गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

डरपोक और पिलपिली मोदी सरकार

मित्रों, कहते हैं कि कथनी और करनी में भारी अंतर होता है. चमड़े की जीभ से इन्सान कुछ भी बोल जाता है, किसी भी तरह के दावे कर डालता है लेकिन उसकी हिम्मत की परीक्षा तब होती है जब उसका संकटों और परेशानियों से सामना होता है. मित्रों, आपलोगों को भी याद होगा कि जब २०१४ में लोकसभा चुनावों का प्रचार चल रहा था तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी लगभग हर जनसभा में दावा करते थे कि उनका सीना ५६ ईंच का है अर्थात उनमें अपार साहस, हिम्मत और निर्णय लेने की क्षमता है. मित्रों, लेकिन भारत का प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही महीने बीते थे कि यह भ्रम टूटने लगा और अब पूरी तरह टूट चुका है. दरअसल हुआ यह था कि मोदी जी की सरकार ने भूमि अधिग्रहण सम्बन्धी कानूनों में बदलाव करने के लिए अध्यादेश जारी किया था. मगर जब उसका विपक्षी दलों ने बड़े पैमाने पर विरोध किया तब ५६ ईंची सरकार के हाथ-पांव फूल गए और उसे यू-टर्न लेना पड़ा. नवम्बर २०१६ में भी जब मोदी सरकार ने नोटबंदी की तब भी सरकार को रोज-रोज अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करना पड़ा. मित्रों, इसी तरह देसी और विदेशी कालेधन पर प्रहार करने में भी मोदी सरकार पूरी तरह से विफल रही है. उल्टे माल्या, चौकसे और नीरव मोदी भारत के बैंकों को हजारों करोड़ का चूना लगाकर इसी मोदी सरकार के समय विदेश भाग गए. रोबर्ट वाड्रा आज भी आजाद है, राहुल-सोनिया भी जेल नहीं गए और प्रियंका गाँधी का हिमाचल में बना अवैध बंगला शान से खड़ा है. यह कैसी ५६ ईंची सरकार है जो सुशांत सिंह और नवरुना के कातिलों को नहीं पकड़ पाती? यह कैसी ५६ ईंची सरकार है जिसकी आँखों के सामने बंगाल और केरल में थोक में भाजपा कार्यकर्ताओं को मारा जा रहा है लेकिन यह अनुच्छेद ३५६ नहीं लगाती न ही अनुच्छेद ३५५ का प्रयोग कर राज्य सरकार को निर्देश देती है? मित्रों, अभी पिछले साल १५ दिसंबर को दिल्ली के शाहीन बाग़ में सीएए के बेवजह किए जा रहे विरोध में धरने की शुरुआत हुई. जल्दी ही विरोधियों ने पूरी सड़क को अपने कब्जे कर लिया. फिर क्या था पूरे भारत के बहुत-सारे मुस्लिम बहुल इलाकों में शाहीन बाग़ जैसे धरने की शुरुआत हो गई. यहाँ तक कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजधानी में चल रहे कई सारे शाहीन बागों को भी खाली नहीं करवा पाई. फिर विरोधियों ने दिल्ली में दंगा शुरू कर दिया और इसके दौरान भी सबसे ज्यादा लाचार नजर आ रही थी दिल्ली पुलिस जो केंद्र सरकार के मातहत काम करती थी और करती है. वो तो भला हो कोविड-१९ का जिसके चलते स्वतः धरने समाप्त हो गए वर्ना न जाते क्या होता. मित्रों, इस समय भी दिल्ली में कथित किसान आन्दोलन चल रहा है और केंद्र की ५६ ईंची सरकार की हवा ख़राब हुई जा रही है. सूत्रों से पता चला है कि केंद्र सरकार एक बार फिर यू टर्न लेने के लिए तैयार हो गई है. केन्द्र सरकार की इन हरकतों को देखकर ऐसे लगता है कि यह सरकार भीड़ और सड़क जाम से बहुत डरती है और हर जायज-नाजायज मांग को मानने को तैयार हो जाती है. हमें ऐसे भी लग रहा है कि हमें भी जनसंख्या कानून, समान नागरिक संहिता, अल्पसंख्यक संशोधन कानून, अनुच्छेद ३० में संशोधन, पुलिस और न्यायिक सुधार कानून, नवीन भारतीय सिविल सेवा कानून, भ्रष्टाचार विरोधी सख्त कानून आदि के लिए दिल्ली की सडकों पर भीड़ जमा करके सड़क जाम करना होगा. जब यह सरकार दिल्ली की सडकों को भी खाली नहीं करवा सकती तो क्या खाकर पाकिस्तान और चीन से जमीन खाली करवाएगी? ज्यादा-से-ज्यादा यह नए सियाचिन पैदा कर सकती है. इससे ज्यादा कुछ नहीं.

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