गुरुवार, 9 दिसंबर 2021

बिहार में पुलिस राज?

मित्रों, मुझे पूरा विश्वास है कि आपने भी करीब डेढ़ सौ साल पहले भारतेंदु हरिश्चंद्र लिखित अंधेर नगरी नाटक जरूर पढ़ा होगा. इसमें फांसी का फंदा पहले तैयार कर लिया जाता है फिर बाद में उस नाप की गर्दन वाले को ढूंढकर फांसी दे दी जाती है. मित्रों, अगर मैं कहूं कि बिहार में भी इन दिनों अंधेर नगरी चौपट राजा वाली हालत है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. नीतीश जी ने वादा तो सुशासन का किया था लेकिन इनके राज में लोकतंत्र पूरी तरह से लूट तंत्र में बदल गया. वैसे मैं आज सिर्फ बिहार पुलिस की बात करूंगा. लालू राज में जहाँ पुलिस की कोई वैल्यू नहीं थी आज पुलिस ही सबकुछ है, पर ब्रह्म है. लालू राज में जहाँ गुंडे जनता को लूटते थे आज पुलिस लूट रही है. सियासतदानों को हरिजनों को लूटना था तो हरिजन थाना बना दिया, महिलाओं को लूटना था तो महिला थाना बना दिया और आम आदमी को लूटने के लिए तो अंग्रेजी राज के थाने हैं हीं जो अंग्रेजी क़ानून से देसी जनता को आज भी लूट रहे हैं. मित्रों, हुआ यह है कि बिहार के वैशाली जिले के देसरी थाना के भिखनपुरा, कुबतपुर टोले में एक पुलिसकर्मी हैं उदय सिंह जो मोसद्दी सिंह के पुत्र हैं. पहले उनकी माली हालत काफी ख़राब थी. फिर किसी तरह से वो बिहार पुलिस में सिपाही बन गए. आज कल पटना उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के बॉडी गार्ड हैं. नौकरी के बाद जब पैसा आया तो उदय सिंह जी ने गाँव में आलीशान घर बनवाया. फिर पूरे गाँव में सिर्फ उनके ही घर में कथित रूप से बार-बार चोरी होने लगी और उदय हर बार अपने किसी-न-किसी दुश्मन को चोरी के इल्जाम में जेल भिजवाने लगे. मतलब कि घर न हुआ गाँव में अपने दुश्मनों से बदला लेने का फंदा हो गया. अभी कुछ दिन पहले उनके घर का ताला किसी ने काट दिया लेकिन घर में घुस नहीं पाया. फिर भी उदय सिंह ने अपने रसूख का प्रयोग कर अपने एक पडोसी राहुल कुमार, वल्द श्री जीतेन्द्र कुमार सिंह उर्फ़ पलट सिंह को जेल भिजवा दिया. इससे पहले पुलिस ने राहुल के घर की तलाशी भी ली लेकिन कुछ नहीं मिला क्योंकि कुछ चोरी हुआ ही नहीं था. फिर भी पूरे गाँव के विरोध के बावजूद राहुल अभी हाजीपुर जेल में है. बेचारा उदय सिंह से बार-बार पूछता रहा कि चाचा आपका क्या चोरी हुआ है लेकिन उदय ने इसका कोई जवाब नहीं दिया. अगर वो चोर होता तो गाँव छोड़कर भाग गया होता लेकिन यहाँ तो बात ही कुछ और थी. अंधेर नगरी नाटक की तरह इस बार फांसी के फंदे में उसकी गर्दन आनी थी. फंदा जान-बूझकर उनकी गर्दन की माप का बनाया गया था. मित्रों, हमने नीतीश जी को उनके शासन की शुरुआत में ही कहा था कि आप नौकरशाही को बढ़ावा मत दीजिए. उनके अधिकारों को कम करिए, बढ़ाईए नहीं लेकिन नीतीश जी तो आज भी यूनानी कथा नायक नारसिसस की तरह आत्ममुग्धता के शिकार हैं. सो उन्होंने पुलिस के अधिकारों को कम करने के बदले और बढ़ा दिया. अब बिहार पुलिस औरंगजेब काल के मुहतसिब की तरह किसी के भी घर में कभी भी घुस सकती है यहाँ तक कि शादी-समारोह में वधु के कमरे में भी. मित्रों, पिछले दिनों मुज़फ्फरनगर के श्रीराम कॉलेज की एक शिक्षिका ने मुझे बताया कि उनके पति जो सरकारी इंजीनियर हैं का तबादला बिहार हो गया था तब उन्होंने काफी प्रयास करके उनका तबादला रूकवाया क्योंकि उनके पति बिहार जाने से डर रहे थे. अभी मुज़फ्फरनगर के ही मेरे एक शिष्य ने मुझे फोन कर पूछा कि उसने बिहार में डाकिये की नौकरी के लिए आवेदन दिया है, क्या उसने ठीक किया? क्योंकि उसने सुन रखा है कि बिहार में घुसते ही लूट लिया जाता है. उसने यह भी कहा कि उसने सुना है कि अपराधियों से अगर बच गए तो बिहार पुलिस लूट लेती है. मित्रों, मैं सन्न था कि बिहार के बाहर बिहार की छवि आज भी वही है जो लालू राज में थी. जब बिहार में दूसरे राज्य के लोग एक रात के लिए भी आना नहीं चाहते तो पूँजी निवेश क्या खाक करेंगे? दरअसल बिहार में घटनेवाली घटनाएँ बताती हैं कि बिहार में संवैधानिक शासन है ही नहीं बल्कि पुलिस राज है. जब यहाँ की पुलिस जज के कमरे में घुसकर उनकी पिटाई कर सकती है तो फिर आम जनता की औकात ही क्या? मित्रों, इन्कलाब फिल्म में नायक ने दारोगा बनने के बाद अपने मोहल्ले के लोगों को आश्वस्त किया था कि मैं तो बन गया थानेदार भैया अब डर काहे का लेकिन आज जब बिहार में कोई दारोगा तो क्या सिपाही भी बनता या बनती है तो उनके पडोसी डर-सहम जाते हैं कि न जाने वो अब से वर्दी के नशे में उनको किस-किस तरह परेशान करेगा या करेगी. महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपनी सबसे प्रसिद्ध कविता राम की शक्ति पूजा में सिंह को शक्ति यानि बल और दुर्गा माता को जन रंजन यानि जन कल्याण चाहने वाला जनता का प्रतिनिधि कहा है और कहा है कि शक्ति को हमेशा जन-रंजन-चरण- तले होना चाहिए लेकिन बिहार में तो सिंह यानि नौकरशाही ने राक्षसों के बजाए जनता को ही मारना और खाना शुरू कर दिया है. बिहार के डीजीपी ने २९ मई, २०२१ को आदेश भी निकाला कि दहेज से जुड़े मामले और सात साल से कम सजा वाले मामलों में गिरफ्तारी की बजाए पहले सीआरपीसी की धारा 41 के प्रावधानों के तहत गिरफ्तारी की आवश्यकता के विषय में पुलिस अधिकारी को संतुष्ट होना होगा। इसके अलावा कोर्ट के सामने गिरफ्तार आरोपी की पेशी के समय गिरफ्तारी का कारण और सामग्री पेश करनी होगी लेकिन अराजक शासन में कोई कहां किसी की सुनता है इसलिए आज राहुल कुमार बेवजह जेल में है. मित्रों, बिल्ली के पास दूध की रक्षा का अधिकार पहले से ही था। अब रोटी-मांस वगैरह की निगरानी भी उसके जिम्मे कर दी गई है. अब बालू की तस्करी भी बिहार पुलिस ही रोक रही है. साथ ही शराबबंदी लागू करना भी उसकी ही महती जिम्मेदारी है. यहाँ तक कि डीजीपी भी कचरे के ढेर में खाली बोतल तलाशते फिर रहे हैं. मित्रों, बड़े ही दुःख के साथ एक बार फिर से कहना पड़ रहा है कि नीतीश जी मार्ग से भटक गए हैं. उनको बिहार की जनता ने प्रशासन में सुधार लाने के लिए मुख्यमंत्री बनाया था लेकिन वो अपना असली काम छोड़कर समाजसुधारक बन गए है जबकि इस काम करने के लिए बहुत सारे समाजसेवी पहले से ही प्रदेश में मौजूद हैं. नीतीश जी को जनता और नौकरशाहों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाकर रखना था लेकिन उन्होंने नौकरशाहों को इतने व्यापक अधिकार दे दिए कि अब वो खुद नीतीश जी की भी नहीं सुनते हैं. इस मामले में सुरेन्द्र शर्मा जी की एक कविता बड़ी ही प्रासंगिक सिद्ध होती है. कोई फर्क नहीं पड़ता इस देश में राजा कौरव हो या पांडव, जनता तो बेचारी द्रौपदी है कौरव राजा हुए तो चीर हरण के काम आएगी और पांडव राजा हुए तो जुए में हार दी जाएगी। बिहार की जनता को भी नीतीश नौकरशाही रूपी कौरवों के हाथों हार चुके हैं फिर चीर हरण तो होना ही है.

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