मंगलवार, 15 अक्टूबर 2013

दरिंदा बनता सिस्टम

मित्रों,रविवार को मध्य प्रदेश के दतिया में हुए हादसे की परतें जैसे-जैसे उधड़ रही हैं पुलिस का वीभत्स चेहरा सामने आ रहा है। दतिया जिले के रतनगढ़ माता मंदिर में मची भगदड़ के लिए तो लोग पुलिस को जिम्मेदार ठहरा ही रहे हैं, लेकिन भगदड़ के बाद पुलिस ने जो किया उसे सुन कर इंसानियत भी शर्मसार हो जाए। नवभारत टाइम्स के अनुसार प्रत्यक्षदर्शियों ने आरोप लगाया है कि पुलिस ने मरे पड़े कई लोगों के शवों और कुछ घायल लेकिन जिंदा बच्चों को उठाकर नदी में फेंक दिया। इन लोगों का कहना है कि इन्होंने इन बच्चों में कई को बचाया। ये भी बताया जा रहा है कि शवों को फेंकने से पहले पुलिस वाले शवों से जेवर और और पैसे निकालकर अपनी जेबें भर रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, शवों से जेवर उतारने के लिए पुलिस वालों में होड़ लगी हुई थी।
               मित्रों,अखबार के अनुसार हादसे की चश्मदीद रजुश्री यादव का कहना है, 'मैंने पुल पर श्रद्धालुओं को चिल्लाते हुए सुना कि पुलिस शवों और कुछ बच्चों को पानी में फेंक रही थी। मैंने खुद छह बच्चों को बाहर निकाला। इनमें से एक को मैंने नदी से निकाला।' ग्राम रक्षा समिति की सदस्य यादव का कहना है कि उन्होंने पांच बच्चों को उनके परिजनों को सौंप दिया है जबकि एक दो साल की बच्ची अभी भी उनके पास है। यादव के साथ उनके भतीजे कमल प्रजापति भी थे। उनका कहना है कि उन्होंने एक लड़के को डूबने से बचाया।   प्रत्यक्षदर्शी इंदेल अहीरवार का कहना है कि उसने पुलिसवालों को कई लाशों को गाड़ी में कहीं ले जाते देखा। उनका कहना है कि उन्होंने करीब 175 लाशें देखीं थीं। मध्य प्रदेश के ही भिंड की रहने वाली गीता मिश्रा ने स्थानीय संवाददाताओं से कहा, 'मैं भगदड़ के दौरान पुल पर ही थी। पुलिसवालों को 2 दर्जन से अधिक लोगों को नदी में फेंकते देखा।' हादसे में बाल-बाल बचे दमोह के रहने वाले 15 साल के आ‍शीष अहीरवार ने बताया कि जब वह अपने 5 साल के भाई का शव लेने गया तो पुलिस वालों ने उसे नदी में फेंक दिया। आशीष को गंभीर चोटें आई हैं। आशीष का कहना है, 'मैंने उनसे मेरे भाई की लाश देने की भीख मांगी लेकिन उन्होंने उल्टे मुझे ही नीचे फेंक दिया और बोले कि तुम्हें भी मर जाना चाहिए।'सबसे हैरान करने की बात है कि पुलिस ने सीधे-सीधे इस गंभीर आरोप से इंकार भी नहीं किया है। इस बारे में पूछे जाने पर डीजीपी नंदन कुमार दुबे ने कहा कि आरोपों की पड़ताल की जा रही है और अगर इनमें सचाई मिली तो कार्रवाई की जाएगी। रतनगढ़ माता मंदिर के पास बसई घाट पर सिंध नदी का पुल टूटने की अफवाह और फिर पुलिस लाठीचार्ज से मची भगदड़ में 115 लोगो के मरने की खबर है। लोग आशंका जता रहे हैं कि मरने वालों की संख्या 200 से ऊपर जा सकती है। बताया जा रहा है कि हादसे के वक्त वहां करीब 1.5 लाख लोग मौजूद थे। इस बीच इस हादसे के बाद दतिया के डीएम, एसपी, एसडीएम और डीएसपी को सस्पेंड कर दिया गया है।
                             मित्रों,जाहिर है कि इस दुर्घटना में सिर्फ शताधिक मानवों की ही मौत नहीं हुई है बल्कि उससे भी ज्यादा बेरहमी से मारा गया है मानवता को और हत्यारे कोई और नहीं हैं बल्कि वे लोग हैं जिनके कंधों पर इसकी रक्षा की जिम्मेदारी थी। क्या भविष्य में हमारे बच्चे बेखौफ और बेफिक्र होकर संकट के समय पुलिस अंकल से मदद की गुहार लगा सकेंगे? प्रश्न सिर्फ यह नहीं है कि इस घटना के लिए प्रदेश सरकार कहाँ तक जिम्मेदार है बल्कि असली प्रश्न तो यह उठता है कि अब तक हमारा जो सिस्टम सिर्फ भ्रष्ट था अब हम जनता के खून का ही प्यासा क्यों हो गया है या होने लगा है? जो व्यक्ति बिना वर्दी के दीन-हीन बना रहता है वही व्यक्ति वर्दी पहनते ही कैसे खूंखार दरिंदा बन जाता है? खामी कहाँ है या कहाँ-कहाँ है? क्या सिपाही-दारोगा की बहाली की प्रक्रिया भ्रष्टाचाररहित है? जो व्यक्ति पैसों से वर्दी खरीदेगा वो फिर उसका मूल्य तो वसूलेगा ही चाहे घूस खाकर वसूले या लाशों से गहने उतारकर। हम किसी भी परीक्षा के दौरान फिर चाहे वो परीक्षा चतुर्थवर्गीय कर्मचारी के लिए हो या आईएएस अधिकारियों के लिए उम्मीदवारों के ज्ञान की,जाति की या फिर घूस देने की क्षमता की जाँच करते हैं लेकिन उनकी ईमानदारी और ईंसानियत की कहीं जाँच नहीं होती। क्या सभी परीक्षाओं में उम्मीदवारों की ईमानदारी व ईंसानियत की जाँच नहीं की जानी चाहिए? मैं यह तो मानता हूँ कि लोकतंत्र में यथा प्रजा तथा राजा का नियम काम करता है लेकिन मैं यह नहीं मानता कि यथा राजा तथा प्रजा का नियम बिल्कुल ही बेअसर और बेकार हो गया है। बल्कि दोनों ही नियम अपनी-अपनी जगह आज भी प्रासंगिक हैं और हमेशा रहनेवाले हैं। गुजरात की पुलिस अगर ईमानदार है तो इसलिए क्योंकि वहाँ के मुख्यमंत्री ईमानदार हैं और उ.प्र.,दिल्ली,बिहार,मध्य प्रदेश की पुलिस अगर बेईमान है तो सिर्फ इसलिए क्योंकि वहाँ के मुख्यमंत्री ईमानदार नहीं है। मैं अगर ईमानदारी से कहूँ तो मैं खुद एक पत्रकार होने के बावजूद पुलिसकर्मियों के मुँह लगने से बचता रहता हूँ। अभी पाँच-छः दिन पहले ही बेगूसराय में बिहार पुलिस की रंगदारी और बर्बरता के शिकार अंतरार्ष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मानों से सम्मानित प्रख्यात रंगकर्मी प्रवीण कुमार गुंजन तक हो चुके हैं और अस्पताल में भर्ती हैं।
               मित्रों,मैं वर्षों से कहता आ रहा हूँ कि हमारे देश के अधिकतर राज्यों की पुलिस बिल्कुल भी ईमानदार नहीं रह गई है और वास्तव में वर्दीवाले गुंडों का अघोषित संगठन भर बनकर रह गई है। क्या जरुरत हैं ऐसी लुटेरी-हत्यारी सरकारी संस्था की? हालात कैसे बदलेंगे यह हम सभी जानते हैं। जब तक हम नहीं बदलेंगे,तब तक समाज नहीं बदलेगा और जब तक समाज नहीं बदलेगा हालात भी नहीं बदलेंगे। अभी उपभोक्तावाद का दौर है जिसमें हम सभी आदमी ईंसान नहीं बल्कि उपभोक्ता बनकर रह गए हैं। कदाचित् अभी हमारा व हमारे समाज का और भी नैतिक पतन होना शेष है और वो समय आनेवाला है जब हम भारतीय सिर्फ यौन-संतुष्टि के पीछे भागनेवाले जानवर बनकर रह जाएंगे। उसके बाद की भविष्यवाणी मैं नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा करना मेरी क्षमता के बाहर है।                          

कोई टिप्पणी नहीं: