सोमवार, 9 अक्तूबर 2023
ये कैसा मजहब है भाई
मित्रों, पिछले दिनों दुनिया में दो तरह की प्रगति देखने को मिली है। एक तरफ हिंदुत्व ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरी दुनिया को तू वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश दिया। पूरी दुनिया ने विश्व शांति के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को न सिर्फ महसूस किया बल्कि हिंदुत्व द्वारा किए गये अतिथि सत्कार से अभिभूत भी दिखी। हिंदुत्व सदियों से सह अस्तित्व की भावना का पालन करता आ रहा है और आगे भी करता रहेगा इस बात से पूरी दुनिया जी २० की बैठक के दौरान आश्वस्त दिखी।
मित्रों, दूसरी तरफ मुसलमानों ने अभी- अभी इस्राएल पर जिस तरह हमला किया है उसे देखकर पूरी मानवता का सिर शर्म से झुक गया है। अल्ला हू अकबर के नारों के साथ महिलाओं के नग्न शवों की परेड निकाली गई, ५ साल के बच्चे का सिर काट कर उसे हाथ में लेकर नृत्य किया गया, सैंकड़ों यहूदियों का अपहरण कर लिया गया, महिलाओं के साथ बर्बरता पूर्वक सामूहिक बलात्कार किए गये और वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वे काफिर थे, गैर-मुसलमान थे।
मित्रों, हिंदुत्व तो सैंकड़ों सालों से इस्लाम का यह रूप देखता आ रहा है। सिंध पर अरबों के ७१० ई के आक्रमण के समय से ही भारत में करोड़ों निर्दोष हिंदुओं को मुसलमानों ने मारा, लाखों हिंदू महिलाओं को बंदी बनाया और १-२ दीनार में मध्य पूर्व में ले जाकर बेच दिया। दुनिया को यह समझना होगा कि इस्लाम धर्म नहीं अधर्म है, मानवता के नाम पर एक कलंक है, मानवता का दुश्मन है। दुनिया को यह समझना होगा कि सारे फ़साद और सारी जिहादी क्रूरता की जड़ कुरान की उन २६ आयतो़ में है जिनको पुस्तक से हटाने के लिए रिजवी साहब ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
मित्रों, अब जबकि यहूदियों ने बदले की कार्रवाई शुरू की है पूरी दुनिया के मुसलमान खुद को पीड़ित बताकर शांतिपाठ शुरू करनेवाले हैं। वो चाहते हैं कि सिर्फ गोधरा ट्रेन कांड हो उसकी प्रतिक्रिया नहीं हो, वो चाहते हैं सिर्फ हमास हिंसा करे यहूदी प्रतिहिंसा न करें। इसलिए सावधान रहें, सचेत रहें, सतर्क रहें। मुसलमानों से सावधान क्योंकि उनके पास है कुरान और वे कभी भी भारत को भी बना सकते हैं श्मशान।
शुक्रवार, 8 सितंबर 2023
विश्वगुरु बनता भारत
मित्रों, अगर हम कहें कि इनदिनों भारतवासियों के कदम जमीन पर नहीं चाँद-सूरज पर हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. जहाँ भारत के कदम चाँद और सूरज पर हैं वहीँ पूरी दुनिया सिमट कर भारत के दिल दिल्ली में आ गई है. सारी-की-सारी रेटिंग एजेंसियों में जैसे भारत की रेटिंग बढ़ाने की होड़-सी लगी हुई है.
मित्रों, वर्षा ऋतु में वसंत के आगमन से जहाँ भारतमाता के भक्तों में उल्लास और होली-दिवाली का माहौल है वहीँ भारत के आतंरिक और बाह्य शत्रुओं के चेहरे लौकी की माफिक लटक-से गए हैं. आपको याद होगा जब १९९९ समाप्त हो रहा था और दुनिया और भारत नई सहस्राब्दी में प्रवेश कर रहे थे तब कंधार विमान अपहरण के कारण हम सभी भारतवासियों में उदासी छाई हुई थी. तब किसी ने भी नहीं सोंचा था कि मात्र २३ साल बाद ऐसी स्थिति भी आएगी कि उधर चीन-पाकिस्तान जैसे भारत के चिर-शत्रुओं का सूर्य अस्त हो रहा होगा और ईधर भारत के भाग्य का सूरज पूर्व दिशा में क्षितिज पर दस्तक दे रहा होगा.
मित्रों, किसी भी देश या समाज के जीवन में नेतृत्व का अपना अलग महत्व होता है वर्ना फ़्रांस में सिर्फ नेपोलियन ही तो राजा नहीं बना था. जहाँ भारत का पिछला नेतृत्व एक परिवार का गुलाम था, जहाँ उसको भारतवासियों की ख़ुशी, भारत के गौरव से कोई मतलब ही नहीं था, जहाँ वह थका-मांदा था, जहाँ उसके कंधे झुके हुए रहते थे, जहाँ वो वैश्विक मंचों पर कोनों की तलाश करता था वहीँ भारत का नया नेतृत्व नित-नई ऊर्जा से आप्लावित है, इस नए नेतृत्व के पास न केवल अपने देश के लिए योजनाएं हैं बल्कि वह पूरी दुनिया को किसी भी संकट से उबार लेने का माद्दा भी रखता है. न तो नेपोलियन के शब्दकोश में असंभव शब्द था और न ही नरेन्द्र मोदी के शब्दकोश में इस दुनिया के सबसे फालतू शब्द के लिए कोई स्थान है.
मित्रों, जहाँ एक तरफ उस भारत का भाग्योदय हो रहा है जो एक हजार साल तक गुलाम रहा तो वहीँ दूसरी ओर भारत के उन घृणित लोगों के छिपे हुए उद्देश्य सामने आने लगे हैं जो सदा सनातन भारतीय धर्म और संस्कृति से बेवजह सख्त घृणा करते हैं. वो भूल गए हैं कि आज से पांच सौ साल पहले फ्रांस के प्रसिद्ध भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस ने भविष्यवाणी कर दी थी कि २१वीं सदी में जिस देश और धर्म का नाम एक महासागर के नाम पर होगा वो विश्व और मानवता का नेतृत्व करेगा. वो तो वाजपेयी और मोदी के बीच भारत के विघ्नसंतोषियों के हाथों में सत्ता चली गई थी वर्ना कई साल पहले भारत वैश्विक और आर्थिक महाशक्ति बन जाता. तो आईए जी२० के शिखर-सम्मलेन की पूर्व-संध्या पर दोनों मुट्ठियों को भींचकर पूरी ताकत के नारा लगाएं-
जय भारत, जय जगत.
सोमवार, 7 अगस्त 2023
मणिपुर के बाद मेवात से भाग मिल्खा भाग
मित्रों, अपना भारत भी गजब देश है. दुनिया में ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है जहाँ बहुसंख्यक हाशिए पर हों और अल्पसंख्यक इस कदर हावी हों कि बहुसंख्यकों के लिए अपने धार्मिक क्रिया-कलाप का पालन करना जानलेवा हो जाए. मानो हिन्दू न हुए बकरे हो गए जब जी चाहे दस-बीस के गले रेत डालो. मानो हिन्दू न हुए पंछी हो गए जब जी चाहे बन्दूक उठाओ और दस-बीस को मारकर गिरा दो. कभी बंगाल में कांवरियों को डरे-सहमे समुदाय द्वारा पीटा जाता है तो कभी मणिपुर में घुसपैठियों द्वारा उनका सामूहिक नरसंहार कर दिया जाता है तो कभी हरियाणा के मेवात में तीन तरफ से पहाड़ पर से घेरकर मंदिर गए हिन्दू श्रद्धालुओं पर गोलीबारी कर दी जाती है और न जाने हत्याकांड को सही ठहराने के लिए क्या-क्या बहाने बनाए जाते हैं. जैसे, उन्होंने जय श्रीराम के नारे क्यों लगाए? उनको यात्रा निकालने के लिए यही इलाका मिला था? उन्होंने हमारी बहन को गाली क्यों दी? उन्होंने एक मुसलमान की गाड़ी में धक्का क्यों मारा? उन्होंने बदतमीजी की आदि-आदि.
