शनिवार, 19 दिसंबर 2009

सरकारी का विकल्प निजीकरण नहीं



जबसे भारत में उदारवाद की हवा चली है अधिकतर अर्थशास्त्री सार्वजनिक क्षेत्र की जगह निजी क्षेत्र को प्राथमिकता देने का समर्थन कर रहे हैं.लगातार सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों का विनिवेश किया जा रहा है.निजीकरण के समर्थकों का मानना है कि इससे कम्पनियों की व्यवस्था और प्रदर्शन में सुधार होगा और उपभोक्ताओं को भी अच्छी सेवा प्राप्त होगी.लेकिन यह सोंच एकपक्षीय है.निजी क्षेत्र अपने कर्मियों को सामाजिक सुरक्षा नहीं देते.जरूरत हुई तो रख लिया नहीं तो निकाल-बाहर कर दिया.साथ ही उनका देशहित से भी कुछ लेना-देना नहीं होता उनका एकमात्र लक्ष्य होता है मुनाफाखोरी.अब मोबाइल सेवा प्रदाता कम्पनियों को ही लें.एयरटेल और रिलायंस जैसी कम्पनियां ग्राहकों की अनुमति के बिना उनके नंबर पर नई-नई योजनाओं को लागू कर देते हैं और पैसे भी काट लेते हैं.यह कोई सुनी-सुनाई बात नहीं है.मैं यह निजी अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ.क्या इस तरह का व्यवहार उचित है?ग्राहक कहाँ-कहाँ और किन-किन के खिलाफ उपभोक्ता अदालतों में मुकदमा लड़ता फिरे?और फ़िर उपभोक्ता अदालतों की स्थिति भी तो अच्छी नहीं है.बिहार के अधिकतर जिलों में तो पूरी संख्या में न्यायाधीश हैं भी नहीं.अभी मंदी का शोर थमा नहीं है.पूरे भारत में मंदी के नाम पर निजी क्षेत्र ने लाखों लोगों को नौकरी से निकल दिया.सरकारी आंकड़े भी बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में अभूतपूर्व संख्या में कर्मियों ने पीएफ से पैसे निकले हैं.लाभ हो तो मालिकों का और घाटा हो तो कर्मियों का.इसे और कुछ भले ही कहा जाए न्याय तो नहीं ही कहा जा सकता है.

1 टिप्पणी:

Pravin chandra roy ने कहा…

नमस्कार भाईजी ,
आपका निजी और सार्वजनिक विषयक विचार मुझे कहीं से सुपाच्य नहीं लगा. आज विश्व पटल पर आर्थिक समृधि के कारन ही किसी भी देश को त्वज्जो दिया जाता है और उसी देश की हर कोई सुनता भी है. समय और परिस्थितियों के अनुकूल अगर आप आपने में बदलाव् नहीं लायेंगे तोः आपका वजूद धीरे धीरे समाप्त हो जायेगा. सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में जाने के बाद जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं और कर्मचारीयों की मनमानी हरकतें कम हो जाती हैं. वो अनावश्यक हड़ताल नहीं कर सकते....... आदि कई ऐसे कारन हैं. हाँ मै मानता हूँ की कई कंपनियां अपनी जिमेदारियों का निर्वहन सही तरीके से नहीं करती हैं . सिर्फ इस कारन हम निजी क्षेत्र का विरोध नहीं कर सकते. सरकार को इन पर निगरानी रखनी चाहिए और कठोर करवाई करनी चाहिये...........अपना प्रवीण