मित्रों,जब वर्ष 2004 में लोकसभा चुनावों के बाद इटली से आयातित कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने परम-त्यागमयी महिला होने का परिचय देते हुए तब तक ईमानदार,सज्जन और गैरराजनैतिक माने जाने वाले अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया तब पूरे भारत की जनता को लगा कि अब भारतीय अर्थव्यवस्था को पंख लगने के दिन आ गए हैं। वर्ष 2004 से वर्ष 2009 तक उनकी पहली पारी में देश की जीडीपी लगातार तेज रफ्तार में दौड़ती रही लेकिन जैसे ही दूसरी पारी शुरू हुई देश के विकास को न केवल ब्रेक लग गया बल्कि वो रिवर्स गियर में द्रुत गति से चलने लगा। धीरे-धीरे जैसे-जैसे वक्त गुजरा एक-एक करके एक से बढ़कर एक महाघोटाले सामने आने लगे और माननीय मनमोहन सिंह के चेहरे पर की गई ईमानदारी और सज्जनता की सुनहरी कलई उतरने लगी और आज स्थिति यह है कि उनका चेहरा जनता की नजरों में पूरी तरह से स्याह पड़ चुका है।
मित्रों,भारतीय रुपये की तरह मात्र चार वर्षों में मनमोहन सिंह की छवि का भारी और तीव्र गति से अवमूल्यन हुआ है और अब कुछ भी पर्दे में नहीं रह गया है। सबकुछ दुनिया के सामने आ गया है। आज की तारीख में हमारे देश के कथित प्रधानमंत्री जी काफी दुःखी हैं। उनको देश की बदहाल हालत बिल्कुल भी परेशान नहीं कर रही है वे तो सिर्फ इसलिए दुःखी हैं कि संसद में विपक्ष उनको चोर क्यों कह रहा है? उधर विपक्ष भी उनके ऐतराज पर ऐतराज जताते हुए उनसे पूछ रहा है कि चोर को चोर न कहें तो क्या कहें? गलती दोनों तरफ से बराबर की हो रही है। मनमोहन को तो परेशान होने के बदले खुश होना चाहिए कि उनको विपक्ष द्वारा चोर के साथ-साथ झूठा,मक्कार,भ्रष्ट,ढोंगी,धोखेबाज,गैरजिम्मेदार इत्यादि नहीं कहा जा रहा है जबकि कायदे से वे इन विशेषणों से विभूषित हो सकने की योग्यता बहुत समय पहले ही अर्जित कर चुके हैं।
मित्रों,वहीं विपक्ष को भी मनमोहन सिंह जी को कम करके नहीं आँकना चाहिए और सिर्फ चोर नहीं कहना चाहिए। आखिर उन्होंने काफी मेहनत करके दर्जनों घोटाले करवाए। फिर फाइलें गायब करवाईं या जलवाईं और बिडंबना यह है कि उनके इन महान कार्यों में पानी की तरह पसीना बहाने के बाद भी उनकी महानता को विपक्ष कम करके बता रहा है। क्या विपक्ष भूल गया है कि अब मनमोहन सिंह कितनी खूबसूरती से झूठ बोल लेते हैं और मिनटभर में बेझिझक ए.राजा,अश्विनी कुमार,बंसल और कलमाड़ी को पाक-साफ बता देते हैं? क्या विपक्ष को यह भी याद नहीं कि मनमोहन सिंह आज भी किस तरह चेहरे पर उदासी ओढ़कर खुद के देश और अपने कर्त्तव्यों के प्रति ईमानदार होने का ढोंग कर लेते हैं?
मित्रों,कई बार इन्सान से गलतियाँ हो जाया करती हैं। फिर भी विपक्ष का यह अपराध तो अक्षम्य है कि उसने नारे लगाते समय महान मनमोहन के इस गुण को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया कि वे किस अदा और बेशर्मी से सर्वोच्च न्यायालय,सीएजी,आरबीआई इत्यादि महत्त्वपूर्ण संस्थाओं पर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी नहीं निभाने और लक्ष्मण-रेखा पार करने का आरोप लगाते रहे हैं। मानो उनकी सरकार की विफलता के लिए वे नहीं ये संस्थाएँ ही जिम्मेदार हों। मनमोहन सिंह की गैर-जिम्मेदारी का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि उनके मंत्रालय से फाइलें गायब हो जाती हैं और वे संसद में फरमाते हैं कि मैंने फाइलों की सुरक्षा का ठेका नहीं ले रखा है? अगर वे ऐसा कहते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है क्योंकि जहाँ तक मैं समझता हूँ कि श्री मनमोहन सिंह जी ने सपने में भी कभी खुद को भारत का प्रधानमंत्री समझा ही नहीं है बल्कि उन्होंने तो खुद को सिर्फ सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री समझा और लगातार अपने भाषणों में बस यही दोहराते रहे कि देश में यह होना चाहिए और ऐसे होना चाहिए। अगर वे खुद को भारत का प्रधानमंत्री समझते तो उनकी भाषा कुछ इस तरह होती कि मैं यह करूंगा और ऐसे करूंगा,मैंने यह किया और ऐसे किया। मनमोहन कहते रहे कि अच्छा होना चाहिए और स्वयं करते रहे बुरा। मनमोहन के जहाँ तक चोर होने का सवाल है तो वे चोर तो हैं ही और कोई मामूली चोर नहीं हैं। उन्होंने भारत के सभी देशप्रेमियों की नींद और चैन एकसाथ चुरा ली है। मैं चुनौती देता हूँ कि है दुनिया की किसी भी खुफिया एजेंसी में दम तो उनके द्वारा दिनदहाड़े चोरी की गई इन अमूल्य वस्तुओं को बरामद करके बताए।
मित्रों,मैं अंत में विपक्ष से निवेदन करता हूँ कि उनको मनमोहन सिंह से तहेदिल से माफी मांगनी चाहिए क्योंकि उसने हमारे हरफनमौला कथित पीएम को सिर्फ चोर कहने का गंभीर अपराध किया है। जबकि देश की जनता उनको चोर के साथ-साथ झूठा,भ्रष्ट,ढोंगी,धोखेबाज,मक्कार और गैरजिम्मेदार भी मान चुकी है तो फिर विपक्ष को किसने यह अधिकार दे दिया कि वो महान शैतानावतार मनमोहन सिंह को अंडरस्टीमेट करे और ऐसा करके अपमानित करे? दुनिया में कृत्रिम बुद्धि से युक्त पहले यंत्र-मानव मनमोहन सिंह जी को यह शिकायत भी है कि संसार में सिर्फ भारत में भी संसद के बेल में आकर विपक्ष प्रधानमंत्री चोर है का नारा लगाता है। मैं उनसे अर्ज करता हूँ कि प्यारे मनमोहन आपको तो खुश होना चाहिए कि आप भारत जैसे मुर्दादिल और नपुंसक देश के प्रधानमंत्री हैं वरना अगर आप किसी यूरोपीय देश के प्रधानमंत्री होते और आपने वहाँ वैसे ही और उतने ही महान कार्य किए होते जितने कि भारत में किए हैं तो उस देश की जनता अपने घरों में बैठी नहीं रहती और सड़कों पर उतरकर आपके घर समेत पूरी दिल्ली को कई साल पहले घेर चुकी होती और फिर आप चार साल तो क्या चार दिन के लिए भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं रह पाते और पिछले कई सालों से अपने प्रायोजक गांधी परिवार और अपने अधिकांश मंत्रिमंडल के साथ तिहाड़ जेल में अपने करकमलों से मुलायम-मुलायम रोटियाँ तोड़ रहे होते।
मित्रों,भारतीय रुपये की तरह मात्र चार वर्षों में मनमोहन सिंह की छवि का भारी और तीव्र गति से अवमूल्यन हुआ है और अब कुछ भी पर्दे में नहीं रह गया है। सबकुछ दुनिया के सामने आ गया है। आज की तारीख में हमारे देश के कथित प्रधानमंत्री जी काफी दुःखी हैं। उनको देश की बदहाल हालत बिल्कुल भी परेशान नहीं कर रही है वे तो सिर्फ इसलिए दुःखी हैं कि संसद में विपक्ष उनको चोर क्यों कह रहा है? उधर विपक्ष भी उनके ऐतराज पर ऐतराज जताते हुए उनसे पूछ रहा है कि चोर को चोर न कहें तो क्या कहें? गलती दोनों तरफ से बराबर की हो रही है। मनमोहन को तो परेशान होने के बदले खुश होना चाहिए कि उनको विपक्ष द्वारा चोर के साथ-साथ झूठा,मक्कार,भ्रष्ट,ढोंगी,धोखेबाज,गैरजिम्मेदार इत्यादि नहीं कहा जा रहा है जबकि कायदे से वे इन विशेषणों से विभूषित हो सकने की योग्यता बहुत समय पहले ही अर्जित कर चुके हैं।
मित्रों,वहीं विपक्ष को भी मनमोहन सिंह जी को कम करके नहीं आँकना चाहिए और सिर्फ चोर नहीं कहना चाहिए। आखिर उन्होंने काफी मेहनत करके दर्जनों घोटाले करवाए। फिर फाइलें गायब करवाईं या जलवाईं और बिडंबना यह है कि उनके इन महान कार्यों में पानी की तरह पसीना बहाने के बाद भी उनकी महानता को विपक्ष कम करके बता रहा है। क्या विपक्ष भूल गया है कि अब मनमोहन सिंह कितनी खूबसूरती से झूठ बोल लेते हैं और मिनटभर में बेझिझक ए.राजा,अश्विनी कुमार,बंसल और कलमाड़ी को पाक-साफ बता देते हैं? क्या विपक्ष को यह भी याद नहीं कि मनमोहन सिंह आज भी किस तरह चेहरे पर उदासी ओढ़कर खुद के देश और अपने कर्त्तव्यों के प्रति ईमानदार होने का ढोंग कर लेते हैं?