हाय, कितने मासूम हैं वो कि बहाने बनाना भी नहीं आता,
छिपाना चाहते हैं अपनी गंदी फितरत को छिपाना भी नहीं आता।
मित्रों, हमने बचपन में अपनी पाठ्य-पुस्तक में एक कहानी पढी थी जो आज बड़ी शिद्दत से याद आ रही है. किसी जंगल में एक मेमना एक झरने से पानी पीने गया तभी उसने देखा कि एक भेड़िया भी उससे ऊपर झरने का पानी पी रहा है. बेचारा मेमना चुपचाप पानी पी रहा था कि तभी भेड़िया चिल्लाया कि तू मेरे पानी को जूठा कर रहे हो. सुनकर मेमना हैरान हो गया कि जबकि भेड़िया ऊपर पानी पी रहा है तो वो कैसे उसके पानी को जूठा कर सकता है. जब उसने भेड़िये को समझाने की कोशिश की तो भेड़िए ने आरोप बदल दिया और कहने लगा कि तेरे बाप ने मुझे बहुत दिन पहले गाली दी थी और फिर भेड़िया मेमने को खा गया. मित्रों, कहने का तात्पर्य यह है कि भेड़िये को तो बस मेमने को मारकर खा जाने का बहाना चाहिए भले ही वो झूठा हो या फिर भले ही उसमें दम नहीं हो. मणिपुर में घुसपैठिए ईसाईयों को और मेवात में रोहिंग्या सहित सभी मुसलमानों को बस हिन्दुओं को मारना था, सबक सिखाना था, डराना था कि तुम जब तक हिन्दू रहोगे तुमको हम चैन से जीने नहीं देंगे. उनको हमसे समस्या और कुछ नहीं है बस इतनी-सी है कि हम हिन्दू क्यों हैं, ईसाई या मुसलमान क्यों नहीं हो जाते. २०२० के दिल्ली दंगों के बारे में कोर्ट भी कह चुका है कि मुसलमान हिन्दुओं को सबक सिखाना चाहते थे.
मित्रों, आपने देखा होगा कि बलि या क़ुरबानी हमेशा मेमनों की दी जाती है शेर-बाघों की नहीं. फैसला अब हम हिन्दुओं को करना है कि हम मेमने बनकर रहेंगे या शेर बनकर. जो व्यक्ति अपने तन की भी रक्षा नहीं कर सकता वो देश-धर्म की रक्षा क्या करेगा. मिल्खा सिंह की तरह भागोगे तो बस भागते ही रहोगे, पाकिस्तान से भागकर भारत आ गए अब भारत से भागकर कहाँ जाओगे? कोई दूसरा हिन्दू देश तो है नहीं इस भूमंडल पर? इसलिए अपनी रक्षा करना सीखो, घमंड छोड़ो और पूरे हिन्दू समाज के बारे में सोंचो, सबको साथ लेकर चलना सीखो.
शनिवार, 22 जुलाई 2023
जलते मणिपुर के गुनाहगार
मित्रों, आज मणिपुर में गृहयुद्ध की स्थिति है. प्रदेश की ९० प्रतिशत जमीन पर काबिज ईसाई मणिपुर से हिन्दू मैतेई लोगों को खदेड़ देना चाहते हैं. जब तक ईसाई मार रहे थे और हिन्दू मर रहे थे तब तक तो सोनिया गाँधी जो ईटली से आई हुई कैथोलिक ईसाई है चुप रही लेकिन जैसे ही हिन्दुओं ने पलटवार शुरू किया उसके पेट में मरोड़ शुरू हो गया. न सिर्फ मणिपुर से हिन्दुओं को खदेड़ने की साजिश है बल्कि मिजोरम से भी मिजो ईसाई हिन्दुओं को भगा देने की धमकी दे रहे हैं. ऐसे में हिन्दुबहुल भारत में हिन्दू जाए तो कहाँ जाए? कोई दूसरा हिन्दू देश तो है नहीं.
मित्रों, लगभग पूरे पूर्वोत्तर भारत में आजादी के बाद से जैसे-जैसे ईसाईयों की संख्या बढती गई अलगाववाद भी बढ़ता गया. स्वामी विवेकानन्द के इस कथन को हम पूर्वोत्तर में सत्य होता हुआ देख सकते हैं कि भारत में सिर्फ धर्मान्तरण नहीं हो रहा राष्ट्रान्तरण हो रहा है. फिर कांग्रेस की डबल ईंजन की सरकारों की अल्पसंख्यकवादी नीति ने स्थिति को और भी भयावह बना दिया. फिर भी १९७१ तक पूर्वोत्तर की स्थिति कमोबेश नियंत्रण में थी.
मित्रों, क्या आप बता सकते हैं कि १९७१ के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम उर्फ़ भारत-पाकिस्तान युद्ध से भारत को क्या लाभ हुए? आप नहीं बता सकते क्योंकि भारत को इस खामखा के युद्ध से कोई लाभ नहीं हुआ उलटे हानि हुई और वो भी जबरदस्त. सर्वप्रथम भारत की अर्थव्यवस्था पर युद्ध के खर्च का भारी बोझ पड़ा लेकिन इसके बदले भारत को एक ईंच भी जमीन नहीं मिली वह भी तब जबकि भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तान के ९३ हजार सैनिकों को बंदी बना लिया था. परिणाम भयंकर और अभूतपूर्व महंगाई. पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत में १९७१ के बाद पहले शरणार्थियों की समस्या उत्पन्न हुई फिर वामपंथियों और कांग्रेस पार्टी की कृपा से पूरा पूर्वोत्तर और पूर्वी भारत घुसपैठियों से भर गया. अब तो दिल्ली, मुंबई और कश्मीर तक आपको घुसपैठिए नजर आ जाएंगे. सन १९७० तक मणिपुर में जहाँ 2-4 प्रतिशत कुकी ईसाई घुसपैठिए थे आज घुसपैठ और धर्मान्तरण के गंदे कांग्रेसी खेल के चलते मणिपुर में कुकी ईसाईयों की संख्या २१ प्रतिशत हो चुकी है. इतना ही नहीं कांग्रेस की हिंदुविरोधी नीतियों के कारण जहाँ हिन्दू मैतेई ईसाई बहुल पहाड़ी स्थानों में जमीन नहीं खरीद सकते वहीँ ईसाई हिन्दू बहुत घाटियों में आराम से जमीन खरीद सकते हैं. साथ ही कांग्रेस पार्टी ने ईसाई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर आरक्षण और अन्य लाभ दे दिए जो अनुसूचित जातियों और जनजातियों को दिए जाते हैं वो वहीँ हिन्दू मैतेई अपने ही हिन्दूबहुल देश में मुंहतका बनकर रह गए.
मित्रों, फिर मणिपुर और केंद्र दोनों में भाजपा की सरकार बनी और निर्णय लिया गया कि मणिपुर के मैतेई हिन्दुओं के साथ पिछले ५० सालों से होनेवाले अन्याय और गैर बराबरी को दूर किया जाए और उनको भी उच्च न्यायालय के आदेशानुसार अनुसूचित जनजाति का दर्जा दे दिया जाए जिससे मैतेई हिन्दू भी आरक्षण का लाभ उठा सकें और ईसाई बहुल क्षेत्रों में जमीन भी खरीद सकें. लेकिन अब तक मणिपुर के ईसाई चीन और कांग्रेस परी की मदद से इतने शक्तिशाली हो चुके थे कि जब चाहे तब भारतीय सेना का मार्ग रोकने लगे थे. मणिपुर के ईसाई बहुल ईलाकों की तुलना हम अफगानिस्तान के तालिबानी क्षेत्रों से कर सकते हैं क्योंकि यहाँ भी अत्याधुनिक हथियारों से युक्त सेना बन चुकी है साथ ही तालिबानी क्षेत्रों की तरह गांजे और अफीम की खेती भी जमकर होती है. जैसे ही सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेशानुसार मैतेई हिन्दुओं को आरक्षण देने की घोषणा की गई ईसाईयों ने मैतेई हिन्दुओं के साथ-साथ भारतीय सेना और सुरक्षा बलों पर हमले शुरू कर दिए और हिंसा की आग में पिछले ५० सालों से जल रहे मणिपुर में हिंसा की आग और भी तेजी से भड़क उठी जिसे हिन्दू विरोधी कांग्रेस ने और भी भड़काया, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से तो उसका समझौता है ही.
