मंगलवार, 22 अक्टूबर 2013

आग से खेल रहे हैं छद्म धर्मनिरपेक्ष

मित्रों,हम सभी जानते हैं कि अलीगढ़ आंदोलन की कट्टर और अलगाववादी विचारधारा व 1909 के मोर्ले-मिंटो अधिनियम के मिलेजुले प्रभाव ने भारत का बँटवारा करवा दिया। कोई भले ही जिन्ना को भारत के बँटवारे के लिए दोषी माने लेकिन भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद मोर्ले-मिंटो अधिनियम को ही भारत के बँटवारे के लिए दोषी मानते थे। अपनी प्रसिद्ध पुस्तक इंडिया डिवाइडेड में उन्होंने लिखा है कि भारत का वास्तविक बँटवारा 14 अगस्त,1947 को नहीं किया गया बल्कि 1909 में ही तभी कर दिया गया जब मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग सामाजिक-राजनैतिक इकाई मानते हुए अंग्रेजों ने उनके लिए अलग निर्वाचन-क्षेत्र और निर्वाचक मंडल बनाने की घोषणा की। तभी से हिन्दू सिर्फ हिन्दुओं को और मुसलमान सिर्फ मुसलमानों को अपना प्रतिनिधि चुनने लगे।
                   मित्रों,आजादी के बाद भारतीय संविधान-निर्माताओं ने इतिहास से सबक लेते हुए संविधान में धर्म के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित कर दिया परन्तु मुसलमान वोट-बैंक पर गिद्ध-दृष्टि गड़ाए नेताओं ने सत्ता के लिए फिर से तुष्टीकरण का वही गंदा खेल खेलना शुरू कर दिया जो कभी अंग्रेज खेला करते थे। सबसे पहले पं. जवाहरलाल नेहरू ने इसकी शुरुआत की हिन्दू विवाह अधिनियम,1955 को पारित करवाकर जिसके अनुसार आज भी मुसलमानों के लिए अलग दीवानी कानून हैं और हिन्दुओं के लिए अलग। फिर बाद में मुस्लिम मतों के अन्य दावेदार-हिस्सेदार भी सामने आए और इस तरह धोबी पर धोबी बसे तब चिथड़े में साबुन लगे कहावत चरितार्थ की जाने लगी। आज सारे छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी दलों व नेताओं में मुसलमानों को अन्य जनसमुदायों से ज्यादा अतिरिक्त सुविधाएँ देने की होड़-सी लगी हुई है। इन लोगों ने हिन्दू विद्यार्थी-मुस्लिम विद्यार्थी,हिन्दू गरीब-मुस्लिम गरीब,हिन्दू ऋण-मुस्लिम ऋण,हिन्दू बैंक-इस्लामिक बैंक,हिन्दू दंगाई-मुस्लिम दंगाई,हिन्दू दंगा पीड़ित-मुस्लिम दंगा पीड़ित,हिन्दू पर्सनल लॉ-मुस्लिम पर्सनल लॉ,हिन्दू आतंकी-मुस्लिम आतंकी,हिन्दू आतंकवाद-मुस्लिम आतंकवाद,हिन्दू अपराधी-मुस्लिम अपराधी की अलग-अलग श्रेणियाँ बना दी है और वही सब कर रहे हैं जो आजादी से पहले अंग्रेज भारत की एकता और अखंडता  को नुकसान पहुँचाने के लिए किया करते थे। दुर्भाग्यवश इस बार जिन्ना या सर सैयद अहमद खाँ मुसलमान नहीं हैं बल्कि हिन्दू हैं। एक मोर्ले-मिंटो ने एक झटके में उस सिन्धू-गंगा के पानी का बँटवारा कर दिया था जिसको सदियों तक इंसानी खून की नदियाँ बहानेवाली तलवारें भी अलग नहीं कर पाई थीं। फिर आज के भारत में तो न जाने कितने मोर्ले-मिन्टो मौजूद हैं जिससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले वक्त में इस देश से और कितने पाकिस्तान निकलनेवाले हैं।
                    मित्रों,इस तरह के बेहद निराशाजनक माहौल में गुजरात की सरकार बधाई और स्तुति की पात्र है जिसने इस बार बकरीद के दिन हिन्दुओं के लिए परमपूज्य गायों के गलों पर छुरियाँ फेरनेवाले 184 मुसलमानों पर पासा व अन्य धाराओं के अंतर्गत मुकदमा दर्ज किया है जबकि दिल्ली समेत सारी राज्य-सरकारें व केंद्र सरकार बकरीद के दिन गोहत्या की घटनाओं से जानबूझकर अनजान बनी रही। हम 18-11-2011 को ब्रज की दुनिया पर लिखे गए अपने आलेख यह कैसे और कैसी क़ुरबानी? में अर्ज कर चुके हैं कि दक्षिणी दिल्ली के बटाला हाऊस क्षेत्र में बकरीद के दिन मुसलमानों के घर-घर में गायें-बछड़े काटे जाते हैं और ऐसा होते हुए हमने अपनी आँखों से देखा है फिर भी शीला दीक्षित या सुशील कुमार शिंदे ने गोमाताओं को कटने से रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। इतना ही नहीं गुजरात कांग्रेस ने मुसलमानों पर गोहत्या के लिए कार्रवाई किए जाने की निंदा भी की है। क्या ऐसे लोग हिन्दू कहलाने के योग्य हैं? मैं भारत सरकार समेत सभी छद्म धर्मनिरपेक्ष दलों से जो रोगी को भावे वही वैद्य फरमावे के रास्ते पर चलते हुए मांग करता हूँ कि उनको मुसलमानों को हिन्दुओं से अलग कर सुविधा देने की दिशा में सबसे महान कदम उठाने में तनिक भी देरी नहीं करनी चाहिए और मुसलमानों के लिए अलग से शरीयत आधारित मुस्लिम आपराधिक संहिता बना देनी चाहिए जिससे मुस्लिम अपराधियों व आतंकियों के साथ शरीयत के अनुसार न्याय हो सके। यथा-चोरी करने पर अंग-भंग,व्यभिचार-बलात्कार-हत्या करने पर सरेआम पत्थर मारकर मृत्यु-दंड इत्यादि।

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