मित्रों,काफी समय पहले मैंने उपनिषदों से ली गई एक कथा पढ़ी थी। एक ब्राह्मण था जो जब भी कुछ अच्छा करता तो उसका भरपुर श्रेय खुद लेता और जब भी कुछ बुरा करता तो उसके लिए देवराज इन्द्र को दोषी ठहरा देता क्योंकि शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य की भुजाओं में इन्द्र का निवास होता है। एक दिन खेत से हाँकते वक्त कोई गाय उसकी पिटाई से मर जाती है। तभी इन्द्र वेष बदलकर आते हैं और उससे पूछते हैं कि यह गोहत्या किसने की। ब्राह्मण आदतन जैसे ही इन्द्र का नाम लेता है वैसे ही इन्द्र प्रकट हो जाते हैं। ब्राह्मण की बोलती बंद हो जाती है और तब इन्द्र उसे कड़ी फटकार लगाते हैं कि अगर अच्छे कार्यों का श्रेय तुम लेते हो तो बुरे कर्मों की जिम्मेदारी भी तुम्हें ही लेना पड़ेगी।
मित्रों,हमारे प्रदेश बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का व्यवहार भी इन दिनों उपरोक्त ब्राह्मण जैसा हो गया है। राज्य में जब भी कुछ अच्छा होता है तो वे उसका श्रेय लेने में क्षणभर की भी देरी नहीं करते लेकिन जब कोई बुरी या शर्मनाक घटना घट जाए तो जनाब कभी उसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेते। अभी कल की ही बात है कि खगड़िया के धमारा घाट स्टेशन पर ट्रेन से कटने से माता कात्यायनी के दर्शन के लिए जा रहे तीन दर्जन हिन्दू श्रद्धालु मारे गए लेकिन उन्होंने घटना की सारी जिम्मेदारी रेलवे और केंद्र सरकार पर डाल दी। मानो स्थानीय मेले का सुचारू प्रबंधन करना और छोटे-छोटे स्टेशनों पर लोगों को पटरी से हटाने सहित कानून-व्यवस्था संभालना और घायलों को अविलंब अस्पताल पहुँचाना भी सिर्फ केंद्र सरकार का ही काम हो। इससे पहले भी जब छपरा में मिड डे मिल खान से 23 बच्चे मारे गए थे तब भी उन्होंने इसके लिए विपक्षी दल राजद को जिम्मेदार ठहरा दिया था। इसी तरह उनकी पार्टी कुछ ही दिनों पहले कांग्रेस के सुर-में-सुर मिलाती हुई नवादा में हुए सांप्रदायिक दंगों के लिए मुख्य विपक्षी दल भाजपा को दोषी ठहरा चुकी है। मानो मिड डे मिल का सुचारू प्रबंधन और कानून-व्यवस्था संभालना भी सिर्फ-और-सिर्फ विपक्ष की जिम्मेदारी है। फिर नीतीश जी के जिम्मे क्या है? खाली चपर-चपर करते रहना कि गठबंधन तोड़ने का उनका निर्णय सही था और आतंकियों को अपना बेटा-बेटी बताते रहना? अभी चार दिन पहले जब वैशाली जिले में जहरीला मिड डे मिल खाने से कई दर्जन बच्चे बीमार हो गए तो नीतीश जी ने फरमाया कि ऐसा तो होता ही रहता है,कोई मरा तो नहीं न। मैं मानता हूँ कि कोई मरता तो वे जरूर विपक्ष को जिम्मेदार ठहराते। दुर्भाग्यवश कोई नहीं मरा इसलिए उनको ऐसा करने का सुअवसर भी नहीं मिल सका।
मित्रों,अभी कुछ सप्ताह पहले ही नीतीश जी ने प्रदेश के विधायकों को यह प्रावधान करके खुश कर दिया है कि विधायक-कोष से होनेवाले साढ़े सात लाख रुपए तक के काम के लिए अब निविदा आमंत्रित नहीं करनी होगी। यानि विधायक जी जिस चेले को चाहें ठेका दे सकेंगे। अब साढ़े 7 लाख के टुकड़े में माननीय जी पूरा काम करवाएंगे और घुमा-फिराकर विधायक-कोष की दो करोड़ रुपए वार्षिक की राशि में से कम-से-कम आधी तो उनकी जेबों वापस आ ही जाएगी। अब अगर विधायक-कोष से बनी सड़कें या पुल उद्घाटन से पहले ही टूट या धँस जाए तो दोषी कौन होगा? तब नीतीश जी तो यकीनन अपनी आदत के अनुसार अपना पल्ला झाड़ लेंगे और कहेंगे कि इसके लिए वे नहीं बल्कि विधायक जी जिम्मेदार हैं लेकिन प्रश्न तो यह उठता है कि मौजूदा कानून को बदला किसने? किसने माननीयों को लूट की छूट दी?
