यही राय थी. मित्रों, मेरा मतलब पूरी तरह भारत कि राजधानी दिल्ली के २०२० के दंगों से है. आश्चर्य की बात है कि उस समय दानिश सिद्दीकी नामक महान फोटोग्राफर को पुलिसकर्मी पर पिस्तौल ताने शाहरूख या जाबिर हुसैन के घर से चल रही गतिविधियों की कोई तस्वीर खींचने का मौका नहीं मिला लेकिन रामभक्त गोपाल की तस्वीर खींचने का महान अवसर जरूर मिल गया. जहाँ दानिश मंदिर और हिन्दुओं के स्कूल-घर और गाड़ियों के जलने की कोई तस्वीर नहीं खींच पाए वहीँ जली मस्जिदों पर उन्होंने खूब कैमरा चमकाया. आप ही बताईए ऊपरवाली कहानी में दानिश जैसे लोगों को किसका साथ देना चाहिए था खरगोशों का या भेड़ियों का. मित्रों, यहाँ बात दूसरी है कि दानिश की हत्या हो चुकी है और हुई भी है भेड़ियों के हाथों. दानिश को भारत में कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. मोदी सरकार तो बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी जैसे न्यूयॉर्क टाइम्स को अच्छी नहीं लगती है. जबकि सच्चाई तो यह है कि मोदी और योगी सरकार ने जितना मुसलमानों के लिए किया है उतना किसी ने नहीं किया. फिर भी जो लोग भारत में भी तालिबान जैसा शरियत का शासन चाहते हैं उनको मोदी कहाँ सुहानेवाले हैं? मित्रों, पता नहीं ऐसा क्यों है लेकिन सच्चाई यही है कि कुछ महान अंतर्राष्ट्रीय ख्याति वाले पुरस्कार सिर्फ उनके लिए है जो भारत विरोधी हैं, हिंदूविरोधी हैं. दानिश को भी पुलित्ज़र मिल चुका था. मित्रों, क्या अब भी इस बात में कोई संदेह है कि इस्लाम हिंसक और मानवताविरोधी मजहब है? तालिबान ने जीते हुए ईलाकों के मौलवियों से १५ साल से बड़ी अविवाहित और विधवा स्त्रियों कि सूची मांगी है. क्यों? क्या वे उनको पुरस्कार देंगे? फिर वो स्त्रियाँ तो काफ़िर भी नहीं हैं. फिर क्यों किया जाएगा उनका जबरन निकाह जो उनको रोज-रोज बलात्कार जैसा दर्द देगा? क्यों? इस्लाम तो महिलाओं को बहुत सम्मान देता है न? क्या यही सम्मान है? तालिबानियों ने तो आत्मसमर्पण करनेवालों को भी नहीं बख्शा और तभी-का-तभी उड़ा दिया. इस बारे में कुरान की क्या राय है? मित्रों, आज दानिश दुनिया में नहीं हैं. उन्होंने जब भी मौका मिला भारत और हिन्दुओं को बदनाम किया. उन हिन्दुओं को जिनसे अच्छा पड़ोसी हो ही नहीं सकता. दानिश को उसका खुदा जन्नत नसीब करे क्योंकि वो अपने खुदा के अत्यंत नेक बन्दों के हाथों अल्लाह हो अकबर के नारों के बीच मारा गया है. काश, दानिश की हत्या से भारत के अन्य महान पुरस्कार विजेता पत्रकार शिक्षा लेते और अपनी सोंच सचमुच निष्पक्ष कर लेते! हमें अमेरिकावाले न्यूयॉर्क टाइम्स से तो कोई उम्मीद नहीं है लेकिन भारतवाले न्यूयॉर्क टाइम्स वाले तो सुधर जाओ.

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