मित्रों, यह धरती वीरों से खाली नहीं है. इस धरती पर एक-से-बढ़कर-एक वीर भरे पड़े हैं. कोई भाषणवीर है तो कोई बयानवीर है तो वहीं किसी का मूर्खता करने में कोई जोड़ा नहीं है. लेकिन इन सबसे अलग भी एक प्रकार के वीरों से ये धरती अटी पड़ी है और वो वीर हैं बहानावीर. ऐसे वीर अपनी किसी भी गलती के लिए कभी भी खुद को दोषी नहीं मानते. आपने अख़बारों में पढ़ा होगा कि किसी देश की क्रिकेट टीम के कप्तान ने हार के लिए कभी टीम को तो कभी मौसम को तो कभी पिच को ही दोषी ठहरा दिया भले ही वो खुद शून्य पर चलता हो गया हो.
मित्रों, दुर्भाग्यवश ऐसे ही दुनिया के समस्त बहानावीरों के वीर श्री नीतीश कुमार जी इन दिनों बिहार के मुख्यमंत्री हैं. श्रीमान अपनी अक्षमता को छिपाने के लिए ऐसे-ऐसे बहाने बनाते हैं कि कदाचित खुद बहानों को भी शर्म आ रही होगी. जब श्रीमान से राज्य में फेल हो चुकी शराबबंदी के बारे में पूछा जाता है तो कहते हैं कि इसमें उनकी या उनके महान प्रशंसनीय शासन की कोई गलती नहीं है बल्कि सारी गलती पडोसी देश नेपाल और पडोसी राज्यों प. बंगाल, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश की है जिन्होंने शराब पर रोक नहीं लगाई है. इसी तरह पिछले दिनों जब उनसे राज्य में बढ़ते अपराध के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बड़े ही दार्शनिक अंदाज में फ़रमाया कि बढ़ता अपराध ख़राब कानून-व्यवस्था के कारण नहीं है बल्कि यह एक मानसिक या मनोवैज्ञानिक समस्या है.
मित्रों, हद तो तब हो गई जब इन दिनों भारी बरसात से उत्पन्न बुरी स्थिति को लेकर उन्होंने कहा कि यह एक प्राकृतिक आपदा है और प्रकृति पर किसका नियंत्रण है. हद हो गयी भाई, दैव दैव आलसी पुकारा. नीतीश जी आगे से राज्य में कुछ भी बुरा हो तो आप सीधे भगवान को ही दोषी ठहरा देना क्योंकि सबकुछ वही तो करता है. लेकिन जब भी कुछ अच्छा हो तो उसका श्रेय आप ले लेना क्योंकि वो तो भगवान ने नहीं किया बल्कि पूरी तरह से आपने किया. नीतीश जी को बताना चाहिए कि पटना का ड्रेनेज सिस्टम करोड़ों रूपये फूंकने के बावजूद फेल क्यों है? या फिर हर साल एक साथ बिहार के सारे बांध कैसे टूटने लगते हैं? बरसात सिर्फ पटना में ही तो नहीं होती है या नदियाँ सिर्फ बिहार में ही नहीं हैं? दिल्ली में वर्षा होती है तो कुछ ही घंटों में पानी नालियों से होकर निकल जाता है फिर पटना की नालियों से पानी क्यों नहीं निकल रहा? क्या ड्रेनेज बनाने के काम में कोताही बरती है आपके चहेते ठेकेदारों ने और उसे आधा-अधूरा बनाकर छोड़ दिया है?
मित्रों, ऐसी ही एक कथा वेदों में भी है जिसमें एक ब्राह्मण अपने हर अच्छे काम के लिए खुद की पीठ ठोकता है तो अपने हर बुरे काम के लिए भगवान को दोषी ठहरा देता है और बहाने बनाता है कि नेत्रों में सूर्य की शक्ति है तो कानों में पवन की शक्ति है तो हाथों में देवराज इंद्र का निवास है इसलिए उनके हाथों हुए प्रत्येक अपराध के लिए वो स्वयं नहीं बल्कि इन अंगों से संबधित देवता जिम्मेदार हैं. एक दिन जब वो अपने बगीचे में होता है तब वो डंडा चलता है उसके हाथों एक गाय की हत्या हो जाती है. घबराहट के मारे वो उसे पत्तों से ढँक देता है. औरअपने मन में सोंचता है कि चूंकि हाथों में इंद्र का निवास है इसलिए इस गोहत्या के लिए भी देवराज को ही सजा मिलनी चाहिए. तभी वेश बदलकर इंद्र आते हैं और उपवन की प्रशंसा करते हुए उससे पूछते हैं कि इन पेड़-पौधों को किसने लगाया है तो वह लपककर कहता है कि उसने और किसने. लेकिन जब वो पूछते हैं कि गाय जो पत्तों से ढकी हुई हैं को किसने मारा है तो वो इंद्र को दोषी ठहराने लगता है. तभी इंद्र प्रकट हो जाते है और उसे लताड़ लगाते हैं कि जब सारे अच्छे काम तुमने किये हैं तो बुरे कामों को भी तुमने ही किया है.
मित्रों, हमने स्कूल के दिनों में भी देखा है और एक शिक्षक होने के नाते आज भी रोजाना देखता हूँ कि कुछ बच्चे लगातार बहाने बनाते हैं कि होम वर्क इसलिए नहीं बना पाया क्योंकि घर में कोई बीमार हो गया था, बना तो लिया था मगर कॉपी घर पर रह गयी. कई बच्चे तो अपने मामा, नाना, दादा, दादी को ही मार डालते हैं और कई बार तो एक ही दादा-नाना को कई-कई बार मार डालते हैं. लेकिन हमने यह भी देखा है कि ऐसा करने से खुद उनका ही नुकसान होता है और वे पढाई में कमजोर रह जाते हैं. इसी तरह जो कप्तान बार-बार पिच को दोषी ठहराता है वो ज्यादा दिनों तक कप्तान बना नहीं रह पाता. मगर नीतीश जी न जाने किस मुगालते हैं कि उनको लगता है कि प्रत्येक स्थिति में यहाँ तक कि लगातार शर्मनाक प्रदर्शन के बावजूद वही हमेशा बिहार के कप्तान बने रहेंगे.
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