मित्रों,हमारे कथित सौभाग्य से और देशहित में हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी की नस-नस में इन दिनों अचानक ठंडे खून के बदले वीरतावाले गरम रक्त का संचार होने लगा है। वीर कुँअर सिंह की तरह बुढ़ापे में उनकी जवानी भी अंगड़ाइयाँ लेने लगी हैं। सरदार अब कुंभकर्णी निद्रा से जाग चुका है और लड़ने-मरने के मूड में है। उसने सिंहगर्जना करते हुए सीधे-सीधे ऐलाने जंग करते हुए कहा है कि अगर उसे जाना ही है तो वह लड़ता हुआ जाएगा।
मित्रों,पूरी दुनिया हैरान है और भारतीय परेशान हैं कि यह धमत्कार आखिर हुआ कैसे? अपने भाई लोग मनमोहन के पुनर्जागरण और उनके वीर रस से ओतप्रोत शब्दों का अर्थ ढूंढ़ने में लग गए हैं। यह तो निश्चित है कि इस दुनिया में कहीं कोई ऐसी जगह है मनमोहन सिंह जी जहाँ जाना चाहते हैं या फिर जहाँ जाने से अब नहीं डरते हैं। क्या वे पाकिस्तान जाने की बात कर रहे हैं या आगरा या फिर तिहाड़? पता नहीं सरदार जी कहाँ जाना चाहते हैं? पास में होते तो ऊंगली पकड़वाकर जानने की कोशिश करता। वैसे उनको ऊंगली पकड़वाना भी मेरे लिए कम खतरनाक नहीं होता। हम भारतीयों ने उनको राजनीति में नौसिखिया जानकर अपनी ऊंगली ही तो पकड़वाई थी और अब उन्होंने हमारी गर्दनों को न केवल जकड़ ही लिया है बल्कि दबा देने पर भी तुल गए हैं। हम समझे थे कि सरदार जी राजनीतिज्ञ तो हैं नहीं कि हमारे साथ राजनीतिज्ञों जैसी बेशर्मी और धोखेबाजी दिखाएंगे। सचमुच हमने उनको यह जानते हुए भी कितना अण्डरस्टिमेट किया कि उनको आजकल अण्डरयुक्त शब्द बिल्कुल भी पसन्द नहीं है! तो मैं कह रहा था कि नवंबर-दिसंबर में मनमोहन जी की पाकिस्तान जाने की योजना तो है मगर साथ में लौटकर भारत आने की भी योजना है। वहाँ घर-बार तो रहा नहीं कहाँ रहेंगे? साथ ही उन्होंने भारत में रहते हुए पिछले 8 सालों में भारत की जिस तरह से दुर्गति की है उसे देखते हुए पाकिस्तान शायद ही उन्हें अपने देश में बसाने या शरण देने का जोखिम ले। सरदारजी आगरा भी जा सकते हैं। उनकी मानसिक स्थिति को देखते हुए वहाँ उन्हें सीधा प्रवेश भी मिल जाएगा। जनाब डीजल और गैस का दाम बढ़ाकर महंगाई को नियंत्रित कर रहे हैं और 22 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी छीनकर रोजगार के नए अवसर पैदा कर रहे हैं। पता नहीं क्या देकर और किस शिक्षक से श्रीमान् ने अर्थशास्त्र पढ़ा था? शायद वे अपने बदले पूरे भारत को पागल समझ रहे हैं जैसा कि हरेक पागल समझता है।
मित्रों,सरकार और प्रधानमंत्री यह समझने को तैयार ही नहीं हैं कि देश में सुधार का मतलब सिर्फ आर्थिक सुधार नहीं होता। आर्थिक सुधार बहुत हो चुका और उसका फल भी जनता बहुत भुगत चुकी। उनके लिए इस समय करणीय यह है कि उनको तंत्र को दुरूस्त करने के प्रयास करने चाहिए। तंत्र को भ्रष्टाचार-मुक्त और पारदर्शी बनाना चाहिए,न्याय-तंत्र को तीव्रगामी,जिम्मेदार,पारदर्शी और सस्ता बनाना चाहिए। ऐसा करने से भ्रष्टाचार और घोटालों पर रोक लगेगी और देश को लाखों करोड़ों रुपए की राजस्व-हानि भी नहीं होगी। खजाना लबालब भरा रहेगा तो पेट्रोलियम-पदार्थों के दाम बढ़ाकर जनता को लूटना भी नहीं पड़ेगा। मनमोहन जी को देश की आधारभूत-संरचना के विकास के लिए एक लाख या कुछेक लाख रुपए ही चाहिए न अगर वे तंत्र के छिद्रों को बंद कर देते हैं तो उनको दसियों लाख करोड़ रुपए स्वतः ही प्राप्त हो जाएंगे। जहाँ तक विदेशी खुदरा-व्यापार को अनुमति देने से होनेवाले लाभ का प्रश्न है तो दूसरे देशों के अनुभव के आधार पर हम गारंटी के साथ कह सकते हैं कि इससे भारतीय किसानों को कोई लाभ नहीं होनेवाला है। वाल्मार्ट आदि कंपनियाँ घोर पूंजीवादी हैं और उनका उद्देश्य सिर्फ अधिक-से-अधिक लाभ कमाना है न कि किसानों को लाभ पहुँचाना या खैरात बांटना। सुजुकी (मारुति) को ही देखिए कि कैसे मजदूरों का शोषण करके अपना खजाना भर रही है। सरकार के इस कदम से हमारी अर्थव्यवस्था में बदलाव बस इतना आएगा कि किसानों और उपभोक्ताओं के बीच से करोड़ों परंपरागत भारतीय बिचौलिये धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगे और उनकी जगह ले लेंगे ऊंगलियों पर गिने जाने लायक चंद विदेशी,पूंजीवादी अरबपति। लेकिन मनमोहन तंत्र को दुरूस्त हरगिज नहीं करेंगे क्योंकि अब वे खुद भी घोटाले कर रहे हैं और साथ ही वे वर्तमान विश्व में पूंजीवाद के अग्रणी झंडाबरदार भी हैं। श्रीमान् ने पहले अपनों से देश को लुटवाया और अब अपने विदेशी मित्रों को भी महाभोज में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।
मित्रों,अब तो बस एक ही जगह ऐसी बचती है जहाँ जाने के बारे में शायद मनमोहन जी ने सोंच रखा हो और वो है तिहाड़ जेल। दिल्ली स्थित इस महान् व नवीन कांग्रेसी तीर्थस्थल की तीर्थयात्रा उनसे पहले उनके अनन्य सहयोगी ए. राजा और कलमाड़ी आदि कर चुके हैं। मनमोहन जी ने चूँकि राजा और कलमाड़ी द्वारा स्थापित घोटालों के पुराने विश्व-रिकार्डों को ध्वस्त कर दिया है इसलिए उनका तो और भी ज्यादा अधिकार बनता है तिहाड़-जेल जाने का। उनके ऐसा करने से महान् भारतवर्ष में एक नई और महान् परम्परा का जन्म भी होगा।
मित्रों,अब प्रश्न यह शेष बचता है कि मनमोहन किससे लड़ने की बात कर रहे हैं? पाकिस्तान से तो लड़ेंगे नहीं,उसके प्रति तो श्रीमान् मुस्लिम वोट-बैंक के लालच में इन दिनों प्रेमानुराग से रसासिक्त हो रहे हैं,चीन से लड़ने की तो सोंचना भी उनकी ईच्छा-शक्ति के बूते के बाहर है। तो क्या वे हम आम भारतीयों की परेशानियों से लड़ेंगे? शायद यह भी नहीं! क्योंकि ऐसा तो उन्होंने कभी किया ही नहीं। बल्कि उनका तो अखण्ड विश्वास हमारे समक्ष परेशानियों का अंबार लगा देने में है। अगर ऐसा नहीं होता तो उनकी सरकार घोटाले-पर-घोटाले करके देश के राजस्व को लाखों करोड़ रुपए की भारी क्षति नहीं पहुँचाती और बदले में महंगाई के अब तक के सबसे बुरे दौर में हम जनता की जेबों से पैसे निकालकर उसकी भरपाई नहीं करती। एक अध्ययन के अनुसार अगर सिर्फ 2जी और कोलगेट से हुई राजस्व-हानि की भरपाई कर दी जाए तो गैस का सिलेण्डर कल से ही 100 रु. प्रति नग और डीजल 10 रु. प्रति लीटर हो जाए और सरकारी खजाने पर 1 पैसे का बोझ भी नहीं पड़े। लेकिन कभी ऐसा होगा भी क्या? शायद कभी नहीं। तो क्या मनमोहन सिंह जी हम आम भारतीयों की खुशियों से लड़ते हुए तो कहीं नहीं जाना चाहते हैं? शायद! उनके (कु)कृत्यों से तो ऐसा ही जान पड़ता है कि अब तक उनकी जो बुरी नजर हमारे पेट पर थी उनकी वही नजर अब हमारी जान पर गड़ गई है। हमारे पेटों पर तो सरदार जी पहले ही भरपूर पद-प्रहार कर ही चुके हैं अब तो हमारे शरीर में सिर्फ जान ही शेष बची है। या खुदा रहम कर,रक्षमाम प्रभो। हे प्रभो,तुमने भूतकाल में हम भारतीयों को और मानवता को रावणादि से बचाया था अब हमें मनमोहनादि से बचाओ रघुनंदन।
