सोमवार, 14 जून 2010
जाकी रही भावना जैसी सत्ता मूरत देखी तिन तैसी
इस पंक्ति के रचयिता तुलसीदास जी का दूर-दूर तक सत्ता से कोई लेना-देना नहीं था.शायद इसलिए उन्होंने इस पंक्ति को राम के सन्दर्भ में लिखा था.वैसे यह पंक्ति राम और उनके भक्तों तथा अभक्तों के बारे में आज भी उतनी ही सही है जितनी मध्यकाल में थी लेकिन उससे भी ज्यादा यह सत्ता और उसके भक्तों पर सटीक बैठती है.समय बदला,युग ने करवट ली.अब राम को कोई नहीं पूछता सब-के-सब सत्ता की उपासना में लगे हैं.सत्ता ही अब भगवान है और राम वास्तविक सत्ता होते हुए भी व्यावहारिक सत्ता नहीं हैं.सत्ता के सारे भक्तों के लिए सत्ता को परिभाषित करने के अलग-अलग आधार हैं.मायावती जी के लिए यह माया जोड़ने और रूपयों की माला पहनने का साधन है.लालू के लिए सत्ता अफसरों से खैनी चुनवाने, अनपढ़ पत्नी को मुख्यमंत्री बनवाने और घोटालों पर नए-नए शोध करने का माध्यम है.नरेन्द्र मोदी के लिए सत्ता का अर्थ है सड़कों पर पहले खून बहवाना और बाद में तेज आर्थिक विकास करना.सत्ता को लेकर सबसे मौलिक सोंच रखते हैं हमारे प्रधानमंत्रीजी.त्रेता में भरत ने राम की अनुपस्थिति में उनकी चरणपादुका को गद्दी पर रखकर और उसका प्रतिनिधि बनकर अयोध्या पर शासन किया था ठीक उसी तरह मनमोहन जी भी वंशवाद के ध्वजवाहक युवराज राहुल के लिए शासन कर रहे हैं.उनके लिए सत्ता का मतलब है छाया शासन.बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए सत्ता थोक में झूठा शिलान्यास करना और राज्य के हरेक गाँव में,प्रखंडों में,विद्यालयों में और जिला/राज्य कार्यालयों में घोटालेबाजों की फ़ौज तैयार करने का नाम है.इतना ही नहीं उनके लिए पहले सूचना के अधिकार के क्रियान्वयन के नाम पर वाहवाही लूटना और बाद में इस अधिकार के पर क़तर देना भी सत्ता है.उधर करूणानिधि के लिए परिवारवाद ही सत्ता है और शरद पवार के लिए महंगाई कम करने के नाम पर उसे और भी बढ़ा देना सत्ता है.पवार साहब के लिए आई.पी.एल. में मुफ्त की हिस्सेदारी भी सत्ता की परिभाषा के दायरे में आता है.कुल मिलाकर हरि के हजार नाम की तरह सत्ता के भक्तों के लिए भी सत्ता के बहुत से नाम हैं,बहुत से रूप हैं लेकिन इस भगवान का सबसे ज्यादा प्रभाववाला नाम और रूप है प्रधानमंत्री बन जाना.यह बड़े ही दुःख की बात है कि कहीं भी विधिवत इस सर्वशक्तिमान का मंदिर नहीं है लेकिन संतोष की बात यह है कि हर कोई फ़िर भी सत्ता की उपासना में ही लगा है.सत्ता ही आज का सबसे बड़ा सत्य है.सत्ता ही समस्त गतिविधियों का आधार है.सत्ता के लिए समीकरण बिठाना पड़ता है,समीकरण हल करने पड़ते हैं.आम नागरिक भी इससे नहीं बच पाता.हर किसी की महत्वाकांक्षाएं भी अलग-अलग होती हैं.कोई घर में सत्ता स्थापित कर ही संतुष्ट हो लेता है तो कोई एक बार पी.एम. बनकर भी संतुष्ट नहीं होता और दोबारा बनने के चक्कर में लगा रहता है.सत्ता भी माया है और माया से कौन बचा है-माया महाठगनी हम जानी-------कबीर तो इसे ५०० साल पहले ही समझ गए थे.सत्ता है तो सबकुछ है और सत्ता छिन गई तो आपकी कीमत कुछ भी नहीं.अब देखिये न सोवियत संघ के पूर्व राष्ट्रपति मिखाईल गोर्वाच्योव जिनसे एक समय अमेरिका भी डरता था,को सड़क पर किसी ने एक थप्पड़ जमा दिया और वे कुछ नहीं कर सके सिवाय गाल सहलाते रहने के.सत्ता हाथ से निकाल जाने पर यही होता है.इसलिए आईये हम सब भी सत्ता प्राप्ति का प्रयास करें निर्विघ्न सत्ता की प्राप्ति का.अपने मतलब और अपनी परिभाषा वाली सत्ता को प्राप्त करने का जिससे हमारा जीवन भी सार्थक हो सके.साथ ही हम ऐसा इंतजाम भी कर लेने होगा कि जिससे सत्ता आये तो जाए नहीं ताकि हमें गोर्वाच्योब की तरह कोई थप्पड़ न मार पाए.
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