मित्रों,कुल मिलाकर पीएम बनने से पहले ही पीएम पद के लिए हॉट मैटेरियल बन चुके नीतीश कुमार जी में हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री के सारे गुण एकबारगी पधार चुके हैं। जिस तरह आर्थिक दुरावस्था,रुपए के अवमूल्यन और महँगाई के लिए मनमोहन सिंह कभी अपनी ऐतिहासिक सरकार को जिम्मेदार नहीं मानते उसी प्रकार से हमारे राज्य के मुख्यमंत्री जी भी किसी भी ऊँच-नीच के लिए अपने को और अपनी सरकार को बिल्कुल भी दोषी नहीं मानते हैं। जाँच आयोग बनाने में भी वे मनमोहन से पीछे नहीं आगे हैं। प्रदेश में फारबिसगंज न्यायिक जाँच आयोग और कोसी जाँच आयोग समेत कई जाँच आयोग इस समय अस्तित्व में हैं और इन्होंने कदाचित् अगले विधानसभा चुनाव से पहले अपनी रिपोर्ट नहीं देने की कसम उठा रखी है। अब इनके मंत्रीमंडल को ही लें तो उसमें आपको कई ऐसे नायाब मंत्री मिल जाएंगे जो कभी लालू-राबड़ी मंत्रीमंडल के नवरत्नों में शुमार थे और तब राज्य में जंगलराज कायम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभाई थी। इनमें से रमई बाबू तो लगभग अनपढ़ हैं और अपने पद के लिए पूरी तरह से अयोग्य तो वे हैं ही। अब आप ही बताईए कि इन जंगलराज विशेषज्ञों की बदौलत कोई कैसे राज्य में सुशासन स्थापित कर सकता है? वेसे नीतीश जी का एक और कारनामा अद्वितीय की श्रेणी में रखा जा सकता है। इस समय वे अकेले 18 विभागों के मंत्री हैं जबकि किसी के लिए सुचारू तरीके से एक अकेले विभाग को संभालना ही कठिन होता है। अच्छा तो यह होता कि नीतीश जी सारे मंत्रियों की छुट्टी कर देते और राष्ट्रपति शासन की तरह अकेले ही पूरी सरकार चलाते वो भी बिना किसी जिम्मेदारी के।
मित्रों,अब तो एक ही बात नीतीश कुमार जी के मुखारविंद से सुननी बाँकी रह गई है। मैं उम्मीद ही नहीं करता हूँ बल्कि मेरा पूरा विश्वास है कि भविष्य में जब भी कोई बड़ी और बुरी घटना प्रदेश में घटती है तो श्रीमान् यही कहेंगे कि इसके लिए और कोई नहीं सीधे तौर पर राज्य की जनता ही जिम्मेदार है। केवल राज्य की जनता की लापरवाही से ही (वैसे हम कुछ लापरवाह तो हैं भी) यह दुःखद घटना घटी है। आखिर किसी भी दुःखद घटना की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन उठाए ही क्यों? वैसे वे जब ऐसा कहेंगे तब कहेंगे हम तो जनता की तरफ से अपनी गलती एडवांस में ही मान लेते हैं क्योंकि यह हमारी ही गलती थी जो हम 2010 में दोबारा नीतीश जी की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गए और उनको दोबारा के लिए सीएम मैटेरियल समझ लिया।
मित्रों,हमारे प्रदेश बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का व्यवहार भी इन दिनों उपरोक्त ब्राह्मण जैसा हो गया है। राज्य में जब भी कुछ अच्छा होता है तो वे उसका श्रेय लेने में क्षणभर की भी देरी नहीं करते लेकिन जब कोई बुरी या शर्मनाक घटना घट जाए तो जनाब कभी उसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेते। अभी कल की ही बात है कि खगड़िया के धमारा घाट स्टेशन पर ट्रेन से कटने से माता कात्यायनी के दर्शन के लिए जा रहे तीन दर्जन हिन्दू श्रद्धालु मारे गए लेकिन उन्होंने घटना की सारी जिम्मेदारी रेलवे और केंद्र सरकार पर डाल दी। मानो स्थानीय मेले का सुचारू प्रबंधन करना और छोटे-छोटे स्टेशनों पर लोगों को पटरी से हटाने सहित कानून-व्यवस्था संभालना और घायलों को अविलंब अस्पताल पहुँचाना भी सिर्फ केंद्र सरकार का ही काम हो। इससे पहले भी जब छपरा में मिड डे मिल खान से 23 बच्चे मारे गए थे तब भी उन्होंने इसके लिए विपक्षी दल राजद को जिम्मेदार ठहरा दिया था। इसी तरह उनकी पार्टी कुछ ही दिनों पहले कांग्रेस के सुर-में-सुर मिलाती हुई नवादा में हुए सांप्रदायिक दंगों के लिए मुख्य विपक्षी दल भाजपा को दोषी ठहरा चुकी है। मानो मिड डे मिल का सुचारू प्रबंधन और कानून-व्यवस्था संभालना भी सिर्फ-और-सिर्फ विपक्ष की जिम्मेदारी है। फिर नीतीश जी के जिम्मे क्या है? खाली चपर-चपर करते रहना कि गठबंधन तोड़ने का उनका निर्णय सही था और आतंकियों को अपना बेटा-बेटी बताते रहना? अभी चार दिन पहले जब वैशाली जिले में जहरीला मिड डे मिल खाने से कई दर्जन बच्चे बीमार हो गए तो नीतीश जी ने फरमाया कि ऐसा तो होता ही रहता है,कोई मरा तो नहीं न। मैं मानता हूँ कि कोई मरता तो वे जरूर विपक्ष को जिम्मेदार ठहराते। दुर्भाग्यवश कोई नहीं मरा इसलिए उनको ऐसा करने का सुअवसर भी नहीं मिल सका।
मित्रों,अभी कुछ सप्ताह पहले ही नीतीश जी ने प्रदेश के विधायकों को यह प्रावधान करके खुश कर दिया है कि विधायक-कोष से होनेवाले साढ़े सात लाख रुपए तक के काम के लिए अब निविदा आमंत्रित नहीं करनी होगी। यानि विधायक जी जिस चेले को चाहें ठेका दे सकेंगे। अब साढ़े 7 लाख के टुकड़े में माननीय जी पूरा काम करवाएंगे और घुमा-फिराकर विधायक-कोष की दो करोड़ रुपए वार्षिक की राशि में से कम-से-कम आधी तो उनकी जेबों वापस आ ही जाएगी। अब अगर विधायक-कोष से बनी सड़कें या पुल उद्घाटन से पहले ही टूट या धँस जाए तो दोषी कौन होगा? तब नीतीश जी तो यकीनन अपनी आदत के अनुसार अपना पल्ला झाड़ लेंगे और कहेंगे कि इसके लिए वे नहीं बल्कि विधायक जी जिम्मेदार हैं लेकिन प्रश्न तो यह उठता है कि मौजूदा कानून को बदला किसने? किसने माननीयों को लूट की छूट दी?
मित्रों,कुल मिलाकर पीएम बनने से पहले ही पीएम पद के लिए हॉट मैटेरियल बन चुके नीतीश कुमार जी में हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री के सारे गुण एकबारगी पधार चुके हैं। जिस तरह आर्थिक दुरावस्था,रुपए के अवमूल्यन और महँगाई के लिए मनमोहन सिंह कभी अपनी ऐतिहासिक सरकार को जिम्मेदार नहीं मानते उसी प्रकार से हमारे राज्य के मुख्यमंत्री जी भी किसी भी ऊँच-नीच के लिए अपने को और अपनी सरकार को बिल्कुल भी दोषी नहीं मानते हैं। जाँच आयोग बनाने में भी वे मनमोहन से पीछे नहीं आगे हैं। प्रदेश में फारबिसगंज न्यायिक जाँच आयोग और कोसी जाँच आयोग समेत कई जाँच आयोग इस समय अस्तित्व में हैं और इन्होंने कदाचित् अगले विधानसभा चुनाव से पहले अपनी रिपोर्ट नहीं देने की कसम उठा रखी है। अब इनके मंत्रीमंडल को ही लें तो उसमें आपको कई ऐसे नायाब मंत्री मिल जाएंगे जो कभी लालू-राबड़ी मंत्रीमंडल के नवरत्नों में शुमार थे और तब राज्य में जंगलराज कायम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका भी निभाई थी। इनमें से रमई बाबू तो लगभग अनपढ़ हैं और अपने पद के लिए पूरी तरह से अयोग्य तो वे हैं ही। अब आप ही बताईए कि इन जंगलराज विशेषज्ञों की बदौलत कोई कैसे राज्य में सुशासन स्थापित कर सकता है? वेसे नीतीश जी का एक और कारनामा अद्वितीय की श्रेणी में रखा जा सकता है। इस समय वे अकेले 18 विभागों के मंत्री हैं जबकि किसी के लिए सुचारू तरीके से एक अकेले विभाग को संभालना ही कठिन होता है। अच्छा तो यह होता कि नीतीश जी सारे मंत्रियों की छुट्टी कर देते और राष्ट्रपति शासन की तरह अकेले ही पूरी सरकार चलाते वो भी बिना किसी जिम्मेदारी के।
मित्रों,अब तो एक ही बात नीतीश कुमार जी के मुखारविंद से सुननी बाँकी रह गई है। मैं उम्मीद ही नहीं करता हूँ बल्कि मेरा पूरा विश्वास है कि भविष्य में जब भी कोई बड़ी और बुरी घटना प्रदेश में घटती है तो श्रीमान् यही कहेंगे कि इसके लिए और कोई नहीं सीधे तौर पर राज्य की जनता ही जिम्मेदार है। केवल राज्य की जनता की लापरवाही से ही (वैसे हम कुछ लापरवाह तो हैं भी) यह दुःखद घटना घटी है। आखिर किसी भी दुःखद घटना की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन उठाए ही क्यों? वैसे वे जब ऐसा कहेंगे तब कहेंगे हम तो जनता की तरफ से अपनी गलती एडवांस में ही मान लेते हैं क्योंकि यह हमारी ही गलती थी जो हम 2010 में दोबारा नीतीश जी की चिकनी-चुपड़ी बातों में आ गए और उनको दोबारा के लिए सीएम मैटेरियल समझ लिया।
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