मित्रों,पूरी दुनिया हैरान है और भारतीय परेशान हैं कि यह धमत्कार आखिर हुआ कैसे? अपने भाई लोग मनमोहन के पुनर्जागरण और उनके वीर रस से ओतप्रोत शब्दों का अर्थ ढूंढ़ने में लग गए हैं। यह तो निश्चित है कि इस दुनिया में कहीं कोई ऐसी जगह है मनमोहन सिंह जी जहाँ जाना चाहते हैं या फिर जहाँ जाने से अब नहीं डरते हैं। क्या वे पाकिस्तान जाने की बात कर रहे हैं या आगरा या फिर तिहाड़? पता नहीं सरदार जी कहाँ जाना चाहते हैं? पास में होते तो ऊंगली पकड़वाकर जानने की कोशिश करता। वैसे उनको ऊंगली पकड़वाना भी मेरे लिए कम खतरनाक नहीं होता। हम भारतीयों ने उनको राजनीति में नौसिखिया जानकर अपनी ऊंगली ही तो पकड़वाई थी और अब उन्होंने हमारी गर्दनों को न केवल जकड़ ही लिया है बल्कि दबा देने पर भी तुल गए हैं। हम समझे थे कि सरदार जी राजनीतिज्ञ तो हैं नहीं कि हमारे साथ राजनीतिज्ञों जैसी बेशर्मी और धोखेबाजी दिखाएंगे। सचमुच हमने उनको यह जानते हुए भी कितना अण्डरस्टिमेट किया कि उनको आजकल अण्डरयुक्त शब्द बिल्कुल भी पसन्द नहीं है! तो मैं कह रहा था कि नवंबर-दिसंबर में मनमोहन जी की पाकिस्तान जाने की योजना तो है मगर साथ में लौटकर भारत आने की भी योजना है। वहाँ घर-बार तो रहा नहीं कहाँ रहेंगे? साथ ही उन्होंने भारत में रहते हुए पिछले 8 सालों में भारत की जिस तरह से दुर्गति की है उसे देखते हुए पाकिस्तान शायद ही उन्हें अपने देश में बसाने या शरण देने का जोखिम ले। सरदारजी आगरा भी जा सकते हैं। उनकी मानसिक स्थिति को देखते हुए वहाँ उन्हें सीधा प्रवेश भी मिल जाएगा। जनाब डीजल और गैस का दाम बढ़ाकर महंगाई को नियंत्रित कर रहे हैं और 22 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी छीनकर रोजगार के नए अवसर पैदा कर रहे हैं। पता नहीं क्या देकर और किस शिक्षक से श्रीमान् ने अर्थशास्त्र पढ़ा था? शायद वे अपने बदले पूरे भारत को पागल समझ रहे हैं जैसा कि हरेक पागल समझता है।
मित्रों,सरकार और प्रधानमंत्री यह समझने को तैयार ही नहीं हैं कि देश में सुधार का मतलब सिर्फ आर्थिक सुधार नहीं होता। आर्थिक सुधार बहुत हो चुका और उसका फल भी जनता बहुत भुगत चुकी। उनके लिए इस समय करणीय यह है कि उनको तंत्र को दुरूस्त करने के प्रयास करने चाहिए। तंत्र को भ्रष्टाचार-मुक्त और पारदर्शी बनाना चाहिए,न्याय-तंत्र को तीव्रगामी,जिम्मेदार,पारदर्शी और सस्ता बनाना चाहिए। ऐसा करने से भ्रष्टाचार और घोटालों पर रोक लगेगी और देश को लाखों करोड़ों रुपए की राजस्व-हानि भी नहीं होगी। खजाना लबालब भरा रहेगा तो पेट्रोलियम-पदार्थों के दाम बढ़ाकर जनता को लूटना भी नहीं पड़ेगा। मनमोहन जी को देश की आधारभूत-संरचना के विकास के लिए एक लाख या कुछेक लाख रुपए ही चाहिए न अगर वे तंत्र के छिद्रों को बंद कर देते हैं तो उनको दसियों लाख करोड़ रुपए स्वतः ही प्राप्त हो जाएंगे। जहाँ तक विदेशी खुदरा-व्यापार को अनुमति देने से होनेवाले लाभ का प्रश्न है तो दूसरे देशों के अनुभव के आधार पर हम गारंटी के साथ कह सकते हैं कि इससे भारतीय किसानों को कोई लाभ नहीं होनेवाला है। वाल्मार्ट आदि कंपनियाँ घोर पूंजीवादी हैं और उनका उद्देश्य सिर्फ अधिक-से-अधिक लाभ कमाना है न कि किसानों को लाभ पहुँचाना या खैरात बांटना। सुजुकी (मारुति) को ही देखिए कि कैसे मजदूरों का शोषण करके अपना खजाना भर रही है। सरकार के इस कदम से हमारी अर्थव्यवस्था में बदलाव बस इतना आएगा कि किसानों और उपभोक्ताओं के बीच से करोड़ों परंपरागत भारतीय बिचौलिये धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगे और उनकी जगह ले लेंगे ऊंगलियों पर गिने जाने लायक चंद विदेशी,पूंजीवादी अरबपति। लेकिन मनमोहन तंत्र को दुरूस्त हरगिज नहीं करेंगे क्योंकि अब वे खुद भी घोटाले कर रहे हैं और साथ ही वे वर्तमान विश्व में पूंजीवाद के अग्रणी झंडाबरदार भी हैं। श्रीमान् ने पहले अपनों से देश को लुटवाया और अब अपने विदेशी मित्रों को भी महाभोज में शामिल होने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं।
मित्रों,अब तो बस एक ही जगह ऐसी बचती है जहाँ जाने के बारे में शायद मनमोहन जी ने सोंच रखा हो और वो है तिहाड़ जेल। दिल्ली स्थित इस महान् व नवीन कांग्रेसी तीर्थस्थल की तीर्थयात्रा उनसे पहले उनके अनन्य सहयोगी ए. राजा और कलमाड़ी आदि कर चुके हैं। मनमोहन जी ने चूँकि राजा और कलमाड़ी द्वारा स्थापित घोटालों के पुराने विश्व-रिकार्डों को ध्वस्त कर दिया है इसलिए उनका तो और भी ज्यादा अधिकार बनता है तिहाड़-जेल जाने का। उनके ऐसा करने से महान् भारतवर्ष में एक नई और महान् परम्परा का जन्म भी होगा।
मित्रों,अब प्रश्न यह शेष बचता है कि मनमोहन किससे लड़ने की बात कर रहे हैं? पाकिस्तान से तो लड़ेंगे नहीं,उसके प्रति तो श्रीमान् मुस्लिम वोट-बैंक के लालच में इन दिनों प्रेमानुराग से रसासिक्त हो रहे हैं,चीन से लड़ने की तो सोंचना भी उनकी ईच्छा-शक्ति के बूते के बाहर है। तो क्या वे हम आम भारतीयों की परेशानियों से लड़ेंगे? शायद यह भी नहीं! क्योंकि ऐसा तो उन्होंने कभी किया ही नहीं। बल्कि उनका तो अखण्ड विश्वास हमारे समक्ष परेशानियों का अंबार लगा देने में है। अगर ऐसा नहीं होता तो उनकी सरकार घोटाले-पर-घोटाले करके देश के राजस्व को लाखों करोड़ रुपए की भारी क्षति नहीं पहुँचाती और बदले में महंगाई के अब तक के सबसे बुरे दौर में हम जनता की जेबों से पैसे निकालकर उसकी भरपाई नहीं करती। एक अध्ययन के अनुसार अगर सिर्फ 2जी और कोलगेट से हुई राजस्व-हानि की भरपाई कर दी जाए तो गैस का सिलेण्डर कल से ही 100 रु. प्रति नग और डीजल 10 रु. प्रति लीटर हो जाए और सरकारी खजाने पर 1 पैसे का बोझ भी नहीं पड़े। लेकिन कभी ऐसा होगा भी क्या? शायद कभी नहीं। तो क्या मनमोहन सिंह जी हम आम भारतीयों की खुशियों से लड़ते हुए तो कहीं नहीं जाना चाहते हैं? शायद! उनके (कु)कृत्यों से तो ऐसा ही जान पड़ता है कि अब तक उनकी जो बुरी नजर हमारे पेट पर थी उनकी वही नजर अब हमारी जान पर गड़ गई है। हमारे पेटों पर तो सरदार जी पहले ही भरपूर पद-प्रहार कर ही चुके हैं अब तो हमारे शरीर में सिर्फ जान ही शेष बची है। या खुदा रहम कर,रक्षमाम प्रभो। हे प्रभो,तुमने भूतकाल में हम भारतीयों को और मानवता को रावणादि से बचाया था अब हमें मनमोहनादि से बचाओ रघुनंदन।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें