मित्रों,मई महीने का पहला सप्ताह था। एक महीना होने को था व्यवहार न्यायालय,हाजीपुर से हमारी जमीन की दखलदहानी का पत्र एसडीएम,महनार को गए। हमने इस बीच पत्रोत्तर के लिए महनार,अंचलाधिकारी के दफ्तर में क्लर्क श्री देवानंद सिंह से संपर्क भी किया। फोन करने पर वे रोज कहते कि आज मैं एसडीएम के नाजिर से जरूर बात करूंगा। पिताजी तो काम के लिए कुछ लेने-देने को भी तैयार थे। इसी बीच हमारा एक पूर्वपरिचित फेंकू मुकेश प्रभाकर हमारे डेरे पर आया और झूठ-मूठ के ईधर-उधर फोन घुमाने लगा। हालाँकि उस समय मैं यूजीसी नेट की तैयारी में पूरी गंभीरता से लगा हुआ था लेकिन अब मामला मेरे लिए भी असह्य होने लगा था।
मित्रों,मैंने टेलीफोन डायरेक्टरी से महनार के एसडीएम का लैंडलाईन का नंबर निकाला और डायल कर दिया। उधर से सुझाव आया कि आप अगर पत्रकार हैं तो सीधे उनके मोबाईल पर बात क्यों नहीं करते? मैंने उन्हीं महाशय से नंबर लेकर फिर से डायल किया। फोन उठानेवाले स्वयं एसडीएम साहब थे। मैंने उनसे विनम्र शब्दों में कहा कि पिछले एक महीने से हमारा एक पत्र पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में आपके कार्यालय में पड़ा हुआ है। पत्र-संख्या भी बताई। कुछ देर बाद एसडीएम साहब ने उधर से ही फोन कर मुझे बताया कि पत्र को उन्होंने बहुत ढुंढवाया लेकिन मिला नहीं सो मैं खुद ही पत्र की कॉपी लेकर आ जाऊँ।
मित्रों,सच कहूँ तो तब तक अफसरों को लेकर मेरी अवधारणा अच्छी नहीं थी सो मैं उनसे मिलने-जुलने से यथासंभव बचता ही था। उसी दिन 4 मई को मैंने न्यायालय से पत्र की कॉपी प्राप्त की और परसों होकर 6 मई,2013 को फर्स्ट ऑवर में ही मैं एसडीएम साहब के कार्यालय पर जा धमका। तब तक वे कार्यालय में आए नहीं थे और मैंने तब तक नाश्ता भी नहीं किया था। सो परिसर के बाहर सड़क पर जाकर नाश्ता-पानी करने लगा। लौटा तो वे अपने कार्यालय में विराजमान हो चुके थे। मैंने एक चिट पर अपना नाम लिखकर दरबान को दिया। तुरंत बुलावा आया। तब महनार नगर पंचायत के कुछ मोटी चमड़ीवाले नेता उनसे पिछले कई महीने से जन्म-मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी नहीं होने और इस प्रकार 10000 प्रमाण-पत्रों के लंबित होने की शिकायत कर रहे थे। उनको विदा करने के बाद उन्होंने मुझसे पत्र की कॉपी मांगी और नाजिर कैलाश बाबू को तत्काल सीओ,महनार अनिल कुमार सिंह को पत्र लिखकर उनसे उनका एक दिन का वेतन पत्र द्वारा बताने का आदेश देने को कहा। इस बीच मैं उनके पास ही बैठा रहा। तब उन्होंने चपरासी को भेजकर बीडीओ,महनार प्रवीण कुमार सिन्हा को बुला लाने को कहा। यहाँ मैं आपको बता दूँ कि महनार में अनुमंडल,प्रखंड और अंचल कार्यालय एक ही परिसर में है। बातचीत के दौरान एसडीएम संदीप शेखर प्रियदर्शी ने मुझे बताया कि डीएम जितेन्द्र प्रसाद जी ने उनको महनार में ही रहने को कहा है। उनसे पहले कोई एसडीएम महनार में रहा नहीं। पटना या हाजीपुर से आता-जाता रहा। अभी परिसर में ही स्थित कृषि भवन में उन्होंने अपना आवास बनाया है। एक अकेले के लिए कितनी जगह चाहिए ही? पहली रात को अंधेरे में जब वे अकेले सोये हुए थे तो बर्रे ने उनको डंक मार दिया। पहले तो वे डर गए कि कहीं साँप ने तो नहीं काट लिया लेकिन बाद में खयाल आया कि वे तो प्रथम तल पर हैं सो यहाँ तो साँप आएगा नहीं।
मित्रों,इसी बीच बीडीओ,महनार प्रवीण कुमार सिन्हा पसीना पोंछते हुए हाजिर हुए। फिर शुरू हुआ डाँट-फटकार का लंबा दौर। उनसे प्रियदर्शी जी ने मेरे सामने ही पूछा कि क्या वे खुद को जनता का मालिक समझते हैं? क्या बीडीओ ऑफिस उनके बाबूजी का दालान है? उनको बड़े ही कठोर शब्दों में उन्होंने समझाया कि वे जनता के नौकर हैं मालिक नहीं और आदेश दिया कि दो दिनों में सारे पेंडिंग प्रमाण-पत्रों को निर्गत करें।
मित्रों,इसी बीच नाजिर कैलाश बाबू उपस्थित हुए और प्रियदर्शी जी से पहले के एसडीएम की बड़ाई करने लगे। प्रियदर्शी जी ने उनको भी जमकर लताड़ लगाई और कहा कि उनको अच्छी तरह से पता है कि पिछले एसडीएम किस तरह से काम करते थे। उस समय तो कार्यालय में आनेवाली चिट्ठियाँ एसडीएम की गाड़ी में ही उनके साथ ही घूमती रह जाती थीं और बाद में फेंक दी जाती थीं। उन्होंने नाजिर बाबू से मेरे काम के बारे में पूछा तो बताया गया कि पत्र अभी टाईप हो रहा है। थोड़ी देर में पत्र आ गया और तत्क्षण प्रियदर्शी जी ने उस पर हस्ताक्षर करके मुझे थमा दिया और कहा कि मैं खुद ही जाकर सीओ,महनार अनिल कुमार सिंह से पत्र का जवाब ले आऊँ। मैं जब सीओ कार्यालय पहुँचा तो सीओ अपनी कुर्सी से गायब मिले। वे तब अपने बड़ा बाबू के कक्ष में उनके सामने की कुर्सी पर बैठे हुए थे। मैंने जब उनको पत्र देकर उसका तुरंत जवाब देने को कहा तो उन्होंने टालू अंदाज में कहा कि मैं एक सप्ताह बाद आऊँ क्योंकि आज काम का हो पाना संभव ही नहीं है। फिर मैंने प्रियदर्शी जी को फोन लगाया और सीओ की उनसे बात कराई। डाँट-फटकार का तेज असर हुआ और 5 मिनट में ही पत्र का जवाब मेरे हाथों में था। फिर मैंने रसीद कटवाया और घर लौट आया। कल होकर न्यायालय से पता चला कि सिर्फ रसीद से काम नहीं चलेगा एसडीएम के यहाँ से एक पत्र भी चाहिए कोर्ट के नाम से।
मित्रों, मैंने फिर से एसडीएम साहब से बात की और 9 मई को मिलने पहुँचा। इस बार भी लगभग पूरे दिन उनके सानिध्य में ही रहा। तब उनके साथ बीडीओ और सीओ,महनार भी मौजूद थे और निर्देश प्राप्त कर रहे थे। मेरा काम हो जाने पर उन्होंने मुझसे पूछा कि आपका जो काम बमुश्किल दस मिनट का था,को होने में पूरे दो दिन लग गए। आप ही बताईए कि इस सुस्त और महाभ्रष्ट तंत्र में मैं कैसे सुधार लाऊँ? उन्होंने यह भी बताया कि वे हाई डाईबिटिज के मरीज हैं और यह बीमारी नौकरी के दौरान पैदा होनेवाले तनाव की ही देन है। उन्होंने मुझे यह भी बताया कि उन पर अभी करीब पौने दो सौ मुकदमे चल रहे हैं। किसी कर्मी को डाँट लगा दी तो हो गया एक मुकदमा दर्ज। उन्होंने मुझसे इस बात की शिकायत भी की कि मीडिया किसी अधिकारी की बुराइयों को तो खूब उछालती है लेकिन उनके अच्छे कामों पर चुप्पी लगा जाती है। इसी बीच कोई जिला परिषद् सदस्य उनसे मिलने आया मगर उन्होंने मिलने का समय समाप्त हो जाने का हवाला देते हुए मिलने से मना कर दिया। थोड़ी देर बाद कोई गरीब फरियादी आया जो हसनपुर,महनार का था और जिसके घर पर उसकी अनुपस्थिति में उसके किसी दबंग रिस्तेदार ने कब्जा कर लिया था। प्रियदर्शी जी न केवल उससे गर्मजोशी से मिले बल्कि तुरंत समुचित कार्रवाई का निर्देश भी दिया। मैं अभिभूत और हतप्रभ था कि क्या कोई अफसर ऐसा भी हो सकता है? मैंने जब उनको बताया कि मैंने भी यूपीएससी और बीपीएससी की मुख्य परीक्षा कई-कई बार दी थी तो उन्होंने मुझे कहा कि अच्छा हुआ कि आप पास नहीं हुए। ईधर हम जैसे लोगों के लिए सिर्फ परेशानी-ही-परेशानी है। अब मैं उनको क्या बताता कि वर्तमान काल में पत्रकार तो और भी बँधुआ मजदूर बनकर रह गए हैं सो मुस्कुरा कर रह गया।
मित्रों,यही मेरी प्रियदर्शी जी से दूसरी और अंतिम मुलाकात थी लेकिन बाद में मैं अखबारों में उनके कारनामे लगातार पढ़ता रहा। उन्होंने कैसे बीडीओ,महनार के 12 बजे ही ऑफिस से भाग जाने पर उनकी गाड़ी की चाबी ही जब्त कर ली,कैसे सीओ ऑफिस के किसी भ्रष्ट कर्मी पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की या कैसे किसी पियक्कड़ मुखिया को परिसर से बाहर निकलवाया या कैसे मुरौवतपुर के घूसखोर विद्युतीकरण ठेकेदार को गिरफ्तार करवाया। इस बीच मैं भिखनपुरा,बिलट चौक अपनी ससुराल गया तो पता चला कि कोई रंजन सिंह नाम का विद्युतीकरण ठेकेदार उनलोगों से विद्युतीकरण के लिए प्रति परिवार 300-300 रुपए की रिश्वत मांग रहा है। मैंने अपने साले को ग्रामीणों के साथ प्रियदर्शी जी से मिलने की सलाह दी और आश्वस्त किया कि मिलने के बाद यह समस्या निश्चित रूप से समाप्त हो जाएगी।
मित्रों,लेकिन ऐसा हो पाता कि इससे पहले ही कल 21 अगस्त के समाचार-पत्र में पढ़ने को मिला कि एसडीएम,महनार संदीप शेखर प्रियदर्शी का तबादला बेगूसराय कर दिया गया है। पढ़ते ही झटका लगा। मैं तो अभी तक खुश हो रहा था कि महनार अनुमंडल में पहली बार एक ईमानदार,कर्त्तव्यनिष्ठ और ओजस्वी अफसर आया है जो पूरी तस्वीर को एकबारगी ही बदल देने की क्षमता रखता है। अभी-अभी तो वे आए थे,अभी तो ठीक से सेटल भी नहीं हुए थे कि तबादला हो गया। जाने अब अगला एसडीएम कैसा हो? क्या इस तरह बार-बार जल्दी-जल्दी के तबादलों पर रोक नहीं लगनी चाहिए? जब किसी अधिकारी को काम करने और स्थिति को सुधारने के लिए समय ही नहीं दिया जाएगा तो सुधार होगा कैसे? प्रियदर्शी जी को दो-तीन सालों तक महनार का एसडीएम बने रहने देना था। खैर संदीप शेखर प्रियदर्शी जी जहाँ भी रहें खुश रहें,स्वस्थ रहें यही हमारी कामना है। आई सैल्यूट यू,संदीप शेखर प्रियदर्शी।
मित्रों,मैंने टेलीफोन डायरेक्टरी से महनार के एसडीएम का लैंडलाईन का नंबर निकाला और डायल कर दिया। उधर से सुझाव आया कि आप अगर पत्रकार हैं तो सीधे उनके मोबाईल पर बात क्यों नहीं करते? मैंने उन्हीं महाशय से नंबर लेकर फिर से डायल किया। फोन उठानेवाले स्वयं एसडीएम साहब थे। मैंने उनसे विनम्र शब्दों में कहा कि पिछले एक महीने से हमारा एक पत्र पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में आपके कार्यालय में पड़ा हुआ है। पत्र-संख्या भी बताई। कुछ देर बाद एसडीएम साहब ने उधर से ही फोन कर मुझे बताया कि पत्र को उन्होंने बहुत ढुंढवाया लेकिन मिला नहीं सो मैं खुद ही पत्र की कॉपी लेकर आ जाऊँ।
मित्रों,सच कहूँ तो तब तक अफसरों को लेकर मेरी अवधारणा अच्छी नहीं थी सो मैं उनसे मिलने-जुलने से यथासंभव बचता ही था। उसी दिन 4 मई को मैंने न्यायालय से पत्र की कॉपी प्राप्त की और परसों होकर 6 मई,2013 को फर्स्ट ऑवर में ही मैं एसडीएम साहब के कार्यालय पर जा धमका। तब तक वे कार्यालय में आए नहीं थे और मैंने तब तक नाश्ता भी नहीं किया था। सो परिसर के बाहर सड़क पर जाकर नाश्ता-पानी करने लगा। लौटा तो वे अपने कार्यालय में विराजमान हो चुके थे। मैंने एक चिट पर अपना नाम लिखकर दरबान को दिया। तुरंत बुलावा आया। तब महनार नगर पंचायत के कुछ मोटी चमड़ीवाले नेता उनसे पिछले कई महीने से जन्म-मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी नहीं होने और इस प्रकार 10000 प्रमाण-पत्रों के लंबित होने की शिकायत कर रहे थे। उनको विदा करने के बाद उन्होंने मुझसे पत्र की कॉपी मांगी और नाजिर कैलाश बाबू को तत्काल सीओ,महनार अनिल कुमार सिंह को पत्र लिखकर उनसे उनका एक दिन का वेतन पत्र द्वारा बताने का आदेश देने को कहा। इस बीच मैं उनके पास ही बैठा रहा। तब उन्होंने चपरासी को भेजकर बीडीओ,महनार प्रवीण कुमार सिन्हा को बुला लाने को कहा। यहाँ मैं आपको बता दूँ कि महनार में अनुमंडल,प्रखंड और अंचल कार्यालय एक ही परिसर में है। बातचीत के दौरान एसडीएम संदीप शेखर प्रियदर्शी ने मुझे बताया कि डीएम जितेन्द्र प्रसाद जी ने उनको महनार में ही रहने को कहा है। उनसे पहले कोई एसडीएम महनार में रहा नहीं। पटना या हाजीपुर से आता-जाता रहा। अभी परिसर में ही स्थित कृषि भवन में उन्होंने अपना आवास बनाया है। एक अकेले के लिए कितनी जगह चाहिए ही? पहली रात को अंधेरे में जब वे अकेले सोये हुए थे तो बर्रे ने उनको डंक मार दिया। पहले तो वे डर गए कि कहीं साँप ने तो नहीं काट लिया लेकिन बाद में खयाल आया कि वे तो प्रथम तल पर हैं सो यहाँ तो साँप आएगा नहीं।
मित्रों,इसी बीच बीडीओ,महनार प्रवीण कुमार सिन्हा पसीना पोंछते हुए हाजिर हुए। फिर शुरू हुआ डाँट-फटकार का लंबा दौर। उनसे प्रियदर्शी जी ने मेरे सामने ही पूछा कि क्या वे खुद को जनता का मालिक समझते हैं? क्या बीडीओ ऑफिस उनके बाबूजी का दालान है? उनको बड़े ही कठोर शब्दों में उन्होंने समझाया कि वे जनता के नौकर हैं मालिक नहीं और आदेश दिया कि दो दिनों में सारे पेंडिंग प्रमाण-पत्रों को निर्गत करें।
मित्रों,इसी बीच नाजिर कैलाश बाबू उपस्थित हुए और प्रियदर्शी जी से पहले के एसडीएम की बड़ाई करने लगे। प्रियदर्शी जी ने उनको भी जमकर लताड़ लगाई और कहा कि उनको अच्छी तरह से पता है कि पिछले एसडीएम किस तरह से काम करते थे। उस समय तो कार्यालय में आनेवाली चिट्ठियाँ एसडीएम की गाड़ी में ही उनके साथ ही घूमती रह जाती थीं और बाद में फेंक दी जाती थीं। उन्होंने नाजिर बाबू से मेरे काम के बारे में पूछा तो बताया गया कि पत्र अभी टाईप हो रहा है। थोड़ी देर में पत्र आ गया और तत्क्षण प्रियदर्शी जी ने उस पर हस्ताक्षर करके मुझे थमा दिया और कहा कि मैं खुद ही जाकर सीओ,महनार अनिल कुमार सिंह से पत्र का जवाब ले आऊँ। मैं जब सीओ कार्यालय पहुँचा तो सीओ अपनी कुर्सी से गायब मिले। वे तब अपने बड़ा बाबू के कक्ष में उनके सामने की कुर्सी पर बैठे हुए थे। मैंने जब उनको पत्र देकर उसका तुरंत जवाब देने को कहा तो उन्होंने टालू अंदाज में कहा कि मैं एक सप्ताह बाद आऊँ क्योंकि आज काम का हो पाना संभव ही नहीं है। फिर मैंने प्रियदर्शी जी को फोन लगाया और सीओ की उनसे बात कराई। डाँट-फटकार का तेज असर हुआ और 5 मिनट में ही पत्र का जवाब मेरे हाथों में था। फिर मैंने रसीद कटवाया और घर लौट आया। कल होकर न्यायालय से पता चला कि सिर्फ रसीद से काम नहीं चलेगा एसडीएम के यहाँ से एक पत्र भी चाहिए कोर्ट के नाम से।
मित्रों, मैंने फिर से एसडीएम साहब से बात की और 9 मई को मिलने पहुँचा। इस बार भी लगभग पूरे दिन उनके सानिध्य में ही रहा। तब उनके साथ बीडीओ और सीओ,महनार भी मौजूद थे और निर्देश प्राप्त कर रहे थे। मेरा काम हो जाने पर उन्होंने मुझसे पूछा कि आपका जो काम बमुश्किल दस मिनट का था,को होने में पूरे दो दिन लग गए। आप ही बताईए कि इस सुस्त और महाभ्रष्ट तंत्र में मैं कैसे सुधार लाऊँ? उन्होंने यह भी बताया कि वे हाई डाईबिटिज के मरीज हैं और यह बीमारी नौकरी के दौरान पैदा होनेवाले तनाव की ही देन है। उन्होंने मुझे यह भी बताया कि उन पर अभी करीब पौने दो सौ मुकदमे चल रहे हैं। किसी कर्मी को डाँट लगा दी तो हो गया एक मुकदमा दर्ज। उन्होंने मुझसे इस बात की शिकायत भी की कि मीडिया किसी अधिकारी की बुराइयों को तो खूब उछालती है लेकिन उनके अच्छे कामों पर चुप्पी लगा जाती है। इसी बीच कोई जिला परिषद् सदस्य उनसे मिलने आया मगर उन्होंने मिलने का समय समाप्त हो जाने का हवाला देते हुए मिलने से मना कर दिया। थोड़ी देर बाद कोई गरीब फरियादी आया जो हसनपुर,महनार का था और जिसके घर पर उसकी अनुपस्थिति में उसके किसी दबंग रिस्तेदार ने कब्जा कर लिया था। प्रियदर्शी जी न केवल उससे गर्मजोशी से मिले बल्कि तुरंत समुचित कार्रवाई का निर्देश भी दिया। मैं अभिभूत और हतप्रभ था कि क्या कोई अफसर ऐसा भी हो सकता है? मैंने जब उनको बताया कि मैंने भी यूपीएससी और बीपीएससी की मुख्य परीक्षा कई-कई बार दी थी तो उन्होंने मुझे कहा कि अच्छा हुआ कि आप पास नहीं हुए। ईधर हम जैसे लोगों के लिए सिर्फ परेशानी-ही-परेशानी है। अब मैं उनको क्या बताता कि वर्तमान काल में पत्रकार तो और भी बँधुआ मजदूर बनकर रह गए हैं सो मुस्कुरा कर रह गया।
मित्रों,यही मेरी प्रियदर्शी जी से दूसरी और अंतिम मुलाकात थी लेकिन बाद में मैं अखबारों में उनके कारनामे लगातार पढ़ता रहा। उन्होंने कैसे बीडीओ,महनार के 12 बजे ही ऑफिस से भाग जाने पर उनकी गाड़ी की चाबी ही जब्त कर ली,कैसे सीओ ऑफिस के किसी भ्रष्ट कर्मी पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की या कैसे किसी पियक्कड़ मुखिया को परिसर से बाहर निकलवाया या कैसे मुरौवतपुर के घूसखोर विद्युतीकरण ठेकेदार को गिरफ्तार करवाया। इस बीच मैं भिखनपुरा,बिलट चौक अपनी ससुराल गया तो पता चला कि कोई रंजन सिंह नाम का विद्युतीकरण ठेकेदार उनलोगों से विद्युतीकरण के लिए प्रति परिवार 300-300 रुपए की रिश्वत मांग रहा है। मैंने अपने साले को ग्रामीणों के साथ प्रियदर्शी जी से मिलने की सलाह दी और आश्वस्त किया कि मिलने के बाद यह समस्या निश्चित रूप से समाप्त हो जाएगी।
मित्रों,लेकिन ऐसा हो पाता कि इससे पहले ही कल 21 अगस्त के समाचार-पत्र में पढ़ने को मिला कि एसडीएम,महनार संदीप शेखर प्रियदर्शी का तबादला बेगूसराय कर दिया गया है। पढ़ते ही झटका लगा। मैं तो अभी तक खुश हो रहा था कि महनार अनुमंडल में पहली बार एक ईमानदार,कर्त्तव्यनिष्ठ और ओजस्वी अफसर आया है जो पूरी तस्वीर को एकबारगी ही बदल देने की क्षमता रखता है। अभी-अभी तो वे आए थे,अभी तो ठीक से सेटल भी नहीं हुए थे कि तबादला हो गया। जाने अब अगला एसडीएम कैसा हो? क्या इस तरह बार-बार जल्दी-जल्दी के तबादलों पर रोक नहीं लगनी चाहिए? जब किसी अधिकारी को काम करने और स्थिति को सुधारने के लिए समय ही नहीं दिया जाएगा तो सुधार होगा कैसे? प्रियदर्शी जी को दो-तीन सालों तक महनार का एसडीएम बने रहने देना था। खैर संदीप शेखर प्रियदर्शी जी जहाँ भी रहें खुश रहें,स्वस्थ रहें यही हमारी कामना है। आई सैल्यूट यू,संदीप शेखर प्रियदर्शी।
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