मित्रों, आपको भी याद होगा कि २०१५ के बिहार विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार मोदी विरोध का प्रतीक बन गए थे. तब रमन मैगसेसे पुरस्कार से हाल ही में सम्मानित हो चुके रवीश कुमार जी बुरी तरह से नीतीश समर्थक बने हुए थे और पूरे बिहार में घूम-घूमकर पूछते फिर रहे थे कि नीतीशे कुमार हैं? हैं? बागों में बहार है? ना, ना, ना, ना, ना, ना! खैर वक़्त बदला और नीतीश जी फिर से भाजपा के साथ हो गए, रवीश जी भी बदल गये और नीतीश विरोधी हो गये लेकिन नहीं बदला तो बिहार और नहीं बदली तो बिहार की तक़दीर.
मित्रों, अब जबकि बिहार की हालत २०१५ से भी ख़राब है तब अक्सर बीमार रहनेवाले नीतीश कुमार जी फिर से बिहार का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. उन्होंने एक नया नारा भी दे दिया है-काहे करें विचार, ठीके तो हैं नीतीश कुमार. यहाँ आप देख सकते हैं कि ठीक की जगह ठीके का प्रयोग हुआ है जिसका बिहार में मतलब होता है कामचलाऊ. अगर कोई आपसे पूछे कि कैसे हैं आप और आपने कहा कि ठीके हैं तो इसका बिहार में यही मतलब होता है कि जैसा होना चाहिए वैसे तो नहीं हैं लेकिन ठीक ही हैं. कहने का मतलब यह कि खुद नीतीश कुमार भी मानते हैं कि उनकी सरकार का कामकाज अब वैसा नहीं है जैसा कि होना चाहिए था लेकिन फिर भी ठीक ही हैं.
मित्रों, हम जानते हैं कि पिछले कई दशकों से बिहार भारत का सबसे पिछड़ा, सबसे भ्रष्ट और सबसे अराजक प्रदेश बना हुआ है. बिहार में एक दिन में जितनी हत्या होती है शायद ही देश के किसी अन्य राज्य में होती होगी. आज बिहार अराजकता के चरम पर है. लोग बैंक से पैसा निकालते हैं तो कोई गारंटी नहीं होती कि कहाँ पर पैसा छिन जाएगा. घर में भी लोग सुरक्षित नहीं रहे. हर तरफ लूट है. कहीं सरकारी अधिकारी जनता को लूट रहे हैं तो कहीं अपराधी. अब ऐसे राज्य में ठीके सरकार से कैसे काम चलेगा बल्कि यहाँ तो पूरी तरह से ठीक-ठाक सरकार चाहिए.
मित्रों, कुछ विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश कुमार जी को मुगालता हो गया है कि बिहार में उनका कोई विकल्प ही नहीं है. साथ ही उनको लगता है कि मोदी जी को लोगों ने इसलिए दोबारा चुना क्योंकि विकल्पहीनता की स्थिति थी. अगर ऐसा है और ऐसा ही है तो मैं नीतीश जी को बता देना चाहूँगा कि बिहार में उनके हजारों विकल्प मौजूद हैं. हमारे जैसे हजारों बिहारी हैं जिनका कोई निहित स्वार्थ नहीं है और जो उनसे अच्छा शासन दे सकते हैं क्योंकि आज के बिहार में वस्तुस्थिति यह है कि यहाँ शासन नाम की चीज ही नहीं है और जिसके हाथ में लाठी है वही भैंस को हांक ले जा रहा है. रही बात मोदी जी के दोबारा जीतने की तो देश की जनता ने मोदीजी को इसलिए नहीं जिताया कि उनके समक्ष विकल्प नहीं थे बल्कि इसलिए जिताया क्योंकि वे सर्वश्रेष्ठ विकल्प थे और हैं. देश को न तो सत्ता परिवर्तन चाहिए था और न ही अवस्था परिवर्तन बल्कि देश को व्यवस्था-परिवर्तन चाहिए था और ऐसा कर पाने में सिर्फ मोदी जी ही सक्षम थे और हैं. आज देश के गृह और वित्त मंत्री रहते हुए रिश्वत में सेक्स की मांग कर इन महान पदों की गरिमा को धूल-धूसरित करनेवाले चिदंबरम जेल में हैं क्या ये कम बड़ा परिवर्तन है?
