शनिवार, 5 मार्च 2016

कन्हैया को किससे और कैसी आजादी चाहिए?


मित्रों,आजादी किसे अच्छी नहीं लगती? फिर वो पशु हो,पक्षी हो या इंसान लेकिन कभी-कभी हम पाते हैं कि फिल्म बंटी और बबली के एक दृश्य जैसी हास्यास्पद स्थिति भी उत्पन्न कर दी जाती है या हो जाती है। आपको याद होगा कि फिल्म में हीरो बंटी ताजमहल को ही बेच डालता है। मंत्री समय पर कार्यालय न पहुँचें इसके लिए वो कुछ किराये के नारेबाजों को ठीक करता है जो मंत्री की गाड़ी के आगे जमकर नारेबाजी करते हैं। हमारी मांगें पूरी करो चाहे जो मजबूरी हो। मंत्री गाड़ी रोककर पूछती है कि आप लोगों की मांगें क्या हैं लेकिन वे लोग कोई मांग नहीं बताते और बार-बार वही नारा दोहराते रहते हैं।
मित्रों,ठीक यही स्थिति इस समय जेएनयू में है। वहाँ पहले तो नारा लगाया गया कि हमें भारत से आजादी चाहिए और अब नारा लगाया जा रहा है कि हमें भारत में आजादी चाहिए लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि आजादी किससे चाहिए और किस बात की आजादी चाहिए? ऐसी कौन-सी आजादी है जो अन्य लोगों को तो प्राप्त है लेकिन जेएनयू में पढ़नेवाले चंद लोगों को प्राप्त नहीं है। बल्कि उन्होंने तो खुद ही अन्य भारतवासियों से ज्यादा आजादी ले रखी है। वे सरेआम दिनदहाड़े सामूहिक चुम्मा-चाटी का कार्यक्रम करते हैं और उसको किस ऑफ लव का नाम देते हैं। गोया जो लोग पर्दे में किस करते हैं उनके बीच आपस में प्यार होता ही नहीं है। अगर उनको सरेआम इससे ज्यादा करने की आजादी चाहिए तो वे हम भारतवासियों को माफ ही करें क्योंकि हम आए दिन स्वच्छंदता के दुष्परिणामों से जुड़ी खबरें पढ़ते ही रहते हैं। कई बार तो गैंगरेप की घटनाओं के पीछे दुल्हे के साथ-साथ बारातियों द्वारा भी सुहागदिन मना डालने की मंशा छिपी होती है।
मित्रों,फिर हम इंसान हैं कोई कुत्ता या बकरी नहीं कि कहीं भी कुछ भी शुरू कर दिया। अगर कन्हैया एंड कंपनी को इस तरह की आजादी चाहिए तो वे किसी और मुल्क जहाँ साम्यवादी शासन है का रूख कर सकते हैं। बाँकी तो भारत के आम नागरिकों की तरह उनको भी मत डालने का,सरकार बनाने का अधिकार प्राप्त है ही नारेबाजी करने का भी अधिकार मिला हुआ है लेकिन एक दायरे के भीतर। देशविरोधी और देशविभाजक नारे लगाने का अधिकार,आतंकवादियों का समर्थन करने या समर्थन में कार्यक्रम आयोजित करने का अधिकार न तो किसी को दिया गया है न ही दिया जा सकता है,न तो रोहित वेमुला को था और न ही कन्हैया को है क्योंकि जब देश है तो हम हैं। क्योंकि हमारी सीमाओं पर रोज-रोज दर्जनों जवान देशरक्षा में शहीद होते हैं और वे इसलिए शहादत नहीं देते कि कोई राजधानी दिल्ली में उनके महबूबे वतन के टुकड़े करने के समर्थन में नारे लगाए। क्योंकि देश के करदाता इसलिए कर अदा नहीं करते के कोई उनकी गाढ़ी कमाई के पैसों से दी गई सब्सिडी पर पलकर और पढ़कर उनके ही देश के सर्वनाश के उद्देश्य से कार्यक्रमों के आयोजन करे।
मित्रों,दरअसल कन्हैया एंड कंपनी और कुछ नहीं बंटी और बबली गिरोह है। उनके पास न तो कोई ठोस दर्शन है और न ही तर्क उनको तो बस नारेबाजी करनी है। वैसे अगर जैसा कि वे लोग दावा कर रहे हैं कि वे भी देशभक्त हैं तो उनको केंद्र सरकार के लोककल्याणकारी कार्यों का,देश को विकसित बनानेवाले कदमों का समर्थन करना चाहिए। अगर उनको सरकार की किसी योजना या काम में कोई कमी महसूस होती है तो उसको मुखरित होकर देश-दुनिया और सरकार के सामने उठाना चाहिए लेकिन उनको अगर देश को हजार टुकड़ों में बाँटने का नारा लगाना है तो कृपया वे जेएनयू ही नहीं भारत से बाहर चले जाएँ। क्योंकि अगर वे भारत में ऐसा करेंगे तो टुकड़े भारत के नहीं होंगे उनके नापाक ईरादों के होंगे। कह तो हम यह भी सकते हैं कि उनके होंगे लेकिन हम उनकी तरह हिंस्र पशु नहीं हैं और हिंसा में विश्वास नहीं करते।

1 टिप्पणी:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " देशद्रोह का पूर्वाग्रह? " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !