मित्रों,एक जमाना था और क्या जमाना था!?तब मजनू लैला की एक झलक पानेभर के लिए कई-कई जन्म लेने को तैयार रहते थे। तब प्रेमी प्रेमिका को खुदा ही नहीं खुदा से भी बड़ा दर्जा देते थे। तब का प्रेम चाहे वो राम-सीता का हो या सावित्री-सत्यवान का या लैला-मजनू का हो या शीरी-फरहाद का या फिर हीर-रांझा का पूरी तरह से पवित्र और सात्विक था। उसमें वासना की दुर्गन्ध या सड़ांध का दूर-दूर तक नामोनिशान तक नहीं था। तब का प्रेम शरीरी नहीं होता था और पूरी तरह से अशरीरी होता था,दिव्य होता था और उच्चादर्शों पर आधारित होता था।
मित्रों,वक्त बदलता रहा और बदलता रहा प्रेम का स्वरूप भी और फिर आई 20वीं सदी और प्रेम फिल्मी हो गया। फिल्मों में जैसे ही हीरोईन यानि प्रेमिका की ईज्जत खतरे में पड़ती एक लिजलिजा,दुबला-पतला-सा युवक प्रकट होता और अकेले ही अपने से कई गुना ताकतवर गुण्डों की जमकर पिटाई कर देता। फिल्मों के प्रभाव के कारण इस काल के प्रेम में शरीर को भी महत्त्वपूर्ण स्थान मिला लेकिन वही सबकुछ नहीं था। इस कालखंड के प्रेम में भी त्याग की भावना निहित होती थी। प्रेमी प्रेमिका का प्यार पाने के लिए समाज और घर-परिवार का भी बेहिचक त्याग कर देता था। तब के प्रेम में व्यावहारिकता थी मगर पशुता नहीं थी।
मित्रों,फिर आया आज का उपभोक्तावादी युग। आज के प्रेमी और प्रेमिकाओं के लिए शारीरिक प्रेम ही सबकुछ हो गया है। आज के प्रेमियों और प्रेमिकाओं के लिए शारीरिक प्रेम ही सबकुछ हो गया है। मिले और मिलते ही बेड पर पहुँच गए। फिर दोनों ने अपने-अपने जिस्म की आग को ठंडा किया और अजनबियों की तरह अपने-अपने रास्ते पर चल दिए। इस तरह आज के प्रेम की शुरूआत मिलने से होती है और उसका अंत बेडरूम में होता है। कुछ प्रेमी-प्रेमिका तो एक ही कमरे में बिना विवाह किए सालों-साल रहते हैं और फिर आराम से,बिना किसी संकोच और दुःख के अलग भी हो जाते हैं। क्या यह प्रेम है तो फिर वासना क्या है?
मित्रों, इन दिनों हमारे समाज में प्रेमियों की एक नई श्रेणी भी जन्म ले रही है या ले चुकी है। ये प्रेमी फोन करके अपनी सेक्स पार्टनर (प्रेमिका कहना उचित नहीं होगा क्योंकि इससे प्रेम की तौहिनी होगी) को अपने घर पर बुलाता है और फिर अपने दो-चार दोस्तों के साथ मिलकर उसका सामूहिक बलात्कार कर डालता है। इतना ही नहीं,प्यार के इन भावपूर्ण क्षणों की यादगारी के लिए वीडियो रिकॉर्डिंग भी करता है और इससे भी ज्यादा संजिदा प्रेमी हुआ तो इंटरनेट पर भी डाल देता है। शायद आज के प्रेमी प्रेमिका का उपभोग मिल-बाँटकर करने में जबर्दस्त यकीन रखने लगे हैं। लाजवाब है उनकी सामूहिकता और उनका साम्यवादी प्रेम। कुल मिलाकर आज के प्रेमी हों या प्रेमिका उनके लिए भावनाओं का कोई मोल नहीं रह गया है जिसका परिणाम यह हो रहा है कि आज का प्रेम भावना-शून्य और पशुवत हो गया है।
मित्रों,पहले जहाँ ऐसी घटनाएँ ईक्का-दुक्का हो रही थीं अब थोक के भाव में घट रही हैं। ऐसा क्यों हो रहा है क्या आपने कभी इस प्रश्न पर दो मिनट सोंचा? इस विकृति के लिए दोषी सिर्फ हमारे बच्चे नहीं हैं हम भी हैं। एक तरफ हम अपने बच्चों को इतना अधिक पैसा दे देते हैं कि हमारे बच्चों को लगता है कि उसके माता-पिता इतने धनवान हैं कि वे कुछ भी और किसी को भी खरीद सकते हैं। दूसरी तरफ कमी उनकी शिक्षा और संस्कार में है। स्कूली शिक्षा का मानव-जीवन में बेशक पर्याप्त महत्त्व है लेकिन उससे कहीं ज्यादा महत्त्व है संस्कारों का जो कि उन्हें परिवार से प्राप्त होता है। संस्कार नींव होता है और शिक्षा ईमारत। हम नींव को भूल गए हैं और फिर भी बुलन्द ईमारत की ईच्छा रखते हैं। फिर तो वही होगा जो हो रहा है और हमारे बच्चे वही करेंगे जो उन्हें नहीं करना चाहिए।
मित्रों,वक्त बदलता रहा और बदलता रहा प्रेम का स्वरूप भी और फिर आई 20वीं सदी और प्रेम फिल्मी हो गया। फिल्मों में जैसे ही हीरोईन यानि प्रेमिका की ईज्जत खतरे में पड़ती एक लिजलिजा,दुबला-पतला-सा युवक प्रकट होता और अकेले ही अपने से कई गुना ताकतवर गुण्डों की जमकर पिटाई कर देता। फिल्मों के प्रभाव के कारण इस काल के प्रेम में शरीर को भी महत्त्वपूर्ण स्थान मिला लेकिन वही सबकुछ नहीं था। इस कालखंड के प्रेम में भी त्याग की भावना निहित होती थी। प्रेमी प्रेमिका का प्यार पाने के लिए समाज और घर-परिवार का भी बेहिचक त्याग कर देता था। तब के प्रेम में व्यावहारिकता थी मगर पशुता नहीं थी।
मित्रों,फिर आया आज का उपभोक्तावादी युग। आज के प्रेमी और प्रेमिकाओं के लिए शारीरिक प्रेम ही सबकुछ हो गया है। आज के प्रेमियों और प्रेमिकाओं के लिए शारीरिक प्रेम ही सबकुछ हो गया है। मिले और मिलते ही बेड पर पहुँच गए। फिर दोनों ने अपने-अपने जिस्म की आग को ठंडा किया और अजनबियों की तरह अपने-अपने रास्ते पर चल दिए। इस तरह आज के प्रेम की शुरूआत मिलने से होती है और उसका अंत बेडरूम में होता है। कुछ प्रेमी-प्रेमिका तो एक ही कमरे में बिना विवाह किए सालों-साल रहते हैं और फिर आराम से,बिना किसी संकोच और दुःख के अलग भी हो जाते हैं। क्या यह प्रेम है तो फिर वासना क्या है?
मित्रों, इन दिनों हमारे समाज में प्रेमियों की एक नई श्रेणी भी जन्म ले रही है या ले चुकी है। ये प्रेमी फोन करके अपनी सेक्स पार्टनर (प्रेमिका कहना उचित नहीं होगा क्योंकि इससे प्रेम की तौहिनी होगी) को अपने घर पर बुलाता है और फिर अपने दो-चार दोस्तों के साथ मिलकर उसका सामूहिक बलात्कार कर डालता है। इतना ही नहीं,प्यार के इन भावपूर्ण क्षणों की यादगारी के लिए वीडियो रिकॉर्डिंग भी करता है और इससे भी ज्यादा संजिदा प्रेमी हुआ तो इंटरनेट पर भी डाल देता है। शायद आज के प्रेमी प्रेमिका का उपभोग मिल-बाँटकर करने में जबर्दस्त यकीन रखने लगे हैं। लाजवाब है उनकी सामूहिकता और उनका साम्यवादी प्रेम। कुल मिलाकर आज के प्रेमी हों या प्रेमिका उनके लिए भावनाओं का कोई मोल नहीं रह गया है जिसका परिणाम यह हो रहा है कि आज का प्रेम भावना-शून्य और पशुवत हो गया है।
मित्रों,पहले जहाँ ऐसी घटनाएँ ईक्का-दुक्का हो रही थीं अब थोक के भाव में घट रही हैं। ऐसा क्यों हो रहा है क्या आपने कभी इस प्रश्न पर दो मिनट सोंचा? इस विकृति के लिए दोषी सिर्फ हमारे बच्चे नहीं हैं हम भी हैं। एक तरफ हम अपने बच्चों को इतना अधिक पैसा दे देते हैं कि हमारे बच्चों को लगता है कि उसके माता-पिता इतने धनवान हैं कि वे कुछ भी और किसी को भी खरीद सकते हैं। दूसरी तरफ कमी उनकी शिक्षा और संस्कार में है। स्कूली शिक्षा का मानव-जीवन में बेशक पर्याप्त महत्त्व है लेकिन उससे कहीं ज्यादा महत्त्व है संस्कारों का जो कि उन्हें परिवार से प्राप्त होता है। संस्कार नींव होता है और शिक्षा ईमारत। हम नींव को भूल गए हैं और फिर भी बुलन्द ईमारत की ईच्छा रखते हैं। फिर तो वही होगा जो हो रहा है और हमारे बच्चे वही करेंगे जो उन्हें नहीं करना चाहिए।
2 टिप्पणियां:
namskar ji bahut sahi likhaa aapne ki pirem badaltaa surup me isme dos duna hamaare hindustaan ke sistam ko chlaane waali sarkaar or netaa jinone is jiyaatadi ko kantrol karne kaa kanun majbt nahni banaayaa dusraa hamaare sanskaar tisri hamaari susaaiti or sabse garg ye gorno ki nakal or yehi unki soch thi or yehi karne o hindustaan me aaye the or aaj pawitr hindustaan ko gandhaa kar diyaa or unone jo hindustaan ko chalaate hne unko pese dekar ye gandhgi felaai or sare hindustaani jante hne fhir bhi logh cup hne kiyun ye me aaj tak nahni samjhaa to mere jankaari se hindustaan ke insaan me badlaau aagaya is lihe in haalaatno me sab kuch badal gayaa khaali do piremi ke piyaar hi nahni maa baap bhaai bahin dost padosi gaaun des sabhi piyaar me badlaau aaya he samjhe aap jis prd ki jadne sadne laghti he o jaldi gir jaata he iske lihe jad majbut hogi ped nahni giregaa iske lihe baagh ke maali ko dhiyaan rakhnaa padegaa bahaar walno ko nahni is lihe ghar des ko majbut rakhnaa he to inlogno ko imaandaari se rakhwaali karni padegi agar maali hi podhe bech degaa to baag katam socho
प्रस्तुति अच्छी लगी। मेरे नए पोस्ट 'बहती गंगा' पर आप सादर आमंत्रित हैं।
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