मित्रों, महान साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाटक अंधेर नगरी आपने भी पढ़ा होगा मैंने तो मंचन भी किया है. उस नाटक में अन्याय और अराजकता की पराकाष्ठा दिखाई गई है. भारतेंदु ने एक ऐसे राज्य की कल्पना करते हुए तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत पर टिपण्णी की है जिसमें एक ही दाम पर सब्जी और मिठाई बिकती है. अपराधी की तलाश में हुक्म जारी किया जाता है कि सबसे मोटे-तगड़े व्यक्ति को पकड़कर फांसी दे दी जाए. तभी गुरुदेव के सुझाव पर कि फंदा किसके गले में सही बैठता है जांच लिया जाए राजा अपने गले की माप लेता है और खुद ही फांसी पर चढ़ जाता है.
मित्रों, बुरा मानो या भला हमारे देश में आज भी अंधेर नगरी वाले हालात बने हुए हैं. आज भी जनता को बस टके सेर भाजी टके सेर खाजा चाहिए भले ही उसे बाद में फांसी पर चढ़ा दिया जाए. हम पर जो पार्टी भयंकर अत्याचार करती है हम सबकुछ भुलाकर मुफ्त की चीजों के लालच में आकर फिर से उसे ही चुन लेते हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो १९८४ के सिखविरोधी दंगों से प्रभावित सिख कैसे फिर से पंजाब में कांग्रेस की सरकार बना देते? और वो भी बार-बार. इतना ही नहीं इस पार्टी ने एक ऐसे व्यक्ति को जिसने उस समय दिल्ली के रकाबगंज गुरूद्वारे में लोगों को भड़काकर सिखों को जिंदा जला दिया न सिर्फ उस पर एफआईआर नहीं होने दिया बल्कि पिछले दिनों मध्य प्रदेश का मुख्य मंत्री भी बना दिया.
मित्रों, कल जब दिल्ली हाई कोर्ट ने इन्हीं दंगों के एक और आरोपी कांग्रेस के दिग्गज नेता सज्जन कुमार के खिलाफ फैसला दिया तब परिजनों और उनके वकीलों के साथ-साथ जज साहब भी भावुक होकर रोने लगे. मैं बार-बार कहता रहा हूँ कि इस देश को पुलिस की आवश्यकता ही नहीं है उसे समाप्त कर देना चाहिए. जब १९८४ के दंगे हो रहे थे, लोगों को जिंदा जलाया जा रहा था तब कहाँ थी दिल्ली पुलिस. दंगों के बाद दंगाइयों के खिलाफ क्यों एफआईआर दर्ज नहीं किया गया और जिनके खिलाफ दर्ज हुआ भी उनमें से किसी को भी अब तक सजा क्यों नहीं मिली? अभी भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी बांकी है. पता नहीं वो एक बार फिर से सज्जन को सज्जन घोषित कर दे. यह भारत है यहाँ कुछ भी संभव है. यहाँ जज लोया को मरणोपरांत न्याय नहीं मिलता तो जनता को कहाँ से मिलेगा?
मित्रों, आप समझते हैं कि सज्जन कुमार को सजा नहीं मिलने और कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिए जाने के लिए सिर्फ कांग्रेस पार्टी, पुलिस और न्यायपालिका जिम्मेदार हैं? नहीं इसके लिए सबसे ज्यादा हमलोग जिम्मेदार हैं क्योंकि हम लोग मुफ्तखोर हो गए हैं नाटक अंधेर नगरी के चेले की तरह. हम कर्जमाफ़ी के लालच में आकर अपने कातिलों को ही अपना मसीहा चुन लेते हैं. बार-बार चुनते रहिए, कटते रहिए, रोते रहिए और फिर से लालच में आकर चुनते रहिए, फिर से ..... आपकी मर्जी देश सिर्फ मेरा या राहत इंदौरी का थोड़े ही है आपका भी है.
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