मित्रों, अब जबकि बिहार की हालत २०१५ से भी ख़राब है तब अक्सर बीमार रहनेवाले नीतीश कुमार जी फिर से बिहार का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं. उन्होंने एक नया नारा भी दे दिया है-काहे करें विचार, ठीके तो हैं नीतीश कुमार. यहाँ आप देख सकते हैं कि ठीक की जगह ठीके का प्रयोग हुआ है जिसका बिहार में मतलब होता है कामचलाऊ. अगर कोई आपसे पूछे कि कैसे हैं आप और आपने कहा कि ठीके हैं तो इसका बिहार में यही मतलब होता है कि जैसा होना चाहिए वैसे तो नहीं हैं लेकिन ठीक ही हैं. कहने का मतलब यह कि खुद नीतीश कुमार भी मानते हैं कि उनकी सरकार का कामकाज अब वैसा नहीं है जैसा कि होना चाहिए था लेकिन फिर भी ठीक ही हैं.
मित्रों, हम जानते हैं कि पिछले कई दशकों से बिहार भारत का सबसे पिछड़ा, सबसे भ्रष्ट और सबसे अराजक प्रदेश बना हुआ है. बिहार में एक दिन में जितनी हत्या होती है शायद ही देश के किसी अन्य राज्य में होती होगी. आज बिहार अराजकता के चरम पर है. लोग बैंक से पैसा निकालते हैं तो कोई गारंटी नहीं होती कि कहाँ पर पैसा छिन जाएगा. घर में भी लोग सुरक्षित नहीं रहे. हर तरफ लूट है. कहीं सरकारी अधिकारी जनता को लूट रहे हैं तो कहीं अपराधी. अब ऐसे राज्य में ठीके सरकार से कैसे काम चलेगा बल्कि यहाँ तो पूरी तरह से ठीक-ठाक सरकार चाहिए.
मित्रों, कुछ विश्लेषक मानते हैं कि नीतीश कुमार जी को मुगालता हो गया है कि बिहार में उनका कोई विकल्प ही नहीं है. साथ ही उनको लगता है कि मोदी जी को लोगों ने इसलिए दोबारा चुना क्योंकि विकल्पहीनता की स्थिति थी. अगर ऐसा है और ऐसा ही है तो मैं नीतीश जी को बता देना चाहूँगा कि बिहार में उनके हजारों विकल्प मौजूद हैं. हमारे जैसे हजारों बिहारी हैं जिनका कोई निहित स्वार्थ नहीं है और जो उनसे अच्छा शासन दे सकते हैं क्योंकि आज के बिहार में वस्तुस्थिति यह है कि यहाँ शासन नाम की चीज ही नहीं है और जिसके हाथ में लाठी है वही भैंस को हांक ले जा रहा है. रही बात मोदी जी के दोबारा जीतने की तो देश की जनता ने मोदीजी को इसलिए नहीं जिताया कि उनके समक्ष विकल्प नहीं थे बल्कि इसलिए जिताया क्योंकि वे सर्वश्रेष्ठ विकल्प थे और हैं. देश को न तो सत्ता परिवर्तन चाहिए था और न ही अवस्था परिवर्तन बल्कि देश को व्यवस्था-परिवर्तन चाहिए था और ऐसा कर पाने में सिर्फ मोदी जी ही सक्षम थे और हैं. आज देश के गृह और वित्त मंत्री रहते हुए रिश्वत में सेक्स की मांग कर इन महान पदों की गरिमा को धूल-धूसरित करनेवाले चिदंबरम जेल में हैं क्या ये कम बड़ा परिवर्तन है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें