मित्रों, आज मैं इतिहास के पन्नों को नहीं पलटूंगा कि किस तरह केजरीवाल ने मेरे मित्र चौहान साब के साथ मिलकर नोएडा से इंडिया अगेंस्ट करप्शन आन्दोलन की शुरुआत की. फिर कैसे अन्ना हजारे को आगे करके आन्दोलन को आगे बढाया और पूरे भारत को आंदोलित कर दिया. अन्ना के मंच से कैसे उसने अपने बच्चों के सर पर हाथ रखकर कभी राजनीति में नहीं आने की कसमें खाईं. फिर कैसे उसने कसमें तोड़ीं और इस वादे के साथ राजनीति में आने की घोषणा की कि वह राजनीति से गंदगी साफ़ करने आया है. फिर कैसे उसने अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से दिल्ली में कई सारे शाहीन बाग़ लगवाए और पूरी दिल्ली को जाम कर दिया. फिर कैसे उसने अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से दिल्ली में दंगे करवाए और खुद दंगों के समय फोन पर ताहिर हुसैन को निर्देश देता रहा.
मित्रों, मैं नहीं समझता कि केजरीवाल ने आज तक जो भी कारगुजारी की है उनमें से कोई भी माफ़ी के लायक है लेकिन अब जबकि पूरी दुनिया कोरोना के खिलाफ विश्वयुद्ध लड़ रही है तब उसने जो अपराध किया है उसके लिए उसे सैंकड़ों बार फांसी पर चढाने की सजा भी अगर दी जाए तो कम होगी. इस नीच ने जबकि पूरा देश लॉक डाउन की स्थिति में है तब दिल्ली के मजदूरों को सहारा देने के बदले उनकी बिजली-पानी बंद कर दी. इतना ही नहीं इसने उनको बोरियों की तरह बसों में भरकर दिल्ली के बॉर्डर पर ले जाकर मरने के लिए छोड़ दिया. इस आदमी की नीचता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि जबकि पूरे देश में कोई घर से नहीं निकल रहा है तब भी इसकी सरकार ने साजिशन दिल्ली में बसों का परिचालन बंद नहीं किया. ऊपर-ऊपर तो ये यह कहता रहा कि उसकी सरकार ने ४ लाख लोगों के प्रतिदिन भोजन का इंतजाम किया है लेकिन भीतर-भीतर मजदूरों को दिल्ली से भगाता रहा ताकि लॉक डाउन विफल हो जाए और सारा इल्जाम केंद्र सरकार पर आए.
मित्रों, अब आप स्थिति को समझिए. इन प्रचंड भारतविरोधी ने दिल्ली के लगभग सारे मजदूरों को अपनी सरकारी बसों में भर-भरकर दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर ले जाकर पटक दिया है. अब अगर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार उनको उनके राज्य भेजती है तो गांवों में कोरोना फैलने का खतरा है और अगर आनंद विहार के पास कौशाम्बी में ही रोकती है तो फिर गाज़ियाबाद में बीमारी फैलेगी. इन सबके बीच यह नीच यह कहकर सारे झमेले से अपना पल्ला झाड लेगा कि लोग भाग रहे हैं तो मैं क्या करूं?
मित्रों, कुल मिलाकर जबकि देश की सारी पक्ष-विपक्ष की सरकारें कोरोना वायरस के खिलाफ कंधे-से-कंधा मिलाकर लड़ रहीं हैं इस घनघोर देशद्रोही अराजकतावादी ने एक बार फिर से भारत की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है. ऐसे में मुझे नहीं लगता कि भारत सरकार के समक्ष इसे बर्खास्त कर दिल्ली का पूरा प्रशासन अपने हाथों में ले लेने के सिवाय और कोई विकल्प बचता है. बल्कि मैं तो कहूँगा कि ऐसा दिल्ली दंगों से समय फरवरी के अंतिम हफ्ते में ही हो जाना चाहिए था. लेकिन होता कैसे मोदी जी भी कम जातिवादी थोड़े ही हैं सो एक बनिए की सरकार को कैसे बर्खास्त करते? लेकिन इन दिनों दिल्ली में जो हो रहा है उससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय जगत में जो छवि बन रही है वो किसी भी हाल में अच्छी तो नहीं कही जा सकती. हो सकता है कि निकट-भविष्य में देश में कोरोना भयावह रूप ले ले और आपातकाल की घोषणा करनी पड़े. अंत में मैं आपलोगों से कहना चाहता हूँ कि एक कहावत तो आपने भी सुनी होगी कि एक मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है और वह मछली कोई और नहीं केजरीवाल है.
मित्रों, मैं नहीं समझता कि केजरीवाल ने आज तक जो भी कारगुजारी की है उनमें से कोई भी माफ़ी के लायक है लेकिन अब जबकि पूरी दुनिया कोरोना के खिलाफ विश्वयुद्ध लड़ रही है तब उसने जो अपराध किया है उसके लिए उसे सैंकड़ों बार फांसी पर चढाने की सजा भी अगर दी जाए तो कम होगी. इस नीच ने जबकि पूरा देश लॉक डाउन की स्थिति में है तब दिल्ली के मजदूरों को सहारा देने के बदले उनकी बिजली-पानी बंद कर दी. इतना ही नहीं इसने उनको बोरियों की तरह बसों में भरकर दिल्ली के बॉर्डर पर ले जाकर मरने के लिए छोड़ दिया. इस आदमी की नीचता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि जबकि पूरे देश में कोई घर से नहीं निकल रहा है तब भी इसकी सरकार ने साजिशन दिल्ली में बसों का परिचालन बंद नहीं किया. ऊपर-ऊपर तो ये यह कहता रहा कि उसकी सरकार ने ४ लाख लोगों के प्रतिदिन भोजन का इंतजाम किया है लेकिन भीतर-भीतर मजदूरों को दिल्ली से भगाता रहा ताकि लॉक डाउन विफल हो जाए और सारा इल्जाम केंद्र सरकार पर आए.
मित्रों, अब आप स्थिति को समझिए. इन प्रचंड भारतविरोधी ने दिल्ली के लगभग सारे मजदूरों को अपनी सरकारी बसों में भर-भरकर दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा पर ले जाकर पटक दिया है. अब अगर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार उनको उनके राज्य भेजती है तो गांवों में कोरोना फैलने का खतरा है और अगर आनंद विहार के पास कौशाम्बी में ही रोकती है तो फिर गाज़ियाबाद में बीमारी फैलेगी. इन सबके बीच यह नीच यह कहकर सारे झमेले से अपना पल्ला झाड लेगा कि लोग भाग रहे हैं तो मैं क्या करूं?
मित्रों, कुल मिलाकर जबकि देश की सारी पक्ष-विपक्ष की सरकारें कोरोना वायरस के खिलाफ कंधे-से-कंधा मिलाकर लड़ रहीं हैं इस घनघोर देशद्रोही अराजकतावादी ने एक बार फिर से भारत की सुरक्षा को खतरे में डाल दिया है. ऐसे में मुझे नहीं लगता कि भारत सरकार के समक्ष इसे बर्खास्त कर दिल्ली का पूरा प्रशासन अपने हाथों में ले लेने के सिवाय और कोई विकल्प बचता है. बल्कि मैं तो कहूँगा कि ऐसा दिल्ली दंगों से समय फरवरी के अंतिम हफ्ते में ही हो जाना चाहिए था. लेकिन होता कैसे मोदी जी भी कम जातिवादी थोड़े ही हैं सो एक बनिए की सरकार को कैसे बर्खास्त करते? लेकिन इन दिनों दिल्ली में जो हो रहा है उससे भारत की अंतर्राष्ट्रीय जगत में जो छवि बन रही है वो किसी भी हाल में अच्छी तो नहीं कही जा सकती. हो सकता है कि निकट-भविष्य में देश में कोरोना भयावह रूप ले ले और आपातकाल की घोषणा करनी पड़े. अंत में मैं आपलोगों से कहना चाहता हूँ कि एक कहावत तो आपने भी सुनी होगी कि एक मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है और वह मछली कोई और नहीं केजरीवाल है.
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