बुधवार, 12 सितंबर 2012

प्रधानमंत्री कमजोर ही निकले

मुँह खोला तो मुँहजोर ही निकले,
आखिर तुम भी चोर ही निकले।

ईमानदार समझा था तुमको,
सच्चा सरदार समझा था तुमको;
घाघ तुम भी घनघोर ही निकले;
आखिर तुम भी चोर ही निकले।

एक के बाद एक घोटाला,
एक से बढ़कर एक घोटाला,
भ्रष्टाचार में बेजोड़ ही निकले;
आखिर तुम भी चोर ही निकले।

जनादेश का अपमान किया है,
विश्वासघात महान किया है;
समझा बहुत था थोड़ ही निकले;
आखिर तुम भी चोर ही निकले।

ईमान को तुमने बेच दिया है,
मजबूरी का ढोंग किया है;
प्रधानमंत्री कमजोर ही निकले;
आखिर तुम भी चोर ही निकले।

कोयले से तेरा मुँह जब है काला,
क्यों नहीं कुर्सी छोड़ते लाला;
फेविकोल का जोड़ ही निकले;
आखिर तुम भी चोर ही निकले,
मुँह खोला तो मुँहजोर ही निकले,
आखिर तुम भी चोर ही निकले।

2 टिप्‍पणियां:

संदीप प्रसाद ने कहा…

बहुत बढ़िया व्यंग है। हाल की कुछ-एक घटनाओ से लग रहा है कि यह व्यंग के पद-दलन का दौर चल रहा है। ऐसे दौर में आपकी बेबाक, सीधी और तीखी बात बहुत अच्छी लगी। इस बात के लिए आपको बधाइयाँ।

ब्रजकिशोर सिंह ने कहा…

धन्यवाद संदीप जी।