मित्रों,कई बार इन्सान से गलतियाँ हो जाया करती हैं। फिर भी विपक्ष का यह अपराध तो अक्षम्य है कि उसने नारे लगाते समय महान मनमोहन के इस गुण को पूरी तरह से अनदेखा कर दिया कि वे किस अदा और बेशर्मी से सर्वोच्च न्यायालय,सीएजी,आरबीआई इत्यादि महत्त्वपूर्ण संस्थाओं पर अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी नहीं निभाने और लक्ष्मण-रेखा पार करने का आरोप लगाते रहे हैं। मानो उनकी सरकार की विफलता के लिए वे नहीं ये संस्थाएँ ही जिम्मेदार हों। मनमोहन सिंह की गैर-जिम्मेदारी का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है कि उनके मंत्रालय से फाइलें गायब हो जाती हैं और वे संसद में फरमाते हैं कि मैंने फाइलों की सुरक्षा का ठेका नहीं ले रखा है? अगर वे ऐसा कहते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है क्योंकि जहाँ तक मैं समझता हूँ कि श्री मनमोहन सिंह जी ने सपने में भी कभी खुद को भारत का प्रधानमंत्री समझा ही नहीं है बल्कि उन्होंने तो खुद को सिर्फ सोनिया गांधी का प्रधानमंत्री समझा और लगातार अपने भाषणों में बस यही दोहराते रहे कि देश में यह होना चाहिए और ऐसे होना चाहिए। अगर वे खुद को भारत का प्रधानमंत्री समझते तो उनकी भाषा कुछ इस तरह होती कि मैं यह करूंगा और ऐसे करूंगा,मैंने यह किया और ऐसे किया। मनमोहन कहते रहे कि अच्छा होना चाहिए और स्वयं करते रहे बुरा। मनमोहन के जहाँ तक चोर होने का सवाल है तो वे चोर तो हैं ही और कोई मामूली चोर नहीं हैं। उन्होंने भारत के सभी देशप्रेमियों की नींद और चैन एकसाथ चुरा ली है। मैं चुनौती देता हूँ कि है दुनिया की किसी भी खुफिया एजेंसी में दम तो उनके द्वारा दिनदहाड़े चोरी की गई इन अमूल्य वस्तुओं को बरामद करके बताए।
मित्रों,मैं अंत में विपक्ष से निवेदन करता हूँ कि उनको मनमोहन सिंह से तहेदिल से माफी मांगनी चाहिए क्योंकि उसने हमारे हरफनमौला कथित पीएम को सिर्फ चोर कहने का गंभीर अपराध किया है। जबकि देश की जनता उनको चोर के साथ-साथ झूठा,भ्रष्ट,ढोंगी,धोखेबाज,मक्कार और गैरजिम्मेदार भी मान चुकी है तो फिर विपक्ष को किसने यह अधिकार दे दिया कि वो महान शैतानावतार मनमोहन सिंह को अंडरस्टीमेट करे और ऐसा करके अपमानित करे? दुनिया में कृत्रिम बुद्धि से युक्त पहले यंत्र-मानव मनमोहन सिंह जी को यह शिकायत भी है कि संसार में सिर्फ भारत में भी संसद के बेल में आकर विपक्ष प्रधानमंत्री चोर है का नारा लगाता है। मैं उनसे अर्ज करता हूँ कि प्यारे मनमोहन आपको तो खुश होना चाहिए कि आप भारत जैसे मुर्दादिल और नपुंसक देश के प्रधानमंत्री हैं वरना अगर आप किसी यूरोपीय देश के प्रधानमंत्री होते और आपने वहाँ वैसे ही और उतने ही महान कार्य किए होते जितने कि भारत में किए हैं तो उस देश की जनता अपने घरों में बैठी नहीं रहती और सड़कों पर उतरकर आपके घर समेत पूरी दिल्ली को कई साल पहले घेर चुकी होती और फिर आप चार साल तो क्या चार दिन के लिए भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं रह पाते और पिछले कई सालों से अपने प्रायोजक गांधी परिवार और अपने अधिकांश मंत्रिमंडल के साथ तिहाड़ जेल में अपने करकमलों से मुलायम-मुलायम रोटियाँ तोड़ रहे होते।
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