कल कुछ विपक्षी पार्टियों ने बढती महंगाई के खिलाफ बंद का आयोजन किया.देश के कुछ हिस्सों में सारी मानवीय गतिविधियाँ ठप्प पड़ गईं.कई जगहों पर बंद समर्थकों ने आम जनता के साथ दुर्व्यवहार भी किया.क्या इस तरह बंद आयोजित करना उचित है?इसका आयोजन करने से तो कम-से-कम महंगाई तो कम होने से रही.अगर बंद से समस्या का समाधान नहीं हो सकता तो फ़िर बंद के आयोजन का क्या औचित्य है?एक दिन के बंद से देश को अरबों रूपये का नुकसान होता है.दैनिक मजदूरों की तो जान पर बन आती है और उन्हें परिवार सहित भूखा रहना पड़ता है.इसलिए भी बन्दों के आयोजन करने से बेहतर है कि आयोजक सरकार और जनता के समक्ष लक्षित समस्या का समाधान रखें.वैसे भी मैं आज तक किसी भी राजनीतिक दल या उसके नेता को समाधान सुझाते नहीं देखा.इसका सीधा मतलब है कि उनके बंद का एकमात्र उद्देश्य जनता के सामने जनहितैषी होने का दिखावा करना भर है.अगर वे सच्चे जनहितैषी होते तो संसद में सरकार को सुझाव देते या प्रेस के माध्यम से समाधान बताते बंद का आह्वान नहीं करते.वास्तव में राजनीतिक दलों को बन्दों के दौरान अपनी शक्ति के प्रदर्शन का मौका मिल जाता है.उनके कार्यकर्ताओं को गुंडागर्दी करने का.फ़िर भी मैं बंद को मौलिक अधिकार मानता हूँ और इस पर पूर्ण प्रतिबन्ध के पक्ष में नहीं हूँ.हाँ संविधान में संशोधन कर ऐसी व्यवस्था की जा सकती है कि बंद का आयोजन करने से पहले नेताओं के लिए लक्षित समस्या का समाधान सुझाना भी जरूरी हो जाए.
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