शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

भारत को चाँद दिखा रहे हैं मोदी?


मित्रों, जैसा कि मैं बता चुका हूँ कि मेरा बचपन गाँव में बीता है और गाँव में एक-से-बढ़कर एक मनोरंजक घटनाएँ लगातार होती रहती हैं. ऐसी ही एक घटना एक बार मेरे दरवाजे पर हुई. हुआ यह कि हमारे एक पडोसी बच्चे का जो हमारा हमउम्र था पैंट का बटन टूट गया. बेचारे का पैंट बार-बार नीचे सरक जाता था. हमारे गाँव के सबसे शरारती बच्चों में से एक ने उससे कहा कि चाँद देखोगे. हम सभी आश्चर्य में पड़ गए कि दिन के १० बजे ये चाँद कहाँ से दिखाएगा. फिर उसने आसमान की ओर इशारा करके कहा कि वो रहा चाँद, देखो. उस बेचारे ने जैसे ही ऊपर देखना शुरू किया शरारती बच्चे ने उसका पैंट नीचे खींच दिया और उसे नंगा कर दिया.
मित्रों, खैर ये तो रही बचपन के हंसी-मजाक की बात. लेकिन आज मैंने एक संस्मरणात्मक प्रसंग को बिलकुल भी मजाक-मजाक में नहीं उठाया है बल्कि काफी गंभीर मनःस्थिति में उठाया है. आप सभी जानते हैं कि भारत ने कुछ दिन पहले चाँद पर चंद्रयान भेजा था जिसकी लैंडिंग के समय भारत के प्रधानमंत्री भी मौजूद थे. फिर लैंडिंग में गड़बड़ी आ गई और माहौल अचानक ग़मगीन हो गया. इसरो अध्यक्ष रोने लगे और उनको कन्धा दिया प्रधानमंत्री जी ने. फिर खबर आई कि अभी मामला समाप्त नहीं हुआ है और हमारे वैज्ञानिक चंद्रयान से संपर्क साधने की कोशिश में हैं.
मित्रों, कुल मिलाकर मामले को पूरा तूल दिया गया और पूरा भारत दिन-रात चाँद पर नजर गड़ाए रहा इस बात से बिलकुल बेखबर कि नीचे जमीन पर हो क्या रहा है. कहीं चाँद दिखाकर उन्हें भी निर्वस्त्र तो नहीं किया जा रहा है. मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि इन दिनों देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह से ख़राब है. वाजपेयी जी ने पेंशन समाप्त किया था तो मोदी ने नौकरी ही समाप्त कर दी है. जहाँ भी नजर डालिए आंकड़े बता रहे हैं कि हालत ख़राब है. उस पर गजब यह कि केंद्रीय वित्त मंत्री स्वास्थ्य और रेल मंत्रालय से सम्बंधित घोषणाएं कर रही हैं. मतलब कि जिस मंत्री का जो काम है वो काम मंत्री कर ही नहीं रहा है. जैसे कि ग्रेग चैपल ने इरफ़ान पठान को हरफनमौला बनाने का प्रयास किया था और अंततः इरफ़ान की गेंदबाजी की लय ही बिगड़ गई और बेचारे टीम से ही बाहर हो गए.
मित्रों, भारत सरकार कहती है कि राजकोषीय घाटा कम करना है और इसके लिए सरकारी खर्च को कम करना है. मैं पूछता हूँ कि सरकार जनता के लिए है यह जनता सरकार के लिए? मैं यह भी पूछना चाहता हूँ कि सरकार जनता से है यह जनता सरकार से है? सरकारी खर्च कम करना है तो प्रधानमंत्री सामान्य यात्री की तरह विमान-यात्रा करें किसने रोका है? विधायकों-सांसदों-मंत्रियों को पेंशन देना बंद कर दें किसने रोका है? महाभ्रष्ट योजना सांसद-विधायक फण्ड को बंद कर दें किसने रोका है? लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे उनको तो जनता से त्याग करवाना है खुद त्याग नहीं करना है इसलिए वे तो नौकरी में कटौती करेंगे.
मित्रों, भारत सरकार यह भी कहती है कि व्यवसाय चलाना सरकार का काम नहीं है इसलिए परिवहन, संचार सहित प्रत्येक क्षेत्र से सम्बद्ध सरकारी उद्यमों को निजी क्षेत्र को बेच देना चाहिए और वो भी उनका दिवाला निकालने के बाद. इस मामले में मुझे जहाँ तक लगता है कि या तो भारत सरकार महामूर्ख है या फिर महाचतुर. सरकारी उद्यमों को तो वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने भी बेचा था लेकिन तब जब उनकी हालत अच्छी ही नहीं बहुत अच्छी थी और वो नवरत्न और महानवरत्न कहलाते थे. मेरा आज भी मानना है कि सरकारी उद्यमों को सुधारा जा सकता है और एक बात फिर से महानवरत्न बनाया जा सकता है लेकिन इसके लिए कोशिश तो हो. लेकिन कोशिश तो हो रही है कि कैसे अम्बानी दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति बनें और इसलिए सबकुछ उनके हवाले किया जा रहा है. अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों. साथ ही आपने यह भी गौर किया होगा कि आजकल सबकुछ सिर्फ और सिर्फ गुजरात में ही हो रहा है. मानों सिर्फ गुजरात ही भारत है जबकि वादा तो किया गया था कि माँ भारती के वामांग को यानि पूर्वी भारत को भी मजबूत किया जाएगा.
मित्रों, अब मैं बात करना चाहूँगा पाकिस्तान और हिंदुत्व की. लोग-बाग़ दिन-रात उल्लुओं की तरह टीवी पर नजर गडाए हुए हैं कि कब भारत पाकिस्तान पर हमला बोलेगा. अरे भाई वो तो खुद ही भूखों मर रहा है उसको मारने की जरुरत क्या है? चिंता करनी है तो अपनी अर्थव्यवस्था की चिंता करो नहीं तो कुछ सालों में तुम भी पाकिस्तान ही बननेवाले हो.
मित्रों, जब मोदी सरकार सत्ता में आई तो लगा कि अब साधू-समाज देश का सञ्चालन करेगा और देश में रामराज्य आ जाएगा. साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को हमने क्या समझा था और क्या निकली. इनकी तो खुद की प्रज्ञा ही नष्ट हो चुकी है. हमेशा आएं-बाएँ बोलती रहती है. इनके बारे में तो यही कहा जा सकता है कि यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम, लोचनाभ्याम विहीनस्य दर्पणं किं करिष्यति. थोड़ी बात चिन्मयानन्द की भी हो जाए जिनके खिलाफ सबूतों के अम्बार लगे हैं लेकिन अब तक उनके खिलाफ एफआईआर तक नहीं हुआ है. क्यों नहीं हुआ है? शायद इसलिए क्योंकि वे भाजपाई हैं और भाजपा तो गंगा है जिसमें डुबकी लगाकर न जाने कितने महाभ्रष्ट कांग्रेसी पवित्र हो चुके हैं.
मित्रों, अंत में मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करना चाहता हूँ कि कृपया चाँद की ओर देखना बंद करिए और धरती की तरफ देखिए जो धीरे-धीरे आपके पाँव के नीचे से सरक रही है या यूं कहें कि सरकाई जा रही है. सोंचिए कल अगर रेलवे निजी हाथों में चला गया तो क्या कोई गरीब इसकी सवारी कर पाएगा? सोंचिएगा जरूर. नहीं तो,....

1 टिप्पणी:

Shivang Kumar ने कहा…

देर आए दुरुस्त आए