मित्रों, इस बीच केंद्र सरकार ने मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में उग्रवादियों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया आखिर कब तक भारतविरोधी शक्तियों को पाला जाए और बर्दाश्त किया जाए. बस तभी से कांग्रेस पार्टी के पेट में दर्द शुरू है वो देश-विदेश में भारत को बदनाम करने के अभियान में जुटी हुई है. एक पूरा-का-पूरा टूल किट गैंग सक्रिय है जिसमें न्यायपालिका तक शामिल है अन्यथा बंगाल में चुनाव के दौरान हुई हिंसा, हत्याएं, बलात्कार और महिलाओं को नंगा करके घुमाने की घटनाएँ न्यायपालिका को नजर नहीं आती लेकिन मणिपुर की नजर आ जाती है. राजस्थान की कांग्रेस सरकार का मंत्री सदन में खड़े होकर ख़ुद कह रहा है कि उनकी सरकार प्रदेश की महिलाओं की सुरक्षा करने में असफल हो गई है। उन्होंने यहाँ तक कह दिया, ‘मणिपुर के बजाय हमें अपने गिरेबान में झांकना चाहिए।’ लेकिन मी लार्ड को फिर भी राजस्थान में कोई अत्याचार नजर नहीं आता. मैं यह नहीं कहता कि मणिपुर में दो कुकी महिलाओं के साथ जो कुछ भी हुआ वो सही था लेकिन जब न्यायपालिका कांग्रेस और भाजपा शासित राज्यों के बीच भेदभाव करने लगेगी तो उस पर सवाल तो उठेंगे ही क्योंकि लोक से बड़ा न तो संविधान है और न ही तंत्र. कितनी विचित्र बात है कि केंद्र में ९ सालों से भाजपा की सरकार है लेकिन सिस्टम और न्यायपालिका पर आज भी कांग्रेस का कब्ज़ा है और जब तक न्यायपालिका में कोलेजियम सिस्टम रहेगा उनका कब्ज़ा बना रहेगा. मोदी सरकार ने प्रारंभ में कोलेजियम को समाप्त करने की कोशिश भी की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा होने नहीं दिया. अब मोदी सरकार ने भी मानों हार मान ली है जिस तरह से किरण रिजीजू को कानून मंत्री के पद से हटाया गया उससे तो ऐसा ही लगता है.
मित्रों, अब तक आपको भी कांग्रेस के टूल किट गैंग और मणिपुर पर हंगामे की क्रोनोलॉजी समझ में आ गई होगी इसलिए भावनाओं में आकर बहिए नहीं क्योंकि उनको भी पता है कि हिन्दू भोले और दयालु होते हैं और वे अबतक इसका फायदा भी उठाते रहे हैं. इसी तरह कांग्रेस ने २००४ में भी आपको कथित ताबूत घोटाले के नाम पर भड़काया था और वाजपेयी जैसे ईमानदार चुनाव हार गए थे. फिर भारत की अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार सत्ता में आई थी और देश को कई साल पीछे धकेल दिया था. इस समय भी कांग्रेस उसी खेल को दोहरा रही है. भारत की अर्थव्यवस्था और विदेश नीति इस समय पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण बनी हुई है. भारत बहुत जल्द जर्मनी और जापान को पछाड़ कर वैश्विक अर्थव्यवस्था में नंबर तीन पर काबिज होने जा रहा है और यह हम नहीं विश्व बैंक और तमाम रेटिंग एजेंसियां कह रही हैं. लगता है जैसे हम जागती आँखों से सपने देख रहे हैं. और उधर इसी बात से दिन-रात चीन के गुणगान करनेवाली कांग्रेस पार्टी की नींद उडी हुई है. तो हमें सावधान और सचेत रहना है अन्यथा चोरों का गिरोह जिसने आपको चकमा देने के लिए इंडिया नाम से गठबंधन बनाया है भारत के विश्वगुरु बनने के सपने को एक बार फिर से चकनाचूर करने के लिए तैयार बैठा है.
पुनश्च- मणिपुर में बसी एक विदेशी मूल की जाति कुकी है, जो मात्र डेढ़ सौ वर्ष पहले पहाड़ों में आ कर बसी थी। ये मूलतः मंगोल नस्ल के लोग हैं। जब अंग्रेजों ने चीन में अफीम की खेती को बढ़ावा दिया तो उसके कुछ दशक बाद अंग्रेजों ने ही इन मंगोलों को बर्मा के पहाड़ी इलाके से ला कर मणिपुर में अफीम की खेती में लगाया। आपको आश्चर्य होगा कि तमाम कानूनों को धत्ता बता कर ये अब भी अफीम की खेती करते हैं और कानून इनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। इनके व्यवहार में अब भी वही मंगोली क्रूरता है, और व्यवस्था के प्रति प्रतिरोध का भाव है। मतलब नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे।
अधिकांश कुकी यहाँ अंग्रेजों द्वारा बसाए गए हैं, पर कुछ उसके पहले ही रहते थे। उन्हें बर्मा से बुला कर मैतेई राजाओं ने बसाया था। क्यों? क्योंकि तब ये सस्ते सैनिक हुआ करते थे। सस्ते मजदूर के चक्कर में अपना नाश कर लेना कोई नई बीमारी नहीं है। आप भी ढूंढते हैं न सस्ते मजदूर? खैर...
आप मणिपुर के लोकल न्यूज को पढ़ने का प्रयास करेंगे तो पाएंगे कि कुकी अब भी अवैध तरीके से बर्मा से आ कर मणिपुर के सीमावर्ती जिलों में बस रहे हैं। सरकार इस घुसपैठ को रोकने का प्रयास कर रही है, पर पूर्णतः सफल नहीं है।
आजादी के बाद जब उत्तर पूर्व में मिशनरियों को खुली छूट मिली तो उन्होंने इनका धर्म परिवर्तन कराया और अब लगभग सारे कुकी ईसाई हैं। और यही कारण है कि इनके मुद्दे पर एशिया-यूरोप सब एक सुर में बोलने लगते हैं।
इन लोगों का एक विशेष गुण है। नहीं मानेंगे, तो नहीं मानेंगे। क्या सरकार, क्या सुप्रीम कोर्ट? अपुनिच सरकार है! "पुष्पा राज, झुकेगा नहीं साला"
सरकार कहती है, अफीम की खेती अवैध है। ये कहते हैं, "तो क्या हुआ? हम करेंगे।" कोर्ट ने कहा, "मैतेई भी अनुसूचित जाति के लोग हैं।" ये कहते हैं, "कोर्ट कौन? हम कहते हैं कि वे अनुसूचित नहीं हैं, मतलब नहीं हैं। हमीं कोर्ट हैं।
मैती, मैतेई या मैतई... ये मणिपुर के मूल निवासी हैं। सदैव वनवासियों की तरह प्राकृतिक वैष्णव जीवन जीने वाले लोग। पुराने दिनों में सत्ता इनकी थी, इन्हीं में से राजा हुआ करते थे। अब राज्य नहीं है, जमीन भी नहीं है। मणिपुर की जनसंख्या में ये आधे से अधिक हैं, पर भूमि इनके पास दस प्रतिशत के आसपास है। उधर कुकीयों की जनसंख्या 20% है, पर जमीन 90% है।
90% जमीन पर कब्जा रखने वाले कुकीयों की मांग है कि 10% जमीन वाले मैतेई लोगों को जनजाति का दर्जा न दिया जाय। वे लोग विकसित हैं, सम्पन्न हैं। यदि उनको यदि अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया तो हमारा विकास नहीं होगा। हमलोग शोषित हैं, कुपोषित हैं... कितनी अच्छी बात है न?
अब मैतेई भाई बहनों की दशा देखिये। जनसंख्या इनकी अधिक है, विधायक इनके अधिक हैं, सरकार इनके समर्थन की है। पर कोर्ट से आदेश मिलने के बाद भी ये अपना हक नहीं ले पा रहे हैं। क्यों? इसका उत्तर समझना बहुत कठिन नहीं है।
गुरुवार, 29 जून 2023
भारत में क्यों जरुरी है समान नागरिक संहिता?
मित्रों, जब १९४७ में भारत को रक्तरंजित बंटवारे के बाद आजादी मिली तो भारत में दुर्भाग्यवश एक ऐसे व्यक्ति को जबरन प्रधानमंत्री बना दिया गया जो बस नाम का हिन्दू था और स्वयं कहता था कि By education I am an Englishman, by views an internationalist, by culture a Muslim and a Hindu only by accident of birth. उस व्यक्ति को मुस्लिम बहुल ईलाके में हिन्दुओं और सिखों के हो रहे नरसंहार की कोई चिंता नहीं थी बल्कि उसे हिन्दुबहुल ईलाके में रह रहे मुसलमानों की चिंता खाए जा रही थी. वह हिन्दू नामधारी मुसलमान जब अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर जाता तो अपनी बेटी के साथ बड़े ही चाव से गोमांस का भक्षण करता.
मित्रों, जब ऐसा व्यक्ति प्रधानमंत्री हो तो हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वो हिन्दुओं के भले के बारे में सोंचेगा भी यही कारण है कि भारत के संविधान में बहुसंख्यकों की कोई चर्चा ही नहीं है जब अल्पसंख्यकों और उनके अधिकारों का बार-बार जिक्र है. यही कारण है कि धर्माधारित बंटवारे के बावजूद भारत में बड़ी संख्या में मुसलमान रह गए जो आज जनसँख्या जिहाद, जमीन जिहाद, लव जिहाद आदि जिहादों के माध्यम से देश की एकता-अखंडता और शांति-सद्भाव के लिए समस्या बन गए हैं. वह नेहरु ही थे जिनके चलते भारत में समान नागरिक संहिता लागू नहीं हो पाई जबकि तब ऐसा कर पाना आज की तुलना में काफी आसान था.
