नकारा एजेंसियों के भरोसे भारत की सुरक्षा
मित्रों,भारत की दूसरी साईबर राजधानी हैदराबाद में पिछले दस सालों में पाँचवीं बार बम फटे आज 8 दिन बीत चुके हैं। इस बीच हमारे प्रधानमंत्री म(हा)नमोहन सिंह जहाँ कड़े कदम उठाने की औपचारिक घोषणा कर चुके हैं वहीं भारत के अब तक के सबसे (ना?) लायक गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे दोषियों को कड़ी सजा देने का (झूठा?) वादा भी कर चुके हैं। परन्तु अब तक भारत सरकार और आंध्र प्रदेश सरकार की सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों की जाँच एक ईंच भी आगे नहीं बढ़ पाई है। वे लोग अभी भी दावे के साथ यह कह सकने की स्थिति में नहीं हैं कि इस आतंकवादी घटना में कौन-कौन से संगठन और लोग शामिल थे। प्रश्न उठता है कि घटना के बाद आतंकवादी कहाँ गायब हो गए? उनको जमीन खा गई या आसमान निगल गया? इस तरह की कोई भी घटना का बिना स्थानीय लोगों की सहायता के घट जाना संभव ही नहीं है। तो क्या केंद्र और आंध्र प्रदेश की सरकारों को सचमुच यह पता नहीं है कि इसमें कौन-कौन से देशी-विदेशी लोग शामिल थे अथवा वो इतनी बड़ी संख्या में
अमूल्य मानव-जिंदगियों को खोने के बाद भी वोटबैंक की राजनीति के चलते पता नहीं होने का ढोंग कर रही हैं? क्या हमारी सरकारें और सरकारी एजेंसियाँ सिम्मी,इंडियन मुजाहिद्दीन, जमात उद दावा या अन्य आतंकी संगठनों के देश में मौजूद स्लीपर और जागृत एजेंटों के बारे में सचमुच कुछ भी नहीं जानती हैं या फिर वे सबकुछ जानते हुए जानबूझकर अनजान बन रही हैं? दरअसल दोनों ही स्थितियाँ देश के लिए खतरनाक हैं। अगर एजेंसियों को आतंकियों का पता पता नहीं है तो फिर इन एजेंसियों का औचित्य ही क्या रह जाता है? फिर क्यों जनता खर्च करे इनकी स्थापना और संचालन पर सालाना करोड़ों रुपए? इसी प्रकार अगर दूसरी बात सही है तब तो सीधे सरकार की नीति और नीयत पर ही प्रश्न-चिन्ह लग जाता है।
मित्रों,इसी बीच गजब का दुस्साहस दिखाते हुए मौत के सौदागरों ने भारत की दो कद्दावर हस्तियों को धमकी दी है। जहाँ भारत की दूसरी सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी को जमात उद दावा ने फोन करके अपने सरगना श्री (बतौर दिग्गी) हाफिज मोहम्मद सईद साहब (बतौर शिंदे) के खिलाफ मुँह नहीं खोलने की खुली चेतावनी दी है वहीं भारत के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी को इंडियन मुजाहिद्दीन ने बाजाप्ता प्रेम-पत्र भेजकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से दूरी बनाने अन्यथा अंजाम भुगतने को तैयार रहने की धमकी दी है। अब तो प्रश्न यह भी उठता है कि क्या हमारे देश की राजनीति और अर्थनीति का संचालन निकट भविष्य में जमात उद दावा और इंडियन मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठन करेंगे और फिर भी हमारी केंद्र सरकार मूकदर्शक बनी रहेगी? क्या इसे भारत की संप्रभुता को सीधी चुनौती नहीं समझा जाना चाहिए? अगर नहीं तो क्यों?
मित्रों,केंद्र में खुफिया एजेंसियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है,राज्यों में अलग से खुफिया एजेंसियाँ हैं फिर भी आतंकी घटनाएँ थमने का नाम नहीं ले रही हैं। एजेंसियों का नकारापन यहाँ तक बढ़ गया है कि ये एजेंसियाँ न तो घटनाओं से पहले उसका पता लगा पाती हैं और न ही घटनाओं के बाद दोषियों को गिरफ्तार ही कर पा रही हैं और हमारे केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे हैं कि राष्ट्रीय आतंक निरोधक केंद्र के गठन का राग अलाप रहे हैं। मानो इसका गठन नहीं हो पाने के कारण ही आतंकी घटनाएँ हो रही हैं और इसका गठन होते ही आतंकी घटनाएँ स्वतः रूक जाएंगी क्योंकि तब आतंकी स्वतःस्फूर्त भाव से भयभीत हो जाएंगे। इस प्रकार भारत को नियमित अंतराल पर होनेवाली आतंकी घटनाओं से हमेशा के लिए निजात मिल जाएगी।
मित्रों,शायद शिंदे साहब नहीं जानते हैं (वैसे वे परमज्ञानी हैं) कि सिर्फ एजेंसियों की संख्या बढ़ाकर और उनको अत्याधुनिक हथियारों से लैस कराकर आतंकी घटनाओं को घटने से नहीं रोका जा सकता है। उसके लिए तो उनकी सरकार को देशहित को चुनावी हितों से ज्यादा अहमियत देनी पड़ेगी;इरादों को फौलादी बनाना पड़ेगा तब जाकर भारत-विरोधी देशी-विदेशी आतंकवादियों का मनोबल टूटेगा। श्री मनमोहन सिंह और शिंदे साहब जी अगर अमेरिका के खिलाफ 11 सितंबर,2001 के पूर्व और उपरांत कोई आतंकी हमला नहीं होता है तो सिर्फ इसलिए क्योंकि वहाँ की सरकार के लिए एक-एक अमेरिकी का जीवन अमूल्य है और वे उसकी रक्षा के लिए किसी भी हद से गुजर जाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
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