23 जनवरी,2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,एक समय था जब डॉक्टरों
को धरती का भगवान कहा जाता था। तब डॉक्टरी पैसा कमाने का गंदा धंधा नहीं थी
बल्कि मानव-सेवा का सबसे उत्तम माध्यम थी। लेकिन आज जैसा कि कल मैंने
महसूस किया डॉक्टरों से ज्यादा उदार और दयावान तो कसाई होते हैं।
मित्रों,हुआ यह कि इसी 16 जनवरी की रात में मेरी पत्नी के पेट में असहनीय दर्द होने लगा। मैं उसके साथ-साथ रातभर परेशान रहा। सुबह गैस की दवा दी। कुछ देर तक तो दर्द बंद रहा लेकिन दोपहर में फिर से दर्द होने लगा। मैं दौड़ा-दौड़ा हाजीपुर के ही सुभाष चौक पर क्लिनिक चलानेवाली डॉ. अंजु सिंह के पास गया और दो सौ रुपया देकर नंबर लगा दिया। फिर घर आया और 12 बजे आनन-फानन में क्लिनिक ले गया। परन्तु यह क्या डॉक्टर तो अपने कक्ष में थी ही नहीं। वे कथित रूप से ऑपरेशन थिएटर में चली गई थीं। फिर शुरू हुआ इंतजार का सिलसिला। पूरी बिल्डिंग में सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था और कंपाउंडर किसी भी चना-चबेना बेचनेवाले को फटकने नहीं दे रहा था। ईधर मेरी पत्नी का दर्द के मारे बुरा हाल था। उसके साथ-साथ मैं भी सुबह से भूखा-प्यासा अपनी बारी का इंतजार कर रहा था।
मित्रों,इस बीच मैंने कई बार कंपाउंडर से जल्दी दिखवाने का निवेदन किया लेकिन सब बेकार। मेरे साथ-साथ अन्य मरीज और उनके परिजन भी बेहाल थे। मैंने पूरे जीवन में इतनी सुस्ती से मरीज का परीक्षण करनेवाला डॉक्टर नहीं देखा था। फिर राम-राम करते-करते और पत्नी को दर्द से बेहाल देखते हुए शाम के पाँच बजे कंपाउंडर ने नाम पुकारा। लेकिन जब पत्नी दिखाकर बाहर आई तो पुर्जा पर कोई दवा नहीं लिखी गई थी बल्कि अल्ट्रासाउंड और कई तरह की जाँच लिखी हुई थी। मैंने पत्नी से पूछा कि क्या तुमने दवा लिखने को नहीं कहा। तब उसने बताया कि डॉक्टर ने कहा कि बिना अल्ट्रासाउंड औरजाँच की रिपोर्ट देखे वह दवा नहीं लिखेगी भले ही मेरी मौत ही क्यों न हो जाए।
मित्रों,फिर तो मारे गुस्से के मेरा बुरा हाल था। मैं सोंच रहा था कि डॉक्टर का मतलब क्या डाकू होता है? हद है कि डॉक्टरी ने किस तरह डकैती का स्वरूप ग्रहण कर लिया है! मरीज को ईलाज कराने के दौरान पग-पग पर लूटा जाता है और बेचारा प्रतिवाद भी नहीं कर पाता। 17 जनवरी को मेरी पत्नी की जो हालत थी उसको देखकर शायद जल्लाद भी रो पड़ता लेकिन एक डॉक्टर को तनिक भी दया नहीं आई! कहाँ है हिप्पोक्रेटिज की शपथ?
