शनिवार, 31 अगस्त 2019

इस्तीफा क्यों नहीं देते नीतीश जी


मित्रों, जब भी कहीं बिहार के इतिहास की किसी मंच पर चर्चा होती है तो आम बिहारियों की तरह मेरा सर भी गर्व से ऊंचा हो जाता है. यह सच भी है कि प्राचीन भारत का इतिहास एक लम्बे समय तक बिहार का इतिहास रहा है. मैं हठात सोंचने लगता हूँ कि बिहार क्या था और क्या हो गया. क्या आपने कभी सोंचा है कि बिहार बीमार कैसे हो गया? मैं यह सवाल विशेष रूप से बिहारियों से कर रहा हूँ. इस सवाल का थोडा-सा जवाब मुझे पिछले कुछ महीनों में मिला है जबसे मैं दोबारा सिन्हा लाईब्रेरी का सदस्य बना हूँ. इस उदाहरण से आप समझ जाएंगे कि बिहार में तंत्र कैसे काम करता है.
मित्रों, मैं अपने एक आलेख में कुछ हफ्ते पहले बता चुका हूँ कि जब मैं बिहार के गौरव सिन्हा लाईब्रेरी का दोबारा सदस्य बना तो पाया कि वहां की स्थिति बहुत ख़राब है. सिर्फ ५ स्टाफ बचे हैं जिनको पिछले ५ सालों से वेतन नहीं मिला है. जब मैंने आदतन मामले की गहराई से छान-बीन की तो पता चला कि लाईब्रेरी की दुरावस्था के लिए न सिर्फ लाईब्रेरी प्रशासन जिम्मेदार है बल्कि बिहार के मुख्यमंत्री, शिक्षामंत्री और पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश भी जिम्मेदार हैं क्योंकि ये लोग भी पुस्तकालय की सञ्चालन समिति के सदस्य हैं लेकिन इन्होंने कभी लाईब्रेरी से सम्बंधित किसी भी बैठक में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है.
मित्रों, सूत्रों ने बताया कि पुस्तकालय की डीड के अनुसार पुस्तकालय सञ्चालन समिति का सचिव हमेशा स्वर्गीय डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा जी के परिवार से होगा. दुर्भाग्यवश डॉ. सिन्हा के परिवार में अब सिर्फ एक ही जीवित सदस्य बचा है जो बराबर विदेश में रहता है और उसको पुस्तकालय से कोई मतलब नहीं है. साल २०१५ में जब सरकार ने पुस्तकालय को अधिगृहित किया तब उम्मीद की जा रही थी कि इससे पुस्तकालय की स्थिति सुधरेगी लेकिन हुआ उल्टा. जहाँ २०१५ से पहले राष्ट्रीय रैंकिंग में पुस्तकालय को चौथा स्थान प्राप्त था अब वो पहले दस में भी नहीं आती.
मित्रों, अब बात करते हैं कि अधिग्रहण के बाद आखिर ऐसा क्या किया गया कि आज पुस्तकालय अपने हालात पर रो रहा है. सबसे पहले तो पुस्तकालय के एक भवन से पुस्तकालय को हटा कर उसमें प्रदेश पुस्तकालय निदेशालय का कार्यालय खोल दिया गया और इसके लिए पुस्तकालय के पत्र-पत्रिका संभाग को बंद कर दिया गया. इतना ही नहीं निदेशालय में बैठनेवाले निदेशक उसी परिसर में स्थित पुस्तकालय में कभी झाँकने तक नहीं आते. सूत्र बताते हैं कि जब भी पुस्तकालय समिति की बैठक होती है तो ४ लोग औपचारिकता निभाने के लिए मीटिंग में आते हैं और उलटे-सीधे निर्णय लेकर चले जाते हैं. अभी पिछले साल ही सरकार से पुस्तकालय को ४२ लाख रूपये आवंटित हुए जिसमें से १० लाख रूपये परिसर में स्थित निदेशालय में एसी और जेनरेटर लगाने में खर्च कर दिए गए जबकि पुस्तकालय के मुख्य भवन में कई पंखे ख़राब हैं और पाठकों को गर्मी में पढ़ना पड़ता है. इतना ही नहीं पुस्तकालय के बचे-खुचे स्टाफ जिनको पिछले ५ सालों से वेतन नहीं मिला है अपनी किस्मत पर रो रहे हैं जबकि पैसा बैंक की शोभा बढ़ा रहा है.
मित्रों, सूत्र बताते हैं कि एक समय जब राम शोभित सिंह पुस्तकालयाध्यक्ष और डॉ. राम वचन राय संचालन समिति के अध्यक्ष हुआ करते थे तब स्थिति इतनी ख़राब नहीं थी लेकिन जबसे पुस्तकालय सरकारी हाथों में गयी है इसका बंटाधार हो गया है. कोई शिकायत करे भी तो कहाँ करे और किससे करे क्योंकि पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तो इसकी सञ्चालन समिति के चेयरमैन ही हैं और बिहार के मुख्यमंत्री-शिक्षामंत्री सदस्य. जब मैंने परसों २९ अगस्त को मुख्यमंत्री निवास पर फोन लगाया तो बताया गया कि मुख्यमंत्रीजी बीमार हैं इसलिए इस महीने बात नहीं करेंगे. मैं समझता हूँ कि बिहार जैसे प्रदेश में जो खुद ही बीमार है में एक बीमार व्यक्ति को मुख्यमंत्री नहीं रहना चाहिए। बहुधा पिछले कई वर्षों से नीतीश जी बीमार ही चल रहे हैं. ऐसे में बिहार कैसे स्वस्थ होगा जो खुद ही अनगिनत लाईलाज रोगों से दशकों से ग्रस्त है? दुर्भाग्यवश में पास इस मामले में सिर्फ सवाल है जवाब नहीं. वैसे प्रश्न तो यह भी उठता है कि अगर नीतीश जी बीमार हैं और शासन नहीं संभाल सकते तो इस्तीफा क्यों नहीं दे देते? नीतीश जी मान क्यों नहीं लेते कि अब वो अतीत बन चुके हैं और जब तक अतीत स्थान रिक्त नहीं करेगा वर्तमान को कैसे नए समाज, नए प्रदेश, नए राष्ट्र और नए विश्व के निर्माण का सुअवसर मिलेगा?

1 टिप्पणी:

अजय कुमार झा ने कहा…

ये इतने दृढ़ नहीं है सर जो इस्तीफा दे सकें मन ही मन प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए हैं मुख्यमंत्री पद कैसे छोड़ दें