मित्रों, समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड का मतलब है कि हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम. दूसरे शब्दों में कहें तो समान नागरिक संहिता का मतलब है कि पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक ही होंगे. संविधान के अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है. अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है. इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है. बता दें कि भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है.
मित्रों, पिछले सालों में खुद भारत का सर्वोच्च न्यायालय कई बार भारत में समान नागरिक संहिता की जरुरत बता चुका है. ट्रिपल तलाक से जुड़े 1985 के चर्चित शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 44 एक ‘मृत पत्र’ जैसा हो गया है. साथ ही कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करने की जरुरत पर जोर दिया था. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि समान नागरिक संहिता विरोधी विचारधाराओं वाले कानून के प्रति असमान वफादारी को हटाकर राष्ट्रीय एकीकरण में मदद करेगी. इसी तरह बहुविवाह से जुड़े सरला मुद्गल बनाम भारत संघ मामले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि पं. जवाहर लाल नेहरू ने 1954 में संसद में समान नागरिक संहिता के बजाय हिंदू कोड बिल पेश किया था. इस दौरान उन्होंने बचाव करते हुए कहा था कि यूसीसी को आगे बढ़ाने की कोशिश करने का यह सही समय नहीं है.
मित्रों, गोवा के लोगों से जुड़े 2019 के उत्तराधिकार मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की चर्चा करने वाले भाग चार के अनुच्छेद-44 में संविधान के संस्थापकों ने अपेक्षा की थी कि राज्य भारत के सभी क्षेत्रों में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश करेगा. लेकिन, आज तक इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया.
मित्रों, समान नागरिक संहिता के मामले में गोवा अपवाद है. गोवा में यूसीसी पहले से ही लागू है. बता दें कि संविधान में गोवा को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है. वहीं, गोवा को पुर्तगाली सिविल कोड लागू करने का अधिकार भी मिला हुआ है. राज्य में सभी धर्म और जातियों के लिए फैमिली लॉ लागू है. इसके मुताबिक, सभी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग से जुड़े लोगों के लिए शादी, तलाक, उत्तराधिकार के कानून समान हैं. गोवा में कोई भी ट्रिपल तलाक नहीं दे सकता है. रजिस्ट्रेशन कराए बिना शादी कानूनी तौर पर मान्य नहीं होगी. संपत्ति पर पति-पत्नी का समान अधिकार है. जहां मुस्लिमों को गोवा में चार शादी का अधिकार नहीं है. वहीं, हिंदुओं को दो शादी करने की छूट है.
मित्रों, दुनिया के कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू है. इनमें हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल हैं. इन दोनों देशों में सभी धर्म और संप्रदाय के लोगों पर शरिया पर आधारित एक समान कानून लागू होता है. इनके अलावा इजरायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है. हालांकि, कुछ मामलों के लिए समान दीवानी या आपराधिक कानून भी लागू हैं. यूरोपीय देशों और अमेरिका में धर्मनिरपेक्ष कानून है, जो सभी धर्म के लोगों पर समान रूप से लागू होता है. दुनिया के ज्यादातर इस्लामिक देशों में शरिया पर आधारित एक समान कानून है, जो वहां रहने वाले सभी धर्म के लोगों को समान रूप से लागू होता है.
मित्रों, भारत में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होता है तो लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ा दी जाएगी. इससे वे कम से कम ग्रेजुएट तक की पढ़ाई पूरी कर सकेंगी. वहीं, गांव स्तर तक शादी के पंजीकरण की सुविधा पहुंचाई जाएगी. अगर किसी की शादी पंजीकृत नहीं होगी तो दंपति को सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा. पति और पत्नी को तलाक के समान अधिकार मिलेंगे. एक से ज्यादा शादी करने पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी. नौकरीपेशा बेटे की मौत होने पर पत्नी को मिले मुआवजे में माता-पिता के भरण पोषण की जिम्मेदारी भी शामिल होगी. उत्तराधिकार में बेटा और बेटी को बराबर का हक होगा. पत्नी की मौत के बाद उसके अकेले माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी पति की होगी. वहीं, मुस्लिम महिलाओं को बच्चे गोद लेने का अधिकार मिल जाएगा. उन्हें हलाला और इद्दत से पूरी तरह से छुटकारा मिल जाएगा. लिव-इन रिलेशन में रहने वाले सभी लोगों को डिक्लेरेशन देना पड़ेगा. पति और पत्नी में अनबन होने पर उनके बच्चे की कस्टडी दादा-दादी या नाना-नानी में से किसी को दी जाएगी. बच्चे के अनाथ होने पर अभिभावक बनने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी.
मित्रों, भाजपा की विचारधारा से जुड़े राम मंदिर और अनुच्छेद 370 की राह में कई कानूनी अड़चनें थी, मगर समान नागरिक संहिता मामले में ऐसा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट से लेकर कई राज्यों के हाईकोर्ट ने कई बार इसकी जरूरत बताई है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी। इस संदर्भ में केंद्र सरकार ने भी शीर्ष अदालत में कहा था कि वह समान कानून के पक्ष में है।
मित्रों, ये तो हुई समान नागरिक संहिता का कानूनी पक्ष मगर सच्चाई तो यह है कि अगर भविष्य में भारत को विभाजित होने से बचाना है तो यही समय है जब देश में समान नागरिक संहिता लागू कर देना चाहिए और अविलंब कर देना चाहिए. कोई बच्चा भी बता देगा कि भारत का अगर फिर से विभाजन होता है तो फिर से मुसलमानों के कारण ही होगा. समान नागरिक संहिता के आने से वक्फ बोर्ड कानून जो जमीन जिहाद को बढ़ावा देता है तो समाप्त होगा ही जनसँख्या जिहाद और लव जिहाद पर भी रोक लगेगी साथ ही मस्जिदों और चर्चों की तरह हिन्दुओं के मंदिर भी सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो जाएँगे.
रविवार, 7 मई 2023
अरविन्द केजरीवाल की नई राजनीति
मित्रों, क्या आपको साल २०१२-१३ याद है? तब अन्ना के नेतृत्व में दिल्ली में भ्रष्टाचारविरोधी आन्दोलन चल रहा था. पूरा देश रोमांचित था कि आन्दोलन रुपी यज्ञ से भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने का सूत्र निकलेगा. फिर बड़ी ही चालाकी से अन्ना को किनारे करके अरविन्द केजरीवाल नामक बड़बोले ने आन्दोलन का नेतृत्व अपने हाथों में ले लिया. बड़े-बड़े वादे किए गए. लगा जैसे सादगी और ईमानदारी का मसीहा आ गया है. नई तरह की राजनीति के सब्जबाग दिखाए गए. उन दिनों उनके हाथों में दिल्ली की शीला दीक्षित की नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ कई सौ पृष्ठों का आरोपपत्र होता था. ७ जून, २०१३ को अरविन्द केजरीवाल ने एक शपथ-पत्र जारी किया जिसके अनुसार वो मुख्यमंत्री बनने के बाद न तो सरकारी गाड़ी का प्रयोग करनेवाले थे, न ही सरकारी सुरक्षा लेनेवाले थे और न ही बड़े निवास में रहनेवाले थे.
मित्रों, धीरे-धीरे समय बीता. २०२० में केजरीवाल की पार्टी द्वारा प्रायोजित दिल्ली के हिन्दू-विरोधी दंगों ने दिल्ली की धरती को हिन्दुओं के खून से लाल कर दिया. शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ मुकदमा करना और चलाना तो दूर की बात रही राजनीति के कीचड़ के कथित अरविन्द यानि कमल ने अपनी पहली सरकार ही कांग्रेस के समर्थन से बनाई. धीरे-धीरे कालनेमि सरकार के कारनामे भी सामने आने लगे. फिर पहले तो सरकार का जेल मंत्री जेल में रहकर जेलों को सँभालने लगा बाद में उपमुख्यमंत्री जो वास्तव में मुख्यमंत्री थे भी तिहाड़ की शोभा बढाने लगे. अरविन्द केजरीवाल इतना शातिर था कि उसने सरकार में कोई विभाग नहीं लिया क्योंकि उसे घोटालों का पैसा तो चाहिए था जेल नहीं चाहिए था. लगा जैसे दिल्ली में एक बार फिर से रोबर्ट क्लाइव वाला द्वैध शासन आ गया है, जिम्मेदारी तुम्हारी मलाई हमारी. यूं तो स्वघोषित अराजकतावादी केजरीवाल ने बार-बार दिल्ली में अराजकता की स्थिति पैदा कर केंद्र की मोदी सरकार को परेशान किया लेकिन गनीमत यह थी कि अभी तक उसके हाथों में पुलिस नहीं थी.
मित्रों, जैसे ही केजरीवाल ने पंजाब का चुनाव जीता उसकी यह ईच्छा भी पूरी हो गई. फिर तो पंजाब पुलिस दिल्ली में केजरीवाल के विरोधियों को पकड़ने दिल्ली पहुँचने लगी. अब जबकि उसके आम आदमीपन की पोल पट्टी उसके ४५ करोड़ के शीश महल की सच्चाई सामने आने के बाद पूरी तरह से खुल चुकी है दिल्ली प्रदेश का कथित प्रधानमंत्री केजरीवाल गुस्से से पागल हो गया है. वो कहते हैं न खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे तो दिन-रात लालू परिवार जैसे महाभ्रष्टों के साथ प्यार की पींगे पढनेवाले कथित महा ईमानदार केजरीवाल ने निरीह पत्रकारों को जेल भेजना शुरू कर दिया है वो भी झूठे मुकदमे में फंसाकर. ऐसा ही करके इन दिनों बिहार में भी लालू जी के बेटे लोकतंत्र की रक्षा कर रहे हैं. खिलाफ में रिपोर्टिंग कईले तो गेले बेटा.
मित्रों, कुल मिलाकर जिस तरह से केजरीवाल की कलई खुली है, नीला रंग उतरा है, उसके बाद सच मानिए तो बिहार और भारत की जनता किसी भी नए नेता का साथ देने में सौ बार सोंचेगी फिर चाहे वो प्रशांत किशोर ही क्यों न हों. खुद को अरविन्द यानि कमल बतानेवाला और झाड़ू हाथ में लेकर भारतीय राजनीति की गंदगी साफ़ करने का वादा करनेवाला आज भारतीय राजनीति की सबसे बड़ी गंदगी बन गया है. का-का, छी-छी, केजरीवाल छी-छी.
सोमवार, 17 अप्रैल 2023
अतीक के आतंक का अंत
मित्रों, यह धर्म और अधर्म के बीच का संघर्ष कोई आज का नहीं है बल्कि हमेशा से है. कहते हैं कि सतयुग में भगवान स्वयं आकर धर्म की जीत सुनिश्चित करते थे फिर त्रेता में उन्होंने रामावतार लिया और अपने अवतार के हाथों से धर्म की संस्थापना की. इसके बाद द्वापर में भगवान ने महाभारत में भाग नहीं लिया बल्कि सारथी बनकर धर्म की जीत को सुनिश्चित किया. अब जबकि कलियुग है भगवान ने सारथी बनना भी छोड़ दिया है और कर्मफल के आधार पर आतातियों का अंत करते हैं. मतलब कर्म प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा.
मित्रों, हमारा तो यही मानना है अब कोई कथित आसमानी किताब चाहे कुछ भी कहती हो. अब परसों रात में मारे गए अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को ही ले लीजिए जिनका आतंक इतना ज्यादा था कि जज तक उसके डर से थर-थर कांपते थे. और उस आधुनिक युग के रावण को तीन छोटे-छोटे बच्चों ने मार डाला. कहते हैं कि चाहे कितना भी बड़ा गुंडा या राक्षस क्यों न हो सबका एक-न-एक दिन अंत निश्चित है. जिस तरह अतीक ने सैकड़ों लाशों की सीढी बनाकर फर्श से अर्श तक का सफ़र तय किया था वैसे ही उससे भी बड़ा डॉन बनने की महत्वाकांक्षा रखनेवाले तीन युवाओं ने उसे मौत के घाट उतार दिया. एक बार फिर से कर्मफल का सिद्धांत सत्य साबित हुआ.
मित्रों, अब चाहे वह लोग कितनी भी छाती पीटें जो अतीक की मदद से चुनाव जीतते थे अतीक तो जिन्दा होने से रहा. इस हत्याकांड में पुलिस प्रशासन की क्या भूमिका थी या कोई भूमिका थी ही नहीं लेकिन यह पुलिस-प्रशासन की चूक तो है ही और अतीक और अशरफ की सुरक्षा में लगे कर्मियों और पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई भी हो रही है.
मित्रों, अंत में समस्त भूमंडलवासियों से यह कहना चाहूंगा कि सत्कर्म पर चलिए और किसी कमजोर पर जुल्म मत ढाहिए. हो सकता है कि आप इंसानों की अदालत से बच जाएं लेकिन भगवान की अदालत जो सबसे बड़ी अदालत है से नहीं बच पाएंगे और उसकी लाठी बेआवाज होती है.
बुधवार, 12 अप्रैल 2023
मनीष कश्यप, नीतीश कुमार और रामनवमी का त्योहार
मित्रों, कई साल पहले मैंने किसी कवि की एक रचना पढ़ी थी जिसका भाव कुछ इस प्रकार था-
भारत में प्रत्येक मतदान के समय
हम बकरियां यानि जनता अपने लिए सुयोग्य कसाई का चुनाव करते हैं.
हर चुनाव के बाद जनता को लगता है कि इस बार भी उसे ठगा गया है.
जिनको समझा था शरीफ जालिम निकले,
इंसाफ के खूनी ही मुंसिफ और हाकिम निकले;
जिन्होंने वादा किया था इंसाफ दिलाने का,
वक्त आया तो वही चोर और कातिल निकले.
मित्रों, यकीं नहीं होता कि बिहार को पिछले 33 सालों से बर्बाद और तबाह करनेवाले लोग बिहार आंदोलन की उपज हैं. उस बिहार आंदोलन की जो भारत में लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर चलाया गया था. जिन नेताओं ने अपने बच्चों के नाम तक कुख्यात मीसा कानून के नाम पर रखे थे क्या विडंबना है कि आज उनके बच्चे अपनी और अपनी सरकार की आलोचना में एक शब्द भी सुनने को तैयार नहीं हैं. आप ही बताईए आखिर मनीष कश्यप का कसूर क्या था? यही न कि उसने आधुनिक युग के रावणों को सच का आईना दिखाने की कोशिश की, यही न कि उसने भारत के संविधान पर भरोसा किया जो भारत के प्रत्येक नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है. हो सकता है मनीष की भाषा आक्रामक हो लेकिन उसकी रिपोर्ट झूठ नहीं है उन्होंने उसी को चोर कहा है जो कोर्ट में चोर साबित हो चुके हैं. रही बात तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों की प्रताड़ना की तो अगर गरीबों के आंसुओं को अभिव्यक्ति देनेवाली रिपोर्टें झूठी हैं भी तो कार्रवाई बिहार के उन सारे मीडिया संस्थानों के खिलाफ भी होनी चाहिए जिनमें तमिलनाडु की रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी और जिन मीडिया संस्थानों ने सरकार के डर से अचानक तमिलनाडु की रिपोर्ट छापनी बंद कर दी. सवाल है कि क्या बिहार में लोकतंत्र है? क्या मनीष की गिरफ़्तारी लोकतंत्र की हत्या नहीं है. अब उन पत्रकारों को क्या कहें जिनको सांप सूंघ गया है. आपातकाल के समय पत्रकारों के व्यवहार पर टिपण्णी करते हुए लाल कृष्ण आडवानी ने कहा था कि सरकार ने तो उनको सिर्फ झुकने के लिए कहा था लेकिन वो तो रेंगने लगे. क्या बिहार के पत्रकार भी ठीक उसी तरह से नहीं डर गए हैं जैसे कक्षा के एक बच्चे की पिटाई से पूरी कक्षा के बच्चे डर जाते हैं?
मित्रों, अब हम बात करेंगे रामनवमी के त्योहार के दौरान बिहार में रामजी की झांकी पर हुए पथराव और दो हिंदुओं की हत्या पर. यह कितना निराशाजनक है कि हम हिंदू अब बिहार में अपना त्योहार तक नहीं मना सकते. धीरे-धीरे पूरा भारत कश्मीर बनता जा रहा है. सरकार चाहे किसी भी पार्टी की हो सबके सब मुस्लिम तुष्टिकरण में लगे हुए हैं. हिन्दुओं के जुलूसों पर पत्थरबाजी करनेवाली मस्जिदों और मजारों को ढाहने के बजाए नेतागण ईफ्तार पार्टी देने में मशगुल हैं. सबसे दुखद पहलू तो यह है कि रामनवमी की हिंसा में मारे भी हिंदू गये और गिरफ्तारी भी हिंदुओं की हो रही है. लगता है जैसे नीतीश कुमार ने बिहार में उस सोनिया कानून को लागू कर दिया है जो अगर यूपीए सरकार के समय लागू हो जाता तो चाहे दंगे एकतरफा तौर पर मुसलमान करते और एकतरफा तौर पर भले ही हिन्दुओं का सामूहिक नरसंहार किया जाता, दंगों के लिए दोषी हिन्दू ही माने जाते और जेल भी हिन्दू ही जाते. जाहिर है जब तक हिन्दू बंटा हुआ है तब तक कटता रहेगा.
जिनका कुर्सी धरम है,
जिनका कुर्सी ईमान है;
वो न होंगे हिन्दुओं के,
भले ही उनका हिन्दू नाम है.
शुक्रवार, 24 मार्च 2023
अयोग्य ठहराए गए अयोग्य राहुल
मित्रों, कहने को तो भारत में लोकतंत्र है लेकिन वास्तव में आज भी भारत में राजतन्त्र है. यहाँ मुख्यमंत्री का बेटा मुख्यमंत्री बनता है और प्रधानमंत्री का बेटा प्रधानमंत्री भले ही वो इन पदों के लायक हो या न हो. अब राहुल गाँधी को ही लीजिए. कल से जबसे उनको सूरत की अदालत ने अनाप-शनाप गाली बकने के मामले में दो साल कैद की सजा सुनाई है तभी से यह चर्चा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छिड़ी है कि उनको लोकसभा की सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराया जा सकता है जैसे कि राहुल गाँधी बहुत बड़े समझदार नेता हों. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसलिए क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव ने भी इस मामले में अपनी नाक घुसेड़ने की कोशिश की है. कितनी तगड़ी लोबिंग है ईसाइयों की समझ में नहीं आता. राहुल गाँधी की जगह अगर कोई हिन्दुत्ववादी नेता होता तो निश्चित रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की नींद नहीं उड़ती.
मित्रों, सवाल उठता है कि कई बड़े नेताओं की बेटों की तरह क्या राहुल गाँधी भी भारत की राजनीति के लायक हैं? क्या उनमें इतनी समझ है कि उनको भारत का प्रधानमंत्री तो दूर सांसद भी बनाया जा सके? जिस व्यक्ति की जीभ पर नियंत्रण नहीं हो वो भला कैसे राजनीति करेगा? साथ ही उनका मानसिक स्तर भी वैसा नहीं है जैसा कि एक जनप्रतिनिधि का होना चाहिए. हरेक भाषण से पहले उनको चार लोग मिलकर बताते हैं कि क्या बोलना है और क्या नहीं बोलना है लेकिन माईक पर जाते ही वो भूल जाते हैं और कुछ-न-कुछ विवादास्पद बोल जाते हैं. न जाने आरएसएस और सावरकर जी ने उनका क्या बिगाड़ा है कि वो बराबर इनके खिलाफ बोलते रहते हैं. अभी दो-तीन दिन पहले ही उन्होंने कहा कि वो सावरकर नहीं हैं राहुल गाँधी हैं. भला उनको कौन नहीं जानता जो वो इस प्रकार से अपना परिचय देते फिरते हैं? क्या राहुल जी सावरकर जी की चरण-धूलि के भी बराबर हैं? कदापि नहीं!!! सावरकर उद्दाम देशभक्त और परम विद्वान थे अच्छे वक्ता तो थे ही. जबकि राहुल गाँधी की छवि देशभक्त की नहीं देशविरोधी की है. विद्वता का तो यह हाल है कि कभी आलू से सोना बनाते हैं तो कभी खुद कहते हैं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वे संसद सदस्य हैं तो कभी कहते हैं कि उन्होंने खुद ही मार दिया है. ये लक्षण निश्चित रूप से मानसिक रूप से विक्षिप्त व्यक्ति के हैं और संविधान कहता है कि कोई विक्षिप्त चुनाव नहीं लड़ ही नहीं सकता.
मित्रों, मुझे कांग्रेस और राहुल गाँधी दोनों पर दया आती है. बचपन में मैंने अमरकांत जी की कहानी पढ़ी थी जिन्दगी और जोंक. इस कहानी में एक भिखारी लम्बे समय तक जीवित रहता है जबकि उनके जीने का कोई मतलब नहीं है. जैसे जिंदगी उससे जोंक की तरह चिपकी हुई है. जब उनकी मौत होती है तब अमरकांत जी लिखते हैं कि आज जिन्दगी उस व्यक्ति से और वह व्यक्ति जिंदगी से छुटकारा पा गया. कुछ ऐसी ही हालत कांग्रेस और गाँधी परिवार की है. यह सिद्ध हो चुका है कि न तो कांग्रेस गाँधी परिवार को बचा सकती है और न ही गाँधी परिवार कांग्रेस का पुनरुद्धार कर सकने की स्थिति में है लेकिन दोनों एक-दूसरे से जिंदगी और जोंक की तरह चिपके हुए हैं. न जाने दोनों को कब एक-दूसरे से मुक्ति मिलेगी. इतनी जबरदस्त फजीहत के बावजूद ऐसा नहीं लगता कि राहुल गाँधी को राजनीति से और राजनीति को राहुल गाँधी से मुक्ति मिलने वाली है.
सोमवार, 27 फ़रवरी 2023
पंजाब को बचा लो मोदी जी
मित्रों, जबसे पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आई है तभी से पंजाब के एक बार फिर से आतंकवाद की आग में जलने का खतरा उत्पन्न हो गया है. यह तो कोई नहीं कह सकता कि आप पार्टी के साथ खालिस्तानी अलगाववादियों के साथ क्या गुप्त संधि हुई है लेकिन पिछले दिनों पंजाब में जिस तरह की हिंसक घटनाएँ हो रहीं हैं उससे शक होता है कि सरकार ने राज्य को पूरी तरह से खालिस्तानियों के हवाले कर दिया है. पहले हिन्दू नेता सुधीर सूरी की पुलिस के सामने हत्या और अब सीधे पुलिस थाने पर हमले से यही संकेत मिलते हैं कि पंजाब में आप पार्टी बेहद गन्दी राजनीति कर रही है.
मित्रों, मोहाली-चंडीगढ़ बॉर्डर पर बैठे एक अन्य गुट ने भी पुलिसकर्मियों को घायल कर दिया था। ये लोग 14 साल की कैद पूरी कर चुके सिख कैदियों की रिहाई की मांग कर रहे थे। हालांकि कई हमलावरों की पहचान की गई, लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया। अजनाला मामले में भी एफआईआर नहीं हुई है। यह पुलिस बल के मनोबल को तोड़कर रख देगा इसमें कोई संदेह नहीं.
मित्रों, अमृतपाल एक नया लड़का है जो दुबई से आया है। जो हुआ वह बहुत खुशी की बात नहीं है। अलगाववादी और हमारे पड़ोसी दुश्मन इसका फायदा उठाएंगे। उन्होंने (पुलिस और राज्य सरकार) अपना फैसला लिया। मुझे नहीं पता कि उन्होंने ऐसा फैसला क्यों लिया। पुलिस तो सरकार के इशारे पर काम करती है इसलिए उसका क्या कसूर? लेकिन कट्टरपंथियों की मांगों के आगे झुकना बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है। शायद खालिस्तानियों ने आम आदमी पार्टी को अकूत पैसे दिए हों. लेकिन इसमें संदेह नहीं कि लवप्रीत को छोड़ देने से अमृतपाल निश्चित रूप से जनता के लिए एक खतरनाक शख्सियत बन गया है। कुछ इसी तरह की गलती इंदिरा गाँधी ने भिंडरावाले के मामले में की थी. लम्हों ने खता की थी और कैसे सदियों ने सजा पाई हम सबने देखा है.
मित्रों, हम मानते हैं कि राजनीति होनी चाहिए, राजनीतिज्ञ राजनीति करें लेकिन ऐसी राजनीति बिल्कुल न करें जिससे देश को नुकसान हो. पिछले साल जुलाई से पंजाब में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत स्थायी डीजीपी नहीं है। अगर राज्य सरकार की ओर से नियमों का ख्याल नहीं रखा जा रहा तो केंद्र को इसका संज्ञान लेना चाहिए. भारत सरकार को पंजाब को जलता देख मुंह नहीं ताकना चाहिए बल्कि संविधानप्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए पंजाब सरकार को सख्त निर्देश देने चाहिए और फिर भी न माने तो बर्खास्त कर देना चाहिए.
लफंगों के राष्ट्रकवि कुमार विश्वास
मित्रों, तुलसी रामचरितमानस में कह गए हैं कि पंडित सोई जो गाल बजाबा. निश्चित रूप से गोस्वामी तुलसीदास ने ऐसा व्यंग्यपूर्वक कहा होगा लेकिन आज के कई कवि सिर्फ गाल बजाकर महाकवि बन गए हैं और ऐसे कवियों में सबसे अग्रगण्य हैं कुमार विश्वास. इन श्रीमान ने न जाने कौन-सी महान कविता लिखी है लेकिन ये लच्छेदार बातें करने में माहिर जरूर हैं और यही इनकी एकमात्र योग्यता भी है. इसी योग्यता के कारण इनको कथित कवि सम्मेलनों में मंच संचालन का भार दिया जाता है. कभी किसी कवि का परिचय देते हुए ये कहते हैं कि इन्होंने कविता लिखते समय दिमाग नहीं लगाया है तो कभी श्रोताओं को छिछोरों की तरह खींसे निपोरते हुए कहता है कि जो लोग दूसरों की पत्नियों के साथ आए हैं.
मित्रों, इतना ही नहीं इन श्रीमान को यह भी पता नहीं है कि कबीर अकबर के समकालीन नहीं थे फिर भी टीन टप्पर ठोक पीट कर ट्रेन में चनाजोर बेचनेवालों की तरह घटिया तुकबंदी करनेवाला यह घटिया आदमी खुद को महान कबीर की परंपरा का महान कवि बताता है. कभी महादेवी वर्मा ने कहा था कि कवि सम्मलेन थकान मिटाने के साधन बनकर रह गए हैं लेकिन कुमार विश्वास जैसे बड़बोलों ने कवि सम्मेलनों का स्तर इतना ज्यादा गिरा दिया है कि कवि सम्मेलनों में ईज्जतदार लोगों ने जाना ही छोड़ दिया है. मैं नोएडा में रहने के दौरान कई बार इस व्यक्ति को मंच संचालित करते और कविता पाठ करते हुए देख चुका हूँ और इस व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर भी कह सकता हूँ कि यह आदमी पैसों पर नाचनेवाली रूपजीवाओं से ज्यादा कुछ भी नहीं है. इस व्यक्ति की तुलना कबीर से तो कदापि नहीं हो सकती अगर हो भी सकती है तो रीतिकाल के छिछोरे कवि बिहारी से हो सकती है.
मित्रों, कुछ दिनों के लिए यह आदमी भारत का दूसरा सबसे महान राजनेता भी बना था और अन्ना हजारे के मंच से चीख-चीख कर भारत के सबसे घटिया नेता अरविन्द केजरीवाल को एशिया का सबसे योग्य युवा बता रहा था. बाद में जब उस एशिया के कथित सबसे योग्य युवा ने राज्य सभा में भेजने से मना कर दिया तबसे ये पागलों की तरह उसको गालियां देता फिरता है. इसकी इस हरकत की तुलना मंदिर के बाहर भीख मांगनेवाली उस बुढ़िया से की जा सकती है जो भीख न मिलने पर आगंतुक को बद्दुआएं देने लगती है.
मित्रों, इस व्यक्ति को एक और लाईलाज बीमारी है और वो बीमारी है जबरदस्ती का संतुलन बनाने की. आपने देखा होगा कि कुछ लोग कहते हैं कि पीएफआई की तरह आरएसएस पर भी प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए वे लोग भी इसी बीमारी से ग्रस्त हैं. कुमार विश्वास का मानना है कि सिर्फ दानवों को बुरा-भला नहीं कह सकते बल्कि उनके साथ-साथ देवताओं में भी जबरन छिद्रान्वेषण करना होगा. इन साहिबान को आरएसएस और उसकी सेवा भावना के बारे में कुछ भी पता नहीं लेकिन इनकी सोच है कि आप सिर्फ रावण को गाली नहीं दे सकते राम को भी देना होगा या आप सिर्फ राम की बड़ाई नहीं कर सकते रावण की भी प्रशंसा करनी ही होगी. और अपनी इसी घटिया सोंच को ये बुद्धिहीन बुद्धिजीवी धर्मनिरपेक्षता का नाम देते हैं.
सोमवार, 6 फ़रवरी 2023
हिन्दू महापुरुषों का बंटवारा
मित्रों, पिछले कुछ महीनों से मैं देख रहा हूँ कि कुछ नासमझ हिन्दू दिन-रात महापुरुषों को लेकर आपस में झगड़ते रहते हैं कि ये हमारी जाति के थे तो वो हमारी जाति में पैदा हुए थे. कई बार तो महापुरुषों को छीनने या उनकी चोरी करने के आरोप भी लगाए जाते हैं जबकि सच्चाई तो यह है कि कोई भी महापुरुष किसी जाति विशेष के थे ही नहीं बल्कि सबके थे, हम सबके थे. कई बार तो हम उनको सिर्फ हिन्दू धर्म के संकीर्ण दायरे में भी नहीं बांध सकते.
मित्रों, हम उदाहरण के लिए अगर बिहार बाँकुड़ा बाबू कुंवर सिंह को लें तो वे सिर्फ राजपूतों के महापुरुष नहीं थे क्योंकि वे न तो सिर्फ राजपूतों के लिए लड़ रहे थे और न तो उनकी सेना में सिर्फ राजपूत ही थे बल्कि इसके उलट उनकी सेना में सभी जातियों के हिन्दू तो थे ही बड़ी संख्या में मुसलमान भी थे. इसी तरह महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी की सेना में भी सभी जातियों के लोग थे. स्वयं आल्हा-उदल की सेना में बिहार के भागलपुर के रहनेवाले भगोला नामक यादव महाबली-महावीर थे जो पेड़ों को जड़ से उखाड़ कर उससे और बड़े-बड़े पत्थरों से युद्ध करते थे और अपने आपमें एक किला थे.
मित्रों, इसी तरह जब-जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर विधार्मियों के आक्रमण हुए चाहे वो तैमूर हो, बाबर हो, अब्दाली हो या नादिरशाह हो हर बार हिन्दुओं की सर्वजातीय सेना से उनका सामना हुआ भले ही नेतृत्व राजपूतों के हाथों में रहा हो. अयोध्या के राममंदिर के लिए तो सभी जातियों के हिन्दू शहीद हुए ही सिखों ने भी अपनी क़ुरबानी दी. १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मेरठ के गंगू मेहतर के योगदान को भला कोई कैसे भुला सकता है? महाराणा प्रताप की सेना में बड़ी संख्या में आदिवासी शामिल थे जिन्होंने युद्धों में अपने प्राण तो दिए ही जमकर शत्रुओं का आखेट भी किया. पुंजा भील को कौन नहीं जानता? इतना ही नहीं अगर भामाशाह ने अपना सबकुछ महाराणा सौंप नहीं दिया होता तो कदाचित उसी समय मेवाड़ का नाम भारत की वीरता के मानचित्र से मिट गया होता फिर महाराणा सिर्फ राजपूतों के महापुरुष कैसे हुए?
मित्रों, इसी तरह महावीर पृथ्वीराज चौहान को लेकर राजपूत-गुज्जर बराबर लड़ते रहते हैं कि पृथ्वीराज राजपूत थे या गुज्जर? हद हो गई यार. चंदवरदाई को पढ़ लो और वो जो कहें मान लो, बात ख़त्म. फिर चाहे वह राजपूत हों या गुज्जर उनकी वीरता पूरे भारत की, पूरे हिन्दू समाज की धरोहर है. अगर महाराणा राजपूत न होकर चमार होते तो क्या इससे उनकी वीरता कम हो जाती? राजा सुहेलदेव जो पासी थे की तो कम नहीं हुई.
मित्रों, विद्वता की ही तरह वीरता भी किसी जाति-विशेष की बपौती नहीं है. बल्कि जो ज्ञानी है वो विद्वान है फिर चाहे तो राजेंद्र प्रसाद हों या अम्बेडकर, पाणिनि हों या वाल्मीकि, तुलसीदास हों या रैदास या कबीरदास. उसी तरह जो संकट आने पर वीरता दिखाए वो वीर है. यहाँ मैं एक उदाहरण पेश करना चाहूँगा. १६ अगस्त, १९४६ को मुस्लिम लीग ने प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाने की घोषणा की थी. मुसलमान अलहे सुबह तलवार लेकर सडकों पर निकल पड़े और कलकत्ता की सडकों को हिन्दुओं की लाशों से पाटना शुरू कर दिया. तब सारे सवर्ण हिन्दू अपने-अपने घरों में दुबक गए. फिर एक नीच कसाई जाति के हिन्दुओं ने गोपाल पांडा के नेतृत्व में हिन्दुओं की तरफ से मोर्चा संभाला और मुसलमानों को खदेड़ दिया. अब सवाल उठता है कि यथार्थ क्षत्रिय कौन हैं, घरों में दुबके लोग या खटिक जाति के लोग?
मित्रों, इसलिए हम अपने देश की हिन्दू जनता से निवेदन करेंगे कि कृपया नेताओं के झांसे में आकर उनका वोट बैंक न बने. नेताओं का तो काम ही है महापुरुषों के नाम पर हिन्दू समाज को बांटकर चुनाव जीतना. मुझे आश्चर्य होता है कि कोई जाति राम या सम्राट अशोक के ऊपर अपना दावा कैसे ठोक सकती है? कैसे पता चलेगा कि वे वर्तमान की किस जाति में जन्मे थे?
मंगलवार, 31 जनवरी 2023
मुलायम को ताली, तुलसी को गाली
मित्रों, पिछले कुछ दिन भारत की राजनीति में बड़े छिछालेदार रहे हैं. एक तरफ तो राम के सबसे बड़े भक्तों में से एक के पीछे लोग डंडा लेकर पड़ गए हैं तो वहीँ दूसरी तरफ सबसे बड़े रामद्रोही को भारत का दूसरा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान देकर सम्मानित किया जा रहा है. पता ही नहीं चलता कि क्या सही है और क्या गलत?
मित्रों, बिहार के बैग में कारतूस लेकर चलनेवाले शिक्षा मंत्री द्वारा रामचरितमानस को लेकर उठाई गयी हवा धीरे-धीरे वबंडर का रूप लेती जा रही है. दोनों तरफ से तलवारें खिंच गई हैं. कुछ लोग कहने लगे हैं कि रामचरितमानस को प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए. तो कुछ लोग कह रहे हैं कि यह सम्पूर्ण हिन्दू धर्म का अपमान है इसलिए रामचरितमानस के आलोचकों की जीभ काट लेनी चाहिए. कुछ लोग जो कुछ ज्यादा ही उत्साही हैं रामचरितमानस को ही जलाने लगे हैं जैसे वह उसकी अंतिम प्रति हो.
मित्रों, मेरा मानना है कि हिन्दू धर्म दुनिया का सबसे लचीला धर्म है. अगर किसी हिन्दू को किसी भी काव्य, महाकाव्य या धर्मग्रन्थ से परेशानी है तो उसे निश्चित रूप से इस पर सवाल उठाने का अधिकार है. स्वामी प्रसाद मौर्य के रामचरितमानस पर दिये गए बयान पर तल्ख़ प्रतिक्रिया देना ठीक नहीं है। मौर्य ने रामचरितमानस का अपमान नहीं किया है मात्र कुछ अंशों पर आपत्ति जताई है। उन्होंने राम पर नहीं तुलसीदास पर सवाल उठाया है. उन्हें इसका अधिकार है। फिर, रामचरितमानस पर किसी जाति या वर्ग का विशेषाधिकार नहीं है।
मित्रों, निश्चित रूप से भारतीय ग्रंथों ने समाज को गहराई से प्रभावित किया है। इन ग्रंथों में जातिवाद, ऊंचनीच, छुआछूत, जातीय श्रेष्ठता, हीनता आदि को दैवीय होना स्थापित किया गया है। अत: पीड़ित व्यक्ति या समाज अपना विरोध तो व्यक्त करेगा ही। किसी को भी भारतीय ग्रंथों पर एकाधिकार नहीं जताना चाहिए। कुछ अति उत्साही उच्च जाति के हिंदू ऐसे प्रत्येक विरोध को दबाना चाहते हैं। यह वर्ग चाहता है कि कोई इनका का विरोध न करे, क्योंकि वे इसे धर्मविरोधी बताते हैं। हिंदू समाज की एकता के लिए जरूरी है कि लोगों को अपना विरोध प्रकट करने दिया जाए। हिन्दू ग्रंथ सबके हैं। यह शोषित वर्ग हिंदू समाज में ही रहना चाहता है और रहता आया है इसीलिए विरोध करता रहता है। अन्यथा इस्लाम या ईसाई धर्म अपना चुका होता। अतीत में धर्मांतरण इस कारण से भी हुए हैं।
मित्रों, चाहे वो रामचरितमानस हो, चाहे कई भाषाओँ में रचा गया रामायण हो या फिर वेद या पुराण हों किसी भी पुस्तक की प्रामाणिक प्रति कौन-सी है पहले यह निर्धारित करना ही कठिन है क्योंकि लम्बे समय तक इनको लिखा ही नहीं गया और सिर्फ कंठस्थ किया जाता रहा जिसके चलते इनकी विभिन्न प्रतियों में अंतर देखने को मिलता है. स्वयं रामकृष्ण परमहंस कहते थे कि सारे धर्मग्रन्थ जूठे हैं अर्थात सबमें कलमकारों ने अपने हिसाब से क्षेपक जोड़े हैं. इसलिए भी दुनिया का कोई भी ग्रन्थ दैवीय या ईश्वरीय नहीं हो सकता. हो सकता है कि उपलब्ध रामचरितमानस अक्षरशः तुलसी ने ही लिखा हो तब भी तुलसी ने वही लिखा जो उस समय प्रचलन में था या ज्ञात था. चाहे बाइबिल हो या कुरान हो उस समय जो ज्ञात था रचनाकार ने वही लिखा और अपने ज्ञान को ईश्वर पर थोप दिया. ठीक वही बात तुलसी पर भी लागू होती है. इसलिए अगर कोई आधुनिक ज्ञान के आधार पर पुरानी किताबों में बदलाव करने की मांग करता है तो बुरा नहीं मानना चाहिए बल्कि उन ग्रंथों में यथोचित बदलाव करना चाहिए. जिद करने से न तो धरती चपटी हो जाएगी और न ही कोई जाति नीच या ऊंच हो जाएगी.
मित्रों, तुलसी तो हमारे पूर्वज हैं ही राम और कृष्ण भी हमारे पूर्वज हैं। हम उनका अनुसरण करते हैं। हमें यह अधिकार है कि हम अपने पूर्वजों से प्रश्न करें। यह एक स्वस्थ समाज के विकास की स्वाभाविक गति है। राम और कृष्ण सहित अपने सभी पूर्वजों से उनके कई कार्यों के बारे में सदियों से आमलोग सवाल पूछते रहे हैं। यही उनकी व्यापक स्वीकार्यता का सबूत भी है इसलिए न तो किसी ग्रन्थ को जलाने की जरुरत है और न ही जीभ या सर काटने की बल्कि वर्तमान काल और परिस्थितियों के अनुसार उनमें अपेक्षित बदलाव करने की जरुरत है।
मित्रों, समस्या राम, अल्लाह, परमेश्वर या बुद्ध से नहीं है बल्कि राम, अल्लाह, परमेश्वर या बुद्ध की व्याख्या करने वालों से है. राम या कृष्ण या अल्लाह खुद तो किताबें लिखने नहीं आए बल्कि इंसानों ने उनको लिखा और उतना ही लिखा जितनी उसकी बुद्धि थी इसलिए भी धार्मिक पुस्तकों में जरुरत पड़ने पर परिवर्तन किए जा सकते हैं और किए भी जाने चाहिए.
मित्रों, समस्या सिर्फ ग्रंथकारों से नहीं राजनीतिज्ञों के पल्टू दांव से भी है. पता ही नहीं चलता कि वो कब क्या कर जाएँ. अब इस साल के पद्म पुरस्कारों को ही लीजिए. इस साल भगवान राम के सबसे बड़े विरोधी मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण सम्मान देने की घोषणा की गई है. पता नहीं राम के नाम पर सत्ता में पहुंची भाजपा और मोदी ने मुलायम सिंह यादव में ऐसा कौन-सा गुण देख लिया जो यह निर्णय लिया. क्या यह रामभक्तों पर गोलियां चलवाने का ईनाम है? अभी पिछले साल ही हिन्दू ह्रदय सम्राट और राम मंदिर आन्दोलन के अगुआ बाबूजी कल्याण सिंह जी को भी पद्म विभूषण दिया गया था. तो क्या मोदी जी की नज़रों में रामभक्त और रामद्रोही दोनों एकसमान हैं? अगर ऐसा है तो हम मोदी समर्थक नाहक ही उनके और हिन्दू धर्म के विरोधियों पर दिन-रात बरसकर अपना श्रम और समय जाया करते रहते हैं. पता नहीं कब किसको मोदी सरकार पद्मविभूषण देकर विभूषित कर दे, ओवैसी या जाकिर नाईक को भी भारत रत्न दे दे.
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