16 सितंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,रहीम कवि ने कहा है कि
रहिमन बिपदा हूँ भलि जो थोड़े दिन होय,
हित अनहित या जगत में जानि पड़े सब कोय।
कश्मीर के अधिकतर भागों में इन दिनों अचानक सांप्रदायिक सद्भाव कायम हो गया है। क्या मस्जिद,क्या मंदिर और क्या गुरूद्वारा हर जगह हिन्दू,मुसलमान और सिक्ख एकसाथ रह रहे हैं और एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। काश ऐसी एकता बिना आपदा के आए हुए हमेशा बनी रहती! कश्मीर के जलने का बस एक ही कारण है कि कश्मीर मुसलमानबहुल है और मुसलमानों को अपने पंथ के अलावे अन्य कोई पंथ स्वीकार्य ही नहीं है। बाँकी पूरे भारत में जहाँ हिन्दू बहुमत में हैं हिन्दुओं को मुस्लिम सहित दूसरे पंथ के लोगों से कोई परेशानी नहीं है लेकिन मुस्लिमबहुल होने के कारण कश्मीर में पिछले 3 दशकों से अलगाववाद की हवा चल रही है। इसी अलगाववाद ने और इसी विचारधारा ने एक सदी पहले कहा था कि हिन्दू और मुस्लिम दो पंथ नहीं दो राष्ट्र हैं और इसलिए एक देश में एकसाथ नहीं रह सकते और 1947 में भारत का झूठा धार्मिक और राजनैतिक विभाजन करवाया था जबकि वास्तविकता यह है कि 1947 में मुसलमानों के लिए अलग बने देश पाकिस्तान में जितने मुसलमान हैं आज भी हिन्दूबहुल भारत में उससे कहीं अधिक मुसलमान हैं और अपेक्षाकृत अधिक शांतिपूर्ण जीवन जी रहे हैं और सुखी और समृद्ध हैं। यह एक कटु सत्य है कि कुछ दिन पहले तक कश्मीरी लोग भारतीय सेना को देखते ही उन पर पत्थरबाजी करने लगते थे और 15 अगस्त और 26 जनवरी को भारत की शान तिरंगे को फहराने के बदले वे लोग जलाते हैं।
मित्रों,पिछले कई दिनों से कश्मीर में जबसे 109 सालों में सबसे भयानक प्राकृतिक आपदा आई है तभी से कश्मीर घाटी में न तो राज्य सरकार के तंत्र का कहीं अता-पता है और न ही उन अलगाववादियों का ही जो खुद के कश्मीर का वास्तविक रहनुमा होने का दावा करते हैं। इनमें दो पाकिस्तानपरस्तों यासीन मलिक और अहमद शाह गिलानी की तो जान भी उसी भारतीय सेना ने बचाई है जिस पर पत्थर फेंकने के लिए वे लोग कश्मीरियों को उकसाया करते हैं। आज अगर कश्मीरी इस भयंकर विपदा में भी महफूज हैं,जीवित हैं और स्वस्थ हैं तो सिर्फ इसलिए क्योंकि हमारे सैनिक बिना सोये,बिना थके दिन-रात उनकी जान बचा रहे हैं और दिन-रात उन तक खाने-पीने के सामान के अलावा दवाइयाँ पहुँचा रहे हैं। उस पर कहीं-कहीँ कश्मीरियों ने सेना के हेलीकॉप्टर और जहाजों पर पत्थर फेंके हैं फिर भी कश्मीर में केंद्र सरकार और सेना की ओर से अभूतपूर्व तरीके से पूजा-भाव से राहत का काम किया जा रहा है। भारत सरकार के सारे वरिष्ठ अधिकारी इस समय दिल्ली छोड़कर कश्मीर में हैं और राहत-कार्यों की निगरानी कर रहे हैं। यहाँ तक कि भारत के प्रधानमंत्री ने देशवासियों से अपील की है कि वे 17 सितंबर को उनका जन्मदिन नहीं मनायें बल्कि जम्मू-कश्मीर के लिए योगदान करें।
मित्रों,टेलीवीजन पर इन दिनों आपदा-पीड़ित कश्मीरियों के जो बयान आ रहे हैं वे इस बात की तस्दीक करते हैं कि कश्मीरियों की इन दिनों अगर कोई मदद कर रहा है वह भारतीय सेना है। शायद यही कारण है कि इन दिनों श्रीनगर में लोगों को हिन्दुस्तानी सेना जिंदाबाद के नारे लगाते हुए देखा जा रहा है। यह एक अद्भुत क्षण है क्योंकि यह सब उस श्रीनगर में देखने को मिल रहा है जहाँ के लोग कुछ दिन पहले तक ही भारतीय सैनिकों को देखते ही पत्थर चलाने लगते थे। कश्मीरी तो कश्मीरी आपदा के समय घाटी में मौजूद पाकिस्तानी सांसदों को भी मानना पड़ा कि इस समय जहाँ देखिए वहाँ देवदूत की तरह मानवता की सेवा में सतत तत्पर सिर्फ भारतीय सैनिक ही दिखाई देते हैं।
मित्रों,सवाल उठता है कि क्या अब कश्मीरी भारतीय सेना पर पत्थर नहीं फेंकेंगे? हमने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी कि गंगा स्नान करते वक्त एक साधू ने देखा कि एक बिच्छू पानी में डूब रहा है। साधू ने उसे अपनी हथेली पर उठा लिया लेकिन बिच्छू ने स्वभावतः डंक मारा। साधू दर्द से कराह उठा और बिच्छू उसके हाथ से छूटकर फिर से डूबने लगा। जब ऐसा कई बार हुआ तो लोगों ने साधू से कहा कि डूब जाने दीजिए इसे। तब साधू ने उत्तर दिया कि जब यह अपना स्वभाव नहीं छोड़ रहा है तो मैं क्यों छोड़ूँ? हो सकता है कि इस कहानी के बिच्छू की तरह कश्मीरी आपदा के टल जाने के बाद फिर से भारतीय सैनिकों पर पत्थर से प्रहार करने लगें लेकिन तब वे इंसान नहीं बिच्छू कहे जाएंगे, इस कहानी के बिच्छू। इंसानियत तो यही कहती है कि एक इंसान को दिल के बदले दिल और जान के बदले जान देनी चाहिए। इंसानियत यह भी कहता है कि जो लोग अहसानफरामोश होते हैं वे इंसानियत के नाम पर कलंक होते हैं। तो क्या कश्मीरी सचमुच बिच्छू हैं,इंसान नहीं हैं। यह हम साबित नहीं कर सकते। यह उनको ही साबित करना होगा और ऐसा सिर्फ और सिर्फ वे ही साबित कर सकते हैं। हम भारतीय तो हमेशा से उनको गले और सीने से लगाने को तैयार हैं मगर क्या वे ऐसा करने के लिए तैयार हैं? 1947 से लेकर अबतक जब-जब कश्मीर को कष्ट हुआ है भारत ने हमेशा उनके जख्मों पर मरहम लगाया है,भाई की तरह जान देकर भी सहायता की है। आज भी जल-प्रलय के समय पूरा भारत कश्मीरियों के साथ खड़ा है मगर अब आगे शेष भारत के साथ हाथ-से-हाथ मिलाकर खड़े होने की बारी कश्मीरियों की है। कश्मीरियों को यह साबित करना ही होगा कि वे कृतघ्न नहीं हैं और वे भी दिल के बदले दिल और जान के बदले जान देना जानते हैं।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
रहिमन बिपदा हूँ भलि जो थोड़े दिन होय,
हित अनहित या जगत में जानि पड़े सब कोय।
कश्मीर के अधिकतर भागों में इन दिनों अचानक सांप्रदायिक सद्भाव कायम हो गया है। क्या मस्जिद,क्या मंदिर और क्या गुरूद्वारा हर जगह हिन्दू,मुसलमान और सिक्ख एकसाथ रह रहे हैं और एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। काश ऐसी एकता बिना आपदा के आए हुए हमेशा बनी रहती! कश्मीर के जलने का बस एक ही कारण है कि कश्मीर मुसलमानबहुल है और मुसलमानों को अपने पंथ के अलावे अन्य कोई पंथ स्वीकार्य ही नहीं है। बाँकी पूरे भारत में जहाँ हिन्दू बहुमत में हैं हिन्दुओं को मुस्लिम सहित दूसरे पंथ के लोगों से कोई परेशानी नहीं है लेकिन मुस्लिमबहुल होने के कारण कश्मीर में पिछले 3 दशकों से अलगाववाद की हवा चल रही है। इसी अलगाववाद ने और इसी विचारधारा ने एक सदी पहले कहा था कि हिन्दू और मुस्लिम दो पंथ नहीं दो राष्ट्र हैं और इसलिए एक देश में एकसाथ नहीं रह सकते और 1947 में भारत का झूठा धार्मिक और राजनैतिक विभाजन करवाया था जबकि वास्तविकता यह है कि 1947 में मुसलमानों के लिए अलग बने देश पाकिस्तान में जितने मुसलमान हैं आज भी हिन्दूबहुल भारत में उससे कहीं अधिक मुसलमान हैं और अपेक्षाकृत अधिक शांतिपूर्ण जीवन जी रहे हैं और सुखी और समृद्ध हैं। यह एक कटु सत्य है कि कुछ दिन पहले तक कश्मीरी लोग भारतीय सेना को देखते ही उन पर पत्थरबाजी करने लगते थे और 15 अगस्त और 26 जनवरी को भारत की शान तिरंगे को फहराने के बदले वे लोग जलाते हैं।
मित्रों,पिछले कई दिनों से कश्मीर में जबसे 109 सालों में सबसे भयानक प्राकृतिक आपदा आई है तभी से कश्मीर घाटी में न तो राज्य सरकार के तंत्र का कहीं अता-पता है और न ही उन अलगाववादियों का ही जो खुद के कश्मीर का वास्तविक रहनुमा होने का दावा करते हैं। इनमें दो पाकिस्तानपरस्तों यासीन मलिक और अहमद शाह गिलानी की तो जान भी उसी भारतीय सेना ने बचाई है जिस पर पत्थर फेंकने के लिए वे लोग कश्मीरियों को उकसाया करते हैं। आज अगर कश्मीरी इस भयंकर विपदा में भी महफूज हैं,जीवित हैं और स्वस्थ हैं तो सिर्फ इसलिए क्योंकि हमारे सैनिक बिना सोये,बिना थके दिन-रात उनकी जान बचा रहे हैं और दिन-रात उन तक खाने-पीने के सामान के अलावा दवाइयाँ पहुँचा रहे हैं। उस पर कहीं-कहीँ कश्मीरियों ने सेना के हेलीकॉप्टर और जहाजों पर पत्थर फेंके हैं फिर भी कश्मीर में केंद्र सरकार और सेना की ओर से अभूतपूर्व तरीके से पूजा-भाव से राहत का काम किया जा रहा है। भारत सरकार के सारे वरिष्ठ अधिकारी इस समय दिल्ली छोड़कर कश्मीर में हैं और राहत-कार्यों की निगरानी कर रहे हैं। यहाँ तक कि भारत के प्रधानमंत्री ने देशवासियों से अपील की है कि वे 17 सितंबर को उनका जन्मदिन नहीं मनायें बल्कि जम्मू-कश्मीर के लिए योगदान करें।
मित्रों,टेलीवीजन पर इन दिनों आपदा-पीड़ित कश्मीरियों के जो बयान आ रहे हैं वे इस बात की तस्दीक करते हैं कि कश्मीरियों की इन दिनों अगर कोई मदद कर रहा है वह भारतीय सेना है। शायद यही कारण है कि इन दिनों श्रीनगर में लोगों को हिन्दुस्तानी सेना जिंदाबाद के नारे लगाते हुए देखा जा रहा है। यह एक अद्भुत क्षण है क्योंकि यह सब उस श्रीनगर में देखने को मिल रहा है जहाँ के लोग कुछ दिन पहले तक ही भारतीय सैनिकों को देखते ही पत्थर चलाने लगते थे। कश्मीरी तो कश्मीरी आपदा के समय घाटी में मौजूद पाकिस्तानी सांसदों को भी मानना पड़ा कि इस समय जहाँ देखिए वहाँ देवदूत की तरह मानवता की सेवा में सतत तत्पर सिर्फ भारतीय सैनिक ही दिखाई देते हैं।
मित्रों,सवाल उठता है कि क्या अब कश्मीरी भारतीय सेना पर पत्थर नहीं फेंकेंगे? हमने बचपन में एक कहानी पढ़ी थी कि गंगा स्नान करते वक्त एक साधू ने देखा कि एक बिच्छू पानी में डूब रहा है। साधू ने उसे अपनी हथेली पर उठा लिया लेकिन बिच्छू ने स्वभावतः डंक मारा। साधू दर्द से कराह उठा और बिच्छू उसके हाथ से छूटकर फिर से डूबने लगा। जब ऐसा कई बार हुआ तो लोगों ने साधू से कहा कि डूब जाने दीजिए इसे। तब साधू ने उत्तर दिया कि जब यह अपना स्वभाव नहीं छोड़ रहा है तो मैं क्यों छोड़ूँ? हो सकता है कि इस कहानी के बिच्छू की तरह कश्मीरी आपदा के टल जाने के बाद फिर से भारतीय सैनिकों पर पत्थर से प्रहार करने लगें लेकिन तब वे इंसान नहीं बिच्छू कहे जाएंगे, इस कहानी के बिच्छू। इंसानियत तो यही कहती है कि एक इंसान को दिल के बदले दिल और जान के बदले जान देनी चाहिए। इंसानियत यह भी कहता है कि जो लोग अहसानफरामोश होते हैं वे इंसानियत के नाम पर कलंक होते हैं। तो क्या कश्मीरी सचमुच बिच्छू हैं,इंसान नहीं हैं। यह हम साबित नहीं कर सकते। यह उनको ही साबित करना होगा और ऐसा सिर्फ और सिर्फ वे ही साबित कर सकते हैं। हम भारतीय तो हमेशा से उनको गले और सीने से लगाने को तैयार हैं मगर क्या वे ऐसा करने के लिए तैयार हैं? 1947 से लेकर अबतक जब-जब कश्मीर को कष्ट हुआ है भारत ने हमेशा उनके जख्मों पर मरहम लगाया है,भाई की तरह जान देकर भी सहायता की है। आज भी जल-प्रलय के समय पूरा भारत कश्मीरियों के साथ खड़ा है मगर अब आगे शेष भारत के साथ हाथ-से-हाथ मिलाकर खड़े होने की बारी कश्मीरियों की है। कश्मीरियों को यह साबित करना ही होगा कि वे कृतघ्न नहीं हैं और वे भी दिल के बदले दिल और जान के बदले जान देना जानते हैं।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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