मित्रों, भारत में अबसे कुछ ही सप्ताह बाद राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मी शुरू होनेवाली है. कुछ दूर की सोंच रखनेवाले पत्रकारों ने इस बात पर बहस शुरू कर भी दी है कि भारत का अगला राष्ट्रपति कैसा होना चाहिए. किसको होना चाहिए और कौन हो सकता है तक उनकी दूरदर्शी नजर अभी नहीं पहुँच पाई है. कुछ नामचीनों का कहना है कि राष्ट्रपति पद के लिए कोई योग्यता निर्धारित की जानी चाहिए, मसलन उसे मिड्ल फेल होना चाहिए, उसका कद ४ फीट ११.७५ ईंच से अधिक न हो, वो बिना मुँह ऐंठे फर्राटेदार अंग्रेजी बोल सके, आँखों से कम दिखता हो, बहुत बड़ा घोटाला कर चुका हो, उसके सारे दाँत सही-सलामत हों और उम्र इतनी हो कि कम-से-कम आधे बाल काले हों इत्यादि-इत्यादि.
मित्रों, इस तरह की जनक-प्रतिज्ञा सदृश कठिन शर्तें अगर रखेंगे तो हो सकता है कि यह कुर्सी खाली ही रह जाए ठीक उसी तरह जैसे बतौर मनमोहन अगर हम ईमानदार ढूँढने लगें तो भारत में प्रधानमंत्री सहित ज्यादातर महत्वपूर्ण पद खाली ही रह जाएँगे. फिर भी प्रस्तावों में दम है इसलिए ये विचारणीय हैं. मेरे हिसाब से हमारे राष्ट्रपति को मिड्ल फेल तो होना ही चाहिए. उसे तो जब पार्टी आलाकमान जहाँ कहे वहाँ हस्ताक्षर कर देना है, पढ़ने का उसे न तो अवकाश मिलेगा और न ही अवसर; फिर पढ़ा-लिखा राष्ट्रपति लेकर क्या अँचार डालना है? अब आते है लम्बाई वाले प्रस्ताव पर तो आपलोग भी जानते हैं कि राष्ट्रपति का पद अपने देश का सर्वोच्च पद है. पद सबसे बड़ा और कद छोटा; बात कुछ जमती नहीं. है न? मगर इसमें भी एक बड़ा भारी रहस्य छिपा हुआ है और वो रहस्य है कि हमारे नाटे उस्ताद जब भी किसी समकक्षी से बात करेंगे तो उसे सिर झुका कर बात करनी पड़ेगी और बदले में इनके साथ-साथ हमारे देश का माथा भी हमेशा ऊँचा बना रहेगा, तना रहेगा क्योंकि इन्हें तो ऊपर की तरफ मुँह करके बोलना पड़ेगा.
दोस्तों, यह जानी हुई बात है कि कोई भी व्यक्ति बिना मुँह ऐंठे फर्राटे के साथ अंग्रेजी बोल ही नहीं सकता इसलिए हमेशा कोई-न-कोई आम जनता के मध्य का आम आदमी ही राष्ट्रपति बनेगा. चूँकि संवैधानिक दृष्टि से रबर स्टाम्प जैसा यह पद अब गरिमाहीन भी हो चुका है और इसलिए जब सरकार का किसी खुशगवार-नागवार मसले पर विरोध करना ही नहीं है तो तो ऑंखें किस काम की? होंगी तो हो सकता है कि बहुत-कुछ अनपेक्षित भी देखना पड़े और मन व्यथित हो जाए. घोटाला करना निश्चित रूप से आज हमारे राजनेताओं की सबसे बड़ी खूबी बन चुकी है. दाग अच्छे हैं, अच्छे होते हैं इसलिए हमारी पार्टी आलाकमान को दागदार छवि के लोग कुछ ज्यादा ही अच्छे लगते हैं, अपनी बिरादरी के लगते हैं. ईमानदार व्यक्ति अगर राष्ट्रपति बन गया तो रोज-रोज संवैधानिक संकट उत्पन्न होने का खतरा रहेगा. सरकार के साथ मिलकर ऐसा व्यक्ति मिले सुर मेरा तुम्हारा गा ही नहीं सकता जिससे सरकारी कामकाज के ठप्प पड़ जाने की आशंका हमेशा बनी रहेगी और जीडीपी में गिरावट आ जाएगी. राजनीति के स्तर में, राजनीतिज्ञों के स्तर में, नौकरशाहों की नैतिकता के स्तर में, उनके काम-काज के स्तर में, पुल-पुलियों-सड़कों की गुणवत्ता के स्तर में, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के स्तर में, आम जनता के जीवन-स्तर में, गरीबी रेखा को मापने के पैमाने के स्तर में, कृषि-उत्पादकता के स्तर में, नदियों में, जनसाधारण की आँखों में और जमीन के भीतर स्थिर पानी के स्तर में भले ही गंभीर और चिंताजनक गिरावट आ जाए जीडीपी में गिरावट हरगिज नहीं आनी चाहिए. जीडीपी देश की मूँछ होती है और मूँछ नहीं तो कुछ नहीं. दांतों की सलामती इसलिए जरुरी है ताकि बंदा विदेशी दौरों पर कठोर-मुलायम व्यंजनों का बेरोकटोक आनंद ले सके. उम्र के बारे में तो कहना ही क्या? उम्र कम होगी तो हमउम्र समकक्षी तितलियों को या उनकी पत्नियों को लुभाने में, मनाने में आसानी रहेगी और इस तरह राजनयिकों का काम आसान हो जाएगा और अगर ऐसा हुआ तो हो सकता है कि २४वीं शताब्दी के अंत तक भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बन ही जाए.
मित्रों, इस तरह हमने देखा और पाया कि उपरलिखित सारे-के-सारे प्रस्ताव लाजवाब हैं और स्वीकारणीय तो हैं ही प्रशंसनीय भी हैं. अब राष्ट्रपति कैसा हो की समस्या तो हल हो ही गई समझिए. क्योंकि संसद के चालू सत्र में यह संशोधन विधेयक गारंटी के साथ बिना बहस के पास हो जाएगा. वैसे सरकार ने अभी संशोधन-प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया है लेकिन अंदरखाने की खबर यह है कि हमारे साथ-साथ पार्टी आलाकमान की भी यही ईच्छा है. विपक्ष तो इस समय है ही नहीं विपक्ष में तो सिर्फ हमारी कलम है; इसलिए संशोधन तो हुआ ही समझिए.
मित्रों, इस तरह की जनक-प्रतिज्ञा सदृश कठिन शर्तें अगर रखेंगे तो हो सकता है कि यह कुर्सी खाली ही रह जाए ठीक उसी तरह जैसे बतौर मनमोहन अगर हम ईमानदार ढूँढने लगें तो भारत में प्रधानमंत्री सहित ज्यादातर महत्वपूर्ण पद खाली ही रह जाएँगे. फिर भी प्रस्तावों में दम है इसलिए ये विचारणीय हैं. मेरे हिसाब से हमारे राष्ट्रपति को मिड्ल फेल तो होना ही चाहिए. उसे तो जब पार्टी आलाकमान जहाँ कहे वहाँ हस्ताक्षर कर देना है, पढ़ने का उसे न तो अवकाश मिलेगा और न ही अवसर; फिर पढ़ा-लिखा राष्ट्रपति लेकर क्या अँचार डालना है? अब आते है लम्बाई वाले प्रस्ताव पर तो आपलोग भी जानते हैं कि राष्ट्रपति का पद अपने देश का सर्वोच्च पद है. पद सबसे बड़ा और कद छोटा; बात कुछ जमती नहीं. है न? मगर इसमें भी एक बड़ा भारी रहस्य छिपा हुआ है और वो रहस्य है कि हमारे नाटे उस्ताद जब भी किसी समकक्षी से बात करेंगे तो उसे सिर झुका कर बात करनी पड़ेगी और बदले में इनके साथ-साथ हमारे देश का माथा भी हमेशा ऊँचा बना रहेगा, तना रहेगा क्योंकि इन्हें तो ऊपर की तरफ मुँह करके बोलना पड़ेगा.
दोस्तों, यह जानी हुई बात है कि कोई भी व्यक्ति बिना मुँह ऐंठे फर्राटे के साथ अंग्रेजी बोल ही नहीं सकता इसलिए हमेशा कोई-न-कोई आम जनता के मध्य का आम आदमी ही राष्ट्रपति बनेगा. चूँकि संवैधानिक दृष्टि से रबर स्टाम्प जैसा यह पद अब गरिमाहीन भी हो चुका है और इसलिए जब सरकार का किसी खुशगवार-नागवार मसले पर विरोध करना ही नहीं है तो तो ऑंखें किस काम की? होंगी तो हो सकता है कि बहुत-कुछ अनपेक्षित भी देखना पड़े और मन व्यथित हो जाए. घोटाला करना निश्चित रूप से आज हमारे राजनेताओं की सबसे बड़ी खूबी बन चुकी है. दाग अच्छे हैं, अच्छे होते हैं इसलिए हमारी पार्टी आलाकमान को दागदार छवि के लोग कुछ ज्यादा ही अच्छे लगते हैं, अपनी बिरादरी के लगते हैं. ईमानदार व्यक्ति अगर राष्ट्रपति बन गया तो रोज-रोज संवैधानिक संकट उत्पन्न होने का खतरा रहेगा. सरकार के साथ मिलकर ऐसा व्यक्ति मिले सुर मेरा तुम्हारा गा ही नहीं सकता जिससे सरकारी कामकाज के ठप्प पड़ जाने की आशंका हमेशा बनी रहेगी और जीडीपी में गिरावट आ जाएगी. राजनीति के स्तर में, राजनीतिज्ञों के स्तर में, नौकरशाहों की नैतिकता के स्तर में, उनके काम-काज के स्तर में, पुल-पुलियों-सड़कों की गुणवत्ता के स्तर में, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के स्तर में, आम जनता के जीवन-स्तर में, गरीबी रेखा को मापने के पैमाने के स्तर में, कृषि-उत्पादकता के स्तर में, नदियों में, जनसाधारण की आँखों में और जमीन के भीतर स्थिर पानी के स्तर में भले ही गंभीर और चिंताजनक गिरावट आ जाए जीडीपी में गिरावट हरगिज नहीं आनी चाहिए. जीडीपी देश की मूँछ होती है और मूँछ नहीं तो कुछ नहीं. दांतों की सलामती इसलिए जरुरी है ताकि बंदा विदेशी दौरों पर कठोर-मुलायम व्यंजनों का बेरोकटोक आनंद ले सके. उम्र के बारे में तो कहना ही क्या? उम्र कम होगी तो हमउम्र समकक्षी तितलियों को या उनकी पत्नियों को लुभाने में, मनाने में आसानी रहेगी और इस तरह राजनयिकों का काम आसान हो जाएगा और अगर ऐसा हुआ तो हो सकता है कि २४वीं शताब्दी के अंत तक भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् का स्थाई सदस्य बन ही जाए.
मित्रों, इस तरह हमने देखा और पाया कि उपरलिखित सारे-के-सारे प्रस्ताव लाजवाब हैं और स्वीकारणीय तो हैं ही प्रशंसनीय भी हैं. अब राष्ट्रपति कैसा हो की समस्या तो हल हो ही गई समझिए. क्योंकि संसद के चालू सत्र में यह संशोधन विधेयक गारंटी के साथ बिना बहस के पास हो जाएगा. वैसे सरकार ने अभी संशोधन-प्रस्ताव प्रस्तुत नहीं किया है लेकिन अंदरखाने की खबर यह है कि हमारे साथ-साथ पार्टी आलाकमान की भी यही ईच्छा है. विपक्ष तो इस समय है ही नहीं विपक्ष में तो सिर्फ हमारी कलम है; इसलिए संशोधन तो हुआ ही समझिए.
दोस्तों, अब बच गया दूसरा सवाल जो कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है कि कौन भारत का अगला राष्ट्रपति बननेवाला है? और किसी को पता हो या नहीं हो मुझे तो पता है. बिलकुल पता है और वह शख्स कोई और नहीं है बल्कि वह शख्स हैं रामू काका. अरे आपके या हमारे वाले रामू काका नहीं बल्कि पार्टी आलाकमान के घर में बर्तन-पोछा का महान कार्य संभालनेवाले रामू काका होंगे मेरा भारत महान के अगले महान राष्ट्रपति. दस बार मिड्ल फेल हैं, नाटे हैं, अंग्रेजी से सपने में भी उनकी मुक्का-लात नहीं हुई है, आँखों से दिन में कम दिखता है अलबत्ता रात की नजर ठीक है, कई महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित करते हुए कितने रुपयों के और कितने घोटाले कर चुके हैं कि दैवो न जानाति; मुँह के बत्तीसों दाँत दुरुस्त हैं और बड़ी-बड़ी जुल्फें रखते हैं, कलंक से भी ज्यादा काली और बला की कातिल. इसलिए मुझे नहीं लगता कि उनके आलावा कोई और भारत का अगला राष्ट्रपति बन भी सकता है या बनने के लायक है भी. आलाकमान के चाटुकार हैं, प्रिय-पात्र हैं और इन दिनों बेकार हैं. उनके राष्ट्रपति बनने से देश की जीडीपी बढ़ेगी, संवैधानिक संकट का तो प्रश्न ही नहीं उठता, देश का माथा ऊँचा होगा, कूटनीतिक सम्मान बढेगा, भ्रष्टाचार और घोटाले बढ़ेंगे और हम भ्रष्ट देशों की रैंकिंग में और ऊपर चढ़ेंगे. हर शाख पे उल्लू ही उल्लू बैठे दिखेंगे, भ्रष्टाचार के बगीचे में बहारें ही बहारें होंगी. तो मित्रों आज की सबसे बड़ी एक्सक्लूसिव, फेकिंग और ब्रेकिंग न्यूज़ यह है कि रामू काका होंगे भारत के अगले राष्ट्रपति. रामू काका एक ऐसी शख्सियत जिनकी अपनी कोई शख्सियत ही नहीं है.
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