रविवार, 20 दिसंबर 2020

सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार का सुप्रीम झूठ

मित्रों, हम बचपन से ही पढ़ते आ रहे हैं कि भारत में जनसँख्या विस्फोट की स्थिति है जो लगातार भयावह रूप लेती जा रही है. गांवों और शहरों में खेत और बगीचे कंक्रीट के जंगल में बदलते जा रहे हैं. प्रदुषण खतरनाक स्तर तक पहुँच रहा है. बेरोजगारी चरम पर है. अपराध बढ़ रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार की मानें तो जनसँख्या-विस्फोट कोई समस्या ही नहीं है इसलिए भारत को जनसँख्या-नियंत्रण कानून नहीं बनाना चाहिए. मित्रों, विचित्र स्थिति तो यह है कि जनसँख्या नियंत्रण कानून बनाने से बचने के लिए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ऐसा झूठ बोला है जिसको पांचवीं कक्षा का बच्चा भी पकड़ लेगा. दरअसल सरकार ने हमारे बड़े भाई अश्विनी उपाध्याय द्वारा जनसँख्या-नियंत्रण पर सुप्रीम कोर्ट दायर जनहित याचिका पर जबरदस्ती अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि चूंकि स्वास्थ्य संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्य सूची का विषय है इसलिए केंद्र सरकार जनसँख्या-नियंत्रण कानून बना ही नहीं सकती. जबरदस्ती इसलिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उसे इस मुकदमे में पक्ष माना ही नहीं था. वास्तव में भारत के संविधान में जनसँख्या-नियंत्रण और परिवार नियोजन समवर्ती सूची में २० क में दर्ज है और समवर्ती सूची में दर्ज विषयों के ऊपर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं. साथ ही भारत के संविधान के अनुसार अगर संसद और विधानसभा दोनों एक ही विषय पर अलग-अलग कानून बनाती हैं तो संसद द्वारा निर्मित कानून ही मान्य होगा. मित्रों, समझ में नहीं आता कि भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय के जिन अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए हलफनामा तैयार करवाया उन्होंने कभी भारत का संविधान पढ़ा भी है या नहीं. भारतीय प्रशासनिक सेवा भारत की सर्वोच्च सेवा है और काफी योग्य लोग ही उसमें चयनित हो पाते हैं फिर उस स्तर का कोई अधिकारी ऐसी गलती कैसे कर सकता है? क्या स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन भी संविधान का क अक्षर नहीं जानते? और अगर जानते हैं तो फिर स्वास्थ्य मंत्रालय ने झूठ क्यों बोला? मित्रों, इतना ही नहीं स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा है कि चूंकि भारत की प्रति वर्ष जनसँख्या वृद्धि दर अब २ प्रतिशत के लगभग है इसलिए भी जनसँख्या-नियंत्रण कानून की जरुरत नहीं है. क्या स्वास्थ्य मंत्रालय ने कभी हिसाब लगाकर देखा है कि सवा अरब या डेढ़ अरब का २ प्रतिशत कितना होता है? लगभग ढाई या तीन करोड़. क्या यह छोटी संख्या है? क्या भारत जैसा गरीब देश जो दुनिया की १६ प्रतिशत जनसँख्या और मात्र २ प्रतिशत क्षेत्र धारण करता है इतनी बढ़ी जनसँख्या के लिए मूलभूत सुविधाएँ जुटा सकता है? कहाँ से आएँगे इतने स्कूल, घर और नौकरियां? मित्रों, ५६ ईंची मोदी सरकार तो दावे करती है कि वो देशहित में नीतियाँ बनाती है और उसके लिए नेशन फर्स्ट है तो फिर वो जनसँख्या-नियत्रण की अपनी सबसे बड़ी जिम्मेदारी से पीछे क्यों भाग रही है? भारत का कोई अनपढ़ भी बता देगा कि भारत की सबसे बड़ी समस्या जनसँख्या-विस्फोट है. क्या इतनी-सी बात भी मोदी सरकार को पता नहीं है? हालाँकि यह सच नहीं है फिर भी अगर जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन राज्य सरकार का विषय होता तो क्या मोदी सरकार ने कभी राज्य-सरकार के विषयों पर कानून बनाया ही नहीं है? फिर कृषि कानून जिनको लेकर दिल्ली की सडकों पर धींगामुश्ती चल रही है वो क्या है? कृषि भी तो राज्य-सूची का विषय है. मित्रों, कुल मिलाकर केंद्र सरकार ने अपने सफ़ेद झूठ से भारत के लोगों को निराश किया है. एक उम्मीद जो मोदी जी और उनकी सरकार से थी कि वे भारत को विश्वगुरु बनाएँगे अब टूटती हुई लग रही है. मोदी सरकार को भी कदाचित सत्ता से मोह हो गया है और शायद वह भविष्य में ऐसा कोई ऐसा कदम नहीं उठाएगी जिससे वोट-बैंक पर बुरा असर पड़े भले ही उसकी कितनी भी आवश्यकता क्यों न हो?

कोई टिप्पणी नहीं: