11 जनवरी,2015,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,एक समय था जब मैं
समाजवादियों की काफी कद्र करता था। मेरे चाचा जो खुद भी समाजवादी थे ने
वर्षों पहले एक बार मुझे समझाया था कि समाजवाद का मतलब होता है रामजी के
चिरई रामजी के खेत,खा ले रे चिरई भर-भर पेट। उनके कथनानुसार समाजवादी समाज
से गैरबराबरी को समाप्त कर समरस समाज की स्थापना करना चाहते हैं। परन्तु
1990 के बाद वही चाचा कहने लगे कि समाजवाद बबुआ भकुआ गईल ह। अब
बिहार,हरियाणआ और यूपी में समाजवादियों का ही शासन था। शासन क्या था
दुश्शासन था। सत्ता में आने के बाद समाजवादियों ने समाज में समरसता की
स्थापना के स्थान पर अपनी जाति के शासन की स्थापना कर डाली। आज भी यूपी और
बिहार की माटी का कण-कण यही गाता हुआ लग रहा है कि हमें तो लूट लिया मिल के
समाजवादियों ने। यूपी-बिहार के समाजवादियों ने घोटालों की झड़ी लगा दी।
हरियाणा भी अपवाद नहीं रहा और वहाँ के चौटाला जी आज भी अपनी ठंडी रातें जेल
में काट रहे हैं।
मित्रों,क्या विडंबना है कि जिन बातों को लेकर समाजवादी पुराने शासकों की सामंतवादी कहकर आलोचना किया करते थे शासन में आने के बाद वे खुद वही सब कहीं ज्यादा चढ़-बढ़कर करने लगे। यूपी में जब मुलायम सिंह यादव को जन्मदिन मनाना होता है तो वे इसे सादे तरीके से नहीं मनाते बल्कि वे रामपुर की सड़कों पर विक्टोरिया की फिटन पर सवार होकर निकलते हैं। जब मुलायम परिवार को नया साल मनाना होता है तो वे इसे गरीबों को ठंड से बचाने का इंतजाम करते हुए नहीं मनाते बल्कि सैफई में अरबों रुपये फूंककर महामहोत्सव का आयोजन करते हैं जिसमें मोनिका बेदी ठुमके लगाती है,ऋत्विक रौशन संगीत और नृत्य की शमाँ को रौशन करते हैं। इस साल भी पूरे भारत में ठंड लगने से सबसे ज्यादा गरीब यूपी में ही मरे हैं लेकिन समाजवाद को अब गरीबों की चिंता नहीं है बल्कि वो तो मोनिका बेदी के साथ ठुमके लगाने में मशगूल है। इसी तरह समाजवाद को बलत्कृत अबलाओं की भी चिंता नहीं है बल्कि वो तो बलात्कार को बच्चों की छोटी-मोटी शरारत मानता है। इसी तरह कभी गैरबराबरी को समाप्त करने की चिंता करनेवाले समाजवादियों को आज दलितों की कोई चिंता नहीं है क्योंकि वे इनको वोट ही नहीं देते। समाजवाद सैफई के ठुमकों पर हो-हल्ला होने पर गजब की बेशर्मी से कहता है कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। जब हम छोटे थे तब हमारे गांव में शादियों में नर्तकियों को नचाया जाता था लेकिन इससे हमारे गांव में तो पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिला?
मित्रों,इन दिनों हमारे देश के समाजवाद को एक नई चिंता ने ग्रसित कर लिया है और वह चिंता है भाजपा और नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने की। लेकिन इसके लिए सैफई में ठुमके लगाता समाजवाद ठुमकों को रोककर सुशासन की स्थापना नहीं करता बल्कि कलम-कॉपी लेकर हिसाब लगाता है कि अगर हम-तुम हाथ मिला लें तो तुम्हारा वोट-बैंक और मेरा वोट-बैंक मिलकर हमारा वोट-बैंक इतना हो जाएगा और चुनाव जीतने के बाद हमारा बैंक-बैलेंस इतना। अब समाजवाद न सिर्फ भकुआ गया है बल्कि लंपट,सत्तावादी,सामन्तवादी और भ्रष्ट हो गया है। समाजवाद पहले कहता था कि राष्ट्रपति हो या गरीबों की संतान,सबको शिक्षा मिले एक समान लेकिन आज समाजवाद को गांवों में शिक्षा के स्तर को सुधारने की चिंता नहीं है बल्कि बच्चों के बीच लैपटॉप,साईकिल और छात्रवृत्ति बाँटकर चुनाव जीतने की चिंता है। आज मुलायम सिंह यादव का बेटा-पोता गांव में गरीबों के साथ टूटे हुए बेंचों और टाट पर बैठकर पढ़ाई नहीं करता बल्कि अमेरिका-इंग्लैंड जाकर हार्वर्ड और कैंब्रिज में अध्ययन करता है। इसी तरह से कभी समाजवाद कहता था कि हम उन घरों को रौशन करने आए हैं जिनमें सदियों से अंधेरा है मगर आज समाजवाद कहता है कि हम जिसकी सरकार रहे उसी के साथ हो लेने के लिए आए हैं ताकि बराबर सत्ता की मलाई चाभने को मिलती रहे। अब नई परिभाषानुसार गाँव,गरीब और गौ की चिंता करना समाजवाद नहीं है बल्कि चुनाव जीतकर सत्ता में आना,पुराने राजाओं की तरह राज भोगना,अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को गुंडागर्दी-मनमानी करने की पूरी छूट दे देना और फिर उनके बल पर चंबल के लुटेरों की तरह लूट मचाना समाजवाद है। मेरे चाचा कहते हैं कि बबुआ समाजवाद अब भकुआईल नईखे बाकिर सत्ता के नशीला दारू पीके पगला गईल ह।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,क्या विडंबना है कि जिन बातों को लेकर समाजवादी पुराने शासकों की सामंतवादी कहकर आलोचना किया करते थे शासन में आने के बाद वे खुद वही सब कहीं ज्यादा चढ़-बढ़कर करने लगे। यूपी में जब मुलायम सिंह यादव को जन्मदिन मनाना होता है तो वे इसे सादे तरीके से नहीं मनाते बल्कि वे रामपुर की सड़कों पर विक्टोरिया की फिटन पर सवार होकर निकलते हैं। जब मुलायम परिवार को नया साल मनाना होता है तो वे इसे गरीबों को ठंड से बचाने का इंतजाम करते हुए नहीं मनाते बल्कि सैफई में अरबों रुपये फूंककर महामहोत्सव का आयोजन करते हैं जिसमें मोनिका बेदी ठुमके लगाती है,ऋत्विक रौशन संगीत और नृत्य की शमाँ को रौशन करते हैं। इस साल भी पूरे भारत में ठंड लगने से सबसे ज्यादा गरीब यूपी में ही मरे हैं लेकिन समाजवाद को अब गरीबों की चिंता नहीं है बल्कि वो तो मोनिका बेदी के साथ ठुमके लगाने में मशगूल है। इसी तरह समाजवाद को बलत्कृत अबलाओं की भी चिंता नहीं है बल्कि वो तो बलात्कार को बच्चों की छोटी-मोटी शरारत मानता है। इसी तरह कभी गैरबराबरी को समाप्त करने की चिंता करनेवाले समाजवादियों को आज दलितों की कोई चिंता नहीं है क्योंकि वे इनको वोट ही नहीं देते। समाजवाद सैफई के ठुमकों पर हो-हल्ला होने पर गजब की बेशर्मी से कहता है कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। जब हम छोटे थे तब हमारे गांव में शादियों में नर्तकियों को नचाया जाता था लेकिन इससे हमारे गांव में तो पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिला?
मित्रों,इन दिनों हमारे देश के समाजवाद को एक नई चिंता ने ग्रसित कर लिया है और वह चिंता है भाजपा और नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने की। लेकिन इसके लिए सैफई में ठुमके लगाता समाजवाद ठुमकों को रोककर सुशासन की स्थापना नहीं करता बल्कि कलम-कॉपी लेकर हिसाब लगाता है कि अगर हम-तुम हाथ मिला लें तो तुम्हारा वोट-बैंक और मेरा वोट-बैंक मिलकर हमारा वोट-बैंक इतना हो जाएगा और चुनाव जीतने के बाद हमारा बैंक-बैलेंस इतना। अब समाजवाद न सिर्फ भकुआ गया है बल्कि लंपट,सत्तावादी,सामन्तवादी और भ्रष्ट हो गया है। समाजवाद पहले कहता था कि राष्ट्रपति हो या गरीबों की संतान,सबको शिक्षा मिले एक समान लेकिन आज समाजवाद को गांवों में शिक्षा के स्तर को सुधारने की चिंता नहीं है बल्कि बच्चों के बीच लैपटॉप,साईकिल और छात्रवृत्ति बाँटकर चुनाव जीतने की चिंता है। आज मुलायम सिंह यादव का बेटा-पोता गांव में गरीबों के साथ टूटे हुए बेंचों और टाट पर बैठकर पढ़ाई नहीं करता बल्कि अमेरिका-इंग्लैंड जाकर हार्वर्ड और कैंब्रिज में अध्ययन करता है। इसी तरह से कभी समाजवाद कहता था कि हम उन घरों को रौशन करने आए हैं जिनमें सदियों से अंधेरा है मगर आज समाजवाद कहता है कि हम जिसकी सरकार रहे उसी के साथ हो लेने के लिए आए हैं ताकि बराबर सत्ता की मलाई चाभने को मिलती रहे। अब नई परिभाषानुसार गाँव,गरीब और गौ की चिंता करना समाजवाद नहीं है बल्कि चुनाव जीतकर सत्ता में आना,पुराने राजाओं की तरह राज भोगना,अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को गुंडागर्दी-मनमानी करने की पूरी छूट दे देना और फिर उनके बल पर चंबल के लुटेरों की तरह लूट मचाना समाजवाद है। मेरे चाचा कहते हैं कि बबुआ समाजवाद अब भकुआईल नईखे बाकिर सत्ता के नशीला दारू पीके पगला गईल ह।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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