मित्रों, मैं एक बार नहीं हजारों बार कह चुका हूँ कि अपने प्यारे भारत में कानून तो बहुत हैं लेकिन व्यवस्था नाम की चीज नहीं है. आप कहेंगे कि यह अव्यवस्था आई कहाँ से? तो दोस्तों वास्तविकता तो यह है कि यह कहीं से आई नहीं बल्कि हमेशा से यहीं थी अंग्रेजों के समय से ही. दरअसल अंग्रेजों ने जो प्रशासनिक व्यवस्था भारत में स्थापित की थी उसका उद्देश्य कहीं से भी भारत में रामराज्य स्थापित करना नहीं था बल्कि लूटना था. यह अंग्रेजों की नहीं बल्कि यह तो हमारी गलती है कि आजतक हमने शासन-प्रशासन और न्यायपालिका में कोई बदलाव नहीं किया है या बदलाव नहीं कर पाए हैं. यहाँ तक कि आजादी के ७५ साल बाद तक भी हमारी पुलिस भी वही है और पुलिस को चलानेवाले कानून भी. साथ ही हमारी अदालतें भी उन्हीं कानूनों का पालन करने के लिए बाध्य हैं जो अंग्रेजों के समय भारतवासियों को लूटने के लिए बनाए गए थे.
मित्रों, अगर ऐसा नहीं होता तो कल पहलू खान हत्याकांड में वो फैसला नहीं आता जो आया है. मैं पूछता हूँ कि आखिर क्यों आज भी हमारा कानून ऑडियो-वीडियो प्रूफ को प्रूफ नहीं मानता जबकि आज का युग ही मोबाइल का युग है? आप समझ सकते हैं कि यह कितनी बड़ी विडम्बना है हमारे वक़्त की? हम कहीं भी कुछ भी होते हुए देखते हैं फिर चाहे हो अच्छी घटना हो या बुरी हम सबसे पहले अपना मोबाइल निकालते हैं और उसका वीडियो बना लेते हैं लेकिन हमारा कानून उसे प्रूफ मानता ही नहीं और सारी सुनवाई के बाद कहता है कि पहलू खान की हत्या हुई है और उसका विडियो प्रूफ भी है लेकिन हमारे कानून के अनुसार पहलू खान को किसी ने नहीं मारा. मैं इसी मंच पर मुन्ना सिंह नामक गरीब की हत्या का मुद्दा कई बार उठा चुका हूँ जो वैशाली जिले के चांदपुरा ओपी के खोरमपुर का रहनेवाला था और जिसकी २०१४ में ही घर में घुसकर हत्या कर दी गई थी लेकिन क्या मजाल कि इस मामले में एक गिरफ़्तारी भी हुई हो न्याय मिलना तो दूर की बात रही.
मित्रों, ऐसा नहीं है कि पहलू खान ऐसा इकलौता भारतीय है जिसे न्याय नहीं मिला बल्कि हम रोजाना ऐसी ख़बरों को पढ़ते हैं कि रेप पीडिता थानों के चक्कर लगाती रही लेकिन उनका केस दर्ज नहीं किया गया. अभी पटना में एक रिटायर्ड आईपीएस को कुछ लोगों ने पीटा और पुलिस बुलाने पर भी नहीं आई. मुझे तो लगता है कि हमारे चंद थानेदारों को छोड़कर ज्यादातर इतने भ्रष्ट हैं कि अगर उनकी खुद की माँ-बहन के साथ भी बलात्कार हो जाए तो उनसे भी मुकदमा दर्ज करने के लिए पैसे मांगेगे. ऐसे माहौल में हम कैसे न्याय की उम्मीद कर सकते हैं? क्या ऐसा करना बेईमानी नहीं होगी दफा ४२० के तहत?
मित्रों, आपमें से जो लोग भीड़ के द्वारा न्याय को उचित मानते हैं उनसे मैं कहना चाहूँगा कि मैं नहीं जानता कि पहलू खान निर्दोष था. साथ ही मैं यह भी नहीं जानता कि वो दोषी था लेकिन मैं इतना जानता हूँ कि भीड़ के पास दिमाग नहीं होता. जब भीड़ हिंसक हो जाती है तो उसे मुजफ्फरपुर और गोपालगंज के डीएम के बीच कोई फर्क नहीं दिखता. उसका शिकार मैं भी हो सकता हूँ और आप भी, यहाँ तक कि पुलिस इंस्पेक्टर भी या फिर जज साहब भी. इसलिए कृपया इसका समर्थन न करें. वैसे विचारणीय यह भी है कि इस तरह की घटनाओं को बढ़ावा क्यों मिल रहा है? कहीं इसके पीछे हमारी कानून-व्यवस्था के प्रति लोगों के विश्वास का कम होना तो नहीं. वैसे अपने मोदीजी को सबका विश्वास चाहिए. देखते हैं कि वो इस दिशा में कब और कौन-सा कदम उठाते हैं. -इन्तहां हो गयी इंतज़ार की, आई न कुछ खबर पुलिस सुधार की...........
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