मित्रों,केंद्र सरकार ने जबसे गरीबों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की है तबसे इन डाकू डॉक्टरों की आमदनी कई गुना बढ़ गई है। मैंने सुना है कि भारत में डॉक्टरों को रेग्यूलेट करने के लिए एमसीआई नाम की कोई संस्था है। फिर एमसीआई या केंद्र सरकार क्यों प्रत्येक जिले या राज्य की राजधानी में मरीजों के लिए हेल्पलाईन नंबर जारी नहीं करती या ऐसी कोई वेबसाईट क्यों नहीं बनाती जहाँ फोन करके या ईमेल करके लोग डॉक्टर नामधारी डाकुओं की शिकायत कर सकें।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
मित्रों,हुआ यह कि इसी 16 जनवरी की रात में मेरी पत्नी के पेट में असहनीय दर्द होने लगा। मैं उसके साथ-साथ रातभर परेशान रहा। सुबह गैस की दवा दी। कुछ देर तक तो दर्द बंद रहा लेकिन दोपहर में फिर से दर्द होने लगा। मैं दौड़ा-दौड़ा हाजीपुर के ही सुभाष चौक पर क्लिनिक चलानेवाली डॉ. अंजु सिंह के पास गया और दो सौ रुपया देकर नंबर लगा दिया। फिर घर आया और 12 बजे आनन-फानन में क्लिनिक ले गया। परन्तु यह क्या डॉक्टर तो अपने कक्ष में थी ही नहीं। वे कथित रूप से ऑपरेशन थिएटर में चली गई थीं। फिर शुरू हुआ इंतजार का सिलसिला। पूरी बिल्डिंग में सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ था और कंपाउंडर किसी भी चना-चबेना बेचनेवाले को फटकने नहीं दे रहा था। ईधर मेरी पत्नी का दर्द के मारे बुरा हाल था। उसके साथ-साथ मैं भी सुबह से भूखा-प्यासा अपनी बारी का इंतजार कर रहा था।
मित्रों,इस बीच मैंने कई बार कंपाउंडर से जल्दी दिखवाने का निवेदन किया लेकिन सब बेकार। मेरे साथ-साथ अन्य मरीज और उनके परिजन भी बेहाल थे। मैंने पूरे जीवन में इतनी सुस्ती से मरीज का परीक्षण करनेवाला डॉक्टर नहीं देखा था। फिर राम-राम करते-करते और पत्नी को दर्द से बेहाल देखते हुए शाम के पाँच बजे कंपाउंडर ने नाम पुकारा। लेकिन जब पत्नी दिखाकर बाहर आई तो पुर्जा पर कोई दवा नहीं लिखी गई थी बल्कि अल्ट्रासाउंड और कई तरह की जाँच लिखी हुई थी। मैंने पत्नी से पूछा कि क्या तुमने दवा लिखने को नहीं कहा। तब उसने बताया कि डॉक्टर ने कहा कि बिना अल्ट्रासाउंड औरजाँच की रिपोर्ट देखे वह दवा नहीं लिखेगी भले ही मेरी मौत ही क्यों न हो जाए।
मित्रों,फिर तो मारे गुस्से के मेरा बुरा हाल था। मैं सोंच रहा था कि डॉक्टर का मतलब क्या डाकू होता है? हद है कि डॉक्टरी ने किस तरह डकैती का स्वरूप ग्रहण कर लिया है! मरीज को ईलाज कराने के दौरान पग-पग पर लूटा जाता है और बेचारा प्रतिवाद भी नहीं कर पाता। 17 जनवरी को मेरी पत्नी की जो हालत थी उसको देखकर शायद जल्लाद भी रो पड़ता लेकिन एक डॉक्टर को तनिक भी दया नहीं आई! कहाँ है हिप्पोक्रेटिज की शपथ?
मित्रों,केंद्र सरकार ने जबसे गरीबों के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की है तबसे इन डाकू डॉक्टरों की आमदनी कई गुना बढ़ गई है। मैंने सुना है कि भारत में डॉक्टरों को रेग्यूलेट करने के लिए एमसीआई नाम की कोई संस्था है। फिर एमसीआई या केंद्र सरकार क्यों प्रत्येक जिले या राज्य की राजधानी में मरीजों के लिए हेल्पलाईन नंबर जारी नहीं करती या ऐसी कोई वेबसाईट क्यों नहीं बनाती जहाँ फोन करके या ईमेल करके लोग डॉक्टर नामधारी डाकुओं की शिकायत कर सकें।
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)
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