22 सितंबर,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों, मैं आपसे पहले भी अर्ज
कर चुका हूं कि हमारे बिहार का कबाड़ा करने में जवाब नहीं। जब नेपाल की
सरकार ने बिहार में बाढ़ लाने से मना कर दिया तो बिहार सरकार ने राजधानी
पटना को ही जलमग्न करवा दिया। आखिर राहत के लिए तैयार सामग्री को
कहीं-न-कहीं तो खपाना ही था। वो तो भला हो कश्मीर का वरना बिहार के कई अन्य
ईलाकों को भी जलमग्न करना पड़ता।
मित्रों,अब बिहार की शिक्षा को ही लीजिए। बिहार की प्राथमिक शिक्षा का तो पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही गला घोंट चुके थे लेकिन बिहार की उच्च शिक्षा अभी तक साँस लिए जा रही थी। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अब बहुत कम शिक्षक बच गए थे लेकिन दुर्भाग्यवश जो शिक्षक अभी तक रिटायर होने से बचे हुए थे उनमें से कई वास्तव में ज्ञानी थे। अब बिहार सरकार कोई नरेंद्र मोदी तो है नहीं कि वो कहे कि डिग्री के लिए नहीं ज्ञान के लिए पढ़ो। बल्कि उसका तो साफ तौर पर मानना है कि पढ़ो ही नहीं। हम साईकिल दे रहे हैं उसकी सवारी गांठो,हम पैसे दे रहे हैं उससे सिनेमा देखो या इंटरनेट पैकेज भरवाओ,हम पोशाक राशि दे रहे हैं उससे अच्छी-अच्छी पोशाक बनवाओ लेकिन पढ़ो मत। परीक्षाओं में हमने कदाचार की पूरी छूट दे रखी है इसलिए ज्ञान के पीछे,पढ़ाई के पीछे नहीं भागो डिग्री के पीछे भागो। नौकरी झक मारकर तुम्हारे पीछे आएगी। दूसरे राज्यों में अगर प्रतियोगिता परीक्षा के कारण नौकरी नहीं मिली तो हम हैं न। हाँ,इंटर और मैट्रिक की परीक्षा में खूब कागज काले करो और हमारे दिए पैसों में से कुछ बचाकर भी रखो क्योंकि जो शिक्षक तुम्हारी कॉपियाँ देखेंगे उनको भी कहाँ कुछ अता-पता है। वे तो तराजू पर तुम्हारी कॉपियाँ तौल कर ही या फिर तुमसे पैसे लेकर ही तुमको नंबर देंगे। चाहे तुम आईआईटी और मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं में पास भी कर जाओ मगर हमारे परीक्षक तो तुमको केमिस्ट्री में 8 और गणित में 5 नंबर ही देंगे। देखा नहीं इसलिए तो हमने मुहम्मद बिन तुगलक से प्रेरित होकर पहले प्राथमिक विद्यालयों में नंबर के आधार पर शिक्षकों को बहाल किया और अब महाविद्यालयों-विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की बहाली भी नंबर के आधार पर करने जा रहे हैं।
मित्रों,हमारे मुख्यमंत्री मांझी जी जो कुछ भी बोलते रहते हैं यह भी कह सकते हैं कि गुजरात में भी तो मोदी ने स्कूल टीचर इसी तरह से बहाल किए थे। मगर गुजरात में इस तरह से मस्ती की पाठशाला तो नहीं चलती,परीक्षाएँ ओपेन बुक सिस्टम के आधार पर तो नहीं ली जातीं? बल्कि वहाँ तो वास्तव में ज्ञान के लिए शिक्षा दी जाती है डिग्री के लिए नहीं। अब आप हमारे बैच को ही लीजिए। मैं अपने बैच में प्रतिभा खोज परीक्षा में पूरे जिले में प्रथम आया था। हमेशा ज्ञान के पीछे भागा। जबतक किसी प्रश्न का उत्तर नहीं पा जाता बेचैन रहा करता लेकिन जब मैट्रिक का रिजल्ट आया तो हमारी कक्षा का सबसे भोंदू विद्यार्थी जिसने वाकई विद्या की अर्थी ही निकाल दी थी और जिसको ए,बी,सी,डी और पहाड़ा तक का पता नहीं था उस रंजीत झा को सबसे ज्यादा अंक प्राप्त हुए थे क्योंकि उसकी बोर्ड में पैरवी थी। अब आप ही बताईए कि अगर मुझे और रंजीत को शिक्षक बना दिया जाए तो कौन अच्छा पढ़ाएगा? आप कहेंगे कि आप लेकिन बिहार सरकार तो कह रही है कि रंजीत झा छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के लिए ज्यादा बेहतर साबित होगा भले ही रंजीत झा कभी कक्षा में जाए ही नहीं। जिसने मैट्रिक,इंटर,बीए और पीजी की परीक्षाओं में जितना ज्यादा कदाचार किया उसके बिहार में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की संभावना उतनी ही ज्यादा है।
मित्रों,मेरे ममेरे भाई संतोष को भले ही कुछ नहीं आता हो,थीटा और बीटा के चिन्हों को भी वो पहचान नहीं पाए लेकिन हमारी बिहार सरकार को तो महाविद्यालय में गणित शिक्षक के तौर पर वही चाहिए भले ही सिर्फ कॉलेजों के स्टाफ रूम की शोभा बढ़ाने के लिए। लगता है कि बिहार सरकार इसलिए खुली प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली नहीं करना चाहती क्योंकि उसको लगता है कि अगर आईए,बीए में ज्यादा-से-ज्यादा नंबर पानेवाले परीक्षा में असफल हो गए तो वह असफलता बिहार की शिक्षा,परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली की असफलता होगी। इससे बिहार की शिक्षा और परीक्षा-प्रणाली की पोल भी खुल जाने का खतरा है। फिर हमलोगों के जैसे ज्ञानी मानव अगर प्रोफेसर बन गए तो विद्यार्थियों में विद्रोह और सरकार के विरोध की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा और हमारे महाविद्यालय और विश्वविद्यालय वास्तव में मस्ती की पाठशाला बन पाने से वंचित रह जाएंगे। विद्यार्थियों को पढ़ना पड़ेगा जिससे उनकी दिमागी हालत पर बुरा असर भी पड़ सकता है।
मित्रों,कहने का मतलब यह है कि बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से बिहार सरकार ने बिहार में महाविद्यालय और विश्वविद्यालय शिक्षकों की बहाली के लिए जो अधिसूचना जारी की है और जो कार्यक्रम तय किए हैं वास्तव में वह बिहार की उच्च शिक्षा का श्राद्ध-कर्म कार्यक्रम है जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।-मान्यवर,बड़े ही हर्ष के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि बिहार की उच्च शिक्षा का डिग्री का दौरा पड़ने से दिनांक 13 सितंबर,2014 को आकस्मिक निधन हो गया है। श्राद्ध-कर्म के लिए कार्यक्रम इस प्रकार निर्धारित किए गए हैं जिसमें आप सभी येन-केन-प्रकारेण उच्च प्राप्तांकधारी आमंत्रित हैं-
क्षौर-कर्म- दिनांक 20-11-2014 के पाँच बजे शाम तक
बाँकी के एकादशा,द्वादशा को पिंडदान और महाभोज के बारे में आपको जानकारी भविष्य में दी जाएगी।
दर्शनाभिलाषी-महाठगबंधन के सभी सदस्य,
आकांक्षी-जीतनराम मांझी,मुख्यमंत्री,बिहार।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,अब बिहार की शिक्षा को ही लीजिए। बिहार की प्राथमिक शिक्षा का तो पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही गला घोंट चुके थे लेकिन बिहार की उच्च शिक्षा अभी तक साँस लिए जा रही थी। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में अब बहुत कम शिक्षक बच गए थे लेकिन दुर्भाग्यवश जो शिक्षक अभी तक रिटायर होने से बचे हुए थे उनमें से कई वास्तव में ज्ञानी थे। अब बिहार सरकार कोई नरेंद्र मोदी तो है नहीं कि वो कहे कि डिग्री के लिए नहीं ज्ञान के लिए पढ़ो। बल्कि उसका तो साफ तौर पर मानना है कि पढ़ो ही नहीं। हम साईकिल दे रहे हैं उसकी सवारी गांठो,हम पैसे दे रहे हैं उससे सिनेमा देखो या इंटरनेट पैकेज भरवाओ,हम पोशाक राशि दे रहे हैं उससे अच्छी-अच्छी पोशाक बनवाओ लेकिन पढ़ो मत। परीक्षाओं में हमने कदाचार की पूरी छूट दे रखी है इसलिए ज्ञान के पीछे,पढ़ाई के पीछे नहीं भागो डिग्री के पीछे भागो। नौकरी झक मारकर तुम्हारे पीछे आएगी। दूसरे राज्यों में अगर प्रतियोगिता परीक्षा के कारण नौकरी नहीं मिली तो हम हैं न। हाँ,इंटर और मैट्रिक की परीक्षा में खूब कागज काले करो और हमारे दिए पैसों में से कुछ बचाकर भी रखो क्योंकि जो शिक्षक तुम्हारी कॉपियाँ देखेंगे उनको भी कहाँ कुछ अता-पता है। वे तो तराजू पर तुम्हारी कॉपियाँ तौल कर ही या फिर तुमसे पैसे लेकर ही तुमको नंबर देंगे। चाहे तुम आईआईटी और मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं में पास भी कर जाओ मगर हमारे परीक्षक तो तुमको केमिस्ट्री में 8 और गणित में 5 नंबर ही देंगे। देखा नहीं इसलिए तो हमने मुहम्मद बिन तुगलक से प्रेरित होकर पहले प्राथमिक विद्यालयों में नंबर के आधार पर शिक्षकों को बहाल किया और अब महाविद्यालयों-विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की बहाली भी नंबर के आधार पर करने जा रहे हैं।
मित्रों,हमारे मुख्यमंत्री मांझी जी जो कुछ भी बोलते रहते हैं यह भी कह सकते हैं कि गुजरात में भी तो मोदी ने स्कूल टीचर इसी तरह से बहाल किए थे। मगर गुजरात में इस तरह से मस्ती की पाठशाला तो नहीं चलती,परीक्षाएँ ओपेन बुक सिस्टम के आधार पर तो नहीं ली जातीं? बल्कि वहाँ तो वास्तव में ज्ञान के लिए शिक्षा दी जाती है डिग्री के लिए नहीं। अब आप हमारे बैच को ही लीजिए। मैं अपने बैच में प्रतिभा खोज परीक्षा में पूरे जिले में प्रथम आया था। हमेशा ज्ञान के पीछे भागा। जबतक किसी प्रश्न का उत्तर नहीं पा जाता बेचैन रहा करता लेकिन जब मैट्रिक का रिजल्ट आया तो हमारी कक्षा का सबसे भोंदू विद्यार्थी जिसने वाकई विद्या की अर्थी ही निकाल दी थी और जिसको ए,बी,सी,डी और पहाड़ा तक का पता नहीं था उस रंजीत झा को सबसे ज्यादा अंक प्राप्त हुए थे क्योंकि उसकी बोर्ड में पैरवी थी। अब आप ही बताईए कि अगर मुझे और रंजीत को शिक्षक बना दिया जाए तो कौन अच्छा पढ़ाएगा? आप कहेंगे कि आप लेकिन बिहार सरकार तो कह रही है कि रंजीत झा छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के लिए ज्यादा बेहतर साबित होगा भले ही रंजीत झा कभी कक्षा में जाए ही नहीं। जिसने मैट्रिक,इंटर,बीए और पीजी की परीक्षाओं में जितना ज्यादा कदाचार किया उसके बिहार में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने की संभावना उतनी ही ज्यादा है।
मित्रों,मेरे ममेरे भाई संतोष को भले ही कुछ नहीं आता हो,थीटा और बीटा के चिन्हों को भी वो पहचान नहीं पाए लेकिन हमारी बिहार सरकार को तो महाविद्यालय में गणित शिक्षक के तौर पर वही चाहिए भले ही सिर्फ कॉलेजों के स्टाफ रूम की शोभा बढ़ाने के लिए। लगता है कि बिहार सरकार इसलिए खुली प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर की बहाली नहीं करना चाहती क्योंकि उसको लगता है कि अगर आईए,बीए में ज्यादा-से-ज्यादा नंबर पानेवाले परीक्षा में असफल हो गए तो वह असफलता बिहार की शिक्षा,परीक्षा और मूल्यांकन प्रणाली की असफलता होगी। इससे बिहार की शिक्षा और परीक्षा-प्रणाली की पोल भी खुल जाने का खतरा है। फिर हमलोगों के जैसे ज्ञानी मानव अगर प्रोफेसर बन गए तो विद्यार्थियों में विद्रोह और सरकार के विरोध की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा और हमारे महाविद्यालय और विश्वविद्यालय वास्तव में मस्ती की पाठशाला बन पाने से वंचित रह जाएंगे। विद्यार्थियों को पढ़ना पड़ेगा जिससे उनकी दिमागी हालत पर बुरा असर भी पड़ सकता है।
मित्रों,कहने का मतलब यह है कि बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से बिहार सरकार ने बिहार में महाविद्यालय और विश्वविद्यालय शिक्षकों की बहाली के लिए जो अधिसूचना जारी की है और जो कार्यक्रम तय किए हैं वास्तव में वह बिहार की उच्च शिक्षा का श्राद्ध-कर्म कार्यक्रम है जिसमें आप सभी सादर आमंत्रित हैं।-मान्यवर,बड़े ही हर्ष के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि बिहार की उच्च शिक्षा का डिग्री का दौरा पड़ने से दिनांक 13 सितंबर,2014 को आकस्मिक निधन हो गया है। श्राद्ध-कर्म के लिए कार्यक्रम इस प्रकार निर्धारित किए गए हैं जिसमें आप सभी येन-केन-प्रकारेण उच्च प्राप्तांकधारी आमंत्रित हैं-
क्षौर-कर्म- दिनांक 20-11-2014 के पाँच बजे शाम तक
बाँकी के एकादशा,द्वादशा को पिंडदान और महाभोज के बारे में आपको जानकारी भविष्य में दी जाएगी।
दर्शनाभिलाषी-महाठगबंधन के सभी सदस्य,
आकांक्षी-जीतनराम मांझी,मुख्यमंत्री,बिहार।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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